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राजनीतिफ्रांस

फ्रांस में सीधी टक्कर, माक्रों की कुर्सी बचेगी?

अविनाश द्विवेदी
२४ अप्रैल २०२२

फ्रांस में मौजूदा राष्ट्र्पति इमानुएल माक्रों को धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ला पेन चुनौती दे रही हैं. इस चुनाव में कोरोना संक्रमित लोग भी बूथ पर आकर वोट डाल रहे हैं.

Präsidentschaftswahl in Frankreich
तस्वीर: Eric Feferberg/AFP/AP/dpa/picture alliance

फ्रांस के राष्ट्रपति पद के चुनाव के निर्णायक चरण के लिए वोट डाले जा रहे हैं. प्रतिद्वंदियों के रूप में वर्तमान राष्ट्रपति और मध्यमार्गी माने जाने वाले इमानुएल माक्रों और कट्टर दक्षिणपंथी नेता मरीन ला पेन आमने-सामने हैं.

चुनाव से पहले के ओपिनियन पोल्स में माक्रों को करीब 55 फीसदी मत मिलने की उम्मीद जताई गई थी, जबकि मरीन ला पेन को 45 फीसदी मत मिलने की आशा थी. इन ओपिनियन पोल्स में 3 फीसदी वोटों के ऊपर नीचे होने अनुमान भी होता है. ऐसा वाकई हुआ तो फिलहाल का करीबी मामला और भी कांटे का हो सकता है.

कोरोना संक्रमित भी डाल रहे मत

फ्रांस में हर रोज 80 हजार से भी ज्यादा कोरोना वायरस संक्रमण के मामले आ रहे हैं. फिर भी मतदान में धांधली के डर से मेल-इन वोटिंग या पत्र के जरिए वोटिंग की अनुमति नहीं दी गई है. यानी सभी को वोट डालने के लिए पोलिंग स्टेशन आना पड़ रहा है. भले ही वो कोरोना संक्रमित ही क्यों न हो. हालांकि कोरोना संक्रमित लोगों के लिए मास्क पहनने की अनिवार्यता रखी गई है.

ऐसे लोग जो वोट डालने नहीं जा सकते, उनकी जगह पर किसी और को वोट डालने की अनुमति है. लेकिन ऐसे लोगों को चुनाव की तारीख से पहले ही एक फॉर्म भरकर पुलिस से वैरिफाई करवाना होता है.

मिलांसों मतदाताओं के हाथ में फैसला

पहले चरण का चुनाव 10 अप्रैल को हुआ था जिसमें शामिल कुल 12 उम्मीदवारों में से कोई भी जीत के लिए जरूरी 50 प्रतिशत वोट नहीं पा सका. सबसे ज्यादा माक्रों को 28 प्रतिशत वोट मिले और मरीन ला पेन 23 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहीं. इस तरह चुनाव दूसरे चरण में दाखिल हुए जहां दो सबसे अधिक वोट पाने वाले दोनों उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है.  
फ्रांस में अब भी चुनाव बैलेट पेपर के जरिए होता है. फ्रांस के चुनावों के बारे में कहा जाता है कि पहले चरण में लोग अपने दिल की सुनकर मतदान करते हैं और दूसरे चरण में दिमाग से. लेकिन ऐसे कई लोग हैं, जो इमानुएल माक्रों और मरीन ला पेन दोनों को ही राष्ट्रपति पद के उपयुक्त नहीं पा रहे.

ऐसे मतदाताओं में बड़ी संख्या कट्टर वामपंथी नेता ज्यां लुक मिलांसों के समर्थकों की है. पहले चरण के चुनावों में तीसरे नंबर पर रहे मिलासों को करीब 22 फीसदी मत मिले थे और मरीन ला पेन का वोट प्रतिशत उनसे सिर्फ 1 फीसदी ही ज्यादा था. ऐसे में माना जा रहा है कि ला पेन और माक्रों में से जिसे भी मिलांसों के मतदाताओं का समर्थन मिलेगा, उसके लिए राष्ट्रपति बनने की राह आसान हो जाएगी.

बहुत से लोग खाली पर्ची डाल रहे

यूं तो मिलांसों के वोटर्स में से ज्यादातर के माक्रों को ही वोट देने की उम्मीद है लेकिन उनमें से कई ऐसे भी हैं, जो दोनों ही उम्मीदवारों को अयोग्य मानते हुए या तो मतदान ही नहीं कर रहे और अगर कर भी रहे हैं तो खाली पर्चियां बैलेट बॉक्स में डाल रहे हैं. इन दोनों ही तरह के मतदाताओं की संख्या इस बार काफी ऊंची रहने की उम्मीद है.

फ्रांसीसी अखबारों का झुकाव भी माक्रों की ओर ही दिख रहा है. ले पेरीजियन, ले मोंद और ले फिगारो जैसे सभी अखबारों ने मतदाताओं को परिणामों के बारे में चेताया है. लेकिन फिर भी मरीन ला पेन के बार फ्रांसीसी जनता के बड़े वर्ग का समर्थन है.

ला पेन-माक्रों का मुकाबला कड़ा

पिछले राष्ट्रपति चुनावों में भी मरीन ला पेन माक्रों के सामने प्रमुख उम्मीदवार थीं लेकिन उन्हें करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी. तबसे अब तक उन्होंने अपनी एकदम कट्टरपंथी छवि को थोड़ा नरम करने का प्रयास किया है. पिछले कई महीनों से वे लगातार बढ़ती महंगाई, लोगों के कम वेतन और पेट्रोल-गैस के बढ़ते दामों के खिलाफ लगातार बोल रही हैं. इससे उनकी लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ है. लेकिन विदेशियों के प्रति उनका सख्त रूख जारी है. 

यूक्रेन पर रूसी हमले की प्रतिक्रिया देने में व्यस्त रहे माक्रों अपना चुनाव अभियान देरी से शुरू कर सके थे. इसका उन्हें थोड़ा नुकसान भी हुआ. लेकिन वापस लौटने के बाद से उन्होंने अपने प्रचार अभियान को अच्छी तरह से संभाला है और फिर से फ्रांसीसी जनता के विश्वास को हासिल किया है. अगर वे ये चुनाव जीतते हैं तो दो दशकों में यह पहला मौका होगा, जब कोई फ्रांसीसी राष्ट्रपति दूसरी बार पद पर वापसी करेगा.

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