यूरोप के लिए समुद्र मंथन बना पोलैंड का चुनाव
१४ अक्टूबर २०२३"वह देशद्रोही है," "वह रूस का एजेंट है," "वह बर्लिन की कठपुतली है," "हम जीते तो वह जेल में होगा." पोलैंड की राजनीति के सबसे बड़े दो नेता एक दूसरे के बारे में यही कह रहे हैं. 2004 में यूरोपीय संघ में शामिल हुए पोलैंड में 15 अक्टूबर को संसदीय चुनाव होने हैं. चुनावों को सत्ताधारी लॉ एंड जस्टिस पार्टी (पीआईएस) के दिग्गज यारोस्लाव काचिंस्की और डॉनाल्ड टुस्क के बीच आखिरी लड़ाई माना जा रहा है.
यूरोपीय संघ के लिए क्यों अहम हैं पोलैंड के चुनाव
सिविक प्लेटफॉर्म पार्टी के नेता, 66 साल के टुस्क अपने कार्यकाल के दौरान यूरोपीय संघके मुख्यालयों के खूब चक्कर लगाते रहे हैं. वह 2014 से 2019 तक यूरोपीय आयोग के प्रेसीडेंट रह चुके हैं. वहीं उप प्रधानमंत्री काचिंस्की यूरोपीय संघ के दफ्तरों में ना जाने के लिए मशहूर हैं. इन चुनावों में मातेयुस मोराविएस्की कहीं फ्रंट सीट पर नहीं दिखते हैं. मोराविएस्की दिसंबर 2017 से पोलैंड के पीएम जरूर हैं, लेकिन सरकार की असली चाबी काचिंस्की के पास है.
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74 साल के काचिंस्की यूरोपीय संघ के कई नियम कायदों को मानने से साफ इनकार करते आए हैं. ईयू की आपत्तियों के बावजूद उनकी सरकार पर न्यायिक सुधारों के नाम पर अपने पंसदीदा जजों को अदालतों में भरने का आरोप हैं. काचिंस्की, ईयू की आप्रवासन नीति खुलकर विरोध करते हैं. इस मामले में उन्हें हंगरी का समर्थन भी मिलता रहा है. यूरोपीय संघ के जलवायु समझौते को लेकर भी पोलैंड और हंगरी अपनी नाराजगी खुले तौर पर दिखा चुके हैं.
काचिंस्की आरोप लगाते हैं कि टुस्क, पोलैंड से ज्यादा "अपने जर्मन क्लाइंट्स का ध्यान" रखते हैं. चुनाव अभियान में काचिंस्की कह चुके हैं कि उनकी सरकार आई तो टुस्क की जगह, जेल में होगी.
विपक्ष के उम्मीदवार और पूर्व प्रधानमंत्री डॉनल्ड टुस्क भी काचिंस्की को जेल भेजने का एलान कर चुके हैं. वह कहते हैं कि काचिंस्की और उनकी पार्टी ने सरकारी धन को दुरुपयोग किया है. यूरोपीय संघ ने पोलैंड को दिया जाने वाला 35 अरब यूरो का कोरोना पैकेज रोक रखा है. टुस्क कहते हैं कि पीआईएस की गलत नीतियों के कारण ही यह पैसा रुका है. टुस्क चाहते हैं कि पोलिश सरकार एक बार फिर यूरोपीय संघ के साथ अच्छे तालमेल के साथ काम करे ताकि देश आगे बढ़ सके. इस राह में वह काचिंस्की को सबसे बड़ा रोड़ा बताते हैं.
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एक दूसरे को निपटाने पर आमादा दो धुरंधर
राजनीतिक समीक्षक काचिंस्की और टुस्क के मुकाबले को राजनीतिक से ज्यादा निजी शत्रुता कहते हैं. पोलैंड में 1989 में पहली बार गैर साम्यवादी सरकार बनी. कम्युनिस्टों को सत्ता से हटाने में टुस्क और काचिंस्की ब्रदर्स (लेख और यारोस्लाव) की अहम भूमिका रही. हालांकि उस संघर्ष के खत्म होते ही दोनों धड़ों में राजनीतिक विवाद गहराता गया. टुस्क पर आरोप लगते हैं कि वह अपने अलावा किसी और को चमकते हुए नहीं देख सकते. जर्मन विरासत के कारण उन पर बर्लिन के प्रति ज्यादा वफादार होने के आरोप भी लगते हैं.
यारोस्लाव काचिंस्की को अब भी लगता है कि उनके भाई लेख काचिंस्की की मौत में टुस्क का हाथ है. अप्रैल 2010 में रूस में हुए विमान हादसे में पोलैंड के तत्कालीन राष्ट्रपति लेख काचिंस्की की मौत हो गई. उस वक्त टुस्क प्रधानमंत्री थे. हालांकि जांच में साजिश का कोई सबूत सामने नहीं आया लेकिन बड़े भाई की मौत के बाद से यारोस्लाव हमेशा काले कपड़े पहने रहते हैं.
मौजूदा चुनाव अभियान के दौरान काचिंस्की की पार्टी, जली हुई कारें, हिंसा और भूमध्यसागर से यूरोप आते रिफ्यूजियों की तस्वीरों के पोस्टर बना चुकी हैं. पीआईएस का कहना है कि पोलैंडवासी सिर्फ पीआईएस की सरकार में ही सुरक्षित रह सकते हैं. वहीं विपक्ष के उम्मीदवार टुस्क, महंगाई, प्रचार के लिए सरकारी पैसे का दुरुपयोग और पोलैंड को बर्बादी की राह पर ले जाने वालों दंड देने एलान कर रहे हैं.
चुनाव के साथ जनमत संग्रह
पोलैंड में रविवार को संसदीय चुनावों के साथ ही एक जनमत संग्रहभी हो रहा है. इन जनमत संग्रह में लोगों के सामने चार सवाल रखे गए हैं. ये सवाल हैं:
क्या आप सरकारी कंपनियों को बेचने का समर्थन करते हैं?
क्या आप रिटायमेंट की उम्र बढ़ाने का समर्थन करते हैं?
क्या आप पोलिश-बेलारूसी सीमा पर बॉर्डर गार्ड्स की निगरानी बंद करने के समर्थक हैं?
क्या आप मध्य पूर्व और अफ्रीका से आने वाले लाखों गैरकानूनी आप्रवासियों को यूरोपीय संघ के कायदों के तहत जबरन स्वीकार करने के समर्थक हैं?
विपक्ष का आरोप है कि जनमत संग्रह में ये चार सवाल जानबूझकर पूछे जा रहे हैं. इनका असल मकसद वोटरों के बीच काल्पनिक भय पैदा करना है ताकि पीआईएस को चुनावों में फायदा मिल सके.
यूरोपीय संघ के लिए कितना अहम है पोलैंड
अगर पीआईएस सत्ता में लौटी तो 27 देशों वाले यूरोपीय संघ की मुश्किलें कई गुना बढ़नी तय हैं. ऐसा नतीजा यूरोपीय संघ के भीतर फूट और अंतहीन बहसों को और ज्यादा बढ़ाएगा.
टुस्क की जीत, उदारवादी पोलैंड के साथ साथ यूरोपीय संघ के लिए भी एक बड़ी राहत होगी. जर्मनी की पूर्व चांसलर, अंगेला मैर्केल के राजनीति से संन्यास लेने के बाद यूरोपीय संघ को एक बड़े नेता की जरूरत है. मौजूदा जर्मन चासंलर ओलाफ शॉल्त्स और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों इस भूमिका में बहुत मजबूत नहीं दिखते हैं. टुस्क इस कमी को काफी हद तक भर सकते हैं. वह संघ के पूर्वी देशों की समस्याएं समझने के साथ साथ ईयू की कार्यप्रणाली भी जानते हैं.
2013 में क्रोएशिया यूरोपीय संघ का सबसे नया सदस्य बना था. तब से संघ ने ब्रेक्जिट के रूप में एक सदस्य की विदाई ही देखी है. 2030 तक पूर्वी यूरोप के यूक्रेन, मोल्दोवा, सर्बिया, जॉर्जिया और अल्बानिया जैसे देश, ईयू में शामिल होने की जुगत में हैं. ऐसे में संघ में पूर्वी दिग्गज पोलैंड की अहमियत कहीं ज्यादा बढ़ चुकी है.
पोलैंड के नतीजे अगले साल होने वाले यूरोपीय संघ के चुनावों को भी प्रभावित करेंगे. पोलैंड के धुर दक्षिणपंथी तत्व ब्रेक्जिट की तरह पोलक्जिट का नारा दे रहे हैं. अलग अलग देशों में धुर दक्षिणपंथियों की ऊंची होती ये आवाजें 27 देशों के ब्लॉक के लिए बहुत अच्छी नहीं हैं.