अधिकतर देशों में 18 साल की उम्र तक बच्चों को कानूनी हक नहीं मिलते. उनके माता पिता उनके लिए फैसले लेते हैं. लेकिन सोचिए कैसा हो अगर आपको जिंदगी भर कभी कोई हक ना मिले.
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घर से बाहर निकालना हो, कहीं घूमने जाना हो, किसी से मिलना हो, हर काम के लिए किसी की इजाजत लेनी पड़े! सऊदी अरब में महिलाओं का यही हाल है. वो अपने लिए कोई फैसला नहीं ले सकतीं. कभी पिता, कभी भाई, कभी पति, तो कभी बेटे की मर्जी पर निर्भर रहना पड़ता है.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी ताजा रिपोर्ट बॉक्स्ड इन: विमन इन सऊदी अरेबियाज मेल गार्डियनशिप सिस्टम में इसी ओर सबका ध्यान खींचने की कोशिश की है. साथ ही संस्था ने कई छोटे छोटे वीडियो भी जारी किए हैं, जो सऊदी में महिलाओं के हालात को दर्शाते हैं.
रिपोर्ट तैयार करने के लिए संस्था ने सऊदी में कई महिलाओं से बात की और उनके तजुर्बे जमा किए. महिलाओं ने बताया कि पासपोर्ट का आवेदन देना हो, कोई फ्लाइट लेनी हो, बैंक ट्रांसफर करना हो या किसी कॉन्फरेंस में जाना हो, कुछ भी एक पुरुष की आज्ञा के बिना नहीं किया जा सकता.
हर वीडियो के अंत में सवाल किया गया है कि क्या पुरुषों को महिलाओं का अभिभावक होना जरूरी है. #TogetherToEndMaleGuardianship के जरिये ह्यूमन राइट्स वॉच सऊदी में एक बदलाव लाने की उम्मीद कर रहा है.
इन हकों के लिए अब भी तरस रही हैं सऊदी महिलाएं
सऊदी अरब में लंबी जद्दोजहद के बाद महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार तो मिल गया है. लेकिन कई बुनियादी हकों के लिए वे अब भी जूझ रही हैं.
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पुरुषों के बगैर नहीं
सऊदी अरब में औरतें किसी मर्द के बगैर घर में भी नहीं रह सकती हैं. अगर घर के मर्द नहीं हैं तो गार्ड का होना जरूरी है. बाहर जाने के लिए घर के किसी मर्द का साथ होना जरूरी है, फिर चाहे डॉक्टर के यहां जाना हो या खरीदारी करने.
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फैशन और मेकअप
देश भर में महिलाओं को घर से बाहर निकलने के लिए कपड़ों के तौर तरीकों के कुछ खास नियमों का पालन करना होता है. बाहर निकलने वाले कपड़े तंग नहीं होने चाहिए. पूरा शरीर सिर से पांव तक ढका होना चाहिए, जिसके लिए बुर्के को उपयुक्त माना जाता है. हालांकि चेहरे को ढकने के नियम नहीं हैं लेकिन इसकी मांग उठती रहती है. महिलाओं को बहुत ज्यादा मेकअप होने पर भी टोका जाता है.
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मर्दों से संपर्क
ऐसी महिला और पुरुष का साथ होना जिनके बीच खून का संबंध नहीं है, अच्छा नहीं माना जाता. डेली टेलीग्राफ के मुताबिक सामाजिक स्थलों पर महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रवेश द्वार भी अलग अलग होते हैं. सामाजिक स्थलों जैसे पार्कों, समुद्र किनारे और यातायात के दौरान भी महिलाओं और पुरुषों की अलग अलग व्यवस्था होती है. अगर उन्हें अनुमति के बगैर साथ पाया गया तो भारी हर्जाना देना पड़ सकता है.
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रोजगार
सऊदी सरकार चाहती है कि महिलाएं कामकाजी बनें. कई सऊदी महिलाएं रिटेल सेक्टर के अलावा ट्रैफिक कंट्रोल और इमरजेंसी कॉल सेंटर में नौकरी कर रही हैं. लेकिन उच्च पदों पर महिलाएं ना के बराबर हैं और दफ्तर में उनके लिए खास सुविधाएं भी नहीं है.
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आधी गवाही
सऊदी अरब में महिलाएं अदालत में जाकर गवाही दे सकती हैं, लेकिन कुछ मामलों में उनकी गवाही को पुरुषों के मुकाबले आधा ही माना जाता है. सऊदी अरब में पहली बार 2013 में एक महिला वकील को प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिला था.
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खेलकूद में
सऊदी अरब में लोगों के लिए यह स्वीकारना मुश्किल है कि महिलाएं भी खेलकूद में हिस्सा ले सकती हैं. जब सऊदी अरब ने 2012 में पहली बार महिला एथलीट्स को लंदन भेजा तो कट्टरपंथी नेताओं ने उन्हें "यौनकर्मी" कह कर पुकारा. महिलाओं के कसरत करने को भी कई लोग अच्छा नहीं मानते हैं. रियो ओलंपिक में सऊदी अरब ने चार महिला खिलाड़ियों को भेजा था.
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संपत्ति खरीदने का हक
ऐसी औपचारिक बंदिश तो नहीं है जो सऊदी अरब में महिलाओं को संपत्ति खरीदने या किराये पर लेने से रोकती हो, लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना महिलाओं के लिए ऐसा करना खासा मुश्किल काम है.