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जर्मनी में भी पटाखों पर रोक की मांग

३० दिसम्बर २०२२

भारत में पटाखों का जैसा इस्तेमाल दिवाली पर होता है, वही आलम जर्मनी में नए साल के मौके पर होता है. जर्मनी में पटाखों के इस्तेमाल के कई नियम भी हैं, फिर भी इन पर प्रतिबंध की मांग बढ़ रही है.

Sylvester Feuerwerksverkauf
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance

पटाखों के पर्यावरण पर बुरे असर पर दुनिया भर में बहस चल रही है. कई दूसरे देशों की तरह जर्मनी में भी नये साल का स्वागत पटाखों से किया जाता है. लेकिन पटाखों की खरीद-बिक्री के लिए नियम-कायदे बने हैं, कि वह कब बिकेंगे, कहां बिकेंगे और कितने दिनों तक बिकेंगे. आम तौर पर पटाखे सिर्फ 29 दिसंबर से 31 दिसंबर के बीच खरीदे जा सकते हैं और अगर इन तीन दिनों में कोई रविवार हो जब दुकानें बंद होती हैं तो खरीदारी 28 दिसंबर से शुरू हो जाती है. साल बदलने के पहले के तीन दिनों में 18 साल से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति पटाखे खरीद सकता है, चाहे सुपर मार्केट से खरीदे या फिर ऑनलाइन.

जर्मनी में दो तरह के पटाखे बिकते हैं. एक तो छोटे पटाखे जिसे 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे भी खरीद सकते हैं. दूसरी कैटेगरी रॉकेट या पायरोटेकनिक जैसे बड़े पटाखों की है जिसे सिर्फ 18 साल से ज्यादा के लोग खरीद सकते हैं. सीमा कंट्रोल से मुक्त यूरोप में जर्मनी के लोग पटाखे विदेशों में भी खरीद सकते हैं, लेकिन वहां बिकने वाले बहुत से पटाखों पर जर्मनी में प्रतिबंध है. ऐसे में लोगों पर विदेशों से अवैध पटाखे लाने पर सजा होने का भी खतरा होता है.

पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है पटाखों से

पटाखे चलाने से जर्मनी में भी पर्यावरण प्रदूषण होता है. जर्मनी के संघीय पर्यावरण कार्यालय का कहना है कि पटाखों से हर साल 80 करोड़ टन कार्बन डाय ऑक्साइड पैदा होता है. भारत में जहां पटाखे पर रोक राजनीतिक विवाद का मुद्दा बन गया है, जर्मनी में भी इस पर रोक लगाने पर बहस हो रही है. पटाखे चलाने या न चलाने से लेकर पटाखों का उत्पादन तक बहस के केंद्र में है, क्योंकि पर्यावरण सुरक्षा और पटाखे चलाने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं के अलावा पटाखे फोड़ने से पैदा होने वाला कचरा भी बड़ी समस्या है.

जर्मनी में खतरनाक पटाखों पर रोक है. पुलिस के छापे में पकड़ा गया अवैध पटाखातस्वीर: Polizei Osnabrück

पटाखे के खोल में कागज और प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. पटाखे फोड़ने से कागज और प्लास्टिक के टुकड़े इधर उधर फैल जाते हैं, जिन्हें जमा करना आसान नहीं होता. पटाखा कंपनियां उन्हें पर्यावरण के लिए कम नुकसानदेह बनाने की कोशिश कर रही हैं. मसलन रॉकेटों में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के बदले कागज का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन पटाखों को पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल बनाने में अभी समय लगेगा.

उद्योग बेहाल लेकिन पर्यावरणवादी चाहते रोक

पटाखे बनाने वाली कंपनियां कोरोना महामारी के कारण दो साल तक पटाखों पर लगी रोक से बेहाल हैं तो दूसरी ओर उमवेल्टहिल्फे जैसी पर्यावरण संरक्षण संस्थाएं तो निजी स्तर पर पटाखे चलाने का ही विरोध कर रही है और पटाखों पर प्रतिबंध लगाने की मांगकर रही है. पर्यावरण समर्थकों का कहना है कि पटाखों में इस्तेमाल होने वाली चीजों को रिसाइकल करना संभव नहीं है.

पटाखों से सिर्फ इंसान ही घायल नहीं होते, जानवरों पर भी उनका असर होता हैतस्वीर: Emica Elvedji/PIXSELL/picture alliance

उनका कहना है कि पटाखों से होने वाला प्रदूषण और इसकी वजह से घायल होने वाले लोगों की तादाद अभी भी बहुत ज्यादा है. इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि वायु प्रदूषण सेहत के लिए नुकसानदेह है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हवा में पीएम10 की मात्रा 15 माइक्रोग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए लेकिन यूरोपीय संघ में यह सीमा औसत 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है और साल में 35 दिनों से ज्यादा यह सीमा पार नहीं होनी चाहिए.

जर्मन पर्यावरण कार्यालय के अनुसार 2019-20 में नए साल वाली रात देश के बड़े शहरों में पीएम10 की मात्रा कई शहरों में तो 1000 माइक्रोग्राम तक रही. जर्मनी की उपभोक्ता संस्था फरब्राउखरसेंट्राले की ब्रांडेनबुर्ग शाखा के एक सर्वे के अनुसार जर्मनी के 53 प्रतिशत लोग निजी तौर पर चलाए जाने वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का का समर्थन करते हैं.

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