सौर ऊर्जा सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा है लेकिन वहीं उपलब्ध होगी जहां सूरज होगा. पर अंतरिक्ष में तो सूरज हमेशा उपलब्ध है, फिर वहीं बिजली बनाकर धरती पर भेज दी जाए तो? यूरोपीय वैज्ञानिक इस योजना पर काम शुरू कर चुके हैं.
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जब दुनिया सौर ऊर्जा को लेकर इतना उत्साहित है कि हर देश सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट बनाने की जुगत में लगा है, तब यह सवाल लाजमी है कि जहां हर वक्त सूरज मौजूद रहता है, यानी अंतरिक्ष में से ही सीधे ऊर्जा को जमा किया जा सकता है या नहीं.
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) इस दिशा में अहम कदम उठाने की तैयारी में है. अंतरिक्ष विज्ञान के जानकार इस बात का पता लगाना चाहते हैं कि क्या अंतरिक्ष से सीधे लोगों के घरों तक बिजली पहुंचाई जा सकती है.
इस बारे में एक अध्ययन की शुरुआत होनी है जिसकी इजाजत इसी हफ्ते मिल जाने की संभावना है. तीन साल लंबे इस अध्ययन में यह समझने की कोशिश की जाएगी कि अंतरिक्ष में विशाल सोलर फार्म बनाना कितना संभव और खर्चीला हो सकता है.
कैसे काम करेंगे ये फार्म?
वैज्ञानिक चाहते हैं कि पृथ्वी की कक्षा में विशालकाय उपग्रह स्थापित किए जाएं. इन उपग्रहों पर भीमकाय सौर पैनल लगाए जाएं जो किसी बिजली संयंत्र की तरह बिजली पैदा करें और उसे सीधे लोगों के घरों में भेज दें.
यह विचार कोई नया नहीं है और बहुत से संस्थानों और अंतरिक्ष एजेंसियों ने इस पर पहले भी काम किया है. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की योजना के रूप में पहली बार इस विचार को ठोस आधार मिला है.
50 साल बाद चांद की ओर चला नासा
आखिरकार नासा का नया मून रॉकेट अपने सफर पर रवाना हो गया. इसके साथ ही अमेरिका चांद पर अपने अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया है. 50 साल बाद नासा ने चांद की ओर कोई यान भेजा है.
तस्वीर: /AP Photo/picture alliance
तीन हफ्ते की अंतरिक्ष यात्रा
सबकुछ अच्छा रहा तो तीन हफ्ते की उड़ान के दौरान कैप्सूल चांद के चारों ओर एक बड़ी कक्षा में परिक्रमा करने के बाद दिसंबर में पृथ्वी पर प्रशांत महासागर में लौट आयेगा.
तस्वीर: /AP Photo/picture alliance
उड़ चला रॉकेट
लगभग एक साल की देरी के बाद बुधवार सुबह स्थानीय समय के अनुसार 1 बजे केनेडी स्पेस सेंटर से रॉकेट ने उड़ान भरी. काले आकाश में नारंगी आग और धुआं छोड़ते रॉकेट ने कुछ ही सेकेंड में 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ ली.
तस्वीर: Joe Skipper/REUTERS
पृथ्वी की कक्षा से बाहर
दो घंटे से भी कम समय में इसने ओरियन कैप्सूल को पृथ्वी की कक्षा से बाहर धकेल दिया. जहां से वह चांद की कक्षा की ओर अपने सफर पर चल निकला. कैप्सूल में तीन मानव पुतले भी भेजे गये हैं. इन पुतलों में कई तरह के सेंसर लगे हैं जो कंपन, झटके, रेडियेशन समेत कई और चीजों के आंकड़े जुटायेंगे.
तस्वीर: Joe Rimkus Jr./REUTERS
कई बार टला लॉन्च
पिछले तीन महीने में कई बार इस रॉकेट की उड़ान का कार्यक्रम बना लेकिन हर बार आखिरी वक्त में तकनीकी दिक्कतों की वजह से इसे टालना पड़ा. ईंधन का रिसाव एक बड़ी समस्या बन गया था. इसके अलावा सितंबर के आखिर में इयान चक्रवात की वजह से भी इसे भेजने का कार्यक्रम टाला गया. मंगलवार को भी रिसाव हुआ लेकिन समय रहते ठीक कर लिया गया.
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चांद पर इंसान
नासा ने फिर से चांद पर इंसान भेजने के लिए आर्टेमिस अभियान शुरू किया है. पौराणिक कथाओं में आर्टेमिस अपोलो की जुड़वां बहन का नाम है. नासा चार अंतरिक्षयात्रियों के साथ चांद की अगली यात्रा की तैयारी कर रहा है जो 2024 में होगी. चांद पर इंसान को उतारने की योजना 2025 में पूरी हो सकती है.
तस्वीर: Heritage Images/picture alliance
ताकतवर रॉकेट
322 फुट यानी करीब 98 मीटर लंबा एसएलएस रॉकेट नासा का अब तक का बनाया सबसे ताकतवर रॉकेट है. इसने करीब 32 मंजिली इमारत जितनी ऊंची लॉन्च पैड से उड़ान भरी.
तस्वीर: Joe Skipper/REUTERS
चांद का चक्कर
ओरियन धरती से 370,000 किलोमीटर की यात्रा करके चांद के पास पहुंचेगा और चांद से करीब 130 किलोमीटर की दूरी पर रह कर एक विशाल कक्षा में उसके चक्कर लगायेगा. इस कक्षा का विस्तार करीब 64,000 किलोमीटर में है.
तस्वीर: Ted S. Warren/AP Photo/picture alliance
परीक्षण उड़ान
4.1 अरब डॉलर की लागत से हुई इस परीक्षण उड़ान की अवधि करीब 25 दिनों की है. अगली बार अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जाते समय भी यह करीब इतने ही दिनों का होगा. इंसानों को चांद के पास ले जाने से पहले नासा रॉकेट और कैप्सूल के मार्ग में आने वाली सारी बाधाओं को समझ लेना चाहती है.
तस्वीर: Jim Watson/AFP/Getty Images
चांद पर नासा का ठिकाना
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी इस परियोजना पर 2025 तक करीब 93 अरब डॉलर खर्च करने वाली है. इस सारी कवायद का मकसद आखिर में चांद पर एक ठिकाना बनाना और वहां से मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजना है. यह काम 2030 के दशक के आखिर से लेकर 2040 के दशक के शुरुआती सालों तक हो सकता है.
तस्वीर: NASA
नासा की दिक्कतें
नासा ने कुछ समस्याएं सुलझा ली हैं लेकिन अभी कई बाधाओं से जूझना है. ओरियन कैप्सूल चांद की परिक्रमा कर सकता है लेकिन चांद पर उतरेगा नहीं. नासा ने इलॉन मस्क की स्पेस एक्स को विशेष यान बनाने के लिए काम पर रखा है. यह यान यात्रियों को ओरियन से चांद की सतह तक लाएगा और वापस लायेगा. 2025 में चांद को उतारने की जिम्मेदारी इसी यान की होगी.
तस्वीर: Red Huber/AFP/Getty Images
नये अंतरिक्ष यात्री
परीक्षण उड़ान पूरी हो जाने के बाद नासा उन अंतरिक्ष यात्रियों की जानकारी देगी जो इसकी अगली उड़ान पर चांद के पास जायेंगे और जो उसके बाद की यात्रा में चांद पर उतरेंगे. नासा में फिलहाल जो 42 सक्रिय अंतरिक्ष यात्री हैं. इनमें 10 ऐसे ट्रेनी हैं. वे 50 साल पहले चांद की पहली यात्रा के समय पैदा भी नहीं हुए थे.
तस्वीर: AFP
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ईएसए के मुताबिक ऊपरी वातावरण में सौर किरणों की तीव्रता पृथ्वी के धरातल के मुकाबले दस गुना से भी ज्यादा है और यह हर वक्त उपलब्ध है. ईएसए की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख में कहा गया है कि यह विचार काफी लंबे समय से रहा है लेकिन यूरोप में 2050 तक नेट कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लक्ष्य ने इस दिशा में काम करने को नया उत्साह दिया है.
ईएसए कहती है, "अंतरिक्ष से बिजली को सीधा पृथ्वी पर कैसे पहुंचाया जाएगा, इस बारे में दशकों के शोध से अलग-अलग तरह के कई डिजाइन तैयार किये जा चुके हैं. कथित रेफरेंस डिजाइन में फोटोवॉल्टिक सेल के जरिए सौर ऊर्जा को पृथ्वी की कक्षा में ही बिजली में परिवर्तित किया जाएगा. उस बिजली को फिर बिना किसी तार के 2.45 गीगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर माइक्रोवेव के रूप में पृथ्वी पर स्थित रिसीवर पर भेजा जाएगा.”
ये रिसीवर रेक्टेना कहलाते हैं जो माइक्रोवेव से मिली ऊर्जा को दोबारा बिजली में बदल देते हैं. उसके बाद इन्हें स्थानीय बिजली घरों को भेजा जाएगा. ईएसए कहती है, "चूंकि बिजली को बिना किसी तार के स्थानांतरित किया जाएगा, तो यह चांद या अन्य ग्रहों जैसी किसी भी जगह पर रिसीवर स्टेशन के माध्यम से भेजी जा सकती है. इस तरह उपलब्ध ऊर्जा से हमारी अंतरिक्ष अनुसंधान की क्षमताओं में वृद्धि होगी."
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क्या हैं चुनौतियां?
अंतरिक्ष में बिजली जमा करके उसे धरती या किसी भी जगह भेजने की यह पूरी प्रक्रिया जिन तकनीकों और भौतिकी के नियमों पर आधारित है, वे पहले से मौजूद हैं और कुछ नया खोजने की जरूरत नहीं है. आज भी उपग्रहों से टीवी सिग्नल और संचार के अन्य तरह के सिग्नल पृथ्वी पर भेजे जा रहे हैं. जिन उपग्रहों से ऐसा किया जा रहा है, वो मूलतः किरणों को रिसीवर तक भेजने के सिद्धांत पर ही काम करते हैं. लेकिन फिलहाल यह काम छोटे स्केल पर हो रहा है और बिजली बनाकर भेजने के लिए ज्यादा बड़े स्केल पर काम करना होगा.
अंतरिक्ष में हुई डार्ट की टक्कर से झूम उठे नासा वैज्ञानिक
पृथ्वी से करोड़ों किलोमीटर दूर नासा के एक रॉकेट ने जब उल्कापिंड को टक्कर मारी तो मानवजाति के भविष्य ने एक नई दिशा में कदम रखा. इसीलिए नासा वैज्ञानिक टक्कर होते ही खुशी से झूम उठे.
तस्वीर: ASI/NASA/AP/dpa/picture alliance
डायमॉरफस से जा टकराया डार्ट
27 सितंबर को अमेरिकी अंतरिक्षएजेंसी नासा का 33 करोड़ डॉलर यानी लगभग 26 अरब रुपये से बना एक अंतरिक्ष यान डार्ट उल्कापिंड डायमॉरफस से जा टकराया.
तस्वीर: ASI/NASA/AP/dpa/picture alliance
पृथ्वी को बचाने के लिए
यह टक्कर विशाल पैमाने पर पहली बार किए गए एक प्रयोग का हिस्सा है जिसके जरिए भविष्य में आने वाली ऐसी किसी आपदा से पृथ्वी को बचाने की संभावनाएं आंकी जा रही हैं.
तस्वीर: NASA/UPI Photo/Newscom/picture alliance
क्या है डार्ट?
डबल एस्ट्रॉयड रीडाइरेक्शन टेस्ट यानी डार्ट (DART) नाम के इस अभियान के जरिए अंतरिक्ष विज्ञानी यह सीखना चाहते हैं कि अगर कोई उल्कापिंड पृथ्वी से टकराने के लिए इस ओर बढ़ रहा है तो उसका रास्ता बदला जा सकता है या नहीं.
तस्वीर: NASA/Johns Hopkins APL via CNP/Consolidated News Photos/picture alliance
छोटा सा चांद
इस अभियान के लिए वैज्ञानिकों ने डायमॉरफोस नामक उल्कापिंड को चुना था. इसे मूनलेट यानी नन्हा चांद भी कहा जाता है. यह पृथ्वी के नजदीक ही एक अन्य विशाल उल्कापिंड डिडायमॉस नामक उल्कापिंड का चक्कर लगा रहा है.
तस्वीर: ASI/NASA/AP/dpa/picture alliance
कुछ अद्भुत हासिल हुआ
इस टक्कर के नतीजे मिलने में अभी वैज्ञानिकों को कुछ हफ्ते लगेंगे लेकिन नासा अधिकारी डॉ. लॉरी ग्लेस ने कहा उन्हें पूरा यकीन है, कुछ अद्भुत हासिल हुआ है.
तस्वीर: NASA via AP/picture alliance
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ईएसए के विशेषज्ञ कहते हैं, "कम कीमत पर सौर ऊर्जा पैदा करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पृथ्वी और अंतरिक्ष में जो ढांचा बनाना होगा, वह बहुत बड़ा होगा. पृथ्वी की कक्षा से बिजली ट्रांसमिट करने वाले उपग्रह पर ट्रांसमिटर की सतह करीब एक किलोमीटर तक लंबी हो सकती है. पृथ्वी पर रिसीवर का आकार इससे दस गुना ज्यादा बड़ा हो सकता है."
यह काम आसान नहीं होगा. पृथ्वी की कक्षा में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बनाने के लिए अंतरिक्ष यानों से दर्जनों यात्राएं करनी पड़ी हैं. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का वजन लगभग 4.5 लाख किलोग्राम है और उसकी लंबाई है सिर्फ 108 मीटर. तब उससे लगभग दस गुना बड़ा ढांचा तैयार करने के लिए सामग्री और ऊर्जा कहीं ज्यादा लगेगी. इस पर खर्च भी ज्यादा आएगा, लिहाजा अंतरिक्ष से जो बिजली मिलेगी, वह उतनी सस्ती भी नहीं होगी जितने की जरूरत है. यही वजह है कि इतने लंबे समय से उपलब्ध होने के बावजूद यह विचार अमल में नहीं लाया जा सका.
हालांकि, ईएसए के मुताबिक अब खर्च उतना ज्यादा नहीं होगा, जितना अब तक आंका जा रहा था. ईएसए विशेषज्ञ लिखते हैं, "दुनियाभर में पृथ्वी से प्रक्षेपण का खर्च घटने की ओर है इसलिए इस तरह का निर्माण का खर्च उठाया जा सकता है और फिर, इसका अंतिम परिणाम एक ऐसा स्रोत होगा जो लगातार स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध करवाएगा."
अंतरिक्ष में जिस आकार का सौर संयंत्र बनाने की बात हो रही है, वह लगभग दो गीगावाट बिजली पैदा कर सकेगा. इतनी बिजली एक पारंपरिक परमाणु संयंत्र पैदा करता है और दस लाख से ज्यादा घरों को रोशन कर सकती है.