इथियोपिया की सरकार ने अपनी जनता से टिग्रे के विद्रोही लड़ाकों के खिलाफ हथियार उठाने की अपील की है. सरकार ने मंगलवार को नागरिकों से कहा कि विद्रोहियों के खिलाफ संघर्ष में साथ दे.
विज्ञापन
इथियोपिया की सरकार ने लोगों से हथियार उठाकर विद्रोहियों के खिलाफ लड़ने की अपील की है. देश में पिछले लगभग नौ महीने से युद्ध चल रहा है, जो अब टिग्रे से बाहर दूसरे इलाकों में भी पैर पसार रहा है.
प्रधानमंत्री अबी अहमद के दफ्तर की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, "अब वक्त आ गया है कि सारे सक्षम इथियोपियाई, जिनकी उम्र सेना, स्पेशल फोर्स और मिलिशिया में भर्ती की हो गई है, अपनी देशभक्ति दिखाएं.”
छह हफ्ते पहले ही सरकार ने टिग्रे इलाके में एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की थी. ऐसा तब हुआ जब विद्रोहियों ने प्रांतीय राजधानी मेकेले पर दोबारा कब्जा कर लिया और आठ महीने से जारी युद्ध का रुख बदल दिया.
विज्ञापन
कब शुरू हुई लड़ाई
टिग्रे में सरकारी फौजों और टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के बीच युद्ध नवंबर में शुरू हुआ. टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट ने तीन दशक तक इथियोपिया पर राज किया है और अब टिग्रे प्रांत पर उसका कब्जा है. इस लड़ाई के चलते बीस लाख से ज्यादा लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा है. 50 हजार से ज्यादा लोग पड़ोसी देश सूडान में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं.
जून में सरकार ने एकतरफा युद्ध विराम लागू कर दिया था ताकि किसान खेतों में बुआई कर सकें. लेकिन विद्रोही फ्रंट द्वारा राजधानी मेकेले पर कब्जा कर लेने के बाद अब सरकार लोगों से हथियार उठाने की अपील कर रही है.
टिग्रे विद्रोही पहले ही युद्ध विराम को खारिज कर चुके हैं. उनका कहना था कि सरकार को उनकी शर्तें माननी होंगी. जून और जुलाई के बीच विद्रोही प्रांत के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर चुके हैं और अब अफार और अमारा क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने लालीबेला में एक विश्व धरोहर पर भी कब्जा कर लिया है.
तस्वीरों मेंः नील नदी के किनारे जीवन
नील नदी के किनारे जीवन
तीन उभरते हुए फोटोग्राफरों ने अपनी तस्वीरों में नील नदी के आसपास के इलाकों के जीवन को दर्शाया. ये तस्वीरें मिस्र, इथियोपिया और सूडान की हैं.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
रशीद शहर के निवासी
ये फोटोग्राफर राजनीतिक पहलुओं पर नहीं बल्कि आम इंसानों की रोजमर्रा की जिंदगी की तस्वीरें खींचना चाहते थे. महमूद याकूत ने रशीद शहर के निवासियों को अपना विषय बनाया. यहां रहने वालों के रोजगार के लिए नील डेल्टा की उपजाऊ जमीन वरदान है.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
नील पर मछली के फार्म
मिस्र के शहर रशीद से यह नदी भूमध्य सागर में जाकर गिरती है. इस इलाके में ज्यादातर लोगों का रोजगार मछली पकड़ना है. लकड़ी से बनाए गए फिश फार्म पानी पर तैरते दिखाई देते हैं, जिन पर छोटी झोपड़ियां बनी हुई हैं. झोपड़ी में एक बिस्तर और एक छोटा सा किचन है, यहां से परिवार का कोई एक व्यक्ति फार्म की निगरानी करता है.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
शहर की जिंदगी
रशीद में अतीत और वर्तमान आपस में आकर मिलते हैं. प्राचीन समय से ही यह बंदरगाही इलाका व्यापार के लिए अहम माना जाता है. लोगों का जीवन बेहद सादा है. मिस्र का यह शहर अपने निवासियों के बड़े दिल और अच्छे व्यवहार के लिए मशहूर है.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
महिलाओं की भूमिका
इस शहर की महिलाएं ज्यादातर घर पर रहती हैं. वे घरेलू काम करती हैं और बच्चों को पालती हैं. तंदूरों में रोटियां भी बनाती हैं और बाजार में सब्जियां और घर पर तैयार पनीर बेचती हैं. गरीबी के बावजूद यहां के निवासी आपस में मिल बांट कर रहना पसंद करते हैं.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
रचनात्मकता की लैबोरेटरी
इन फोटोग्राफरों को 2013 में गर्मियों में गोएथे इंस्टीट्यूट में वर्कशॉप के लिए आने का न्यौता दिया गया था. उनकी प्रदर्शनी पहली बार जर्मनी में दिखाई जा रही है. सूडान के अलसादिक मुहम्मद को बर्तन बनाने की कला से लगाव है. नील के साथ के इलाकों में बर्तन बनाने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmed
लाइफलाइन
नील नदी के आसपास के इलाकों में बर्तन बनाने की प्राचीन परंपरा है. असवान बांध बनने तक यह हाल था कि नदी में आने वाली बाढ़ अपने साथ उर्वर मिट्टी लाती थी. खासकर आजकल के हालात में पानी बहुत कीमती चीज है. लोग नील पर पानी के अलावा रोजगार और यातायात के लिए निर्भर हैं.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmed
प्राचीन परंपराएं
मिट्टी से बने बर्तन काम के भी होते हैं और खूबसूरत भी. सदियों पुरानी इस कला ने समय के साथ अपने रूप बदले. आजकल नूबया के इलाकों में बनने वाले बर्तन दुनिया भर की प्रदर्शनियों में दिखाए जाते हैं. और सूडान के इस इलाके के सदियों पुराने उस इतिहास को दुनिया के सामने लाते हैं जिसपर नील की छाप है.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmed
बाइबिल के छात्र
इथियोपिया की झलक ब्रूक जेराई सेंगिस्तू की तस्वीरों में. इथियोपिया में जन्म लेने वाली नील नदी के साथ साथ यहां बसा प्राचीन ईसाई समुदाय मिलता है. आध्यात्म की खोज में ये दुनिया से अलग थलग रहते हैं. यहां रहने वाले छात्र खुद अकेलेपन में जीना चुनते हैं और इनकी शिक्षा दीक्षा 14 साल में पूरी होती है.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
विनम्रता सिखाती नदी
समय समय पर ये छात्र अपने अकेलेपन से निकलकर नील नदी का रुख करते हैं. वे गांव में जाकर खाना मांगते हैं. उनके मुताबिक भिक्षा से विनम्रता आती है और विनम्रता से आध्यात्म की प्राप्ति होती है.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
निरंतरता का प्रतीक
इथियोपिया के इलाके में बहने वाला नील नदी का यह हिस्सा यहां की एकता और निरंतरता का प्रतीक है. गोएथे इंस्टीट्यूट की वर्कशॉप में हिस्सा लेने वाले कई लोग अपने अपने देश गए, जिनमें से कई इन दिनों युद्ध और हिंसा की चपेट में हैं. उनकी शानदार तस्वीरें देसाऊ में केंद्रीय पर्यावरण एजेंसी में 27 मई तक देखी जा सकती हैं.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
10 तस्वीरें1 | 10
संयुक्त राष्ट्र ने पिछले हफ्ते बताया था कि नई लड़ाई के कारण अफार और अमारा में ढाई लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. दुबीती अस्पताल के प्रमुख ने गुरुवार को बताया था कि अफार में हुए एक हमले में 12 ऐसे लोग मारे गए थे जो पहले ही अपने घर छोड़ चुके थे.
इसके अलावा 46 लोगों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जो लोग मारे गए थे वे स्कूलों और अस्पतालों में शरण लिए हुए थे.
भुखमरी का खतरा
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है टिग्रे प्रांत में लगभग साढ़े तीन लाख लोगों के सामने भुखमरी का संकट खड़ा हो गया है. और लाखों लोगों के सामने अकाल का खतरा मंडरा रहा है.
विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने पिछले महीने टिग्रे प्रांत में तत्काल जीवनरक्षक सहायता पहुंचाने के लिए रास्तों को खोले जाने का आग्रह किया था. सरकारी सुरक्षा बलों और हथियारबंद गुटों के बीच लड़ाई जारी रहने से, हिंसा प्रभावित इलाके में साढ़े तीन लाख लोगों पर अकाल का खतरा मंडरा रहा है.
देखिएः इथियोपिया की कॉफी वालियां
इथियोपिया की कॉफी वालियां
अफ्रीकी देश इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा में सुबह सड़क पर मिल रही ताजी कॉफी नींद तो खोल ही देती है, स्थानीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका भी निभाती है. कॉफी बेचने वाली महिलाओं के जीवन में इसके क्या मायने हैं, देखें...
तस्वीर: DW/James Jeffrey
शहर में कॉफी के कई ठिकाने हैं लेकिन सबसे सस्ती कॉफी लिया जैसी महिलाओं के थर्मस फ्लास्क से मिलती है. इनकी डलिया में प्याली और तश्तरी भी साथ होती है. लिया बताती हैं कि वह एक कॉफी 3 इथियोपियन बीर यानि करीब 15 अमेरिकी सेंट में बेचती हैं और दिन के करीब 40 बीर के मुनाफे से वह संतुष्ट हैं.
तस्वीर: DW/James Jeffrey
एस्टर एंडेल कहती हैं कि वह अब धूप में कॉफी बेचने और कम आमदनी की जिंदगी से थक गई हैं. अब वह किसी रेस्त्रां या बार के बाहर अपना कॉफी स्टैंड लगाना चाहती हैं, जिसे यहां जेबेना बूना कहते हैं. एंडेल बताती हैं, "बात सिर्फ मेरी नहीं है, आखिर हर कोई बेहतर जिंदगी चाहता है."
तस्वीर: DW/James Jeffrey
19 साल की आयरुसालेम की मुस्कुराहट ग्राहकों को भाती है. वह इस स्टैंड पर दिन भर कोयले पर भुनते कॉफी के बीजों को पीसकर ग्राहकों को कॉफी पिलाती हैं. वह महीने में करीब 700 बीर कमा लेती है. उसने बताया, "मैं खुद अपना जेबेना बूना खोलने के लिए पैसे जोड़ रही हूं, इसमें बहुत फायदा है."
तस्वीर: DW/James Jeffrey
रोजा अपने जेबेना बूना में हर महीने करीब 1000 बीर कमा लेती है. उसने बताया कि कुवैत में रहने वाले उसके रिश्तेदार उसे वहां बुलाने की कोशिश कर रहे हैं. वह मानती है कि कुवैत में कमाकर वह काफी पैसे जोड़ सकती है और वापस अपने शहर आकर कोई बड़ा कारोबार शुरू कर सकती है.
तस्वीर: DW/James Jeffrey
सधे हुए हाथों से रोजा अपनी मिट्टी की केतली से ग्राहक के कप में पारंपरिक तरीके से कॉफी परोसती है. कुवैत जाने के कागज तैयार करवा रही रोजा एक दिन इथियोपिया में अपना होटल और कार खरीदना चाहती है.
तस्वीर: DW/James Jeffrey
बड़े होटलों और कॉफी वालियों के बीच आती हैं कॉफी की ये छोटी दुकानें या ढाबे. जैसे टोमाको, जो 1953 से अपनी खुश्बू से ग्राहकों को अपनी ओर खींचती रही है. कंपनी अपने यहां की रोस्टेड कॉफी बींस अन्य अफ्रीकी देशों में भी बेचने की योजना बना रही है.
तस्वीर: DW/James Jeffrey
आलेम बूना के मार्केटिंग मैनेजर बताते हैं कि नए नए खुल रहे ढाबे और कॉफी की दुकानों को देख पता चलता है कि लोगों की पीने पिलाने की आदतें कैसे बदल रही हैं. खासकर युवा कामकाजी लोगों की जिनके पास घर पर कॉफी भूनने और तैयार करने का समय नहीं है. वह नए अफ्रीकी बाजारों के अलावा यूरोप और एशिया में भी कारोबार फैलाना चाहते हैं.
तस्वीर: DW/James Jeffrey
बोल रोड पर काल्डी की कॉफी की दुकानें युवा इथियोपियाई लोगों और विदेशियों के बीच भी लोकप्रिय है. काल्डी श्रृंखला के मालिक को अपना लोगो हरे और सफेद रंग में बनाने की प्रोरणा भी उनकी अमेरिका यात्रा पर ही मिली थी. काल्डी की शहर भर में 22 दुकानें हैं.
तस्वीर: DW/James Jeffrey
प्यालियों को दोबारा धोने के बाद एस्टर उन्हें डलिया में रखती हैं और वापस नए ग्राहकों की तलाश में सड़क पर निकल पड़ती हैं. समय बर्बाद करने का मतलब है पैसों का नुकसान.
तस्वीर: DW/James Jeffrey
9 तस्वीरें1 | 9
यूएन एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रांत के 55 लाख लोगों को तत्काल खाद्य सहायता की जरूरत है. संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का कहना है कि 2010 से 2012 तक सोमालिया में आए अकाल के बाद टिग्रे में खाद्य संकट सबसे खराब है. सोमालिया में उस दौरान ढाई लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई थी उनमें से आधे से अधिक बच्चे थे.