इथियोपिया की राजधानी में हजारों लोगों ने बांध का काम आगे बढ़ने की खुशी मनाई. कई लोगों ने देश का झंडा लपेटा था तो कुछ बांध के समर्थन में पोस्टर लहरा कर नारे लगा रहे थे. ‘ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां' नाम के इस बांध में पहली भराई के जश्न के मौके पर सैकड़ों लोगों ने कारों के हॉर्न, सीटियां और ऊंचा संगीत बजाया. सोशल मीडिया पर भी यहां के हैशटैग ‘इट्स माई डैम' और ‘इथियोपिया नाइल राइट्स' ट्रेंड हुए.
इस तरह का पूर्व नियोजित लगने वाला समारोह असल में ‘वन वॉयस फॉर आवर डैम' नाम के अभियान का हिस्सा था. इसकी नींव 22 जुलाई को देश के राष्ट्रपति एबीये अहमद की उस घोषणा के कारण रखी गई, जिसमें राष्ट्रपति ने बताया था कि अच्छी बारिश के कारण पहली बार इस महा-बांध प्रोजेक्ट में बना रिजर्वॉयर पानी से भर सका है. अबीये ने कहा, "हमने पहली बार बिना किसी को परेशान किए, बिना किसी को नुकसान पहुंचाए अपने बांध को भरने में कामयाबी पाई है. अब बांध के ऊपर से पानी बह रहा है."
बांध पर विवाद क्यों
पूर्वी अफ्रीका के देश इथियोपिया में ‘ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां' बांध करीब 4.6 अरब डॉलर की लागत से बनाया गया है. अधिकारियों को आशा है कि पूरी तरह सरकारी धन से बना यह बांध 2023 तक अपनी पूरी क्षमता से काम शुरू कर देगा और इससे भरपूर ऊर्जा पैदा की जा सकेगी. अभी इस बांध का काम लगभग 74 प्रतिशत ही पूरा हुआ है. इसे लेकर कई सालों से विवाद चला आ रहा है.
बांध को लेकर इथियोपिया का कई सालों से पड़ोसी देश मिस्र के साथ विवाद रहा है. दोनों देशों के बीच बातचीत की कोशिशें सफल नहीं हुईं और प्रोजेक्ट को लेकर गतिरोध बना रहा. इथियोपिया चाहता है कि इस पनबिजली बांध से मिलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल वह अपने ऊर्जा निर्यात को बढ़ाने में करे. उसका मानना है कि इसकी मदद से देश के 11 करोड़ नागरिकों तक बिजली पहुंचाई जा सकती है और उन्हें गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है.
दूसरी तरफ 10 करोड़ की आबादी वाले मिस्र को डर है कि इस बांध के कारण उनके यहां पानी की सप्लाई घट जाएगी. इस समय मिस्र अपने देश में खेतों की सिंचाई, उद्योगों और घरेलू जरूरतों के लिए लगभग पूरी तरह से नील नदी के पानी पर ही निर्भर है. इथियोपिया कहता आया है कि मिस्र की चिंताएं बेकार हैं. इनके अलावा सूडान भी दोनों देशों के इस समीकरण में फंसा है. उसे भी चिंता है कि बांध के कारण उसके यहां नील नदी में पानी की आपूर्ति कम हो जाएगी.
इस पूरे मामले पर जताई जा रही चिंताओं को लेकर मध्यस्थों का कहना है कि सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि इथियोपिया कितनी पानी नीचे जाने वाली धारा में छोड़ेगा. उनका कहना है कि अगर ऐसा सूखा पड़ता है जो कई सालों तक जारी रहे, तो उस स्थिति में तीनों देश पानी के बंटवारे की समस्या का समाधान कैसे करेंगे. पहले भी कई बार इन सब मुद्दों को लेकर हो रही आपसी बातचीत अटक चुकी है. फिलहाल यह थोड़ी आगे बढ़ती नजर आ रही है.
आरपी/एनआर (एपी, डीपीए)
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तीन उभरते हुए फोटोग्राफरों ने अपनी तस्वीरों में नील नदी के आसपास के इलाकों के जीवन को दर्शाया. ये तस्वीरें मिस्र, इथियोपिया और सूडान की हैं.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistuये फोटोग्राफर राजनीतिक पहलुओं पर नहीं बल्कि आम इंसानों की रोजमर्रा की जिंदगी की तस्वीरें खींचना चाहते थे. महमूद याकूत ने रशीद शहर के निवासियों को अपना विषय बनाया. यहां रहने वालों के रोजगार के लिए नील डेल्टा की उपजाऊ जमीन वरदान है.
तस्वीर: Mahmoud Yakutमिस्र के शहर रशीद से यह नदी भूमध्य सागर में जाकर गिरती है. इस इलाके में ज्यादातर लोगों का रोजगार मछली पकड़ना है. लकड़ी से बनाए गए फिश फार्म पानी पर तैरते दिखाई देते हैं, जिन पर छोटी झोपड़ियां बनी हुई हैं. झोपड़ी में एक बिस्तर और एक छोटा सा किचन है, यहां से परिवार का कोई एक व्यक्ति फार्म की निगरानी करता है.
तस्वीर: Mahmoud Yakutरशीद में अतीत और वर्तमान आपस में आकर मिलते हैं. प्राचीन समय से ही यह बंदरगाही इलाका व्यापार के लिए अहम माना जाता है. लोगों का जीवन बेहद सादा है. मिस्र का यह शहर अपने निवासियों के बड़े दिल और अच्छे व्यवहार के लिए मशहूर है.
तस्वीर: Mahmoud Yakutइस शहर की महिलाएं ज्यादातर घर पर रहती हैं. वे घरेलू काम करती हैं और बच्चों को पालती हैं. तंदूरों में रोटियां भी बनाती हैं और बाजार में सब्जियां और घर पर तैयार पनीर बेचती हैं. गरीबी के बावजूद यहां के निवासी आपस में मिल बांट कर रहना पसंद करते हैं.
तस्वीर: Mahmoud Yakutइन फोटोग्राफरों को 2013 में गर्मियों में गोएथे इंस्टीट्यूट में वर्कशॉप के लिए आने का न्यौता दिया गया था. उनकी प्रदर्शनी पहली बार जर्मनी में दिखाई जा रही है. सूडान के अलसादिक मुहम्मद को बर्तन बनाने की कला से लगाव है. नील के साथ के इलाकों में बर्तन बनाने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmedनील नदी के आसपास के इलाकों में बर्तन बनाने की प्राचीन परंपरा है. असवान बांध बनने तक यह हाल था कि नदी में आने वाली बाढ़ अपने साथ उर्वर मिट्टी लाती थी. खासकर आजकल के हालात में पानी बहुत कीमती चीज है. लोग नील पर पानी के अलावा रोजगार और यातायात के लिए निर्भर हैं.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmedमिट्टी से बने बर्तन काम के भी होते हैं और खूबसूरत भी. सदियों पुरानी इस कला ने समय के साथ अपने रूप बदले. आजकल नूबया के इलाकों में बनने वाले बर्तन दुनिया भर की प्रदर्शनियों में दिखाए जाते हैं. और सूडान के इस इलाके के सदियों पुराने उस इतिहास को दुनिया के सामने लाते हैं जिसपर नील की छाप है.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmedइथियोपिया की झलक ब्रूक जेराई सेंगिस्तू की तस्वीरों में. इथियोपिया में जन्म लेने वाली नील नदी के साथ साथ यहां बसा प्राचीन ईसाई समुदाय मिलता है. आध्यात्म की खोज में ये दुनिया से अलग थलग रहते हैं. यहां रहने वाले छात्र खुद अकेलेपन में जीना चुनते हैं और इनकी शिक्षा दीक्षा 14 साल में पूरी होती है.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistuसमय समय पर ये छात्र अपने अकेलेपन से निकलकर नील नदी का रुख करते हैं. वे गांव में जाकर खाना मांगते हैं. उनके मुताबिक भिक्षा से विनम्रता आती है और विनम्रता से आध्यात्म की प्राप्ति होती है.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistuइथियोपिया के इलाके में बहने वाला नील नदी का यह हिस्सा यहां की एकता और निरंतरता का प्रतीक है. गोएथे इंस्टीट्यूट की वर्कशॉप में हिस्सा लेने वाले कई लोग अपने अपने देश गए, जिनमें से कई इन दिनों युद्ध और हिंसा की चपेट में हैं. उनकी शानदार तस्वीरें देसाऊ में केंद्रीय पर्यावरण एजेंसी में 27 मई तक देखी जा सकती हैं.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu