यूरोपीय संघ के सभी देशों में लिस्टेड कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं के लिए 40 फीसदी का न्यूनतम कोटा रखने पर सहमति बन गई है. इसका मकसद बड़ी कंपनियों में वरिष्ठ स्तर पर जल्द से जल्द लैंगिक बराबरी हासिल करना है.
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ताजा समझौते के अनुसार ईयू के 27 देशों के शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों के बोर्ड की नॉन-एक्जीक्यूटिव सीटों में कम से कम 40 फीसदी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. इसके अलावा, एक्जीक्यूटिव और नॉन-एक्जीक्यूटिव मिलाकर भी कम से कम 33 फीसदी सीटों का कोटा महिलाओं के लिए रखने पर सहमति बन गई है.
यूरोप आधारित कंपनियों के पास इस कोटा को लागू करने के लिए 2026 के मध्य तक का समय होगा. इस ऐतिहासिक डील पर प्रतिक्रिया देते हुए यूरोपीय संसद में ऑस्ट्रिया की सदस्य एवलिन रेगनर ने ट्वीट कर लिखा, "इस नई शर्त से ईयू में लैंगिक बराबरी की प्रक्रिया जरूर तेज होगी और सबके लिए बराबर मौके बढ़ेंगे." अगला कदम यूरोपीय संसद और यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों का इस समझौते को आधिकारिक रूप से स्वीकार करना होगा, जिसके बाद से पूरे ईयू में यह कोटा लागू हो जाएगा.
नए कानून का मकसद बोर्ड में भर्ती को प्रक्रिया में ज्यादा पारदर्शिता लाना और इसके लिए कंपनियों के सामने साफ लक्ष्य रखना है. जहां भी एक पद के लिए एक जैसी योग्यता वाले कई उम्मीदवार होंगे, वहां कम प्रतिनिधित्व वाले जेंडर के उम्मीदवार को वरीयता मिलनी चाहिए.
एक दशक पहले यूरोपीय परिषद का लाया गया यह प्रस्ताव तब से अटका हुआ था. इसी साल जर्मनी और फ्रांस के समर्थन के कारण इसमें नई जान आ गई. हाल के सालों में जर्मनी समेत यूरोप के नौ देशों ने महिला बोर्ड मेंबरों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अपना-अपना न्यूनतम कोटा तय किया है. अब ईयू के स्तर पर सहमति बनने के बाद यूरोपीय परिषद की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लायन ने ट्विटर पर लिखा, "यूरोप में महिलाओं के लिए यह एक महान दिन है. यह कंपनियों के लिए भी एक बड़ा दिन है."
यूरोपीय संसद की ओर से इस मामले में मुख्य वार्ताकार रहीं डच समाजवादी लारा वोल्टर्स ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "आखिरकार हम स्लीपिंग ब्यूटी को अपने किस से जगा पाए हैं."
मौजूदा स्थिति
करीब 45 करोड़ की आबादी वाले यूरोपीय ब्लॉक के अलग-अलग देशों की कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की हिस्सेदारी में बहुत अंतर है. यूरोपीय संसद ने बताया कि जहां साइप्रस जैसे देश में केवल 8.5 फीसदी नॉन-एक्जीक्यूटिव सीटों पर महिलाएं हैं, वहीं फ्रांस जैसे देश में 45 फीसदी से भी ज्यादा पर. फ्रांस ने तो अपने लिए पहले से एक कानूनी लक्ष्य तय किया हुआ है, जो कि 40 फीसदी का है. पूरे ईयू में फ्रांस ही ऐसा एकलौता देश है, जो अपने तय न्यूनतम लक्ष्य के भी आगे निकल गया.
पूरे यूरोप में महिला नेताओं का बोलबाला
एलिजाबेथ बोर्न के फ्रांस की प्रधानमंत्री बनने के साथ ही यूरोप में करीब एक दर्जन महिला नेता शक्तिशाली पदों पर आसीन हो गई हैं. जानिए किन यूरोपीय देशों में महिलाएं हैं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर.
तस्वीर: Ole Berg-Rusten/NTB/AP/picture alliance
फ्रांस
61 साल की एलिजाबेथ बोर्न पेशे से एक इंजीनियर हैं और फ्रांस की दूसरी महिला प्रधानमंत्री हैं. एडिथ क्रेसन देश की प्रधानमंत्री बनने वाली पहली महिला थीं, जो 1990 के शुरुआती दशकों में एक साल से भी कम समय के लिए पद पर रही थीं.
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यूरोपीय आयोग
उर्सुला फोन डेय लायन दिसंबर 2019 में यूरोपीय आयोग की पहली महिला अध्यक्ष बनी थीं. उससे पहले वो जर्मनी की रक्षा मंत्री थीं.
मेटे फ्रेडेरिक्सन जून 2019 में 41 साल की उम्र में डेनमार्क की सबसे युवा प्रधानमंत्री चुनी गईं. देश की प्रधानमंत्री बनने वाली पहली महिला थीं हेले थोर्निंग-श्मिट, जिनका कार्यकाल 2011 से 2015 तक रहा.
52 साल की किर्स्टी कल्युलाइड अक्टूबर 2016 में एस्तोनिया की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला बनीं. जनवरी 2021 में काजा कल्लास देश की प्रधानमंत्री बनने वाली पहली महिला बनीं.
तस्वीर: BGNES
फिनलैंड
दिसंबर 2019 में सना मरीन 34 साल की उम्र में फिनलैंड की प्रधानमंत्री और साथ ही दुनिया में सबसे युवा प्रधानमंत्री बनीं. वो फिनलैंड की प्रधानमंत्री बनने वाली तीसरी महिला हैं.
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ग्रीस
जनवरी 2020 में पेशे से अधिवक्ता कटरीना सकेलारोपोलू ग्रीस की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला बनीं. सकेलारोपोलू इससे पहले 2018 में देश के सुप्रीम कोर्ट की अध्यक्ष रह चुकी हैं.
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हंगरी
कैटलिन नोवाक मार्च 2022 में हंगरी की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला बनीं. वो इससे पहले परिवार नीति मंत्री रह चुकी हैं.
47 साल की इंग्रिडा सीमोनीते दिसंबर 2020 में लिथुआनिया की प्रधानमंत्री बनीं. वो देश की वित्त मंत्री भी रह चुकी हैं. लिथुआनिया में महिला नेताओं की मजबूत परंपरा है. बॉल्टिक आयरन लेडी के नाम से जानी जाने वाली डालिया ग्राईबाउसकाइट 2009 से 2019 तक देश की राष्ट्रपति रहीं.
तस्वीर: Petras Malukas/AFP/Getty Images
स्लोवाकिया
48 साल की जुजाना कपूतोवा जून 2019 में स्लोवाकिया की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला बनीं. राजनीति में नई होने के बावजूद उन्होंने चुनावों में बड़ी जीत हासिल की.
तस्वीर: Michal Svitok/TASR/TK KBS
स्वीडन
मैगडालेना एंडरसन नवंबर 2021 में स्वीडन की प्रधानमंत्री बनने वाली पहली महिला बनीं. वो इससे पहले वित्त मंत्री भी रह चुकी हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद जब संसद ने उनकी सरकार के बजट को ठुकरा दिया तब उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. चार दिनों बाद वो दोबारा चुनी गईं.
तस्वीर: Michele Tantussi/REUTERS
यूरोपीय संघ के बाहर
यूरोप में यूरोपीय संघ के बाहर जॉर्जिया में सलोम जुराबिशविली राष्ट्रपति हैं, आइसलैंड में कैटरीन जेकब्सडोत्तीर प्रधानमंत्री हैं, कोसोवो में व्योसा ओस्मानी राष्ट्रपति हैं, माल्डोवा में माइआ संदु राष्ट्रपति और नतालया गावृलिता प्रधानमंत्री हैं, नॉर्वे में एरना सोलबर्ग प्रधानमंत्री हैं और स्कॉटलैंड में निकोला स्टर्जन प्रधानमंत्री हैं. (एएफपी)
तस्वीर: Ole Berg-Rusten/NTB/AP/picture alliance
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यूरोपियन इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर इक्वॉलिटी (EIGE) ने 2021 में बताया था कि कुछ देशों में बाध्यकारी कोटा सिस्टम होना इसके ना होने के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावी साबित हुआ है. एजेंसी का कहना है कि इससे बोर्ड में संतुलन बनाने में काफी मदद मिलती है. सन 2010 में फ्रांस, जर्मनी और इटली जैसे देशों में इसे लेकर राष्ट्रीय नीतियां आने के बाद से बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व जरूर बढ़ा, लेकिन फिर वह एक स्तर पर थम सा गया. इस समय ईयू की सबसे बड़ी लिस्टेड कंपनियों की नॉन-एक्जीक्यूटिव सीटों में से एक तिहाई से भी कम पर महिलाएं हैं.
आशा है कि मंगलवार शाम को होने वाली वार्ता इस दौर की आखिरी बैठक होगी. इसमें यूरोपीय संसद के साथ यूरोपीय संघ के 27 देशों के प्रतिनिधि मिल कर एक निर्णय पर पहुंचेंगे. इस बार डील को लेकर काफी आशान्वित महसूस कर रही मुक्य वार्ताकार वोल्टर्स ने बताया कि यूरोपीय संसद कोटा के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2025 तक का समय तय करवाना चाहती है, जबकि पहले इसे 2027 तक हासिल करने का प्रस्ताव था.
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लक्ष्य हासिल ना करने पर क्या होगा?
इस बात पर भी सबकी नजर है कि इन लक्ष्यों को समय रहते पूरा ना कर पाने पर कैसी कार्रवाई होगी. इस पर अभी भी चर्चा चल रही है और कोई एकमत नहीं बना है. इस पर वोल्टर्स का कहना है कि किसी को लक्ष्य ना हासिल करने के लिए "नाम लेकर शर्मिंदा करने" के प्रयासों के चलते कई बार एक समझौता होते-होते रह जाता है. उनके हिसाब से यह समझौता एक ऐतिहासिक कदम होना चाहिए, जिसे आगे चल कर उन बड़ी कंपनियों में भी लागू किया जाए जो लिस्टेड नहीं हैं. वोल्टर्स कहती हैं कि यूरोपियन सेंट्रल बैंक जैसे ईयू के अपने संस्थानों में भी भविष्य में इसे लागू किया जाना चाहिए, "दरवाजे के अंदर यह पहला कदम होगा और उसके बाद तो चलते ही जाना है."
भारत में 85 फीसदी महिलाएं वेतन बढ़ने और प्रमोशन से चूकीं- रिपोर्ट
लिंक्डइन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 85 फीसदी महिलाएं वेतन वृद्धि और पदोन्नति से चूक गईं. इसमें कहा गया है कि देश में कई महिलाओं के पास घर से काम करने की छूट है लेकिन वे समय की कमी जैसी बाधाओं का सामना करती हैं.
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महिला कर्मचारियों के लिए समानता का रास्ता अभी दूर
लिंक्डइन ऑपर्च्युनिटी इंडेक्स 2021 रिपोर्ट के मुताबिक भारत में एशिया प्रशांत के 60 फीसदी औसत से 15 फीसदी अधिक यानी 85 फीसदी महिला कर्मचारियों से औरत होने के कारण वेतन वृद्धि, पदोन्नति और अन्य लाभ के मौके छिन गए.
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काम और परिवार की जिम्मेदारी
रिपोर्ट में कहा गया कि 10 में 7 कामकाजी महिलाओं और मांओं को लगता है कि पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाना अक्सर उनके करियर के विकास में आड़े आता है. लगभग दो-तिहाई कामकाजी महिलाओं (63 प्रतिशत) और कामकाजी माताओं (69 प्रतिशत) ने कहा कि उन्हें पारिवारिक और घरेलू जिम्मेदारियों के कारण काम में भेदभाव का सामना करना पड़ा.
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"पुरुषों की तुलना में कम अवसर"
देश में महिलाओं से पूछा गया कि वे अपने करियर में आगे बढ़ने के अवसरों से नाखुश होने का कारण क्या मानती हैं तो पांच में से एक (22 प्रतिशत) ने कहा कि कंपनियां 'अनुकूल पूर्वाग्रह' का प्रदर्शन करती है, जो कि क्षेत्रीय औसत 16 प्रतिशत से काफी अधिक है.
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"37 प्रतिशत महिलाओं को कम वेतन"
सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि 37 फीसदी महिलाओं का यह भी कहना है कि उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है. रिपोर्ट में 21 फीसदी पुरुष इस बात से सहमत पाए गए. वहीं 37 फीसदी कामकाजी महिलाओं का कहना है कि उन्हें पुरुषों की तुलना में कम अवसर मिलते हैं. इस पर सिर्फ 25 फीसदी पुरुष ही सहमत हुए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A.Warnecke
करियर और जेंडर
पुरुषों और महिलाओं दोनों का मानना है कि वे नौकरी में तीन चीजों की तलाश करते हैं- नौकरी की सुरक्षा, एक ऐसा काम जिससे वे प्यार करते हैं और एक अच्छा वर्क लाइफ बैलेंस. रिपोर्ट के मुताबिक 63 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए लिंग महत्वपूर्ण होता है. जबकि पुरुषों में 54 फीसदी को ऐसा लगता है.
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नौकरी पर महामारी का असर
5 में से 4 भारतीयों ने कहा कि उनपर कोरोना वायरस महामारी का नकारात्मक असर हुआ, जबकि 10 में से 9 ने कहा कि वे नौकरी से छंटनी, वेतन में कटौती और काम के घंटों में कटौती से प्रभावित हुए.
तस्वीर: Katja Keppner
"महिलाओं को मिले अवसर"
लिंक्डइन इंडिया में टैलेंट और लर्निंग सॉल्यूशंस की निदेशक रूचि आनंद कहती हैं कि देश में कामकाजी महिलाओं के लिए नौकरी की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है. उनके मुताबिक महिला कर्मचारियों के लिए लचीले शेड्यूल और सीखने के नए मौके महत्वपूर्ण हैं जो संगठनों को अधिक महिला प्रतिभाओं को आकर्षित करने, काम पर रखने और बनाए रखने में मदद कर सकते हैं.
सर्वे में कौन-कौन शामिल
लिंक्डइन ने यह सर्वे करने की जिम्मेदारी बाजार अनुसंधान कंपनी जीएफके को दी थी. सर्वे 26 से 31 जनवरी के बीच हुआ और भारत में 2285 लोग शामिल हुए, जिनमें 1223 पुरुष और 1053 महिलाएं थीं.