यूरोपीय संघ का कहना है कि "विदेशी एजेंट" वाले कानून की आड़ में स्वतंत्र मीडिया और गैर सरकारी संगठनों पर नकेल कसने के रूस के प्रयास विशेष रूप से अगले चुनाव से पहले चिंताजनक हैं.
यूरोपीय संघ के एक प्रवक्ता ने गुरुवार देर रात एक बयान में कहा कि क्रेमलिन "विपक्ष को चुप कराने की कोशिश कर रहा है." बयान में कहा गया, "सितंबर में रूसी संसद के निचले सदन डूमा के लिए होने वाले चुनाव से पहले इस तरह की हरकतें चिंताजनक हैं."
यूरोपीय संघ के विदेश मामलों के प्रतिनिधि योसेप बोरेल की प्रवक्ता नबीला मसराली के मुताबिक, "यूरोपीय संघ रूसी नागरिक समाज, मानवाधिकार रक्षकों और स्वतंत्र पत्रकारों के साथ खड़ा है और उनके महत्वपूर्ण कार्यों में उनका समर्थन करना जारी रखेगा."
विपक्ष का दमन
मसराली ने विपक्ष के खिलाफ रूस के "जारी अभियान" पर एक बयान में कहा कि रूस ने कई गैर सरकारी संगठनों और मीडिया कंपनियों पर "अनुपयुक्त संगठन" और "विदेशी एजेंट" होने का आरोप लगाया था और उन्हें काम करने से रोका.
यूरोपीय संघ ने रूसी थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ ऐंड पब्लिक पॉलिसी (आईएलपीपी) को गैरकानूनी घोषित करने और प्रोजेक्ट मीडिया कंपनी समेत कई पत्रकारों को गैरकानूनी घोषित करने के रूस के फैसले की आलोचना की है.
40 पत्रकार मारे जाते हैं हर साल
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स के मुताबिक 2020 में पूरी दुनिया में कम से कम 42 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए. जानिए किस किस देश में पत्रकारों के लिए सबसे ज्यादा खतरा है.
तस्वीर: Picture-alliance/AA/Z. H. Chowdhury
हर साल मारे जाते हैं कई पत्रकार
आईएफजे के अनुसार हर साल कम से कम 40 पत्रकार और मीडियाकर्मी अपने काम की वजह से मारे जाते हैं. संस्था का कहना है कि पिछले तीन दशकों में पूरी दुनिया में 2,658 पत्रकार मारे गए हैं. यह तस्वीर है 2018 में मारे गए सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी की.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/L. Pitarakis
सबसे खतरनाक देश
आईएफजे हर साल पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों की सूची बनाता है. पिछले पांच सालों में लगातार चौथी बार मेक्सिको इस सूची में सबसे ऊपर है. वहां 2020 में 13 पत्रकार मारे गए. तस्वीर में मेक्सिको के चियुदाद हुआरेज में एक पुलिसकर्मी उस स्थान पर पहरा दे रहा है जहां 29 अक्टूबर 2020 को मल्टीमेडिओस चैनल सिक्स के न्यूज एंकर आर्तुरो आल्बा को अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मार दी.
तस्वीर: Jose Luis Gonzalez/REUTERS
पाकिस्तान भी पीछे नहीं
सूची में दूसरे नंबर पर है पाकिस्तान. वहां 2020 में पांच पत्रकारों के मारे जाने की जानकारी मिली. तस्वीर में अहमद उमर सईद शेख है जिसे अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के लिए मौत की सजा दी गई थी. अप्रैल 2020 में पाकिस्तान की एक अदालत ने शेख की मौत की सजा को पलट दिया.
तस्वीर: AFP/A. Quereshi
भारत में भी स्थिति चिंताजनक
भारत भी पकिस्तान से ज्यादा पीछे नहीं है. 2020 में भारत में कम से कम तीन पत्रकारों के मारे जाने की सूचना मिली. इतने ही पत्रकार अफगानिस्तान, इराक और नाइजीरिया में भी मारे गए. तस्वीर बेंगलुरु में 2017 में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में आयोजित किए गए एक प्रदर्शन की है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
घट रहा है चलन
आईएफजे का कहना है कि यह आंकड़े लगभग वहीं हैं जहां ये 30 साल पहले थे, जब संस्था ने इन आंकड़ों को इकठ्ठा करना शुरू किया था. संस्था का कहना है कि पत्रकारों के मारे जाने का चलन घट रहा है, लेकिन ये तस्वीर अफगानिस्तान की है जहां 10, 2020 दिसंबर को मारी गई पत्रकार मलालाई मैवान्द के ताबूत के पास लोग प्रार्थना कर रहे हैं.
तस्वीर: Parwiz/REUTERS
सिर्फ आंकड़े नहीं
आईएफजे के महासचिव एंथोनी बैलैंगर ने कहा कि ये "सिर्फ आंकड़े नहीं हैं...ये हमारे दोस्त और सहकर्मी हैं जिन्होंने बतौर पत्रकार अपने काम के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और उसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाई." उन्होंने कहा कि संस्था सिर्फ इन पत्रकारों को याद ही नहीं रखेगी बल्कि एक एक मामले का पीछा करेगी और सरकारों और कानूनी एजेंसियों पर दबाव बनाती रहेगी ताकि उनके हत्यारों को सजा हो सके.
तस्वीर: Borralho Ndomba/DW
मौत ही नहीं, जेल भी है खतरा
150 देशों में 600,000 सदस्यों वाला आईएफजे उन पत्रकारों की भी खबर रखता है जिन्हें जेल में डाल दिया गया है. अधिकतर मामलों में सरकारों ने खुद को बचाने के लिए बिना स्पष्ट आरोपों के इन पत्रकारों को गिरफ्तार किया है. इस समय पूरी दुनिया में कम से कम 235 पत्रकार अपने काम से जुड़े मामलों की वजह से जेल में हैं.
आईएफजे के अध्यक्ष युनेस मजाहेद ने कहा है कि यह सारे तथ्य सरकारों द्वारा किए जाने वाले उनकी शक्ति के उस दुरूपयोग पर रोशनी डालते हैं जो वो अपनी जवाबदेही से बचने के लिए करती हैं. उन्होंने कहा, "इतनी बड़ी संख्या में हमारे सहकर्मियों का जेल में होना हमें याद दिलाता है कि दुनिया भर में जनहित में सत्य को खोज निकालने के लिए पत्रकारों को क्या कीमत चुकानी पड़ती है."
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wang
महामारी में विशेष भूमिका
जिम्मेदार पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की अहमियत कोरोना वायरस महामारी के इस युग में विशेष रूप से महसूस की गई है. यूनेस्को की डायरेक्टर जनरल ऑड्री अजूले ने कहा है कि पत्रकार ना सिर्फ महामारी के दौरान आवश्यक जानकारी लोगों तक पहुंचा रहे हैं, वो हर तरह के सच को झूठ से अलग करने में हमारी मदद भी कर रहे हैं.
तस्वीर: Picture-alliance/AA/Z. H. Chowdhury
9 तस्वीरें1 | 9
रूस का 'विदेशी एजेंट' कानून क्या है?
पिछले साल दिसंबर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2012 के कानून के विस्तार को मंजूरी दी थी. कानून के तहत सरकारी अधिकारी विदेशी वित्त पोषित एनजीओ या मीडिया कंपनियों को विदेशी एजेंट के रूप में नामित कर सकते हैं. कानून के तहत अधिकारियों के पास किसी भी व्यक्ति को विदेशी एजेंट घोषित करने की शक्ति है और ऐसे व्यक्तियों को जेल हो सकती है अगर वे सरकारी अधिकारियों को अपनी गतिविधियों का पूरा विवरण मुहैया नहीं कराते हैं.
रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ इस्तेमाल की जा सकने वाली जानकारी एकत्र करने वाला व्यक्ति भी विदेशी एजेंट कानून के तहत आ सकता है और उसे सजा हो सकती है. पूर्व-सोवियत रूस में "विदेशी एजेंट" शब्द का प्रयोग नकारात्मक अर्थों में किया जाता था. रूसी अधिकारियों ने सरकार विरोधी समूहों, नागरिक समाज समूहों, पत्रकारों और ब्लॉगर्स के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया है.
क्रेमलिन आलोचक और रूसी विपक्षी नेता अलेक्सी नावाल्नी की गिरफ्तारी और उन्हें जेल में डालने को लेकर ईयू पहले ही कई बार आलोचना कर चुका है. नावाल्नी को बार बार गिरफ्तार करके और कैद में रखकर विरोध की उस आवाज को दबाने की कोशिश हो रही है.
पिछले साल उन्हें मारने की भी कोशिश हुई. जर्मनी में इलाज के बाद जब वो वापस लौटे तो उन्हें 2014 के एक मुकदमे में सजा के नियमों के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार कर फिर से जेल में डाल दिया गया था.
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
यूरोप में भी हो रही है पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
डच पत्रकार पेटर आर दे विरीज पर जानलेवा हमले ने यूरोप में लोग सदमें में हैं. प्रेस की आजादी को लेकर यूरोपीय देशों की अच्छी छवि के बावजूद, पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के कई उदाहरण हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Stringer
सदमें में एम्सटर्डम
छह जुलाई 2021 को नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम के बीचो बीच जाने माने क्राइम रिपोर्टर पेटर आर दे विरीज को एक टेलीविजन स्टूडियो के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी. अंदेशा है कि हमले के पीछे संगठित जुर्म की दुनिया का एक गिरोह शामिल है. कई घंटों बाद दो लोगों को हिरासत में लिया गया.
तस्वीर: Evert Elzinga/ANP/picture alliance
एक दमदार पत्रकार
दे विरीज ने अपने देश में संगठित जुर्म पर कई सालों से रिपोर्टिंग की है. इस हमले से पहले वो एक कुख्यात जुर्म सरगना के खिलाफ बयान देने वाले एक सरकारी गवाह के निजी सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे. इस व्यक्ति के भाई और वकील की कई सालों पहले हत्या हो गई थी. आज दे विरीज अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं.
तस्वीर: ANP/imago images
उम्मीद और डर
दे विरीज पर हमले के बाद देश के कई लोगों की प्रतिक्रिया थी, "ऐसा यूरोप के बीचो बीच नहीं हो सकता!" कई लोगों ने हमले के स्थल पर जा कर वहां घायल पत्रकार के लिए शुभकामनाओं के साथ फूल चढ़ाए हैं. दुख की बात यह है कि दे विरीज जानलेवा हमला झेलने वाले पहली यूरोपीय पत्रकार नहीं हैं.
तस्वीर: Koen Van Weel/dpa/picture alliance
लोकतंत्र का जन्म-स्थल
यूनानी क्राइम रिपोर्टर गिओर्गोस करइवाज की एथेंस में नौ अप्रैल को हत्या कर दी गई थी. मुखौटे पहने मोटरसाइकिल पर सवार दो हमलावरों ने करइवाज पर 10 बार गोलियां चलाईं. करइवाज ने देश के नौकरशाहों के भ्रष्टाचार और संगठित जुर्म के गिरोहों पर कई खबरें की थीं.
माल्टा की खोजी पत्रकार डैफ्ने कारूआना गालिजिया ने देश के राजनीतिक और व्यापारिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को काफी कवर किया है. लेकिन 19 अक्टूबर 2017 को 53 वर्षीय डैफ्नै की गाड़ी में एक बम धमाका कर उनकी हत्या कर दी गई. इस मामले में एक व्यक्ति के जुर्म कबूलने के बाद उसे 15 साल जेल की सजा दे दी गई. मुख्य आरोपी एक जाना माना व्यवसायी है जिसके खिलाफ सुनवाई अभी चल ही रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Klimkeit
घर पर ही हत्या
21 फरवरी 2018 को स्लोवाकिया के खोजी पत्रकार यान कुशियाक और उनकी मंगेतर की भाड़े के हत्यारों ने गोली मार कर हत्या कर दी. 28-वर्षीय कुशियाक संगठित जुर्म के गिरोहों, टैक्स चोरी और देश के राजनेताओं और कुलीन लोगों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते थे. उनकी हत्याओं के बाद पूरे यूरोप में इतना विरोध हुआ कि प्रधानमंत्री रोबर्ट फीको को इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: Mikula Martin/dpa/picture alliance
पोलैंड का हाल
2015 में पोलैंड के एक पत्रकार लुकास मासियाक की एक बॉलिंग क्लब में पीट- पीटकर हत्या कर दी गई थी. मासियाक भ्रष्टाचार, गैर कानूनी नशीली पदार्थों का व्यापार और मनमानी गिरफ्तारियों पर खबरें किया करते थे. पोलैंड की सरकार पर आज भी कई तरह के मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: Attila Husejnow/SOPA Images/ZUMAPRESS.com/picture alliance
'मैं हूं शार्ली'
जनवरी 2015 में फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर पर किए गए एक हमले में 12 लोग मारे गए थे. तब पूरी दुनिया में सैकड़ों लोगों ने अभिव्यक्ति और प्रेस की आजादी के लिए "मैं हूं शार्ली" हैशटैग के साथ विरोध प्रदर्शन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बर्लिन में तुर्क पत्रकार पर हमला
सात जुलाई 2021 को बर्लिन-स्थित तुर्क पत्रकार एर्क अकारेर पर उनके अपार्टमेंट में तीन लोगों ने हमला कर दिया. एर्क तुर्की के राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोआन के कड़े आलोचक हैं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "मुझ पर बर्लिन में मेरे घर के अंदर चाकुओं और मुक्कों से हमला किया गया." तीनों संदिग्धों ने उन्हें धमकी भी दी कि अगर उन्होंने रिपोर्टिंग बंद नहीं की तो वे वापस आएंगे.
तस्वीर: twitter/eacarer
प्रेस के काम में बाधा
ऐसा नहीं है कि पत्रकारों को हमेशा उनकी जान की चिंता ही लगी रहती है. लेकिन उनके काम की रास्ते में अड़चनें डालने का चलन बढ़ता का रहा है, चाहे ये काम प्रदर्शनकारी करें, पुलिस करे या सुरक्षाबल करें. इस तस्वीर में फ्रांस की दंगा-विरोधी पुलिस नए सुरक्षा कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान एक पत्रकार से भिड़ रही है. (बुराक उनवेरेन)