विदेशों में चीन के ‘पुलिस थानों’ को लेकर चिंतित हैं संगठन
१६ दिसम्बर २०२२
चीन के कथित ‘सेवा केंद्रों’ को लेकर एक बार फिर यूरोप में चिंता जताई गई है. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि चीन ने विदेशों में पुलिस थाने बना रखे हैं.
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मानवाधिकार संगठनों को इस बात की चिंता है कि चीन के कथित ‘सेवा केंद्र' पुलिस स्टेशनों की तरह काम कर रहे हैं और विदेशों में रहने वाले चीनी लोगों के लिए खतरा हैं पर यूरोपीय सरकारें इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं. ‘सेफगार्ड डिफेंडर्स' नाम के एक मानवाधिकार संगठन ने इन ‘सेवा केंद्रों' के बारे में खुलासा किया है. स्पेन स्थित इस संगठन ने सितंबर से अब तक दो रिपोर्ट प्रकाशित की हैं जिनमें कहा गया है कि चीन ने 53 देशों में 102 पुलिस थाने स्थापित कर लिए हैं. इनमें सबसे ज्यादा 11 इटली में हैं.
चीन का कहना है कि ये स्वयंसेवियों द्वारा चलाए जा रहे केंद्र हैं जिनमें विदेशों में रहने वाले चीनियों की सहायता की जाती है. चीनी अधिकारियों के मुताबिक खासतौर पर कोविड महामारी के दौरान फंसे लोगों की मदद के लिए ये केंद्र काम कर रहे थे.
शी जिनपिंग ने चीन की सत्ता को अपनी मुट्ठी में कैसे किया
20वीं पार्टी कांग्रेस में शी जिनपिंग को तीसरी बार देश का राष्ट्रपति चुने जाने के पक्के आसार हैं. इसके साथ ही वो माओ त्से तुंग के बाद चीन के सबसे ताकतवर नेता होंगे. साम्यवादी देश में जिनपिंग ने यह सब कैसे संभव किया.
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पार्टी के शीर्ष नेता और देश के राष्ट्रपति
शी जिनपिंग एक दशक पहले चीन के शीर्ष नेता बने जब कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस में उन्हें पार्टी महासचिव और केंद्रीय सैन्य आयोग का चेयरमैन बनाया गया. कुछ ही महीनों बाद वो देश के राष्ट्रपति बने.
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सामूहिक नेतृत्व से सुप्रीम लीडरशिप की ओर
शी ने बीते सालों में अपने कुछ खास कदमों और गुजरते समय के साथ धीरे धीरे अपनी ताकत बढ़ाई है. चीन में सामूहिक नेतृत्व की परंपरा रही है जिसमें महासचिव पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में समान लोगों में प्रथम होता है लेकिन अब शी के उदय के साथ देश सुप्रीम लीडरशीप की ओर बढ़ रहा है.
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आर्थिक नीतियों पर पकड़
चीन में आर्थिक नीतियां बनाने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर रहती आई थी लेकिन अलग अलग समूहों के चेयरमैन के रूप में शी जिनपिंग ने यह जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली. इनमें 2012 में शी के सत्ता में आने के बाद बनी "सुधार और खुलापन" नीति और आर्थिक मामलों से जुड़ा एक पुराना समूह भी शामिल था.
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विश्वासघाती, भ्रष्ट और बेकार अफसरों पर कार्रवाई
सत्ता में आने के बाद शी ने भ्रष्ट, विश्वासघाती और बेकार अफसरों पर कार्रवाई के लिए एक अभियान चलाया और इनकी खाली हुई जगहों पर अपने सहयोगियों को बिठाया. इस कदम से उनकी ताकत का आधार कई गुना बढ़ गया. इस दौरान करीब 47 लाख लोगों के खिलाफ जांच की गई.
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भरोसेमंद लोगों की नियुक्ति
शी ने पार्टी के मानव संसाधन विभाग का प्रमुख अपने भरोसेमंद लोगों को बनाया. संगठन विभाग के उनके पहले प्रमुख थे झाओ लेजी, जिनके पिता ने शी के पिता के साथ काम किया था. उनके बाद 2017 में चेन शी ने यह पद संभाला जो शी के शिनघुआ यूनिवर्सिटी में सहपाठी थे.
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सेना पर नियंत्रण
2015 में शी जिनपिंग ने चीन की सेना में व्यापक सुधारों की शुरुआत की और इसके जरिये इस पर भरपूर नियंत्रण हासिल किया. इस दौरान इसमें काफी छंटनी भी हुई. सेना पर नियंत्रण ने शी जिनपिंग की मजबूती और बढ़ाई.
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घरेलू सुरक्षा तंत्र की सफाई
शी जिनपिंग ने घरेलू सुरक्षा तंत्र में व्यापक "सफाई" अभियान की शुरुआत की. इस भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में बहुत सारे जजों और पुलिस प्रमुखों ने अपनी नौकरी गंवाई. सत्ता तंत्र पर नियंत्रण की दिशा में यह कदम भी बहुत कारगर साबित हुआ.
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संसद और सुप्रीम कोर्ट की सालाना रिपोर्ट
2015 में राष्ट्रपति जिनपिंग ने चीन की संसद, कैबिनेट और सुप्रीम कोर्ट समेत दूसरी संस्थाओं को अपने कामकाज की सालाना रिपोर्ट के बारे में उन्हें ब्यौरा देने का आदेश दिया.
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मीडिया पर लगाम
2016 में शी जिनपिंग ने सरकारी मीडिया को पार्टी लाइन पर चलने का हुक्म दिया इसके मुताबिक उनका "सरनेम पार्टी है." इसके बाद से मीडिया की आजादी तेजी से घटी और शी से संबंधित प्रचार तेजी से बढ़ा.
तस्वीर: Greg Baker/AFP
पार्टी के सारतत्व
2016 में शी जिनपिंग ने खुद को औपचारिक रूप से पार्टी के "सारतत्व" के रूप में स्थापित किया. पार्टी में इसे सर्वोच्च नेता कहा जाता है.
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पार्टी के संविधान में संशोधन
शी जिनपिंग ने 2017 में पार्टी के संविधान में संशोधन कर चीनी स्वभाव में समाजवाद पर अपने विचार को जगह दी. इस लिहाज से वो पार्टी के शीर्ष पर मौजूद नेताओं माओ त्से तुंग और डेंग शियाओपिंग की कतार में आ गये.
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पार्टी ही सबकुछ
2017 में उन्होंने चीन में पार्टी की भूमिका सर्वोच्च कर दी. शी जिनपिंग ने एलान किया, "पार्टी, सरकार, सेना, लोग, शिक्षा, पूरब, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, मध्य, हर चीज में नेतृत्व पार्टी ही करेगी."
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राष्ट्रपति का कार्यकाल
2018 में चीन के संविधान में संशोधन कर उन्होंने राष्ट्रपति के लिए दो बार के निश्चित कार्यकाल की सीमा खत्म कर दी. इसके साथ ही जिनपिंग के लिए जीवन भर इस पद पर बने रहने का रास्ता साफ हो गया.
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पार्टी की वफादारी
2021 में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित कर पार्टी ने "टू एस्टबलिशेज" पर सहमति की मुहर लगा दी. इसके जरिये पार्टी ने शी जिनपिंग के प्रति वफादार रहने की शपथ ले ली. माओ त्से तुंग के बाद चीन में अब सिर्फ शी जिनपिंग हैं.
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‘सेफगार्ड डिफेंडर्स' की रिपोर्टों पर कनाडा, अमेरिका और नीदरलैंड्स समेत कई सरकारों ने कार्रवाई भी की है. लेकिन संगठन का कहना है कि यूरोपीय सरकारों ने अभी तक समुचित कार्रवाई नहीं की है. संगठन की अभियान निदेशक लॉरा हार्थ ने कहा, "हमें अब तक यूरोपीय संघ की सरकारों में एक समन्वित कार्रवाई करने की इच्छा नजर नहीं आई है. हमारी नजर में यह शर्म की बात है और एक गंभीर गलती है.”
विरोधियों पर कार्रवाई के केंद्र
रोम में एक समाचार सम्मेलन में हार्थ ने कहा कि उनकी संस्था ने चीनी मीडिया और सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है और उन्हें जो भी मिला है वह सबकुछ ऑनलाइन उपलब्ध है. संगठन का कहना है कि ये सेवा केंद्र चीन सरकार द्वारा चीनियों पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं. हार्थ कहती हैं कि ये केंद्र "अवैध हैं और असहमति जताने वालों को निशाना बनाने के लिए” इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
सेफगार्ड डिफेंडर्स की रिपोर्ट के मुताबिक इटली में ये सेवा केंद्र 2016 से चल रहे हैं. हालांकि पिछले हफ्ते ही देश के गृह मंत्री मातेओ पिआंतेदोसी ने कहा था कि उन्हें 11 नहीं, ऐसे सिर्फ दो केंद्रों के सबूत मिले हैं. एनजीओ की रिपोर्ट के बारे में संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए गृह मंत्री ने कहा था कि जासूसी एजेंसियां और पुलिस बल हाई अलर्ट पर हैं और कोई भी अवैध गतिविधि साबित होते ही वह पाबंदियां लगाने के लिए कदम उठाने को तैयार हैं.
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इटली को लेकर विशेष चिंता
हार्थ ने कहा कि इटली और फ्रांस के प्रतिक्रियाएं सबसे कमजोर रही हैं. उन्होंने कहा कि बाकी देशों ने इन केंद्रों को बंद करने में काफी मुस्तैदी दिखाई लेकिन इन देशों की कार्रवाइयों में पारदर्शिता की कमी है.
भारत-चीन विवाद के कुछ तथ्य
भारत और चीन के सैनिक एक बार फिर झगड़ पड़े. दोनों पक्षों के बीच अरुणाचल सीमा पर उस इलाके में हाथापाई हुई, जिसे दोनों अपना बताते हैं. इस पूरे विवाद से जुड़े कुछ तथ्य...
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3,500 किलोमीटर
चीन और भारत दोनों की सेनाएं हिमालय में कई चौकियों पर आमने-सामने रहती हैं. कई जगह तो यह दूरी कुछ सौ मीटर की है. दोनों देशों के बीच 3,500 किलोमीटर लंबी सीमा है जिसे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कहा जाता है.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari
कोई सीमा नहीं
भारत-चीन सीमा को कभी आधिकारिक रूप से चिह्नित नहीं किया गया. भारत की आजादी के बाद ऐसा होना था लेकिन दोनों पक्ष इस पर सहमत नहीं हुए और यह सीमा आज भी विवादित है.
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1962 का युद्ध
सीमा विवाद के चलते 1962 में दोनों देश एक युद्ध लड़ चुके हैं. ऐसा तब हुआ जब भारत ने दावा किया कि चीन ने अक्साई चीन इलाके में उसका 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कब्जा लिया है. युद्ध मुख्यतया उसी इलाके में हुआ था.
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बातचीत हुई, लेकिन हल नहीं निकला
उस युद्ध के बाद कई साल तक सीमा पर लगभग शांत बनी रही. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए कुछ बैठकें भी हुईं. 2003 में सीमा विवाद हल करने के लिए दूत नियुक्त किए गए, लेकिन आज तक कोई हल नहीं निकला.
तस्वीर: MONEY SHARMA/AFP/Getty Images
गलवान की झड़प
2020 में दोनों देशों के सैनिकों के बीच गलवान में हाथापाई हुई. भारत के बीस और चीन के कई सैनिकों की जान चली गई. 1962 के युद्ध के बाद यह सबसे बड़ी हिंसा थी. तब से भारत-चीन संबंध लगातार तनाव में हैं.
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अरुणाचल विवाद
चीन अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत का इलाका' कहता आया है और भारतीय नेताओं के वहां जाने पर आपत्ति जताता है. चीन ने 2009 में पीएम मनमोहन सिंह और 2014 में पीएम मोदी के दौरे पर आपत्ति जताई थी. 20 जनवरी 1972 को केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आया जिसे 1987 को अरुणाचल प्रदेश के रूप में एक अलग राज्य का दर्जा दिया गया.
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क्यों चाहिए तवांग
तवांग में एक चार सौ साल पुराना बौद्ध मठ है जिसे चीन के दावे की एक वजह माना जाता है. बौद्ध लोगों के बीच तवांग की मान्यता और प्रतिष्ठा का इस्तेमाल बुद्ध धर्म पर नियंत्रण के रूप में करने की इच्छा इसे चीन के लिए अहम बना देती है.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari
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2015 में हुए एक समझौते के तहत चीन के अधिकारी इटली में खुलेआम कार्रवाई करते रहे हैं. इस समझौते ने चीनी अधिकारियों को रोम, मिलान और नेपल्स आदि में इतालवी अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने की सुविधा मिली है.
2019 में इटली ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में सहयोग पर सहमति दी थी. ऐसा करने वाला इटली विकसिद दुनिया का पहला बड़ा देश बन गया था. हालांकि उस समझौते में अब तक कोई खास विकास नहीं हुआ है और देश की नई प्रधानमंत्री दक्षिणपंथी जर्जिया मेलनी ने चीन को लेकर सख्त रुख दिखाया है.