हिंद-प्रशांत फोरम में नाम लिए बिना होती रही चीन की चर्चा
२३ फ़रवरी २०२२
ईयू की हिंद-प्रशांत फोरम में यूरोप ने चीन को नाराज ना करने की पूरी कोशिश की. लेकिन भारतीय विदेश मंत्री ने कोई लिहाज नहीं किया और चीन की ओर इशारा करते हुए पूरी आक्रामकता दिखाई.
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हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विदेश मंत्रियों की पेरिस में हुए सम्मेलन के जरिए यूरोप ने यह दिखाने की कोशिश की है कि इस इलाके की अहमियत को वह भी समझ रहा है. इससे यह बात भी पुष्ट होती है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनिया का केंद्र बन चुका है.
पेरिस में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक में, व्यापार और निर्यात के नजरिए से अहम क्षेत्र को यूरोप ने केंद्र में लाने की कोशिश की है. इलाके में तेजी से बदलतीं भू-राजनीतिक और सुरक्षा परिस्थितियों के बीच यूरोप भी हिंद-प्रशांत में अहम भूमिका निभाना चाहता है.
न्यू जीलैंड, भारत, दक्षिण कोरिया और जापान समेत कई देशों के विदेश मंत्री इस सम्मेलन में आमंत्रित थे, सिवाय चीन के. सम्मेलन में फ्रांस के विदेश मंत्री ज्याँ-इवेस ला ड्रियाँ ने जोर देकर कहा कि चीन को नजरअंदाज नहीं किया जा रहा है. यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख योसेप ने ईयू-चीन के बीच होने वाली विशेष वार्ता का हवाला देते हुए यह कहने की कोशिश की कि यह सम्मेलन चीन के विरोध का जमावड़ा नहीं है.
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‘किसी के विरोध में नहीं'
ला ड्रियाँ ने कहा, "इंडो-पैसिफिक रणनीति, चीन विरोधी रणनीति नहीं है. यह रणनीति किसी के विरोध में नहीं है. यह हिंद-प्रशांत और यूरोपीय संघ के बीच साझेदारी विकसित करने की रणनीति है." उन्होंने कहा कि सम्मेलन में कुछ ठोस परियोजनाओं पर बात हुई है, जिनमें जलवायु परिवर्तन से लेकर स्वास्थ्य संबंधी विकास जैसे मुद्दे शामिल हैं. लेकिन उन्होंने कहा कि इसमें सुरक्षा भी एक जरूरी मुद्दा है.
एयरबस और बोइंग के सामने रूस और चीन की चुनौती
रूस और चीन में बने यात्री विमानों ने एयरबस और बोइंग के कई दशकों से मशहूर विमानों के लिए चुनौती पेश कर दी है. भले ही आज बोइंग और एयरबस के विमानों में दुनिया सैर करती हो लेकिन आने वाले वर्षों में स्थिति बदल सकती है.
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यात्री सेवा के लिए सर्टिफिकेट मिला
रूस ने एमसी-21 विमान बनाया है. इसे दिसंबर 2021 में यात्री सेवा में इस्तेमाल करने के लिए सर्टिफिकेट मिल गया और यह इसी साल से रूस में नियमित उड़ान भरने लगेगा. विमान की दो श्रेणियों में कुल 163 यात्रियों को जगह मिल सकती है. पश्चिमी देशों के जानकार इसे एयरबस की ए 320 नियो से बेहतर और कम खर्चीला बता रहे हैं.
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यात्रियों के लिए ज्यादा आराम
विमान की बॉडी पतली होने के बावजूद यात्रियों को इसमें बोइंग ए-320 की तुलना में 11 सेंटीमीटर और बोइंग 737 की तुलना में 21 सेंटीमीटर ज्यादा जगह मिलेगी. हालांकि यह जगह इतनी ज्यादा नहीं है कि एक कतार में छह से ज्यादा सीटें लगाई जा सकें. मतसब साफ है कि यात्रियों के कोहनी रखने के लिए और सीटों के किनारे ज्यादा जगह होगी.
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सैकड़ों विमानों के लिए ऑर्डर मिले
कंपनी के पास फिलहाल एमसी-21 के 175 विमानों के ऑर्डर हैं और सैकड़ों विमानों के लिए एमओयू पर दस्तखत हो चुके हैं. रूस की घरेलू एयरलाइनों से ही कंपनी को बड़े ऑर्डर मिल रहे हैं. कंपनी ने कई और मॉडल भी दुबई में पेश किए है हालांकि उन्हें अभी यात्री सेवा के लिए सर्टिफिकेट नहीं मिला है.
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पश्चिमी देशों की कंपनियों पर निर्भर
हालांकि इस विमान को बनाने में रूस को पश्चिमी देशों के बनाए कई हिस्सों की जरूरत होगी जिनसे मिल कर विमान के इंजन और दूसरी चीजें बनेंगी. एमसी-21 का करीब 40 फीसदी हिस्सा ऐसा ही हैं. मौजूदा राजनीतिक हालात में रूस पश्चिमी देशों की सप्लाई पर भरोसा नहीं कर सकता. एक और दिक्कत है कि वह ईरान जैसे देशों के विमान नहीं बेच पाएगा जो उसके बड़े ग्राहक हो सकते हैं.
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चीन ने बनाया सी 919
सी 919 को चीन ने बनाया है और इसने भी यात्री सेवा में इस्तेमाल के लिए जरूरी शर्तें पूरी कर ली है. पहले इसे भी इस साल से सेवा में उतारने की तैयारी थी लेकिन अब इसे कुछ और समय के लिए आगे बढ़ा दिया गया है.
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300 से ज्यादा विमानों के ऑर्डर
सी 919 में 158-168 यात्रियों के बैठने की जगह है. इस विमान ने पहली उड़ान 2017 में भरी थी और अब यह यात्री सेवा में उतारे जाने के लिए तैयार है. अब तक कंपनी को 300 से ज्यादा विमानों के लिए ऑर्डर मिल चुके हैं. कंपनी कुछ और मॉडलों पर भी काम कर रही है.
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नए जमाने के लिए नए विमान
सी 919 और एमसी-21, दोनों विमान दो इंजन और पतली बॉडी वाले हैं. इन्हें आज के दौर की चुनौतियों को ध्यान में रख कर खासतौर से तैयार किया गया है. इनके मुकाबले बोइंग 737 को 1967 में लॉन्च किया गया था जबकि एयरबस का ए320 पहली बार 1987 में एयरलाइनों के लिए पेश किया गया.
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चीन आगे निकल सकता है
चीन में पहले से ही दूसरी कंपनियों के विमान बड़ी संख्या में एसेंबल किए जा रहे हैं. वहां स्थानीय स्तर पर विमानों की मांग भी बहुत ज्यादा है. बाजार के विशेषज्ञ मान रहे हैं कि चीन के पास विमान तैयार करने का जरूरी कौशल और बुनियादी ढांचा मौजूद है. कई लोग तो इस मामले में उसे यूरोप से बेहतर मानते हैं. ऐसे में कोई हैरानी नहीं कि वह ज्यादा तेजी से आगे निकलेगा.
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सर्टिफिकेट मिलने में देरी
चीन ने 2017 में अपना पहला विमान तैयार कर लिया था और उसके बाद छह और विमान तैयार हो चुके हैं. हालांकि उसे अनुमति मिलने में देरी हो रही है. बीते साल से लेकर अब तक कुल 276 टेस्ट फ्लाइट होनी थी लेकिन उनकी महज 34 उड़ानें ही संभव हो पाईं.
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एयरबस और बोइंग पर दबाव
यात्री विमानों के आकाश में इन दोनों कंपनियों का दबदबा है लेकिन बीते सालों में बोइंग और एयरबस के कुछ नए मॉडलों के विमान या तो बनाने बंद कर दिए गए या फिर मुश्किलों में घिर गए. कोरोना का दौर भी विमान कंपनियों के लिए बहुत संकट लेकर आया. अब इसमें रूस और चीन की चुनौती भी शामिल हो जाएगी.
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ईयू के विदेश नीति प्रमुख योसेप बोरेल ने कहा कि हिंद-प्रशांत तो यूरोप के लिए महाधमनी जैसा है, यानी उस धमनी जैसा जो हृद्य से रक्त को पूरे शरीर में पहुंचाती है. यूरोप का 40 प्रतिशत व्यापार इसी इलाके के समुद्र से होकर गुजरता है. बोरेल ने कहा, "यही वजह है कि हमें आवाजाही की स्वतंत्रता की जरूरत है. एक ऐसी सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत है जिसे हम मिलकर बनाएं."
हाल ही में इलाके की नौसेनाओं के साथ मिलकर बनाए गए एक गठजोड़ का ऐलान करते हुए बोरेल ने कहा कि यह किसी के खिलाफ गठजोड़ नहीं है. उन्होंने कहा, "यह हमारी मौजूदगी बढ़ाने का जरिया है. और हमारे संसाधनों को सदस्य देशों के साथ साझा करने का तरीका है ताकि वे कार्रवाई करने में ज्यादा सक्षम हो सकें."
ला ड्रियाँ ने माना कि रूस और चीन के बीच मजबूत होते गठबंधन से चिंताएं बढ़ रही हैं. उन्होंने कहा, "यह गठजोड़ बहुतस्तरीय व्यवस्था का उल्लंघन कर रहा है. और यही वजह रही कि हम हिंद-प्रशांत के साथ ज्यादा संवाद कर रहे हैं."
भारत ने चीन पर साधा निशाना
सम्मेलन में शामिल भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने सम्मेलन में दिए भाषण में चीन को संदेश देने की कोशिश की. बिना चीन का नाम लिए उन्होंने कहा कि ज्यादा शक्ति और क्षमताओं के साथ ज्यादा जिम्मेदारी और संयम भी आना चाहिए.
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डॉ. जयशंकर ने कहा, "इसका अर्थ है कि अंतरराष्ट्रीय कानून और क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के प्रति ज्यादा सम्मान." उन्होंने दादागीरी-मुक्त आर्थिकी और बल-मुक्त राजनीति की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि जो दुनिया का साझा है उस पर दावों से बचा जाए और अंतरराष्ट्रीय परंपराओं और नियमों का पालन किया जाए.
आमतौर पर बहुत सयंमित बयान देने वाले पूर्व आईएफएस अफसर डॉ. जयशंकर चीन पर पिछले कुछ समय से काफी आक्रामक मुद्रा में हैं. पिछले दस दिन में यह तीसरी बार है जब जयशंकर ने इस तरह चीन के खिलाफ विदेशी जमीन पर टिप्पणियां की हैं. पहले 12 फरवरी को ऑस्ट्रेलिया में उन्होंने चीन पर समझौते तोड़ने का आरोप लगाया था. उसके बाद म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि भारत और चीन के संबंध बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं.
वीके/सीके (एपी, रॉयटर्स)
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