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ब्रिटिश पीएम के बाद अब यूरोपीय संघ की चीफ भारत में

२५ अप्रैल २०२२

यूक्रेन युद्ध के बीच भारत और यूरोपीय संघ ने आपसी रिश्ते बढ़ाने का फैसला किया है. रूस, अमेरिका, चीन और ब्रिटेन के अधिकारियों के वादों के बाद अब यूरोप भी भारत को रिझाने की कोशिश कर रहा है.

नई दिल्ली में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करतीं यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फोन डेय लायन
नई दिल्ली में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करतीं यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फोन डेय लायनतस्वीर: REUTERS

यूरोपीय आयोग की प्रेसिडेंट उर्सुला फोन डेय लायन दो दिनों के भारत दौरे पर हैं. उनके दौरे के पहले ही दिन, यूरोपीय संघ और भारत के बीच व्यापार और टेक्नोलॉजी काउंसिल बनाने पर सहमति बनी है. इसका मकसद इन क्षेत्रों में दोनों के बीच सहयोग को बढ़ाना होगा. इसके साथ ही, अमेरिका के बाद भारत ऐसा दूसरा देश बन गया है, जिसका यूरोपीय संघ के साथ यह तकनीकी समझौता हुआ है.

सोमवार को फोन डेय लायन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि आज ये संबंध पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा अहम हो गए हैं." यूक्रेन युद्ध के चलते बदले राजनीतिक हालत पर यूरोपीय आयोग की प्रमुख ने कहा, "हमारे बीच कई समानताएं हैं, लेकिन हम एक चुनौती भरे राजनीतिक परिदृश्य का भी सामना कर रहे हैं."

11 अप्रैल 2022 को वर्चुअल मीटिंग में मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेनतस्वीर: Chris Kleponis/Pool/CNP/abaca/picture alliance

यूक्रेन युद्ध और भारत के चक्कर

24 फरवरी को शुरू हुए यूक्रेन युद्ध के बाद से अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और चीन के बड़े अधिकारी भारत आ चुके हैं. पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करना चाहते हैं. इसके लिए उन्हें भारत के सहयोग की जरूरत है. वहीं रूस, भारत को सस्ता ईंधन और नए किस्म के उन्नत हथियार देने का वादा कर रहा है. मार्च में दिल्ली आए रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने दावा किया था कि "भारत जो चाहे, रूस उसे वह देगा."

भारत जो चाहे वो देंगे: रूसी विदेश मंत्री

अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जानते हैं कि भारत हथियारों के मामले में रूस पर किस हद तक निर्भर है. भारत अपनी जरूरत के 50 से 60 फीसदी हथियार रूस से खरीदता है. पश्चिम इस निर्भरता को कम करना चाहता है. पिछले हफ्ते भारत पहुंचे ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत को लड़ाकू विमान बनाने की पूरी तकनीक तक देने का भरोसा दिया. जॉनसन के दौरे के दौरान भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय रक्षा और कारोबार सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी.

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भारत अब तक यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की आलोचना करने से बचता रहा है. बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद भारत बार-बार दोनों पक्षों से हिंसा बंद करने और सकारात्मक बातचीत से विवाद सुलझाने की अपील कर रहा है.

नई दिल्ली में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीतस्वीर: Ben Stansall/AP/picture alliance

भारतीय विदेश नीति के सामने बढ़ते विकल्प

पश्चिमी को लगता है कि भारत और चीन की मदद से रूस आर्थिक प्रतिबंधों को झेल सकता है. यूरोपीय संघ का कहना है कि वह भारत के साथ रक्षा, कारोबार और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर मिलकर काम करना चाहता है. सोमवार की मुलाकात के बाद भारत और ईयू ने एक साझा बयान जारी कर कहा, "दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि तेजी से बदलते भूरानीतिक माहौल में साझा गहरी रणनीतिक वचनबद्धता की जरूरत है."

बयान में आगे कहा गया, "व्यापार और टेक्नोलॉजी काउंसिल, वह राजनीतिक दिशा और जरूरी ढांचा मुहैया कराएगी, जो राजनीतिक फैसलों, सामंजस्य बिठाने वाले तकनीकी काम करेगी. यह यूरोपीय और भारतीय अर्थव्यवस्था के टिकाऊ विकास के लिए जरूरी कदमों को पुख्ता तरीके से लागू करने के बारे में राजनीतिक स्तर पर जानकारी भी देगी."

भारत और फ्रांस के रिश्तों से इतर यूरोपीय संघ अब तक भारत को सीधे तौर पर हथियार बेचने से बचता रहा है, लेकिन अब यह नीति बदलती दिख रही है. माना जा रहा है कि यूरोपीय संघ की चीफ भारत को ज्यादा सैन्य सामग्री बेचने का ऑफर देंगी. आधिकारिक बातचीत से पहले यूरोपीय संघ के वरिष्ठ नेता ने कहा कि दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार संधि पर बातचीत फिर से पटरी पर आएगी.

भारत और ईयू के बीच 62.8 अरब यूरो का वार्षिक कारोबारतस्वीर: Rupert Oberhäuser/picture alliance

भारत के साथ चीन पर निगाहें

यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के खिलाफ कड़े कदम उठाने वाले पश्चिमी देश जानते हैं कि अगली बड़ी चुनौती चीन है. यूरोपीय संघ के भीतर लगातार चीन पर निर्भरता कम करने की मांग तेज हो रही है. यूरोपीय संघ भी अब एशिया प्रशांत की जगह हिंद प्रशांत क्षेत्र का जिक्र करने लगा है. भारत और चीन का सीमा विवाद और उसके कारण हुईं झड़पें भी किसी से छुपी नहीं हैं. यही वजह है कि पश्चिमी देश, भारी मन से भारत और रूस की दोस्ती को पचा रहे हैं.

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भारत एक बड़ा बाजार है और हिंद महासागर क्षेत्र का अहम खिलाड़ी भी. वहीं भारत भी हथियारों के मामले में रूस पर अपनी निर्भरता लगातार कम करने की कोशिश कर रहा है. 20 साल पहले तक भारत रूस से 90 फीसदी से ज्यादा हथियार खरीदता था. आज यह हिस्सेदारी 50 से 60 फीसदी के बीच रह गई है.

अप्रैल में चीन-ईयू सम्मेलन में कुछ मुद्दों पर तल्खी नजर आईतस्वीर: Olivier Matthys/AFP

यूरोप के विकास को ताकत

अर्थशास्त्रियों के अनुमान के मुताबिक 2030 तक चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. अमेरिका दूसरे नंबर पर लुढ़क जाएगा और भारत छलांग मारकर तीसरे स्थान पर होगा. इस दौरान यूरोपीय संघ के देशों की अर्थव्यवस्था या तो सिकुड़ेगी या फिर बहुत ही धीमी रफ्तार से आगे बढ़ेगी.  ऐसे में भारत के साथ कारोबार यूरोपीय संघ के लिए आय का अहम जरिया भी बन सकता है.

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दूसरी तरफ स्वच्छ ऊर्जा, कारखानों के आधुनिकीकरण, पर्यावरण संरक्षण, मोबिलिटी, टिकाऊ विकास और रक्षा जैसे क्षेत्रों में भारत को यूरोपीय संघ की कुशलता की जरूरत है. फिलहाल भारत यूरोपीय संघ का तीसरा बड़ा कारोबारी साझेदार है. यूरोपीय आयोग के 2020 के डाटा के मुताबिक दोनों पक्षों के बीच सालाना 62.8 अरब यूरो का कारोबार होता है. यूरोपीय संघ और भारत लंबे समय से मुक्त व्यापार संधि पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन मामला 2013 से अटका हुआ है. दोनों पक्षों के बीच पेटेंट प्रोटेक्शन और आयात शुल्क में कमी जैसे मतभेद बने हुए हैं. मई 2021 में एक बार फिर दोनों पक्षों ने इस बातचीत को बहाल करने का फैसला किया.

आठ साल से अटकी बातचीत फिर शुरू करेंगे भारत और यूरोपीय संघ

भारत इस वक्त जापान, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और इस्राएल के साथ भी मुक्त व्यापार संधि पर बातचीत कर रहा है. ऐसे में यूरोपीय संघ को यह भी लग रहा है कि वह कहीं पिछड़ न जाए. फरवरी 2022 में भारत और संयुक्त अरब अमीरात, कारोबार और निवेश बढ़ाने के लिए एक आर्थिक संधि पर दस्तखत कर चुके हैं. दोनों पक्षों ने इसे "मील का पत्थर" करार दिया.

ओएसजे/वीएस (रॉयटर्स, एएफपी)

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