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शरण देने से जुड़े कानून पर यूरोपीय संघ में डील

४ अक्टूबर २०२३

यूरोपीय संघ के देशों के बीच शरणार्थियों और आप्रवासियों के मुद्दे पर डील हुई. पोलैंड और हंगरी के विरोध के बावजूद बाकी सदस्य देश आखिरी मिनट में समझौता करने में सफल हुए.

यूरोपीय सीमा
तस्वीर: Radovan Stoklasa/REUTERS

यूरोपीय संघ के 27 देशों के दूतों के बीच ब्रसेल्स में माइग्रेशन डील पर आखिकार सहमति बन गई. भूमध्यसागर में आप्रवासियों को बचाने वाले संगठनों की वित्तीय मदद पर जर्मनी और इटली के बीच आखिरी पलों तक मतभेद चलते रहे. लेकिन अंत में दोनों पक्ष डील में शामिल हो गए.

जर्मनी राहत और बचाव में जुटे संगठनों की वित्तीय मदद जारी रखना चाहता है. वहीं इटली इसे गैरकानूनी करार देने के पक्ष में है.

बहुमत से होने वाले फैसले के तहत ज्यादातर देश डील के पक्ष में थे. ऐसे में हंगरी और पोलैंड का विरोध नाकाफी साबित हुआ.

भूमध्यसागर में राहत और बचाव के काम को वित्तीय मदद पर इटली को आपत्तितस्वीर: Khaled Nasraoui/dpa/picture alliance

जून 2024 तक कानून

डील के मुताबिक शरण का आवेदन करने वाले और आप्रवासियों के लिए कानून बदले जाएंगे. अगले साल जून से पहले ये कानून बना दिए जाएंगे. जून 2024 में यूरोपीय संसद और यूरोपीय आयोग के चुनाव हैं.

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फिलहाल यूरोपीय संघ की अध्यक्षता स्पेन के पास है. डील होने के बाद स्पेन के आंतरिक मामलों के मंत्री फर्नांडो ग्रांदे-मारलास्का ने कहा, "आज हमने यूरोपीय संघ के भविष्य से जुड़े एक अहम मुद्दे पर एक बड़ा कदम आगे बढ़ाया है."

डील के बाद अब यूरोपीय संसद को पूरे संघ के लिए शरण और आप्रवासन से जुड़े कानून बनाने होंगे. कानून बनाने के मसौदों और प्रस्तावों पर बहस हो सकती हैं, लेकिन माना जा रहा है कि जून से पहले बिल कानून की शक्ल ले लेंगे. यूरोपीय आयोग के उपाध्यक्ष मारगारितिस शिनास ने डील को "पैकेज की आखिरी खोई कड़ी" बताया. उन्होंने कहा, "यूरोपीय प्रतिनिधियों के वोट करने से पहले हमें संधि करने की जरूरत थी."

इटली का लांपेदूसा द्वीप आप्रवासियों की बड़ी संख्या से जूझ रहा हैतस्वीर: Europa Press/dpa/picture alliance

दक्षिणपंथी बहुमत से पहले फैसला

आशंका थी कि चुनावों के बाद यूरोपीय संसद का राजनीतिक चेहरा बदल जाता. यूरोप में जिस तेजी से दक्षिणपंथी पार्टियों का प्रभाव बढ़ रहा है, उसे देखकर लग रहा है कि अगली यूरोपीय संसद राइट विंग की तरफ झुकाव वाली होगी. इसके साथ ही यूरोपीय संघ की घूमती अध्यक्षता आप्रवासियों के लिए कड़ी नीतियों की वकालत करने वाले पोलैंड और हंगरी के पास भी जाएगी.

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डील लागू होने के बाद आप्रवासियों की एंट्री वाले देशों को राहत मिल सकेगी. फिलहाल ग्रीस और इटली समेत कुछ देशों पर भारी बोझ पड़ रहा है. डील के तहत आप्रवासियों का विरोध करने वाले देशों जैसे हंगरी और पोलैंड को यूरोपीय फंड में पैसा देना होगा. यह रकम आप्रवासियों को शरण देने वाले देशों को दी जाएगी.

संघ के सदस्य देश इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि शरण के आवेदनों पर तेजी से कार्रवाई की जाएगी. ऐसा हुआ, तो जिन लोगों का आवेदन खारिज होगा, उन्हें उनके देश वापस भेजने की प्रक्रिया भी तेज होगी. साथ ही, बॉर्डर सेंटरों पर आप्रवासियों को हिरासत में रखने की समयसीमा भी 12 हफ्ते से ज्यादा की जाएगी.

इथियोपिया समेत कई देशों से आप्रवासन पर समझौते करते यूरोपीय नेतातस्वीर: Alessandro Serrano/Photoshot/picture alliance

कितना बड़ा है शरणार्थी संकट

यूरोपीय संघ में 2015 में शरण लेने के लिए 13.50 लाख आवेदन आए. 2016 में इनकी संख्या 12.50 लाख थी. 2017 में EU और तुर्की के बीच एक डील हुई, जिसके तहत गैरकानूनी तरीके से सीमाएं लांघने वालों के खिलाफ कार्रवाई पर सहमति बनी. इसके चलते शरण के आवेदनों में भारी कमी आई.

2020-2021 के दौरान कोविड-19 महामारी की वजह से लगी पाबंदियों ने भी शरण के आवेदनों को कम किया. लेकिन, 2022 में हालात कुछ बदलने के बाद इस संख्या में 53 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. EU की शरणार्थी एजेंसी-यूरोपियन यूनियन एजेंसी ऑफ असायलम ने बताया है कि इस साल जनवरी और जून के बीच 5,19,000 आवेदन आए. अगस्त तक जर्मनी में ही ऐसे आवेदनों की संख्या दो लाख पार कर गई.

ओएसजे/वीएस (एएफपी, रॉयटर्स)

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