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मीथेन उत्सर्जन रोकने के लिए ईयू में संधि पर हुई सहमति

१५ नवम्बर २०२३

मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच एक नई संधि पर सहमति हो गई है. इसके तहत कोयला, गैस और तेल उद्योगों पर नए नियम लागू किए जाएंगे.

मीथेन उत्सर्जन
मीथेनतस्वीर: blickwinkel/IMAGO

यह प्रोविजनल संधि है और अभी इसे कानून बनने के लिए औपचारिक रूप से मंजूरी की जरूरत है. इस पर सहमति दुबई में होने वाली संयुक्त राष्ट्र के जलवायु शिखर सम्मेलन कोप28 के शुरू होने से ठीक दो हफ्ते पहले हासिल हुई है.

इसके तहत जीवाश्म ईंधन के उद्योगों को मीथेन गैस के उत्सर्जन को ट्रैक और मॉनिटर करने के लिए और रिसाव रोकने के लिए नए कदम उठाने होंगे. इसके तहत गैस को निकालने के लिए आम तौर पर की जाने वाली 'वेंटिंग और फ्लेयरिंग' पर बैन लगा दिया जाएगा.

निगरानी पर जोर

इसकी अनुमति सिर्फ ऐसे हालात में मिलेगी जब दूसरा कोई उपाय ना हो. संधि के तहत एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया जाएगा. यूरोपीय संघ में आयात होने वाले तेल, गैस और कोयले पर मीथेन की मॉनिटरिंग की जाएगी. यह प्रक्रिया तीन चरणों में लागू की जाएगी.

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स्पेन की इकोलॉजिकल ट्रांजीशन मंत्री टेरेसा रिबेरा ने कहा, "यह क्लाइमेट एक्शन के प्रति एक महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिसका जलवायु परिवर्तन में योगदान की दृष्टि से कार्बन डाइऑक्साइड के बाद नंबर आता है और वो जलवायु के मौजूदा रूप से गर्म होने के तीसरे हिस्से की जिम्मेदार है." 

निगरानी के पहले चरण में एक वैश्विक मॉनिटरिंग टूल और एक "सुपर उत्सर्जक त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली" को बनाया जाएगा. बाद के चरणों में 2027 तक आयात पर मॉनिटरिंग, रिपोर्टिंग और वेरिफिकेशन के कदम लागू किए जाएंगे.

फिर 2030 तक "अधिकतम मीथेन तीव्रता मूल्य" लागू किए जाएंगे. उल्लंघन की सूरत में संघ के सदस्य देशों के पास जुर्माना लगाने की शक्ति होगी. यूरोपीय आयोग ने इस संधि को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघ की लड़ाई के लिए "बेहद जरूरी" बताया है.

चीन, अमेरिका भी आए साथ

आयोग के मुताबिक 100 सालों की अवधि में मीथेन का ग्लोबल वार्मिंग पर कार्बन डाइऑक्साइड के मुकाबले 28 गुना ज्यादा असर होता है और 20 साल की अवधि में 84 गुना ज्यादा. यह संधि ऐसे समय पर आई है जब चीन और अमेरिका ने भी मीथेन के उत्सर्जन को रोकने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है.

धान के खेतों से अरबों टन मीथेन निकलती हैतस्वीर: Jaipal Singh/epa/dpa/picture alliance

बुधवार को बीजिंग और मंगलवार को वॉशिंगटन में जारी किए गए एक बयान में दोनों देशों ने कहा कि वो दोनों देशों की "महत्वपूर्ण भूमिका से अवगत हैं" और "इस समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक का मुकाबला करने के लिए साथ काम करेंगे."

दोनों देशों ने ऊर्जा नीतियों पर बातचीत को फिर से शुरू करने पर भी सहमति जताई और साथ ही क्लाइमेट एक्शन को बढ़ावा देने के लिए एक वर्किंग ग्रुप शुरू करने की भी घोषणा की. जानकार इसे एक बड़ा कदम बता रहे हैं.

वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट में इंटरनेशनल क्लाइमेट डायरेक्टर डेविड वास्को ने बताया कि पेरिस संधि के नाम से जानी जाने वाली 2015 की जलवायु संधि में "मीथेन चीन की प्रतिबद्धता से विशेष रूप से नदारद थी."

उन्होंने बताया कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा मीथेन उत्सर्जक है और "निकट काल में ग्लोबल वॉर्मिंग को धीमा करने के लिए इस गैस को रोकने के लिए गंभीर कदम उठाया जाना बेहद जरूरी है."

सीके/एए (एपी, एएफपी)

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