ईयू सदस्य 27 देशों में आज से आसान यात्रा के लिए कोविड वैक्सीन प्रमाणपत्र योजना प्रभावी हो गई. इस योजना के तहत कोरोना वैक्सीन ले चुके यात्री डिजीटल पास के साथ यूरोप जा सकेंगे.
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कोविशील्ड वैक्सीन को यूरोपीय संघ के ग्रीन पास में शामिल करने को लेकर भारत के साथ विवाद बढ़ता नजर आ रहा है. भारत में कुछ मीडिया संस्थानों ने सरकारी सूत्रों के हवाले से लिखा है कि भारत ने यूरोपीय संघ को कड़ी जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है.
एनडीटीवी ने अपने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि भारत ने यूरोपीय संघ से कहा है कि भारत में बनी वैक्सीन को ग्रीन पास में शामिल नहीं किया गया तो यूरोपीय यात्रियों को भारत में कड़े क्वारन्टीन से गुजरना होगा.
दूसरे देशों से गर्मी की छुट्टी, शिक्षा, नौकरी और अन्य बिजनेस यात्रा करने वालों के लिए 1 जुलाई यानी गुरुवार से ईयू में ग्रीन पास योजना लागू हो गई. लेकिन अधिक संक्रामक डेल्टा संस्करण पहले से ही इसके इस्तेमाल को कम करने की चेतावनी दे रहा है.
क्या है ग्रीन पास
यूरोपीय संघ दस्तावेज अनिवार्य रूप से स्मार्टफोन या हार्ड कॉपी पर डिजीटल रूप में उपलब्ध कराया गया एक क्यूआर कोड होता है जो दिखाता है कि यात्री को यूरोपीय संघ से मंजूरी प्राप्त वैक्सीन मिली है या नहीं.
यूरोपीय चिकित्सा एजेंसी (ईएमए) की ओर से जो टीके अधिकृत किए गए वे हैं- बायोएनटेक/ फाइजर, एस्ट्राजेनेका, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन. ईयू के दस्तावेज से यह भी पता चल पाएगा कि क्या यात्री संक्रमण से ठीक हुआ है या फिर हाल में ही उसकी कोरोना की रिपोर्ट नेगेटिव आई है.
जानिए, कौन कितने टीके दान करेगा
जी-सात देशों में किसने कितने टीके दान करने का किया वादा
कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ विकासशील और गरीब देशों में टीकाकरण की रफ्तार बहुत धीमी है. जानिए जी-सात समूह के शक्तिशाली सदस्य देशों ने दुनिया को टीकों की कितने खुराक देने का वादा किया है.
तस्वीर: Bernd Riegert/DW
अमेरिका
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि वो अमेरिकी कंपनी फाइजर के टीके की 50 करोड़ खुराक खरीद कर 90 से भी ज्यादा देशों को दानस्वरूप देंगे. फाइजर और उसकी सहयोगी जर्मन कंपनी बायोएनटेक 2021 में 20 करोड़ खुराक उपलब्ध कराएंगी और 2022 के पहले छह महीनों में बाकी 30 करोड़ खुराक.
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ब्रिटेन
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने वादा किया है कि उनके देश के पास टीकों का जो अतिरिक्त भंडार है उसमें से वो कम से कम 10 करोड़ खुराक अगले एक साल में दुनिया के कई देशों को देंगे. इसमें से 50 लाख खुराक अगले कुछ हफ्तों में ही दी जा सकती हैं. जॉनसन ने यह भी कहा है कि वो उम्मीद कर रहे हैं कि जी-सात के सदस्य देश एक अरब खुराक तक उपलब्ध कराएंगे ताकि 2022 में महामारी को खत्म किया जा सके.
तस्वीर: Simon Dawson/Avalon/Photoshot/picture alliance
ईयू, जर्मनी, फ्रांस, इटली
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला उर्सुला फॉन डेय लाएन ने कहा है कि यूरोपीय संघ ने इसी साल के अंत तक मध्य आय और कम आय वाले देशों को कम से कम 10 करोड़ खुराक देने का लक्ष्य बनाया है. इसमें फ्रांस और जर्मनी द्वारा तीन-तीन करोड़ खुराक और इटली द्वारा 1.5 करोड़ खुराक का योगदान शामिल है. फ्रांस ने कहा है कि वो कोवैक्स टीका-साझेदारी कार्यक्रम के तहत सेनेगल को ऐस्ट्राजेनेका टीके की 1,84,000 खुराक दे चुका है.
जापान ने कहा है कि वो देश के अंदर बनने वाले टीकों की करीब तीन करोड़ खुराक कोवैक्स के जरिए ही दानस्वरूप देगा. पिछले सप्ताह जापान ने ताइवान को ऐस्ट्राजेनेका के टीके की 12.4 लाख खुराक निशुल्क दीं.
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कनाडा
कनाडा ने अभी तक वैक्सीन की खुराक दूसरे देशों को देने के बारे में कोई घोषणा नहीं की है.
तस्वीर: picture-alliance/S. Kilpatrick
वैश्विक स्थिति
विश्व स्वास्थ्य संगठन और टीकों के लिए बने वैश्विक गठबंधन गावी के समर्थन से कोवैक्स कार्यक्रम ने इस साल के अंत तक कम आय वाले देशों के लिए दो अरब खुराक सुरक्षित करने का लक्ष्य रखा है. इस सप्ताह की घोषणाओं के पहले कोवैक्स को सिर्फ 15 करोड़ खुराक का वादा पाया था. यह कार्यक्रम के सितंबर तक 25 करोड़ खुराक और साल के अंत तक एक अरब खुराक के पुराने लक्ष्य से भी बहुत पीछे था.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
वैक्सीन अन्याय
अभी तक दुनिया में टीकों की 2.2 अरब खुराक दी जा चुकी हैं, जिनमें से अकेले जी-सात देशों में ही करीब 56 करोड़ खुराक दी गई हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महासचिव तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने कहा है कि टीके के वितरण में हो रहा "लज्जाजनक अन्याय" महामारी को बनाए रख रहा है. - रॉयटर्स
तस्वीर: Sirachai Arunrugstichai/Getty Images
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यूरोपीय संघ के कानून के तहत, प्रमाण पत्र यूरोपीय संघ के 27 देशों या चार संबद्ध यूरोपीय देशों (आइसलैंड, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड और लिस्टेंस्टाइन) के बीच यात्रा करते समय क्वॉरन्टीन या आगे के परीक्षण की आवश्यकता को दूर करने के लिए है.
यूरोपीय संघ के न्याय आयुक्त डिडियर रेयंडर्स ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि गुरुवार से यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देश इस योजना से जुड़ जाएंगे. मई में स्वास्थ्य सेवा पर हुए साइबर हमले की चपेट में आने से सिर्फ आयरलैंड ही इस योजना में शामिल होने से पिछड़ गया है.
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भारत की मांग
ईयू ने सिर्फ चार टीकों को डिजीटल प्रमाणपत्र में शामिल किया है. भारतीय वैक्सीनों को इसमें जगह नहीं मिल पाई है. कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन को यूरोपीय संघ के डिजीटल कोविड सर्टिफिकेट की लिस्ट में शामिल करने को लेकर भारत लगातार यूरोपीय संघ से मांग कर रहा था.
ईयू उन लोगों को डिजीटल पास नहीं दे रहा है जिन लोगों ने कोविशील्ड या फिर कोवैक्सीन लगाया गया है. हालांकि कोविशील्ड को डब्ल्यूएचओ द्वारा अधिकृत किया गया है जबकि कोवैक्सीन ने भारत और कुछ अन्य देशों में विनियामक अनुमोदन प्राप्त किया है.
तस्वीरों मेंः दुनिया की अलग-अलग वैक्सीनों पर एक नजर
दुनिया की अलग-अलग वैक्सीनों पर एक नजर
पूरी दुनिया कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के लिए कोविड-19 की वैक्सीन पर निर्भर है. वैक्सीन इंसान के शरीर को बीमारी, संक्रमण या वायरस से लड़ने के लिए तैयार करती है. एक नजर विभिन्न वैक्सीनों पर और वह कैसे काम करती है.
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फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना
अमेरिका में इस्तेमाल हो रही है फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना की कोविड वैक्सीन, दोनों मैसेंजर आरएनए वैक्सीन हैं जिन्हें तैयार करने में वायरस के आनुवांशिक कोड के एक हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है. दोनों ही वैक्सीन की दो खुराक दी जाती हैं. फाइजर की वैक्सीन को स्टोरेज के लिए -80 से -60 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है. मॉडर्ना वैक्सीन को -25 से -15 डिग्री में 6 महीने के लिए रखा जा सकता है.
तस्वीर: Joel Saget/AFP
ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका
ब्रिटेन में इस्तेमाल में लाई जा रही ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन वायरल वेक्टर वैक्सीन है. इसके दोनों डोज एक दूसरे से अलग होते हैं. इसकी भी दो खुराक दी जाती है. इस वैक्सीन को दो डिग्री सेल्सियस से लेकर आठ डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच छह महीने के लिए रखा जा सकता है.
तस्वीर: Gustavo Valiente/Xinhua/picture alliance
स्पुतनिक वी
रूस में इस्तेमाल की जाने वाली स्पुतनिक वी वैक्सीन की दोनों खुराकों में दो अलग अलग सामग्री का इस्तेमाल होता है. इनमें दो अलग अलग किस्म के एडिनोवायरस वेक्टर का इस्तेमाल किया गया है. इस वैक्सीन को 60 से अधिक देशों ने इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी है. इसको माइनस 18.5 डिग्री सेल्सियस तापमान में स्टोर किया जाता है. इस वैक्सीन का इस्तेमाल भारत में भी हो रहा है.
तस्वीर: Artur Widak/NurPhoto/picture alliance
जॉनसन एंड जॉनसन
अमेरिका में इस्तेमाल में आ रही जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल खुराक वाली वैक्सीन को दो से आठ डिग्री सेल्सियस तापमान में रखा जा सकता है. लेकिन इस वैक्सीन के लगाने के बाद कई बार खून के थक्के बनने की भी शिकायतें आई हैं.
तस्वीर: Dado Ruvic/REUTERS
सिनोवैक-सिनोफार्म चीन की वैक्सीन
सिनोवैक-सिनोफार्म दोनों को ही बनाने के लिए वायरस के निष्क्रिय अंशों का इस्तेमाल किया गया है. दोनों टीकों की दो खुराक दी जाती है. इसके भंडारण के लिए दो से आठ डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है.
तस्वीर: MAXPPP/dpa/picture alliance
कोवैक्सीन
भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन का इस्तेमाल भारत में बड़े पैमाने पर हो रहा है. इस टीके को कई देशों की मदद के लिए भी भेजा गया है. कोवैक्सिन एक निष्क्रिय टीका है. यह टीका मरे हुए कोरोना वायरस से बनाया गया है जो टीके को सुरक्षित बनाता है.
तस्वीर: Ajit Solanki/AP Photo/picture alliance
कोविशील्ड
ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका ने भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ मिलकर इसे तैयार किया है. यह भी वायरल वेक्टर टीका है. इसे टीके को एडेनोवायरस का इस्तेमाल करके विकसित किया गया है- जो कि चिंपाजी के बीच आम सर्दी के संक्रमण का कारण बनता है.
तस्वीर: NIHARIKA KULKARNI/dpa/picture alliance
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भारतीय मीडिया में कहा जा रहा है कि भारत ने ईयू के सदस्य देशों से कहा है कि वह उसकी दोनों वैक्सीन को योजना में शामिल करें या फिर ईयू के नागरिकों के भारत आने पर क्वारंटीन अनिवार्य कर दिया जाएगा.
ईयू में आवाजाही के लिए ग्रीन पास
बुधवार तक यूरोपीय संघ के 21 देश पहले से ही प्रमाण पत्र स्वीकार कर रहे थे, जिनमें प्रमुख पर्यटन स्थल फ्रांस, स्पेन, इटली, ग्रीस और क्रोएशिया शामिल हैं. रेयंडर्स ने कहा, "हम सभी सदस्य देशों को इस तरह के टूल का उपयोग न केवल स्वतंत्र यात्रा कानून के लिए करने की सलाह देते हैं, बल्कि सभी संभावित राष्ट्रीय उपयोगों के लिए. जैसे कि संगीत समारोहों, त्योहारों, थिएटरों, रेस्तरां में जाने के लिए भी."
लेकिन ब्रिटेन में डेल्टा वेरिएंट के बढ़ते मामलों ने चिंता बढ़ा दी है. जर्मनी ने पहले ही पुर्तगाल से आने वाले यात्रियों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, जहां डेल्टा संक्रमण तेजी से फैल गया है. जर्मनी सिर्फ अपने नागरिकों को लौटने की इजाजत दे रहा है, जिसके लिए दो सप्ताह के क्वारंटीन की शर्त भी है.
देखिए, भारत में कोरोना की कितनी किस्में
कोरोना की कितनी किस्में हैं भारत में
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि सबसे पहले भारत में सामने आई कोरोना वायरस की किस्म अब 53 देशों में फैल चुकी है. आखिर वायरस के कितने वेरिएंट हैं भारत में?
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
क्या होते हैं वेरिएंट
वायरस म्युटेशन की बदौलत हमेशा बदलते रहते हैं और इस परिवर्तन से उनकी नई किस्मों का जन्म होता है जिन्हें वेरिएंट कहते हैं. कभी कभी नए वेरिएंट उभर कर गायब भी होते हैं और कभी कभी वो मौजूद रहते हैं. कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया में इस संक्रमण को फैलाने वाले कई वेरिएंट पाए गए हैं.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
यूके वेरिएंट
इसका वैज्ञानिक नाम बी.1.1.7 है और यह सबसे पहले यूके में पाया गया था. दिसंबर 2020 से लेकर मार्च 2021 तक यह कई देशों में पाया गया. इंग्लैंड के बाहर इसे इंग्लिश वेरिएंट या यूके वेरिएंट के नाम से जाना जाता है.
तस्वीर: Oli Scarff/AFP/Getty Images
दक्षिण अफ्रीका वेरिएंट
बी.1.351 को दक्षिण अफ्रीका वैरिएंट के नाम से जाना जाता है. यह सबसे पहले अक्टूबर 2020 में दक्षिण अफ्रीका में पाया गया था. धीरे धीरे यह भारत समेत कई देशों में फैल गया और फरवरी 2021 में यह भारत में भी पाया गया.
इसका वैज्ञानिक नाम पी.1 है और यह सबसे पहले जनवरी 2021 में ब्राजील में पाया गया था. इस ब्राजील में आई घातक दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार माना जाता है. फरवरी 2021 में यह भारत में भी पाया गया.
इसके वैज्ञानिक रूप से बी.1.618 के नाम से जाना जाता है. मार्च में पश्चिम बंगाल में यह बड़ी संख्या में संक्रमण के मामलों के लिए जिम्मेदार पाया जा रहा था, जिसकी वजह से इसे पश्चिम बंगाल वैरिएंट भी कहा जा रहा था. लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि अब यह वेरिएंट कमजोर हो गया है.
तस्वीर: Prabhakar
'भारतीय' वेरिएंट
यह एक ऐसा वेरिएंट है जो जीनोमिक अध्ययन में पहली बार भारत में ही पाया गया था. इसे बी.1.617 का नाम दिया गया है. भारत में अप्रैल से फैली संक्रमण की घातक लहर के लिए इसी वेरिएंट को बड़े स्तर पर जिम्मेदार माना जा रहा है. इसमें वायरस के स्पाइक प्रोटीन में दो म्युटेशन पाए जाते हैं. स्पाइक प्रोटीन वो प्रोटीन होता है जिसकी मदद से वायरस मानव शरीर की कोशिकाओं में घुसता है और शरीर को संक्रमित करता है.
तस्वीर: PRAKASH SINGH/AFP
सब-वेरिएंट
वैज्ञानिकों का मानना है कि बी.1.617 के अपने तीन उप-वेरिएंट भी बन चुके हैं. बी.1.617 को अब बी.1.617.1 के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा बी.1.617.2 और बी.1.617.3 नाम के दो और उप-वेरिएंट देखे गए हैं. माना जा रहा है कि इनमें से बी.1.617.2 यूके में सामने आने वाले सबसे ज्यादा नए मामलों के लिए जिम्मेदार है.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
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बर्लिन के फैसले ने ब्रसेल्स के गुस्से को बढ़ा दिया है. रेयंडर्स ने कहा कि यूरोपीय संघ के भीतर "हमें यात्रा प्रतिबंधों से बचना चाहिए." उन्होंने जोर देकर कहा कि जर्मनी को पहले अपने सहयोगियों के साथ राय मशविरा करना चाहिए था.
यूरोपीय संघ के प्रमाण पत्र से परे ब्रसेल्स सभी सदस्य देशों से आग्रह कर रहा है कि वे केवल ब्लॉक के बाहर से पूरी तरह से टीकाकरण वाले यात्रियों को यात्रा करने की इजाजत दें या फिर उन्हें जिन्हें बहुत जरूरी यात्रा की जरूरत है.