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जलवायु परिवर्तन और बेतहाशा पर्यटन से आल्प्स पर मंडराता खतरा

९ नवम्बर २०२३

छुट्टियां बिताने के लिए आल्प्स एक मशहूर ठिकाना है लेकिन जलवायु परिवर्तन और ओवर टूरिज्म यानी बेहिसाब पर्यटन की मार उस पर पड़ी है. क्या उस इलाके में इस कदर पर्यटन अभी भी संभव है?

स्विटजरलैंड में लोगों को गांव खाली करने की हिदायत दी गई
आल्प्स पर्वतमाला का क्षेत्र लगातार असुरक्षित होता जा रहा हैतस्वीर: Arnd Wiegmann/AP/picture alliance

अद्भुत नजारे, लंबी पहाड़ी ढलानें, निर्जन चोटियां और बर्फ से ढका एक सुरम्य शांत वातावरण – गर्मी हो या सर्दी, यूरोप के अल्पाइन क्षेत्र में आने वालों का तांता लगा रहता है. लेकिन अब आल्प्स - ट्रैफिक जाम, भीड़ भरे गांवो और पैदल चलने वाले रास्तों और स्कीइंग की ढलानों को अवरुद्ध करते मौजमस्ती के शौकीनों की वजह से कुख्यात बनता जा रहा है. अल्पाइन के गांवों का मौलिक लैंडस्केप अब पर्यटकों को ठूंसठूंस कर भरने वाले कंक्रीट के बेढंगे किलों में बदल चुका है.

स्विस आल्प्स में रिसॉर्ट इस साल जनवरी तक बर्फबारी का इंतजार करते रहे तस्वीर: Fabrice Coffrini/AFP/Getty Images

हाल के दिनों में, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव आल्प्स की मुसीबतों को बढ़ाने लगे हैं. स्टेफन राइष कहते हैं, "ये साफ साफ महसूस किया जा सकता है कि अल्पाइन इलाके में वॉर्मिंग, विश्व औसत के मुकाबले काफी गंभीर तेजी के साथ बढ़ रही है."स्टेफन राइष करीब 14 लाख सदस्यों वाले, पर्वतारोहियों और हाइकरों के दुनिया में सबसे बड़े संगठन- जर्मन अल्पाइन क्लब में नेचर प्रोटेक्शन के इंचार्ज हैं. उन्होंने डीडब्लू को बताया कि और तपिश भरी लू और कम बर्फबारी से न सिर्फ ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं बल्कि पर्माफ्रॉस्ट की मिट्टी भी द्रुत गति से छीज रही है. इसके अलावा, तूफानों की ताकत और आवृत्ति तेज हो रही है, जिससे पहाड़ी ढलानों पर जंगल के जंगल खत्म हो रहे हैं. नतीजतन मिट्टी का धंसाव और होने लगा है, जो भूस्खलन के खतरे बढ़ा सकता है.

पहाड़ से गिरते पत्थरों की वजह से तलहटी में बसे गांवों के लिए भी खतरा बढ़ गया हैतस्वीर: Michael Buholzer/KEYSTONE/picture alliance

खतरे में पर्यटन

अल्पाइन के लोगों के लिए टूरिज्म ही रोजीरोटीका प्रमुख जरिया रहा है. छुट्टियां बिताने वालों की सालाना आमद पहले जैसी तो होने से रही. लेकिन राइष मानते हैं कि इसका उलट ही होना है. उन्हें लगता है कि इलाका अब टूरिस्टों के बीच और लोकप्रिय हो जाएगा. वजह है जलवायु परिवर्तन - क्योंकि पहाड़ी इलाका निचली जगहों के मुकाबले ज्यादा ठंडा रहेगा. जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार खासतौर पर स्कीइंग रिसॉर्टो पर पड़ी जिन्हें खुद को नये हालात में सबसे ज्याद ढालना होगा. कम बर्फबारी और उच्च होते तापमान पहले ही उन पर आफत बने हुए हैं. कुदरती बर्फ के अभाव में स्थानीय समुदायों को अपनी जरूरतों के लिए तकनीकी जरियों पर निर्भर होना पड़ा है और उसके चलते उनके बिलों की राशि भी अच्छीखासी बढ़ रही है.

ग्लेशियर पिघलने से बनी झीलें भी आल्प्स में बसे गांवों के लिए नए संकट पैदा कर रही हैंतस्वीर: FABRICE COFFRINI/AFP/Getty Images

और तो और अल्पाइन का तापमान, इस कदर बढ़ता जा रहा है कि स्नो कैनन और नकली बर्फ बनाने वाली दूसरी मशीनें भी व्यर्थ हो रही हैं. ये तमाम परिघटनाएं, आल्प्स में टूरिज्म का चेहरा बदल देंगी. जबकि ये वही इलाका है जिसके पास सबसे ज्यादा विंटर रिसॉर्ट हैं. आल्प्स की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय आयोग (सिप्रा) से जुड़ी हेनरिएत अडोल्फ मानती हैं कि भविष्य में लोग, अल्पाइन स्कीइंग के सात दिनों का लुत्फ तो नहीं उठा पाएंगे लेकिन कुछ विशिष्ट मौकों पर स्थानीय स्थितियों के अनुकूल गतिविधियों में व्यस्त रहने के लिए उन्हें खुद को ढालना होगा.

अडोल्फ का सुझाव है कि अल्पाइन स्कीइंग का विकल्प, क्रॉस-कंट्री स्कीइंग हो सकता है जिसमें कम बर्फ चाहिए होती है. उन्हें ये भी लगता है कि टूरिस्ट समय के साथ बर्फ के बिना मजा उठाने के आदी बनते जाएंगे. उन्होंने पर्यटन से जुड़े स्थानीय अधिकारियों से कहा कि वे साल भर के सीजनों की तैयारी करें जिनमें, मिसाल के लिए, रिफिटिंग स्कीइंग लिफ्टों का इस्तेमाल किया जा सकता है और उन्हें हाइकरों के लिए भी उपलब्ध कराया जा सकता है. 

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जलवायु संकट के बीच हाइकिंग?

आल्प्स में हाइकिंग और पर्वतारोहण की लोकप्रियता में इजाफे के बावजूद, ये गतिविधियां ज्यादा खतरनाक भी हो रही हैं. ऑस्ट्रिया के अल्पाइन क्लब ने हाल में अपने सदस्यों को एक न्यूजलैटर के जरिए बताया, "खासतौर पर ऊंचाई पर जाने वाले पर्वतारोहियों के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग के परिणाम और ग्लेशियर वाले इलाकों में बढ़ते खतरे नाटकीय (चिंताजनक) हैं." 2400 मीटर से ऊपर की ऊंचाई वाले इलाकों में पर्माफ्रॉस्ट (बर्फीली जमीन) के मंद गति से हो रहे पिघलाव ने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है. ये स्थायी रूप से बर्फ से जमी हुई जमीनें असरदार तरीके से ग्लू के रूप में काम करते हुए तमाम चट्टानी संरचनाओं को थामे रखती हैं.

उनके पिघलने से मडस्लाइड, चट्टानों के खिसकने या पहाड़ के पहाड़ ढह जाने का खतरा हो सकता है. इस साल जून में, ऑस्ट्रिया के टाइरोल प्रांत में फ्लुश्टहोर्न पर्वत शिखर का हिस्सा रही दस लाख घन मीटर से ज्यादा की चट्टान ( माल से लदे 120000 ट्रकों के बराबर) टूट कर नीचे घाटी में जा गिरी जिससे मडस्लाइड आ गया. राइष कहते हैं, "भूस्खलनों और उसी जैसी घटनाओं की वजह से, लंबी दूरी की पैदल यात्राओं के रास्ते अस्थायी रूप से बंद करने होंगे या स्थायी तौर पर नये रास्ते खोलने होंगे."

​​​​सोशल मीडिया की वजह से आल्प्स टूरिज्म को बहुत बढ़ावा मिला हैतस्वीर: OLIVIER CHASSIGNOLE/AFP

ऑस्ट्रियाई अल्पाइन क्लब के गेरहार्ड म्युसमर कहते हैं कि टूरिस्ट मुद्रित गाइडपुस्तकों या एनालॉग नक्शों के भरोसे और नहीं रह सकते. उन्हें अपने सफर की तमाम सूचना इंटरनेट पोर्टलों या सीधे स्थानीय लोगों से ज्यादा बेहतर ढंह से मिल जाती हैं. अल्पाइन के भूभाग में जलवायु से जुड़े संकट, पहाड़ियों पर झौपड़ियों और शेल्टरों के संचालकों पर खुद को नये हालात में ढालने का दबाव बढ़ा रहे हैं. उनमें से कुछ ठिकानों का संचालन अल्पाइन क्लब करता है. उन्हें मिट्टी के धंसाव को रोकने के लिए अपनी नीवें फिर से बनानी पड़ी. इसके अलावा गर्मियों में पानी की किल्लत भी रहने लगी है. राइष कहते हैं, "पानी बचाया जा रहा है, सिस्टर्न लगाए जा रहे हैं, बिना पानी के चलने वाले टॉयलेट बनाए जा रहे हैं या शॉवर कम किए जा रहे हैं." अडोल्फ कहती हैं, "मैंने भी उन स्थितियों का अनुभव किया है जहां पानी पर राशन लगा था, या हाइकिंग के लिए सीमित मात्रा में ही पानी ले जाया जा सकता था. कुछ झौंपड़ियां तब भी थीं जिन्हें अपना सीजन जल्द खत्म करने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि उनका पानी खत्म हो गया था."

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कामयाबी के नुकसान

जलवायु परिवर्तन के अलावा, आल्प्स में पर्यटन के सामने एक बहुत बड़ी समस्या आ रही है. हर साल बहुत ज्यादा लोग छुट्टियां मनाने इलाके में टूट पड़ रहे हैं. टूरिस्टों की इस विशाल आमद से स्थानीय लोग भौंचक्के हैं. इन सैलानियों में से ज्यादातर लोग तो इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर ताजातरीन मस्ट-विजिट साइट का जिक्र आते ही, घूमने पहुंच जाते हैं.

इटली के साउथ टाइरोल इलाके ने हॉलीडे बेड्स की संख्या तय करके रख दी है.  क्षेत्रीय काउंसलर आर्नोल्ज शुलर ने अमेरिकी प्रसारक सीएनएन को इस साल के शुरू में बताया कि ट्रैफिक समस्याओं के बढ़ने और सस्ते मकानों को खोजने में स्थानीय लोगों को आ रही कठिनाई को देखते हुए लगता है कि उनका लोकप्रिय रिसॉर्ट अपने संसाधनों की सीमा पर पहुंच चुका है.

जर्मन अल्पाइन क्लब के स्टेफन राइष मानते हैं कि ऐसे कड़े उपायों की हर कहीं जरूरत नहीं. "आपको ठीक ठीक से समझना होगा कि समस्या क्या है. क्या स्थानीय लोगों पर नकारात्मक असर, समस्या है? क्या वन्यजीवन पर खतरा समस्या है? या ये सिर्फ पीक सीजन में उचित और पर्याप्त प्रबंधन न कर पाने की समस्या है?" वो कहते हैं कि हर समस्या को अपने एक विशिष्ट समाधान की जरूरत होगी.

 

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