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अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए पर्यावरण से समझौता करेगा यूरोप

३० जनवरी २०२५

अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और उसे चीन व दूसरे देशों के साथ मुकाबले के लिए तैयार करने की दिशा में यूरोपीय संघ ने नई रणनीति जारी की है. लेकिन इसकी तीखी आलोचना हो रही है.

बेल्जियम न्यूक्लियर पावर प्लांट
बिजली यूरोप की सबसे बड़ी चिंताओं में से हैतस्वीर: IMAGO/alimdi

यूरोपीय संघ (ईयू) अपनी औद्योगिक प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए एक नई योजना लेकर आया है. खासतौर पर, यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बायोटेक और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में विकास पर जोर दे रहा है. लेकिन यह काम आसान नहीं है. नियम-कानून, निवेश की कमी और जलवायु नीतियों से तालमेल बिठाना बड़ी चुनौती बनी हुई है.

यूरोपीय आयोग ने "कॉम्पिटिटिव कंपास" नाम से एक योजना पेश की है, जो अगले दो सालों में उद्योग को मजबूत करने पर केंद्रित होगी. इस दस्तावेज में चेतावनी दी गई है कि अगर यूरोप ने जल्द कदम नहीं उठाए, तो वह धीरे-धीरे आर्थिक गिरावट की ओर बढ़ता रहेगा.

निवेश की जरूरत और आलोचनाएं

ईयू के सबसे बड़े व्यापारिक संगठन "बिजनेस यूरोप" ने इस योजना का समर्थन किया है. संगठन का यह भी कहना है कि इसे जल्दी और प्रभावी तरीके से लागू करना जरूरी है. आलोचकों का कहना है कि समस्या केवल नीतियों की नहीं, बल्कि निवेश की भी है. यूरोपीय सेंट्रल बैंक के पूर्व प्रमुख मारियो द्रागी ने हर साल 800 अरब यूरो के निवेश की जरूरत बताई है, लेकिन मौजूदा योजना इस पैमाने पर नहीं पहुंचती.

योजना के तहत, 26 फरवरी को "क्लीन इंडस्ट्रियल डील" नाम से एक नई पहल पेश होगी. इसका लक्ष्य प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को हरित तकनीकों में बदलना है. साथ ही, कारोबारियों की दिक्कतें कम करने के लिए, यूरोपीय आयोग सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग के नियमों में 25 फीसदी की कटौती करेगा. इससे कंपनियों को हर साल 37.5 अरब यूरोप की बचत होगी.

पर्यावरण संगठनों ने इस कदम का विरोध किया है. क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क का कहना है कि ऊर्जा के ऊंचे दाम और निवेश की कमी असली समस्या है, ना कि कड़े नियम.

नए नियम और व्यापार की चुनौतियां

यूरोपीय संघ ऑटोमोबाइल जैसे उद्योगों के लिए नियमों में थोड़ी ढील देने पर विचार कर रहा है. खासकर, 2025 के कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों को लेकर नीतियों में बदलाव संभव है. पिछले साल यूरोपीय संघ में उत्सर्जन घट गया था.

इस बीच, अमेरिका ने अपने उद्योगों के नियमों में ढील देना शुरू कर दिया है. राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पिछले कार्यकाल में भी यूरोप पर यही करने का दबाव था. फ्रांस ने भी नए कॉरपोरेट ड्यू डिलिजेंस नियमों को कुछ समय के लिए टालने की सिफारिश की है.

यूरोप में सिर्फ उद्योग ही नहीं, बल्कि हवाई यात्रा भी एक बड़ी चुनौती बन गई है. हवाई यात्रा की मांग तेजी से बढ़ रही है, लेकिन यूरोपीय संघ का 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य इसे मुश्किल बना रहा है.

ब्रिटेन में हीथ्रो हवाई अड्डे का तीसरा रनवे मंजूर हो गया है. ब्रिटिश वित्त मंत्री राहेल रीव्स ने इसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी बताया है. लेकिन पर्यावरण समूहों का कहना है कि उड़ानों की संख्या बढ़ाने से जलवायु परिवर्तन से निपटना मुश्किल होगा.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर हवाई यात्रा को सीमित नहीं किया गया, तो 2049 तक उत्सर्जन का स्तर 2019 जैसा ही रहेगा.

यूरोप में हर देश की अपनी अलग नीति है. ब्रिटेन और पुर्तगाल नए हवाई अड्डे बना रहे हैं. फ्रांस और नीदरलैंड्स उड़ानों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. नीदरलैंड्स ने एम्सटर्डम के शोपोल हवाई अड्डे पर वार्षिक उड़ानों की सीमा तय कर दी है. बेल्जियम 2032 तक इसी तरह के नियम लागू करेगा.

हालांकि, हवाई यात्रा की मांग फिर भी बढ़ रही है. पेरिस-ओरली हवाई अड्डा, जहां पहले से उड़ानों की सीमा तय है, 2035 तक 16 फीसदी ज्यादा यात्रियों को संभालने की तैयारी में है. इसी तरह, क्रेते और लिस्बन में भी विस्तार की योजना है.

विमानन क्षेत्र की आर्थिक चिंताएं

हवाई अड्डों के अधिकारी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यूरोप ने अपने हवाई अड्डों का विस्तार नहीं किया, तो इसका आर्थिक असर पड़ेगा. यूरोकंट्रोल के मुताबिक, 2030 तक एक फीसदी यात्री मांग पूरी नहीं हो पाएगी, क्योंकि हवाई अड्डों की क्षमता कम होगी.

एयरपोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल (एसीआई) यूरोप के प्रमुख ओलिवियर यांकोवेक का कहना है कि अगर यूरोप ने विमानन बुनियादी ढांचे में निवेश नहीं किया, तो यह उसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचाएगा.

जबकि यूरोप हवाई अड्डों को सीमित कर रहा है, बाकी दुनिया इसमें तेजी ला रही है. तुर्की, सऊदी अरब और दुबई 10 से 20 करोड़ यात्रियों की क्षमता वाले नए एयरपोर्ट बना रहे हैं. भारत ने पिछले 10 वर्षों में हवाई अड्डों की संख्या दोगुनी कर दी है और 2047 तक 400 हवाई अड्डे बनाने की योजना है.

विमानन क्षेत्र का कहना है कि अगर यूरोप ने अपने हवाई अड्डों में निवेश नहीं किया, तो यह आर्थिक और भौगोलिक रूप से पिछड़ सकता है.

यूरोपीय संघ के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह औद्योगिक विकास और जलवायु लक्ष्यों में कैसे संतुलन बनाए. निवेश की कमी, नियमों की जटिलता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण यह काम और मुश्किल हो रहा है.

विमानन क्षेत्र इस संघर्ष का बड़ा उदाहरण है. उड़ानों को सीमित करना जलवायु के लिए अच्छा हो सकता है, लेकिन यह अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है. इसी तरह, उद्योगों पर सख्त नियम लगाने से अमेरिका और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले यूरोप कमजोर हो सकता है.

वीके/एनआर (एपी, एएफपी)

 

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