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चीन पर क्यों घट रहा यूरोपीय कंपनियों का भरोसा

१० मई २०२४

चीन में यूरोपीय कंपनियों का भरोसा अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. लेकिन चीन छोड़कर कहां जाया जाए, इस मामले में भारत उनकी पहली पसंद नहीं है.

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चीन यूरोपीय कंपनियों का भरोसा जीतने की कोशिश कर रहा हैतस्वीर: DW

चीन अपनी धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था को वापस तेजी में लाने के लिए विदेशी निवेश की भरपूर कोशिश कर रहा है. लेकिन दुनिया, खासकर यूरोप की कंपनियां चीन में निवेश को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. 500 यूरोपीय कंपनियों के सालाना सर्वेक्षण में पता चला है कि अधिकतर कंपनियां चीन में निवेश करने में झिझक रही हैं.

यूरोपीयन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन चाइना के इस सर्वेक्षण के मुताबिक चीन अब भी निवेश के लिए यूरोपीय कंपनियों की ऊंची पसंद है लेकिन अपने विस्तार के लिए चीन जाने की इच्छा रखने वाली कंपनियों की संख्या अब ऐतिहासिक रूप से सबसे कम हो गई है. सर्वे के मुताबिक इस साल 42 फीसदी कंपनियां ही चीन में विस्तार के बारे में सोच रही हैं.

सबसे निराशाजनक माहौल

चैंबर ने शुक्रवार को जारी अपने बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे में कहा, "कारोबारी संभावनाएं अब तक की सबसे ज्यादा निराशाजनक है. प्रतिद्वन्द्विता को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं और मुनाफे व वृद्धि को लेकर उम्मीदें कम हुई हैं.”

जिन बातों को लेकर कंपनियों ने चिंताएं जताई हैं उनमें चीनी सरकार का रवैया भी शामिल है. कंपनियों का कहना है कि नियम-कानून चीनी कंपनियों के फायदे के हिसाब से बनाए जाते हैं या फिर वे स्पष्ट नहीं होते, जिससे उद्योगों और कर्मचारियों में अनिश्चितता का माहौल रहता है.

यूरोपीयन चैंबर के अध्यक्ष येन्स एस्केलुंड कहते हैं कि वैसे ये चिंताएं कंपनियां बहुत पहले से जाहिर करती रही हैं लेकिन अब ये सारी बातें धीमी अर्थव्यवस्था के साथ मिलकर बहुत बड़ी हो गई हैं, जिससे उद्योगपतियों का भरोसा कमजोर हो गया है.

एस्केलुंड ने कहा, "कंपनियों को अब यह अहसास होने लगा है कि स्थानीय बाजार में जो दबाव में झेल रहे थे, जैसे कि प्रतिद्वन्द्विता या गिरती मांग, ये सब अब स्थायी रूप ले रहे हैं. और इसका असर अब निवेश के फैसलों पर और स्थानीय बाजार के भविष्य को लेकर उनकी राय पर दिखने लगा है.”

कोशिशें नहीं हो रहीं कामयाब

चीन की सरकार उपभोक्ताओं के विश्वास को बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रही है. इस संबंध में खर्च भी किया जा रहा है. फिर भी घटती नौकरियों के कारण उपभोक्ता खर्च करने में झिझक रहे हैं. इस साल की पहली तिमाही में आर्थिक विकास दर उम्मीद से बढ़कर 5.3 फीसदी रही थी लेकिन जीडीपी का ज्यादातर हिस्सा ढांचागत विकास और नई फैक्ट्रियों पर सरकारी खर्च से आया.

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चीन ने सोलर पावर पैनल और इलेक्ट्रिक व्हीकल जैसे उद्योग क्षेत्रों में भारी निवेश किया है. इससे कीमतों को लेकर मुकाबला और तीखा हो गया है और कंपनियों का मुनाफा सिकुड़ रहा है. सर्वे में शामिल कंपनियों में से एक तिहाई ने कहा कि उन्हें लगता है कि उनका आर्थिक क्षेत्र क्षमता से ऊपर पहुंच चुका है. 15 फीसदी कंपनियों ने कहा कि 2023 में चीन में उन्हें नुकसान हुआ.

एस्केलुंड कहते हैं कि विदेशी कंपनियों को निर्माण क्षमता नहीं बल्कि घरेलू बाजार में मांग चाहिए होती है. उन्होंने कहा, "विदेशी कंपनियों की दिलचस्पी ज्यादा जीडीपी की सुर्खियों में नहीं होती बल्कि इसमें होती है कि जीडीपी कहां से आया है.”

भारत पहली पसंद नहीं

लगभग 40 फीसदी कंपनियों ने कहा कि वे या तो चीन से अपना कारोबार समेट चुकी हैं या समेटने की सोच रही हैं. उनकी पहली पसंद दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोप हैं. इसके बाद भारत और उत्तर अमेरिका का नंबर आता है.

हालांकि अधिकतर कंपनियां, लगभग 60 फीसदी, फिलहाल चीन में टिकने की सोच रही हैं लेकिन पिछले साल के मुकाबले यह संख्या कम है.

रिपोर्ट कहती है, "निवेश के सबसे पसंदीदा ठिकाने के रूप में चीन का आकर्षण घट रहा है. अगर व्यापार के लिए माहौल में सुधार नहीं किया जाएगा तो कंपनियां अन्य बाजारों में नए मौके तलाशना जारी रखेंगी, जहां उन्हें ज्यादा ज्यादा पारदर्शिता और स्थायित्व मिलेगा.”

इस साल लगभग एक तिहाई कंपनियां चीन में अपने व्यापार बढ़ने को लेकर आशान्वित हैं जो 2023 के मुकाबले आधे से भी कम है. सिर्फ 15 फीसदी कंपनियां ऐसी हैं जिन्हें उम्मीद है कि उनका मुनाफा बढ़ेगा.

चीन में काम कर रही 500 यूरोपीय कंपनियों में से आधे से ज्यादा इस साल वहां खर्चा घटाने पर विचार कर रही हैं. इनमें वे 26 फीसदी भी शामिल हैं जो अपने कर्मचारियों को कम करने के बारे में सोच रही हैं. रिपोर्ट कहती है कि यह संख्या और बढ़ सकती है क्योंकि रोजगार क्षेत्र पहले से ही बहुत दबाव में है.

वीके/एए (एपी)

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