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बृहस्पति के चंद्रमाओं पर जीवन की संभावना खोजेगा 'जूस'

१३ अप्रैल २०२३

यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसी का स्पेसक्राफ्ट 'जूस' बृहस्पति के बर्फीले चंद्रमाओं पर जीवन की संभावना खोजने निकल रहा है. पिछले कुछ अभियान संकेत दे चुके हैं कि इन चंद्रमाओं की बर्फ के काफी नीचे पानी के होने की संभावना है.

बृहस्पति
जेम्स वेब द्वारा ली गई बृहस्पति की तस्वीरतस्वीर: NASA/ESA/CSA/Jupiter ERS Team/image processing by Judy Schmidt/ZUMA/dpa/picture alliance

'जुपिटर आइसी मूंस एक्स्प्लोरर' या 'जूस' का आठ साल लंबा सफर सफर दक्षिण अमेरिका के फ्रेंच गुयाना स्थित यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) के स्पेसपोर्ट से शुरू होगा. उसे एक एरिएन5 रॉकेट पर भेजा जाएगा.

छह टन का यह यान प्रक्षेपण के करीब आधे घंटे के अंदर 1,500 किलोमीटर की ऊंचाई पर रॉकेट से अलग होगा. और उसके बाद शुरू होगा 'जूस' का बृहस्पति की तरफ लंबा और घुमावदार सफर. बृहस्पति और धरती के बीच की दूरी 62.8 करोड़ किलोमीटर है.

टेढ़ी चाल

इस यान में वहां तक सीधा उड़ने की ताकत नहीं है, इसलिए इसे ग्रेविटेशनल बूस्ट हासिल करने के लिए दूसरे ग्रहों से खुद को गुलेल से फेंके किसी पत्थर की तरह घूम कर उड़ना या स्लिंगशॉट करना होगा.

फ्रेंच गुयाना में एरिएन5 रॉकेट पर प्रक्षेपण के लिए तैयार 'जुपिटर आइसी मूंस एक्स्प्लोरर' या 'जूस'तस्वीर: Stephane Corvaja/ESA

सबसे पहले वह धरती और चांद को पार कर 2025 में वीनस से स्लिंगशॉट करेगा. 2029 में वह फिर से धरती के पास से झूल कर गुजरेगा और उसके बाद सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह की तरफ अपने चुनौतीपूर्ण सफर की शुरुआत करेगा.

अनुमान है कि यान जब शुक्र ग्रह के पास से गुजरेगा तब वो 250 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा और फिर बृहस्पति के पास माइनस 230 डिग्री सेल्सियस तापमान का सामना करेगा. इन तापमानों से बचाने के लिए उसके इर्द गिर्द 500 थर्मन इंसुलेशन कंबल लपेटे गए हैं.

इसमें रिकॉर्ड 85 वर्ग मीटर में फैले सौर पैनल हैं जो एक साथ लगभग एक बास्केटबॉल कोर्ट जितने बड़े इलाके में फैले हैं. इससे उसे बृहस्पति के पास जितनी संभव हो सके उतनी ऊर्जा इकट्ठा करने में मदद मिलेगी. वहां सूरज की रोशनी धरती के मुकाबले 25 गुना कमजोर है.

जीवन की तलाश

2031 में जब वह बृहस्पति पर पहुंचेगा तब तक उसने 2 अरब किलोमीटर का सफर तय कर लिया होगा. उस समय उसे बृहस्पति की कक्षा में घुसने के लिए बड़े ध्यान से ब्रेक लगाने होंगे. उसके बाद 'जूस' बृहस्पति और उसके तीन बर्फीले चांद यूरोपा, गैनिमीड और कैलिस्टो पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा.

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उस पर 10 वैज्ञानिक इंस्ट्रूमेंट हैं, जिनमें एक ऑप्टिकल कैमरा, बर्फ को भेदने वाला एक रडार, स्पेक्ट्रोमीटर और मैग्नेटोमीटर शामिल हैं. इनसे 'जूस' इन चंद्रमाओं के मौसम, मैग्नेटिक फील्ड, ग्रैविटेशनल खिंचाव और दूसरी चीजों का अध्ययन करेगा.

ईएसए की विज्ञान निदेशक केरल मुंडेल ने कहा कि इस अध्ययन की मदद से वैज्ञानिक हमारे सौर मंडल के जन्म के बारे में छानबीन कर पाएंगे और उसके बाद उस बेहद पुराने सवाल का जवाब भी ढूंढने की कोशिश करेंगे - "क्या हम ब्रह्मांड में अकेले हैं?"

यह मिशन सीधे तौर पर तो एलियन जीवन की मौजूदगी का पता नहीं लगा पाएगा लेकिन इसका यह पता करने का लक्ष्य जरूर है कि इन चंद्रमाओं पर जीवन को शरण देने के लिए सही परिस्थितियां हैं या नहीं.

अनोखे चांद

इससे पहले के अंतरिक्ष अभियानों ने संकेत दिए हैं कि इन चंद्रमाओं की बर्फीले सतह के नीचे गहराई में पानी के विशालकाय महासागर हैं. जीवन को हम जिस रूप में जानते हैं पानी उसके पनपने के लिए मुख्य सामग्री है.

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इस वजह से गैनिमीड और यूरोपा अंतरिक्ष में जीवन की तलाश में मुख्य उम्मीदवार हैं. यूरोपा की तफ्तीश नासा का यूरोपा क्लिप्पर मिशन करेगा जिसे अक्टूबर 2024 में लॉन्च किया जाना है. लेकिन 'जूस' अपना ध्यान केंद्रित करेगा गैनिमीड पर, जो सौर मंडल का सबसे बड़ा चांद है.

इसके अलावा वो एकलौता ऐसा चांद है जिसकी अपनी मैग्नेटिक फील्ड है, जो उसे रेडिएशन से बचाती है. 'जूस' 2024 में जब गैनिमीड की कक्षा में घुसेगा तब यह पहली बार होगा जब कोई स्पेसक्राफ्ट धरती के चांद के अलावा किसी और चांद की कक्षा में घुसेगा.

ईएसए के महानिदेशक जोसेफ आश्बाकर ने कहा कि 1.7 अरब डॉलर मूल्य का 'जूस' मंगल से आगे भेजे जाने वाले "सबसे पेचीदा" स्पेसक्राफ्टों में से है.

सीके/एए (एएफपी)

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