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समाजविश्व

चार्ल्स शोभराज: जिसे बोलने दिया, तो वह किसी को भी फुसला ले

विशाल शुक्ला
२३ दिसम्बर २०२२

कहानी बिकिनी किलर की, जिसने लड़कियों की हत्याएं की. जेल से भागने को खेल बना दिया. 66 की उम्र में वकील की 22 साल की बेटी से शादी की.

Nepal Justiz l französische Serienmörder Charles Sobhraj
चार्ल्स शोभराज को अदालत में सुनवाई के लिए ले जाती नेपाल पुलिसतस्वीर: Prakash Mathema/AFP

मार्च का महीना था. साल 1986 था. दिल्ली में 271 एकड़ में फैली तिहाड़ जेल में बंद कुछ कैदियों ने देखा कि एक कोने में एक बिल्ली बेहोश पड़ी है. उस रास्ते से गुजरने वाले किसी कर्मचारी की नजर पड़ी, तो उसने बिल्ली की देखभाल की. तीसरे दिन तक बिल्ली चलने-फिरने लगी और चौथे दिन एकदम ठीक हो गई. इस वाकये पर किसी ने कोई खास तवज्जो नहीं बख्शी. पर 16 मार्च 1986 को जब 'द सर्पेंट' और 'बिकिनी किलर' के नाम से मशहूर अपराधी चार्ल्स शोभराज तिहाड़ से फरार हुआ, तब पूरी जेल में कोई बताते नहीं थक रहा था कि आखिर उस बेहोश बिल्ली का माजरा क्या था.

पिछली रात शोभराज ने जेल के गार्डों और आसपास के कैदियों को अपने जन्मदिन की दावत दी थी. फिर पार्टी में खाने-पीने के सामान में ड्रग्स मिलाकर सबको बेहोश किया और तिहाड़ के दरवाजे पर फोटो खिंचाकर रफूचक्कर हो गया. वह बिल्ली शोभराज की गिनी पिग थी, जिस पर ड्रग टेस्ट किया गया था. वह पिछले मौकों जैसी गलती नहीं करना चाहता था, जब डोज गलत होने की वजह से ईरान जाते हुए एक पाकिस्तानी टैक्सी ड्राइवर की मौत हो गई थी या दिल्ली के होटल में ड्रग्स उम्मीद से जल्दी काम कर गई थी.

तस्वीर: Prakash Mathema/AFP

फिर निकली कहानी

यह वाकया फिर याद आया, जब 21 दिसंबर को नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने वहां की जेल में बंद शोभराज की रिहाई पर मुहर लगाई. चार्ल्स नेपाल में एक अमेरिकी और एक कनाडाई नागरिक की हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा काट रहा है. उस पर 10 देशों में कम से कम 20 हत्याओं के आरोप लगे. उसने भारत से लेकर नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की, ग्रीस, हांगकांग, थाईलैंड और मलयेशिया में दलाली, चोरी, तस्करी और किडनैपिंग जैसे अपराध किए. पश्चिमी देशों के पर्यटकों, खासकर लड़कियों को निशाना बनाया. उन्हें लूटकर उनकी हत्या की. उनके पासपोर्टों से छेड़छाड़ करके अपनी कई पहचानें बनाईं.

चार्ल्स भेष बदलने में माहिर था. वह दशकों तक एशिया का मोस्ट वॉन्टेड मैन रहा. मनोवैज्ञानिकों ने उसे सीरियल किलर करार दिया. उससे मिलने वाले पत्रकारों ने उसे साइकोपैथ बताया. 78 की उम्र में उसकी आधी जिंदगी जेल की सींखचों के पीछे नजर आती है और इस डरावने अतीत के बावजूद किसी भी मोड़ पर तमाम लड़कियों और महिलाओं की उसमें दिलचस्पी कम नहीं हुई.

फ्रेंच किलर, जिसकी कहानी वियतनाम से शुरू होती है

चार्ल्स गुरुमुख शोभराज होतचंद भवनानी. इस नाम की कहानी 6 अप्रैल 1944 से शुरू होती है. शोभराज के पिता सिंधी हिंदुस्तानी थे, जो कपड़ों के काम के सिलसिले में वियतनाम गए. उन्होंने साइगॉन शहर में एक दुकान खोली. इस शहर को आज हो ची मिन्ह के नाम से जाना जाता है. वियतनाम में यह वह दौर था, जब देश फ्रांस से आजाद होने के लिए जोर लगा रहा था. चार्ल्स के पिता दुकान में काम करने वाली एक असिस्टेंट के साथ रिलेशन में आए. चार्ल्स का जन्म हुआ. लेकिन यह रिश्ता अंजाम तक नहीं पहुंचा.

फ्रांसीसी उपनिवेश में पैदा होने की वजह से चार्ल्स को जन्म से ही फ्रांसीसी नागरिकता मिल गई. बाद में उसकी मां ने वियतनाम में तैनात रहे फ्रांसीसी सेना के एक कारिंदे से शादी कर ली. चार्ल्स से मिलने वाले पत्रकार दावा करते हैं कि उसकी बातों से यह झलकता था कि उसका बचपन अच्छा नहीं गुजरा.

चार्ल्स पहली बार जेल गया 1963 में. 18 की उम्र में. अपराध था फ्रांस की राजधानी पेरिस में किसी घर में घुसकर चोरी करना. पकड़ा गया. जेल भेजा गया. फिर कुछ महीने में रिहा भी हो गया. लेकिन जेल में रहने के दौरान उसका वास्ता ऐसे-ऐसे लोगों से हुआ कि जेल से निकलकर वह पेरिस के नामी अपराधियों से जुड़ गया. फिर जनाब का नाम बड़ी-बड़ी चोरियों में आने लगा. पेरिस में ही उसे शॉतल कॉम्पैनियो नाम की लड़की से प्यार हुआ. जिस दिन चार्ल्स ने शॉतल को पार्क में प्रपोज किया और दोनों पार्क से निकल रहे थे, तभी पुलिस ने चार्ल्स को गिरफ्तार कर लिया. वजह? जिस बाइक से चार्ल्स पार्क गया था, वह दो दिन पहले ही चोरी की गई थी.

चार्ल्स पर लिखे गए लेखों और किताबों में यह बात खासतौर से दर्ज है कि वह अपराध की दुनिया में तो था और उसने कई सालों तक चोरियां की. लेकिन हत्याएं करने का सिलसिला तब शुरू हुआ, जब एशियाई देशों से उसका कायदे से वास्ता पड़ा. खासकर थाईलैंड से. वैसे उससे पहले अफगानिस्तान से भारत तक उसने कई कारनामे दर्ज किए.

...फिर एशिया पर निगाह पड़ी

वह 1970 में भारत आया. इसी दौरान उसने ईरान और पाकिस्तान से चोरी कारों को भारत में बेचा. 1971 में उसे गहनों की चोरी के एक मामले में गिरफ्तार किया गया. फिर जमानत मिलने पर वह फरार हो गया. एक वाकया दिल्ली एयरपोर्ट का है, जब वह एक होटल से लूट करके मुंबई जा रहा था. एयरपोर्ट पर कस्टम ने बैग जब्त कर लिया, लेकिन चार्ल्स भाग निकला. एक गिरफ्तारी ग्रीस में भी हुई थी, लेकिन चार्ल्स वहां भी चकमा देकर जेल से फरार हो गया था.

इन चोरियों के दौरान चार्ल्स की पार्टनर शॉतल उसके साथ थी. दोनों की एक बेटी हुई. बेटी के जन्म के कुछ वक्त बाद दोनों अफगानिस्तान में गिरफ्तार कर लिए गए थे. तब बच्ची इतनी छोटी थी कि उसे फ्रांस में शॉतल के माता-पिता के पास भेज दिया गया. चार्ल्स इस जेल से भी भागा और फ्रांस जाकर उसने अपनी ही बेटी को अगवा करने की कोशिश की. फिर जब शॉतल जेल से रिहा हुई, तो वह अपनी बेटी को लेकर चार्ल्स की पहुंच से दूर अमेरिका चली गई.

भारत में रहने के दौरान चार्ल्स की मुलाकात अपनी दूसरी गर्लफ्रेंड से हुई. मारी आंद्रे लेक्लार्क नाम की फ्रेंच-कनेडियन नर्स भारत घूमने आई थी. दोनों की जम गई. 1975 में चार्ल्स गर्लफ्रेंड मारी और अपने एक भारतीय साथी अजय चौधरी के साथ थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक पहुंचा. वहां वह ज्यादातर पर्यटकों के साथ उठता-बैठता. खुद को जवाहरातों के कारोबारी तौर पर पेश करता. ड्रग्स के शौकीनों से दोस्तियां गांठता.

तस्वीर: Narendra Shrestha/dpa/picture alliance

बिकिनी में लाश मिली

अक्टूबर 1975 में थाईलैंड के पटाया शहर के तट पर बिकिनी पहने लड़की टेरेसा नोलटन की लाश मिली. यह संभवत: चार्ल्स की पहली शिकार थी. संभवत:. पर 1975 आते-आते वह सिलसिला शुरू हो चुका था, जिसका चार्ल्स उस्ताद था: ड्रग्स, हत्या, लूट.

60 और 70 का दशक हिप्पियों का दौर था. पश्चिमी देशों के तमाम लोग थोड़े पैसे इकट्ठे करके और एक बैग पैक करके निकल पड़ते थे. यूरोप से लेकर मिडल ईस्ट, भारत और पूर्वी एशिया तक सफर किया जा रहा था. कोई दुनिया एक्सप्लोर कर रहा था, कोई खुद की खोज में निकला था. कोई अध्यात्म में गोता लगा रहा था, तो कोई धुएं के बादलों में उड़ रहा था. तकनीक उतनी विकसित नहीं थी. अपनों से संपर्क ज्यादातर पोस्टकार्ड के जरिए हो पाता था, जो हफ्तों बाद पहुंचते थे. चलन ऐसा था कि लोगों के यूं आने-जाने पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता था. कागजी कार्रवाई न के बराबर थी.

तस्वीर: Imago Images

आगे-आगे हिप्पी, पीछे-पीछे चार्ल्स

थाईलैंड का हाल भी कोई अलग नहीं था. तब तो यह आज जितना मशहूर या संगठित भी नहीं था. पर्याप्त पैसा हो और सही लोगों से कनेक्शन हो, तो कोई हाथ लगाने वाला भी नहीं था. ऐसे में कई युवा पर्यटक एक के बाद एक चार्ल्स का शिकार बनते गए. चार्ल्स उन्हें अपनी लच्छेदार बातों से लुभाता, उन्हें ड्रग्स मुहैया कराता. कई मौकों पर उनकी ड्रिंक्स में ड्रग्स मिलाकर उन्हें लाचार करता और फिर वही सिलसिला... ड्रग्स, हत्या, लूट. कुछ को डुबोकर मारा गया, कुछ का गला घोंटा गया, कुछ को चाकू से मारा गया और कुछ के शरीर तभी जला दिए गए, जब वे जिंदा थे.

जब बिकिनी पहने कई लड़कियों की लाशें मिलीं, हत्याओं में कनेक्शन दिखने लगे, उन कनेक्शन के तार चार्ल्स तक पहुंचने लगे, तो वह भारत आ गया. अपनी आदतों और भरोसा जीतकर मार डालने के अपने हुनर के साथ. बातें बनाकर काम निकालने का हुनर तो ऐसा था कि एक बार जब नेपाल में अरेस्ट किया गया, तो चार्ल्स ने पुलिस को बताया कि वह तो नीदरलैंड्स का रहने वाला एक टीचर है. जबकि कुछ वक्त पहले ही उसने थाईलैंड में नीदरलैंड्स के एक टीचर की हत्या की थी.

तस्वीर: Lillian Suwanrumpha/AFP/Getty Images

चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए

जुलाई 1976 में तो उसने दिल्ली में फ्रांस से आए इंजीनियरिंग के कई छात्रों को ड्रग्स देने की कोशिश की. इसी मौके पर वह होटल विक्रम में पुलिस के हत्थे चढ़ गया. किसी हत्या का जुर्म तो साबित नहीं हो पाया, लेकिन चोरी और धोखाधड़ी के कई मामले साबित हुए. इस तरह हुजूर 12 साल के लिए अंदर कर दिए गए. वैसे मई 1982 में भारत की एक कोर्ट में चार्ल्स को 1976 में बनारस में इस्राएली पर्यटक एलन जैकब की हत्या का दोषी करार दिया गया. उम्रकैद की सजा भी सुनाई गई. लेकिन ऊपरी अदालत में अपील करने और सुबूतों के अभाव में एक साल बाद बरी भी कर दिया गया. चार्ल्स पर एक फ्रेंच नागरिक की हत्या का भी आरोप था, लेकिन वह भी साबित नहीं हो पाया.

तो चार्ल्स को 1988 तक जेल में रहना था. वह दस साल जेल में रहा भी. यह उस समय तक उसका जेल में लगातार बिताया सबसे लंबा वक्त था. लेकिन 90 के दशक में थाईलैंड में उसके प्रत्यर्पण की जोरदार मांग हो रही थी. वहां उस पर 6 लड़कियों समेत कई विदेशी नागरिकों की हत्याओं का मुकदमा चलना था. एक तुर्की और एक अमेरिकी महिला की हत्या का मामला सबसे गर्म था. 1985 में भारत सरकार भी थाईलैंड की गुजारिश पर चार्ल्स के प्रत्यर्पण के लिए राजी हो गई.

चार्ल्स जानता था कि थाईलैंड में उस पर जो केस चलेंगे, उनमें दोषी पाए जाने पर उसे मौत की सजा भी हो सकती है. फिर 1986 में उसने तिहाड़ जेल में वह प्रपंच रचा, जिसके बारे में आपने सबसे पहले पढ़ा. वह तिहाड़ से फुर्र हो गया. वह भी तिहाड़ के गेट पर बाकायदा फोटो खिंचाकर. यह सीन आपको चार्ल्स पर बनी हिंदी फिल्म 'मैं और चार्ल्स' में भी देखने को मिलेगा, जिसमें रणदीप हुड्डा ने चार्ल्स का रोल किया है. इस फिल्म के सिलसिले में हुड्डा चार्ल्स से मिले भी थे, जब वह नेपाल की जेल में बंद था.

तस्वीर: Prakash Mathema/AFP/Getty Images

आर यू अ बीच पर्सन?

तो तिहाड़ जैसी जेल से भागना सनसनीखेज बात थी. हांगकांग तक के अखबारों में इस पर एडिटोरियल लिखे जा रहे थे. देशभर की पुलिस सिर पर पांव रखे चार्ल्स को खोज रही थी. चार्ल्स मिला. तीन हफ्ते बाद. गोवा के पणजी में ओ'कॉकीरियो रेस्त्रां में. यह रेस्त्रां हिप्पियों के बीच खूब मशहूर था. गोवा में चार्ल्स को गिरफ्तार करने वाले इंस्पेक्टर मधुकर जेंडे कहते हैं, "चार्ल्स को हिप्पी, शराब और लड़कियां बहुत पसंद हैं. मुझे यकीन था कि वह वहां आएगा." चार्ल्स आया. जेंडे ने उसे पहचाना और फिर पास जाकर उसे पीछे से पकड़कर कहा, "हेलो चार्ल्स, हाऊ आर यू?"

जेंडे खुद टूरिस्ट जैसे कपड़ों में पहुंचे थे, तो हथकड़ी तो थी नहीं. उन्होंने वेटर से रस्सी मंगाकर चार्ल्स के हाथ बांधे. जेंडे बताते हैं कि उन्होंने चार्ल्स को जीप में पीछे लिटाया और दो पुलिसवालों से कहा कि मुंबई तक 11 घंटे की पूरी यात्रा के दौरान चार्ल्स के ऊपर बैठे रहें. बंधे हाथ और गिरफ्त में होने के बावजूद पुलिस को डर था कि कहीं चार्ल्स भाग न जाए. गोवा के उस रेस्त्रां में कुर्सी पर बैठे चार्ल्स शोभराज की मूर्ति आज भी रखी है.

तो चार्ल्स दोबारा पकड़ में आया. फिर अदालती कार्रवाई हुई. सजा दस साल और बढ़ गई. अब उसे 1997 तक जेल में रहना था. वह 1997 तक जेल में रहा. तब तक थाईलैंड में उसे पकड़ने, उसके प्रत्यर्पण और केस चलाने की आवाजें भी ठंडी पड़ गईं. जानकारों ने दावा किया कि चार्ल्स 1986 में तिहाड़ से भागा ही इसीलिए था, ताकि उसे थाईलैंड न भेज दिया जाए. उसे पता था कि दोबारा पकड़े जाने पर उसे फरार होने की सजा भी सुनाई जाएगी. उधर थाईलैंड का कानून भी ऐसा है, जिसमें अपराध दर्ज होने के 20 साल बाद उसकी सजा देने के प्रावधान उतने धारदार नहीं रह जाते.

तस्वीर: Prakash Mathema/AFP/Getty Images

दिल है कि मानता नहीं

1997 में तिहाड़ से रिहा होकर चार्ल्स फ्रांस चला गया. अगले 6 साल शांति से बीतते हैं. अखबारों में छपी अपनी रिहाई की फोटो के साथ फोटो खिंचाते हुए. शायद इस दौरान उसने कोई और हत्या नहीं की. पर 2003 में वह नेपाल लौटता है. नेपाल. जहां उस पर दो हत्याओं के आरोप हैं. वह बार, पब, कसीनो और रेस्त्रां वगैरह में घूमता है. मीडियावालों से मिलता है. कहता है कि वह नेपाली हैंडीक्राफ्ट और शॉल वगैरह का कारोबार करने आया है. उसकी हरकतों से लगता नहीं कि उसे पहचाने जाने या पकड़े जाने की फिक्र है.

इस बार चार्ल्स नेपाल में गिरफ्तार होता है. 28 साल पुराना मामला खोला जाता है. दिसंबर 1975 में नेपाल में अमेरिकी बैकपैकर कॉनवी जो ब्रोनजिक और कनाडाई बैकपैकर लॉरेंट कैरिएर की हत्या का मामला. इन दोनों को चाकू से मारा गया था और इनकी जली हुई लाशें काठमांडू के बाहरी इलाके में मिली थीं. इसके अलावा फर्जी पासपोर्ट पर यात्रा करने का भी आरोप था, जो ऐसे जघन्य अपराधों के सामने किसी फुटनोट सरीखा लगता है.

अगस्त 2004 में चार्ल्स को ब्रोनजिक की हत्या का दोषी करार दिया गया और उम्रकैद की सजा सुनाई गई. चार्ल्स की जिंदगी में यह पहला मौका था, जब उसे हत्या के जुर्म में सजा सुनाई गई. चार्ल्स ने इसके खिलाफ अपील की. जुलाई 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी. तब कनाडाई नागरिक कैरिएर की हत्या का मामला भक्तपुर की जिला अदालत में चल ही रहा था. फिर 2014 में कैरिएर की हत्या के जुर्म में भी चार्ल्स को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. नेपाल में उम्रकैद की सजा 20 साल की होती है.

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पिक्चर अभी बाकी है

यहां तक आते-आते अगर आपको लग रहा है कि चार्ल्स बूढ़ा हो चुका है और अब उसकी कहानी में कुछ दिलचस्प नहीं बचा है, तो यह सुनिए. 2008 में, 66 साल की उम्र में, एक हत्या की सजा काटते हुए और दूसरी हत्या का मुकदमा लड़ते हुए चार्ल्स ने 21 साल की निहिता बिस्वास से शादी की. निहिता चार्ल्स की वकील शकुंतला थापा की बेटी थी. दोनों ने जेल में उस जगह शादी की, जहां कैदियों को उनके परिचितों से मिलवाया जाता है. शादी से पहले निहिता ने न्यूज एजेंसी एपी को इंटरव्यू दिया था, जिसमें उसने कहा था कि वह इतनी समझदार है कि अपनी जिंदगी के फैसले ले सकती है और उसकी और चार्ल्स की उम्र में जो अंतर है, वह उससे खुश है.

2010 में जब चार्ल्स की अपील खारिज हुई, तब उसकी वकील और सास ने कहा, "यह फैसला अनुचित है और जज भ्रष्ट हैं". वहीं निहिता ने बयान दिया था, "हर बार जब सुनवाई होती है, तो मैं भाग जाना चाहती हूं. हम जजों के खिलाफ केस करेंगे. हम अंतरराष्ट्रीय अदालत में अपील करेंगे."

2021 में नेपाल में फिर हलचल हुई, जब ब्रिटेन के दो मीडिया संस्थानों ने चार्ल्स का इंटरव्यू करके रिपोर्ट छापी थीं. नेपाल में खूब हल्ला हुआ कि आखिर जेल में बंद चार्ल्स और विदेशी पत्रकारों का संपर्क कैसे हुआ. पर चार्ल्स का अतीत देखते हुए जेल में रिश्वत देकर सुविधाएं हासिल करना सबसे कम रोचक बात नजर आती है. इससे दिलचस्प बातें तो चार्ल्स ने मीडियावालों से कही थीं. उसने ब्रितानी अरबपति और वर्जिन ग्रुप के संस्थापक चार्ल्स ब्रैन्सन से अपनी बायोपिक में पैसे लगाने और कुछ ही दिनों में जेल से बाहर आने की बात कही थी. उसने पत्रकारों को नेपाल आने का न्योता भी दिया, ताकि वे सब फ्लाइट से साथ वापस जा सकें.

अब नेपाल सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस तिलक श्रेष्ठ और जस्टिस सपना प्रधान मल्ला की साझा बेंच ने उम्र और सेहत के आधार पर चार्ल्स को रिहा करने का फैसला सुनाया है. कोर्ट ने चार्ल्स की रिहाई के 15 दिनों के भीतर फ्रांस प्रत्यर्पण का भी आदेश दिया है. नेपाल में इस फैसले का खूब विरोध भी हुआ. वहीं प्रत्यर्पण विभाग ने कहा कि उनके पास पर्याप्त इंतजाम नहीं है, जिसकी वजह से चार्ल्स को 23 दिसंबर को जेल से रिहा किया जाए.

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दिमाग छुरी, जबान कांटा

लेखक रिचर्ड नेविल और जूली क्लार्क ने 70 के दशक में शोभराज से बातचीत के आधार पर एक किताब लिखी थी- On the trail of The Serpent: The life and crimes of Charles Sobhraj. यह 1979 में लॉन्च हुई थी. किताब कहती है कि चार्ल्स ने उन दोनों से कई हत्याएं करने की बात स्वीकार की थी. लेकिन 1976 में भारत में गिरफ्तारी के बाद जब कोर्ट-कचहरी होने लगा, तो चार्ल्स ने इस किताब में अपने हवाले से लिखी सभी बातों से इनकार कर दिया. माना गया कि चार्ल्स को डर था कि इससे अदालत में उसका पक्ष कमजोर पड़ सकता है. वह तो हर अदालत में खुद को बेगुनाह बताता आया है.

पर चार्ल्स की जिंदगी देखते हुए जो एक बात पक्के तौर पर साबित होती है, वह यही है कि वह बातें करके कुछ भी कर सकता था. चाहे सात समंदर पार रहने वाले लोगों का भरोसा जीतना हो. चाहे पुलिस की गिरफ्त से निकलना हो. चाहे पत्रकारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करना हो. चाहे 66 की उम्र में इतने स्याह अतीत के साथ 21 साल की लड़की को शादी के लिए राजी करना हो. भारत में सजा मिलने पर वह खुद को वेस्टर्न इंपीरियलिज्म यानी पश्चिमी साम्राज्यवाद का शिकार बताता है. नेपाल जेल में रहने के दौरान पत्रकारों से बात करते हुए वह खुद को CIA का आदमी बताता है, जो तालिबान के लिए जानकारी इकट्ठा कर रहा है. और किताब में वह रिचर्ड और जूली से कहता है, "जब तक मेरे पास लोगों से बात करने का मौका है, तब तक मैं उन्हें बहला-फुसला सकता हूं."

बिल्ली... एक बार फिर झोले से निकल आई है.

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