इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के जरिए डाले गए वोटों का वीवीपैट के साथ 100 फीसदी मिलान की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल की पर्चियों की 100 फीसदी मिलान की मांग वाली याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. करीब पांच घंटे तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि हमें हर चीज के बारे में संदेह करने की जरूरत नहीं है.
याचिकाकर्ताओं ने वीवीपैट मशीनों पर पारदर्शी कांच को अपारदर्शी कांच से बदलने के चुनाव आयोग के 2017 के फैसले को उलटने की भी मांग की है, जिसके जरिए कोई मतदाता केवल सात सेकंड के लिए बत्ती जलने पर ही पर्ची देख सकता है.
ईवीएम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट से कहा, "मैं समझता हूं कि यह चुनाव की पूर्वसंध्या है. कम से कम ईवीएम में बटन दबाने के बाद सात सेकंड तक जलने वाले बल्ब को लगातार जलने देना चाहिए."
बेंच ने ईवीएमकी कार्यप्रणाली को समझने के लिए वरिष्ठ उप चुनाव आयुक्त नितेश कुमार व्यास के साथ लगभग एक घंटे तक बातचीत की, जिसके बाद बेंच ने भूषण से कहा कि मतदाताओं की संतुष्टि और विश्वास चुनावी प्रक्रिया के मूल में हैं.
बेंच ने कहा, "भूषण, अब आप बहुत आगे जा रहे हैं. यह बहुत ज्यादा है. चाहे वीवीपैट मशीन पर पारदर्शी या अपारदर्शी कांच हो या बल्ब की रोशनी, आखिरकार यह मतदाता की संतुष्टि और विश्वास है (जो मायने रखता है). केवल बल्ब आपको बेहतर देखने में मदद करता है, बस इतना ही है."
कोर्ट ने चुनाव आयोग का पक्ष भी जाना
बेंच ने आगे कहा, "हर चीज पर संदेह नहीं किया जा सकता. आप हर चीज की आलोचना नहीं कर सकते. अगर उन्होंने (चुनाव आयोग) कुछ अच्छा किया है, तो आपको इसकी सराहना करनी होगी. आपको हर चीज की आलोचना करने की जरूरत नहीं है."
इसके जवाब में भूषण ने कहा कि वह चुनाव आयोग पर कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं लेकिन सुधार की संभावना मौजूद है.
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि ईवीएम एक स्वतंत्र मशीन है और उसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, लेकिन मानवीय त्रुटि की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
कौन बनाता है भारत में चुनावी स्याही
अंगुली पर फिरी स्याही का निशान! आपने वोट डाला, इसका ऐसा पक्का सबूत कि निशान मिटते-मिटते कई दिन लग जाते हैं. इस स्याही की कहानी क्या है? क्या ये इंकपेन वाली स्याही है?
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87 साल पुरानी एक कंपनी
कर्नाटक के मैसूर शहर में एक कंपनी है, मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल). साल 1937 में इस कंपनी की नींव रखी थी कृष्णराज वाडियार चतुर्थ ने. वह मैसूर रियासत के शासक थे. मुमकिन है आप कृष्णराज के एक और मशहूर योगदान 'मैसूर सेंडल सोप' से भी वाकिफ हों.
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बस यही कंपनी बनाती है खास स्याही
अब ये कंपनी कर्नाटक सरकार के नियंत्रण में है. एमपीवीएल आमतौर पर सार्वजनिक परिवहन की गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाला पेंट बनाती है, लेकिन ये भारत की इकलौती कंपनी है जिसे चुनावी स्याही बनाने का अधिकार है.
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चुनाव से पुराना नाता
पिछले करीब छह दशकों से मतदान की स्याही यहीं बनाई जा रही है. इस स्याही की मुख्य सामग्री है, सिल्वर नाइट्रेट. धूप पड़ने पर स्याही का रंग त्वचा पर गाढ़ा हो जाता है और नाखून पर बैंगनी रंग उतर आता है. बताया जाता है कि इसे मिटाना नामुमकिन है और इसका निशान करीब दो हफ्ते तक बना रहता है.
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बहुत पक्का निशान
कई लोग नींबू/पपीते के रस, मेकअप रिमूवर वगैरह से निशान मिटाने की कोशिश करते हैं और अक्सर नाकाम रहते हैं. कंपनी के प्रबंध निदेशक मुहम्मद इरफान ने रॉयटर्स को बताया कि ऐसी कोशिशों से निपटने के लिए मतदान अधिकारियों को चाहिए कि वो इंक लगाने से पहले वोटर की अंगुली को अच्छी तरह पोछ लें.
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अब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर
इस लोकसभा चुनाव में करीब 97 करोड़ लोग बतौर मतदाता पंजीकृत हैं. ऐसे में एमपीवीएल को चुनाव आयोग से अब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर मिला है. हर शीशी में 10 मिलीग्राम स्याही होती है और इतना इंक लगभग 700 मतदाताओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
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रिकॉर्ड मात्रा में स्याही का उत्पादन
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, 2024 की शुरुआत से अबतक कंपनी स्याही की लगभग 27 लाख शीशी चुनाव आयोग को भेज चुकी है. यह रिकॉर्ड उत्पादन है.
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सबसे ज्यादा स्याही कहां गई?
सबसे बड़ी खेप उत्तर प्रदेश भेजी गई है, वहीं 110 शीशीयों का सबसे छोटा ऑर्डर लक्षद्वीप का है. चुनाव आयोग प्रति शीशी एमपीवीएल को 174 रुपये का भुगतान करेगा.
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कई अन्य देशों को भी निर्यात
एमपीवीएल के पास कई अन्य एशियाई देशों की ओर से भी चुनावी इंक बनाने का ऑर्डर है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में एमपीवीएल कंबोडिया, फिजी और सियरा लिओन जैसे देशों में इस स्याही को निर्यात कर चुकी है. उसके पास मंगोलिया और मलेशिया के भी ऑर्डर हैं.