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मिल गया सांप के काटे का फौरन इलाज

फाबियान श्मिट
७ मई २०२०

ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने एक ऐसे तत्व का पता लगाया है जिससे लैस दवाएं सांप के डसे लोगों की जान बचा सकती हैं. यह ऐसे लोगों को बचाने में खासतौर पर काम आएगी जो अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं.

Studie Sandrasselotter
तस्वीर: Dr. Wolfgang Wüster

ब्रिटिश रिसर्चरों ने जानवरों पर इसका प्रयोग करके देखा है और उसमें सफलता पाई है. वैज्ञानिकों ने एक ऐसी दवा को लेकर यह प्रयोग किया है जो पहले से मौजूद थी. जानवरों में इसे आजमाने पर उन्हें जहरीले सांप के जहर से जिंदा बचाने में सफलता मिली.

इस दवा में जो सक्रिय तत्व होता है वह ‘डाईमेर्काप्रॉल' कहलाता है. ब्रिटेन के लिवरपूल की इस रिसर्च टीम ने सांप के जहर के असर को काटने में इस तत्व से लैस दवा को टेस्ट किया. अब तक इस तत्व और इससे मिलते जुलते तत्व डीपीएमएस (2,3-डाईमेर्काप्टो-1-प्रोपेनसल्फोनिक एसिड) का इस्तेमाल उन मामलों में किया जाता था जहां किसी को आर्सेनिक या पारा जैसे हेवी मेटल का जहरीला असर हो गया हो.

कैसे काटता है ये जहर को

अब रिसर्चरों ने दिखाया है कि यही दोनों सक्रिय तत्व सांप के जहर को काटने में भी काम आ सकते हैं. इसका विचार सबसे पहले बायोकेमिस्ट और मॉलिकुलर बायोलॉजिस्ट लॉरा ओआना-अलबूलेस्कू ने पेश किया. लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में काम करने वाली यह रिसर्चर और उनकी टीम ऐसे सक्रिय तत्वों की तलाश में लगे थे जो शरीर में सांप के जहर के साथ काम करने वाले धातु के आयनों से जुड़ सकें. इसमें उन्होंने इन दोनों तत्वों को कारगर पाया.

‘डाईमेर्काप्रॉल' और डीपीएमएस दोनों सांप के जहर में मौजूद उन खास एंजाइमों के खिलाफ काम करते हैं, जिन्हें शरीर पर बुरा असर डालने वाला प्रभाव दिखाने के लिए जिंक आयनों की जरूरत होती है. इस तत्व से युक्त दवा ऐसे काम करती है कि वह शरीर में इन्हीं जिंक आयनों को बांध देती है. रिसर्चरों ने पहले इसे लैब में करके दिखाया और अपने परीक्षण के नतीजों को 6 मई, 2020 को ‘साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन' नामक जर्नल में प्रकाशित किया.

वैज्ञानिकों ने डीपीएमएस का टेस्ट जानवरों पर भी किया और उसमें सफलता मिली. इसके लिए उन्होंने बेहद जहरीले वाइपर सांप की एक प्रजाति का जहर इस्तेमाल किया. उन्होंने पाया कि दवा की मदद से जहर के जानलेवा असर से शिकार को बचाया जा सकता है. सॉ-स्केल्ड वाइपर कहलाने वाला यह सांप अफ्रीका से लेकर मध्यपूर्व और एशिया तक में पाया जाता है. ब्रिटिश रिसर्च एजेंसी एसएसटीएम के आंकड़ों को देखें तो सांप के डसने से हर साल करीब 138,000 लोगों की जान चली जाती है और लगभग 400,000 लोगों की सेहत हमेशा हमेशा के लिए खराब हो जाती है.

भारत के यूपी राज्य में अपने सांप की आंखें साफ करता सपेरा. तस्वीर: Reuters/A. Abidi

आसानी से मिलने वाली दवा

सबसे अच्छी बात यह है कि डॉक्टर इस दवा को मुंह से खिलाकर भी सांप के जहर से छुटकारा दिला सकते हैं. अब तक डाईमेर्काप्रॉल जैसे तत्व वाली दवाएं केवल इंजेक्शन के माध्यम से दी जाती हैं जिसे मूंगफली के तेल में घोल कर एक तैलीय द्रव के रूप में तैयार किया जाता है. चूंकि इसे टैबलेट के रूप में लेना संभव होगा इसलिए इस दवा को सीधे लोगों तक भी पहुंचाया जा सकेगा जिन्हें सांप के काटने के बाद तुरंत अस्पताल में भर्ती करना संभव न हो.   

लिवरपूल के डॉक्टरों को यकीन है कि यह दवा प्राथमिक उपचार के तौर पर काम में लाई जा सकती है जिससे सांप के जहर के जानलेवा असर को रोक कर मरीज को तब तक जिंदा रखा जा सकता है जब तक उसे एंटीसीरम का डोज ना मिल जाए. यह दवा एंटीसीरम की जगह नहीं बल्कि उसके पहले इस्तेमाल की जानी चाहिए और यह ज्यादातर देशों में दवा के रूप में पहले से ही उपलब्ध भी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सांप काटने से होने वाली मौतों और गंभीर नुकसान को 2020 तक आधा करने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को पाने में ऐसी दवाएं बहुत काम आ सकती हैं.

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