1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
राजनीतिब्राजील

ब्राजील में संसद पर हमलाः कैसे हुई अमेरिका जैसी हिंसा?

९ जनवरी २०२३

अमेरिका में जनवरी 2020 में जो हुआ था, वैसा ही कुछ ब्राजील में रविवार को हुआ. लोग संसद और अन्य इमारतों में घुस गए और तोड़फोड़ की. ये लोग राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों से नाराज थे.

BG Brasilien Brasilia | Bolsonaro Anhänger stürmen Kongress
तस्वीर: Sergio Lima/AFP

ब्राजील में वैसा ही कुछ हुआ,जैसा जनवरी 2020 में अमेरिका में हुआ था. पूर्व राष्ट्रपति खाएर बोल्सोनारो के समर्थक नए राष्ट्रपति के विरोध में संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन में घुस गए. वे मांग कर रहे थे कि सेना दखल दे और नए राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा को पद से हटाकर पूर्व राष्ट्रपति बोल्सोनारो को दोबारा राष्ट्रपति बना दे.

8 जनवरी को हुई इस घटना में हरे और पीले रंग का राष्ट्रीय झंडा उठाए हजारों लोगों ने संसद भवन पर हमला बोल दिया. उन्होंने इमारत की खिड़कियां तोड़ दीं, फर्नीचर उलट-पलट दिया, कंप्यूटर और प्रिंटर फेंक दिए और सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पलट दी. अदालत परिसर में लगी एक ऐतिहासिक प्रतिमा को भी नुकसान पहुंचाया.

ब्रासीलिया में प्रदर्शनकारीतस्वीर: Eraldo Peres/AP Photo/picture alliance

पुलिस ने इन दंगाइयों पर काबू पा लिया है. अब तक 300 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. ब्राजील के न्याय मंत्री फ्लावियो डीनो ने घटना के बाद कहा कि सारी इमारतों की जांच-परख की जाएगी, उंगलियों के निशान जुटाए जाएंगे, सीसीटीवी से लोगों की पहचान की जाएगी और सभी लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई की जाएगी.

फ्लावियो ने कहा कि घटना में शामिल लोगों की कार्रवाई को आतंकी गतिविधि और तख्तापलट की कोशिश के रूप में देखा जाएगा. उन्होंने कहा, "वे ब्राजील के लोकतंत्र को बर्बाद करने में कामयाब नहीं हो पाएंगे. हमें यह बात पूरी कठोरता और विश्वास से कहनी होगी. हम ब्राजील में राजनीतिक लड़ाई के लिए अपराध के रास्ते पर चलने की इजाजत नहीं देंगे.”

कैसे हुई शुरुआत?

ब्राजील में दो महीने पहले राष्ट्रपति चुनाव हुए थे. दो चरणों के इस चुनाव में तत्कालीन राष्ट्रपति बोल्सोनारो की हार हुई. हालांकि उनकी हार बहुत कम अंतर से हुई थी.विजयी लूला दा सिल्वा को 50.9 प्रतिशत मत मिले, जबकि बोल्सोनारो को 49.1 फीसदी.

30 अक्टूबर को आए इन चुनाव नतीजों को बोल्सोनारो के समर्थकों ने स्वीकार नहीं किया. यहां तक कि बोल्सोनारो ने भी पद छोड़ने में काफी समय लगाया और एक बार तो लगने लगा था कि कहीं वह पद छोड़ने से इनकार ही ना करें. कुछ लोग कहते हैं कि बोल्सोनारो की तरफ से अपने कट्टर समर्थकों को ऐसे संकेत दिए गए कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम में धोखाधड़ी संभव है. हालांकि इस बारे में कभी कोई सबूत पेश नहीं किया जा सका.

बाद में बोल्सोनारो बहुत तेजी से परिदृश्य से गायब भी हो गए. हालांकि उन्होंने हार कभी स्वीकार नहीं की और उनकी पार्टी ने लाखों वोटों को खारिज करने की अर्जी भी दी, जिसे खारिज कर दिया गया. बोल्सोनारो के समर्थकों ने भी नतीजों को स्वीकार नहीं किया. उन्होंने सड़कें जाम कर दीं और सैन्य भवनों के सामने धरने दिए. वे सेना से दखल देने की मांग कर रहे थे.

दिसंबर 2022 में भी हुई थी हिंसा

प्रदर्शनों के दौरान हिंसक वारदातें भी होती रहीं. इसी क्रम में 12 दिसंबर को राजधानी ब्रासीलिया में बोल्सोनारो समर्थकों ने पुलिस मुख्यालय में घुसने की कोशिश की. उनकी पुलिस के साथ झड़प भी हुई. भीड़ ने कई बसों और कारों को फूंक दिया.

इस हिंसा के बाद ब्रासीलिया में सुरक्षा बढ़ा दी गई. पुलिस की सतर्कता के बीच ईंधन ले जा रहे एक ट्रक में बम बरामद हुआ. यह ट्रक ब्रासीलिया हवाई अड्डे की तरफ जा रहा था. इन घटनाओं के मद्देनजर 28 दिसंबर को ब्राजील की सुप्रीम कोर्ट ने राजधानी ब्रासीलिया में बंदूक लेकर चलने पर अस्थायी बैन लगा दिया. अदालत ने कहा कि राजधानी में रहने वाले नागरिक 2 जनवरी की शाम तक बंदूक लेकर नहीं निकल पाएंगे.

संसद और सुप्रीम कोर्ट में तोड़फोड़ की गईतस्वीर: Sergio Lima/AFP

अदालत ने लूला के प्रस्तावित शपथग्रहण समारोह को देखते हुए एहतियातन यह फैसला लिया था, ताकि हिंसा और उपद्रव की स्थिति ना पैदा हो. 1 जनवरी को लूला ने पद संभाला. इससे दो दिन पहले ही बोल्सोनारो देश छोड़कर अमेरिका चले गए. उन्होंने ऑरलैंडो में अस्थायी निवास ले लिया. हालांकि इस बात से बहुत से लोगों ने राहत की सांस ली क्योंकि उनके रहते देश में हिंसा होने की आशंका थी.

डॉनल्ड ट्रंप की भूमिका?

इस पूरी कहानी में एक अहम पहलू यह भी है कि बोल्सोनारो के बेटे और सांसद एडुआर्डो बोल्सोनारो ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ कई बैठकें की थीं. वह ट्रंप के करीबी सहयोगी स्टीव बैनन और प्रचार सलाहकार जेसन मिलर से भी मिले थे.

अमेरिका की सेना संविधान और बाइडेन के साथ

ब्रासीलिया विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले पाओलो कैलमन कहते हैं, "बोल्सोनारोवाद की सारी रणनीतियां ट्रंपवाद की नकल हैं. 8 जनवरी को जो हुआ वह ब्राजील की राजनीति में अभूतपूर्व है. निश्चित तौर पर यह 6 जनवरी (2020) को कैपिटल हिल की घटना से लिया गया है.”

बोल्सोनारो को ‘दक्षिण अमेरिका का ट्रंप' की संज्ञा देते हुए कैलमन ने कहा, ”आज जो हुआ, वह लोकतंत्र को अस्थिर करने की एक और कोशिश है और यग घटना दिखाती है कि ब्राजील के अति-दक्षिणपंथियों में तानाशाही, लोक-लुभावन उग्रवाद अब भी पूर्व राष्ट्रपति बोल्सोनारो के नेतृत्व में जीवित है.”

दुनियाभर में प्रतिक्रिया

ब्राजील में हुई घटना की दुनियाभर के नेताओं ने निंदा की है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्वीट कर इन दंगों को "ब्राजील में लोकतंत्र और सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण पर हमला” बताया. भारत ने भी ब्रासीलिया की घटना पर चिंता जताई है.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट कर कहा, "ब्रासीलिया में सरकारी संस्थानों में दंगे और तोड़फोड़ की घटना से बहुत चिंता हुई. लोकतांत्रिक संस्थानों का सम्मान किया जाना चाहिए. हम ब्राजील सरकार को पूरा समर्थन देंगे.”

बोल्सोनारो ने भी इन घटनाओं की निंदा है. उन्होंने इस हिंसा में किसी तरह की भूमिका निभाने से जुड़े आरोपों को भी गलत बताया है. ट्विटर पर पूर्व राष्ट्रपति ने लिखा कि वह ‘शांतिपूर्ण विरोध' के समर्थक हैं, लेकिन उन पर लूला दा सिल्वा के ये आरोप गलत हैं कि उन्होंने हिंसा भड़काई.

रिपोर्टः वीके/एसएम (रॉयटर्स, एपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें