स्पेस स्टेशन पर फंसे यात्रियों को वापस लाने की कोशिश
२५ जून २०२४
बोइंग के स्टारलाइनर कैप्सुल में हुई तकनीकी खराबी के कारण दो यात्रियों का अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से लौटना टल गया है.
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बोइंग के स्टारलाइनर कैप्सुल में आई तकनीकी खराबी ठीक नहीं हो पाई है, इसलिए जिन दो यात्रियों को उस कैप्सुल से वापस पृथ्वी पर आना था, वे अभी भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर फंसे हुए हैं. बोइंग तकनीकी खराबी को ठीक करने के अलावा इन यात्रियों को वापस लाने के कई दूसरे विकल्पों पर भी काम कर रही है.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा इन यात्रियों की वापसी को तीन बार टाल चुकी है और अब भी इनकी वापसी के लिए कोई तारीख तय नहीं की गई है.
स्टारलाइनर 5 जून को अंतरिक्ष में गया था. उसके बाद कैप्सुल में पांच बार हीलियम लीक हो चुकी है. यान को दाएं बाएं मोड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले पांच थर्सटर खराब हो गए हैं और एक प्रोपैलेंट वॉल्व भी काम नहीं कर रहा है.
ये तकनीकी खराबियां आने के बाद ह्यूस्टन स्थित इस मिशन के मैनेजरों ने यात्रियों की वापसी टालने का फैसला किया था. अब नासा के वरिष्ठ अंतरिक्ष यात्रियों बैरी विलमोर और सुनीता विलयम्स को वापस लाने के लिए नासा के पास कुछ विकल्प हैं.
अभी क्या हालात हैं?
नासा के कमर्शियल क्रू मैनेजर स्टीव स्टिच के मुताबिक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर स्टारलाइनर 45 दिन तक रह सकता है. लेकिन समस्याएं अगर हल नहीं हो पाती हैं तो उसे 72 दिन तक भी आईएसएस पर रखा जा सकता है. लेकिन उसके लिए बैकअप सिस्टम की जरूरत होगी.
नासा के साथ काम करने वाले एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि फिलहाल एजेंसी 6 जुलाई की वापसी की तारीख के हिसाब से काम कर रही है. इसका अर्थ होगा कि आठ दिन के मिशन पर गया यान एक महीने से भी ज्यादा समय में लौटेगा.
खुल गई उलटे पेड़ की कहानी
बिना पत्तों के इस पेड़ का नाम बाओबाब है, जिसे उलटा पेड़ भी कहा जाता है क्योंकि यह देखने में ऐसा लगता जैसे जड़ें ऊपर हैं और तना नीचे. वैज्ञानिकों ने इस पेड़ की कहानी का पता लगा लिया है.
तस्वीर: KfW-Bildarchiv/Bernhard Schurian
तने के बल खड़ा पेड़
पतझड़ के मौसम में यह पेड़ उलटा खड़ा दिखाई देता है, इसलिए इसे उलटा पेड़ भी कहा जाता है. नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में वैज्ञानिकों ने इस पेड़ के इतिहास और यात्राओं के बारे में कई जानकारियां साझा की हैं.
तस्वीर: KfW-Bildarchiv/Bernhard Schurian
मैडागास्कर से शुरुआत
बाओबाब पेड़ मैडागास्कर, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं. जीनोम स्टडी से वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह करीब दो करोड़ साल पहले मैडागास्कर में जन्मा था. करीब एक करोड़ साल पहले यह अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया पहुंचा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री यात्रा
चीन के वूहान बोटैनिकल गार्डन के वनस्पति विज्ञानी ताओ वान कहते हैं कि संभव है, इस बीज के पेड़ हिंद महासागर में गिरे और तैरते हुए अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए. इसमें बड़ी समुद्री लहरों ने अहम भूमिका निभाई.
तस्वीर: picture-alliance / Bildagentur Huber
बड़े काम के पेड़
बाओबाब पेड़ का पारिस्थितिकी तंत्र में अहम योगदान है. वे भोजन, छाया और पक्षियों को रहने की जगह देते हैं. उनके फल और पत्ते कई दवाओं में भी इस्तेमाल होते हैं.
तस्वीर: Nic Bothma/dpa/picture alliance
रात के फूल
बाओबाब के फूल रात को खिलते हैं. इससे रात को जगने वाले कई कीट उसके पास आते हैं और परागन करते हैं. इस तरह ये पेड़ पौधों के जीवन में मदद करते हैं.
तस्वीर: DW
एक लाख लीटर पानी
ये पेड़ आकार में काफी विशाल होते हैं. कुछ पेड़ तो इतने बड़े हो जाते हैं कि उनके खाली तने में एक लाख लीटर तक पानी भरा जा सकता है.
तस्वीर: ARD/ZDF
सांस्कृतिक अहमियत
बाओबाब पेड़ कई संस्कृतियों में अहम माने जाते हैं. अफ्रीका की कई लोक कथाएं इन्हीं पेड़ों पर आधारित हैं. एक कहानी में चार लड़कियों का जिक्र आता है जो पेड़ के नीचे रहती थीं. उन्हें जब इंसानों से प्यार हुआ तो पेड़ को जलन हुई और उन्हें कैद कर लिया. कथा कहती है कि वे लड़कियां आज भी इन पेड़ों में कैद हैं और उनकी आवाजें आती हैं.
तस्वीर: Baz Ratner/REUTERS
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स्टारलाइनर का प्रोपल्शन सिस्टम उसके सर्विस मॉड्यूल का हिस्सा है और फिलहाल इसी में सबसे बड़ी तकनीकी खराबी है. पृथ्वी के वातावरण में लौटने के लिए इसी सिस्टम की जरूरत होती है. जब स्टारलाइनर को स्टार्ट किया गया तो उसके थर्रस्टर गर्म हो गए और इन पर दबाव डालने के लिए जरूरी हीलियम लीक हो गई.
स्टिच ने कहा कि हाल ही में जब परीक्षण के तौर पर इन्हें स्टार्ट किया गया तो वैज्ञानिकों का भरोसा बढ़ा कि वापसी में दिक्कत नहीं होगी. लेकिन उनकी समीक्षा की जा रही है.
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अब क्या होगा?
मिशन की मैनेजमेंट टीम में नासा के वैज्ञानिकों के अलावा बोइंग के अधिकारी भी शामिल हैं. वे लोग इन पुर्जों की समीक्षा कर रहे हैं. साथ ही सॉफ्टवेयर अपडेट करके बार-बार जांच की जा रही है, जिसके बाद ही वापसी की योजना शुरू होगी.
जब नासा अधिकारी वापसी की मंजूरी दे देंगे, तभी स्टारलाइनर के थर्स्टर को इस्तेमाल कर स्टारलाइनर को आईएसएस से अलग किया जाएगा. उसके बाद छह घंटे की यात्रा शुरू होगी. एक बार वातावरण के अंदर आ जाने के बाद पैराशूट और एयरबैग्स की मदद से दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका में किसी संभावित जगह पर लैंडिंग हो पाएगी.
मोमबत्ती की ऊर्जा से रॉकेट गया अंतरिक्ष में
एक जर्मन कंपनी ने पहली बार मोमबत्ती वाले मोम की ऊर्जा से रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का परीक्षण किया है. यह रॉकेट छोटे व्यावसायिक उपग्रहों को अंतरिक्ष तक कम खर्चे में पहुंचाएगा.
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परीक्षण उड़ान पर रवाना हुआ रॉकेट
7 मई, 2024 को सुबह 5 बजे (जीएमटी) दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में कूनीब्बा के लॉन्च साइट से इसे परीक्षण उड़ान पर भेजा गया. इसका नाम एसआर75 रखा गया है.
तस्वीर: HyImpulse /dpa/picture alliance
एसआर75
परीक्षण में इस्तेमाल हुआ रॉकेट 12 मीटर लंबा और 2.5 टन वजनी है. यह करीब 250 किलो तक का वजन, पृथ्वी से 250 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जा सकता है. समुद्र तल से 100 किलोमीटर की ऊंचाई के बाद अंतरिक्ष की सीमा शुरू हो जाती है.
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मोमबत्ती के मोम की ऊर्जा
इस रॉकेट में ऊर्जा के लिए पैराफीन यानी मोमबत्ती के मोम और तरल ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया गया है. आमतौर पर रॉकेट में लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है. इस ईंधन को रॉकेट में इस्तेमाल के लिए -432 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है.
तस्वीर: HyImpulse /dpa/picture alliance
हाईइंपल्स
रॉकेट बनाने वाले स्टार्टअप हाईइंपल्स में 65 लोग काम करते हैं. यह जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी डीएलआर से ही निकला हुआ एक स्टार्टअप है. इसे पहले ही तकरीबन 10 करोड़ यूरो की कीमत का ऑर्डर मिल चुका है. यह ऑर्डर उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए है.
तस्वीर: Hiimpulse/dpa/picture alliance
उपग्रह भेजने का खर्च घटेगा
हाइड्रोजन की जगह पैराफीन का इस्तेमाल कर खर्च को घटाने की कोशिश है. पैराफीन से उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने का खर्च तकरीबन आधा हो जाएगा. अलग अलग रॉकेटों के हिसाब से फिलहाल सबसे सस्ती सेवा भारत की इसरो और इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स मुहैया कराते हैं.
तस्वीर: Hiimpulse/dpa/picture alliance
लोगों के पैसे से बना स्टार्टअप
स्टार्टअप के ज्यादातर प्रोजेक्ट निजी पैसे से शुरू हुए हैं हालांकि उसे कुछ सार्वजनिक संस्थाओं से भी पैसा मिला है. हाईइंपल्स को व्यावसायिक उपग्रहों की मांग बढ़ने की उम्मीद है. यह स्टार्टअप 2032 तक सालाना 70 करोड़ यूरोप का कारोबार करने की चाह रखता है.
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance
हाईइंपल्स का अगला प्रोजेक्ट
अगले साल के आखिर तक कंपनी ने एक बड़ा रॉकेट लॉन्च करने का लक्ष्य बनाया है. यह रॉकेट 600 किलो तक वजन वाले उपग्रह को भी अंतरिक्ष में ले कर जा सकेगा. जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने हाल ही में हाईइंपल्स के वर्कशॉप का दौरा किया था.
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance
उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंचाने का बाजार
बीते दशकों में अंतरिक्ष में उपग्रह से लोगों तक को ले जाने का बाजार बड़ी तेजी से उभरा है. अमेरिका, रूस, यूरोप, भारत, चीन और दूसरे कई देश इस बाजार में हैं. 2000-2010 तक हर साल 70 से 110 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए. 2011-2019 आते आते यह संख्या 129 से 586 तक चली गई. 2020 से अब तक हर साल एक हजार से ज्यादा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए हैं.
तस्वीर: SpaceX/UPI Photo/Newscom/picture alliance
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स्टारलाइनर का यह पहला अंतरिक्ष अभियान है, जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा का चक्कर लगाने के लिए भेजा गया था. इससे पहले 2022 में यह मानवरहित अभियान पूरा कर चुका है. इस अभियान की कामयाबी के बाद ही नासा स्टारलाइनर को आईएसएस पर जाने वाले वाहन के रूप में मंजूरी देगी. स्पेसएक्स के क्रू ड्रैगन के बाद यह दूसरा निजी वाहन होगा.