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करोड़ों साल पहले कैसे एशिया का हिस्सा बना भारत

ऋषभ कुमार शर्मा
३० दिसम्बर २०१९

आज से कुछ करोड़ साल पहले सातों महाद्वीप एक ही द्वीप का हिस्सा थे. भारत एशिया का हिस्सा नहीं था. जब भारत एशिया का हिस्सा बना तो हिमालय पैदा हुआ. हिमालय की ऊंचाई हर साल बढ़ती जा रही है. इन सबके पीछे एक ही वजह है.

Nepal Bergen Himal Chuli und  Manaslu
तस्वीर: Imago/ZUMA Press

जब भी भारत में किसी विदेशी के आने की बात कही जाती है तो 'सात समंदर पार' का जुमला अक्सर कहा जाता है. अगर यह जुमला कुछ 30 करोड़ साल पहले दुनिया के किसी भी हिस्से में कहा गया होता तो गलत होता. इसका कारण है तब कोई भी देश सात समंदर पार नहीं था. 30 करोड़ साल पहले दुनिया के सभी देश और महाद्वीप एक ही जमीन के टुकड़े का हिस्सा थे. वक्त के साथ इनमें दूरियां बनती गईं और ये दूरियां आज भी बढ़ती जा रही हैं. इन दूरियों के बढ़ने ने ही एक समुद्र की जगह पर दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ यानी हिमालय को जन्म दिया. यही वजह है कि हिमालय की ऊंचाई हर साल कुछ सेंटीमीटर बढ़ती जा रही है. कैसे शुरू हुई ये पूरी कहानी, आइए जानते हैं.

माउंट एवरेस्ट.तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Sherpa

14वीं सदी तक दुनिया के दो बड़े हिस्सों के बीच कोई संपर्क ही नहीं था. एशिया, यूरोप और अफ्रीका के बीच आपसी संपर्क था. एशिया और यूरोप की धरती भौगोलिक रूप से एक दूसरे से जुड़ी है. अफ्रीका और यूरोप की धरती के बीच बस 14 किलोमीटर का फासला है. एशियाई देश भारत का अफ्रीका से जलमार्ग से व्यापार 14वीं सदी से पहले भी चल रहा था. यूरोपीय लोग भारत आने के लिए जल मार्ग तलाश रहे थे. इसी कड़ी में इटली के नाविक क्रिस्टॉफर कोलंबस भारत के समुद्री रास्ते की खोज में निकले.

1492 में कोलंबस की ये यात्रा भारत की जगह अमेरिका में जाकर खत्म हुई. इसी रास्ते में पहले वो कैरिबियाई द्वीपों पर पहुंचे. इन द्वीपों को उन्होंने इंडीज नाम दिया. लेकिन जब पता लगा कि ये भारत नहीं है तो इस द्वीप समूह का नाम वेस्ट इंडीज हो गया. अमेरिका में खत्म हुई इस यात्रा से दुनिया को दो नए महाद्वीपों का पता चला. उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका. ये उस शताब्दी की सबसे बड़ी खोजों में से एक थी.

कोलंबस.तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Bogler

उस दौर में खोजे गए दो नए महाद्वीपों के बाद नए नक्शे बनाने का चलन शुरू हुआ. डच नागरिक अब्राहम ऑरटेलिअस भी ऐसे नक्शे बनाने वाले लोगों में शामिल थे. 1564 में उन्होंने पहला नक्शा बनाया था. 1570 में उन्होंने थिएट्रम ऑरबिस टेरारुम नाम का एक नक्शा बनाया. इस नक्शे को आधुनिक दुनिया का पहला नक्शा माना जाता है. इस नक्शे में उन्होंने सभी सातों महाद्वीपों को जगह दी थी.

1596 में अब्राहम ने नक्शे में एक चीज नोटिस की. अब्राहम ने देखा कि अफ्रीका महाद्वीप का दक्षिण-पश्चिमी हिस्सा और दक्षिण अमेरिका का उत्तर पूर्वी हिस्सा एक ही जमीन के हिस्से के दो टुकड़े जैसे लगते हैं. अगर इन दोनों टुकड़ों को आपस में मिलाया जाए तो ये एक दूसरे के सांचे में फिट बैठते हैं. उन्होंने अनुमान जताया कि हो सकता है पहले ये दोनों महाद्वीप एक ही जमीन के टुकड़े का हिस्सा रहे हों और बाढ़ और भूकंप से अलग हो गए हों. वो अपनी इस थ्योरी पर ज्यादा रिसर्च कर पाते, इससे पहले 1598 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

अब्राहम ने सबसे पहले नीली रेखाओं से अंकित अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका के हिस्सों पर गौर किया था.

अब्राहम की इस थ्योरी को कई लोगों ने गंभीरता से लिया. थियोडोर क्रिस्टॉफ, एलेक्जेंडर फॉन हुम्बोल्ट, एंटोनिओ पैलेग्रिनी और डब्ल्यू जे किओस ने अब्राहम की बात को आगे बढ़ाया. किओस ने कहा कि दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका और यूरोप, तीनों ही पहले एक महाद्वीप थे. लेकिन वो भी इस थ्योरी को साबित नहीं कर सके. 1880 में बर्लिन में जन्मे अल्फ्रेड वेगेनर ने बर्लिन यूनिवर्सिटी से पीएचडी की. वे मौसम विज्ञान, भूविज्ञान और खगोल विज्ञान में रुचि रखते थे. 1906 में वेगेनर ने ग्रीनलैंड की यात्रा की. वहां उन्होंने भूविज्ञान से जुड़ी रिसर्च के लिए एक स्टेशन बनाया और दो साल तक वहीं रिसर्च की. 1908 में उन्होंने मारबुर्ग यूनिवर्सिटी में रिसर्च शुरू की. 1911 में वेनेगर ने अपनी इसी रिसर्च पर एक पेपर पब्लिश किया.

अल्फ्रेड वेगेनर.तस्वीर: picture-alliance/akg-images

इस रिसर्च पेपर ने अब्राहम की थ्योरी को आगे बढ़ाया. वेनेगर ने कहा कि दुनिया के सभी अलग-अलग हिस्से एक जिग्सॉ पजल की तरह हैं. इन सब हिस्सों को जोड़कर एक पजल पूरी बनाई जा सकती है. उन्होंने बताया कि दोनों अमेरिकी महाद्वीप अफ्रीका और यूरोप में पूरी तरह फिट बैठते हैं. अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और मेडागास्कर दक्षिण अफ्रीका के एक हिस्से में फिट बैठते हैं. साथ ही उन्होंन बताया कि धरती के अलग-अलग हिस्सों पर मिलने वाले जीवाश्मों में भी समानताएं हैं. अटलांटिक महासागर के दोनों हिस्सों पर बसे अलग अलग महाद्वीपों में भी कई भौगोलिक समानताएं हैं. इसे उन्होंने कॉन्टिनेंटल ड्रिफ्ट थ्योरी का नाम दिया.

कॉन्टिनेंट यानी महाद्वीप. महाद्वीपों में हुए इस ड्रिफ्ट की वजह पृथ्वी के घूमने से पैदा हुए एक बल को माना गया. जिस बड़े हिस्से से ये सारे महाद्वीप अलग हुए, उसका नाम पेन्जिया दिया गया. हालांकि इस रिसर्च पेपर को उतनी सराहना नहीं मिली. लेकिन 1915 में ज्यादा ब्यौरे के साथ वेनेगर ने एक किताब लिख दी 'ऑरिजन ऑफ कॉन्टिनेंट्स एंड ऑसियंस'. इस किताब में उन्होंने और भी गहनता से बताया कि कैसे धरती के अलग-अलग हिस्सों में एक जैसी चट्टानें मिली हैं. अलग-अलग महाद्वीपों पर मिले जीवाश्मों में इतनी समानता कैसे है. इस किताब से थ्योरी तो स्थापित हुई लेकिन इसके वैज्ञानिक कारण पुख्ता नहीं हो सके.

1507 का एक नक्शा.तस्वीर: picture-alliance/Heritage-Images

इसके वैज्ञानिक कारण सामने आए 1950 के दशक में. विज्ञान के विकास ने मैग्नेटिक सर्वे नाम की तकनीक विकसित की. धरती के अंदर की चीजों का पता लगाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. इससे जो थ्योरी निकलकर आई उसका नाम है प्लेट टैक्टॉनिक्स. प्लेट टैक्टॉनिक्स थ्योरी का कहना है कि पूरी पृथ्वी पर जमीन है. कहीं ये जमीन ऊंची है कहीं नीची. नीची जमीन पर जहां पानी भर गया है वहां समुद्र बन गए हैं. अगर धरती से समुद्रों को हटाकर देखा जाए तो पूरी पृथ्वी कुछ प्लेट्स में बंटी है. इन प्लेट्स को टैक्टॉनिक प्लेट्स कहते हैं. ये वही प्लेटें हैं जिनमें हलचल होने से भूकंप आ जाता है.

अगर इन प्लेट्स के नीचे देखा जाए तो पृथ्वी की परतें हैं जिनके नीचे लावा भरा हुआ है. यह लावा लाखों डिग्री तापमान का होता है. इस खौलते लावा के चलते इन प्लेट्स की स्थिति बदलती रहती है. यह प्रक्रिया बहुत धीमे होती है इसलिए इसका अनुमान नहीं लग पाता. जब ये प्रक्रिया तेज होती है तो इसकी परणिति भूकंप के रूप में होती है. 2011 में जापान में आए भयानक भूकंप के बाद जापान की भौगोलिक स्थिति में भी मामूली परिवर्तन दर्ज किए गए थे.

तस्वीर: imago/blickwinkel

प्लेट टैक्टॉनिक्स थ्योरी के बाद यूएस जियोग्राफिकल सर्वे ने अपनी रिसर्च निकाली. इस रिसर्च में बताया गया कि 33 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर जमीन का एक ही टुकड़ा था जिसका नाम था पेंजिया. 17 करोड़ साल पहले तक पेंजिया में अंदरूनी हलचलें होती रहीं लेकिन ये एक ही बना रहा. 17 करोड़ साल पहले  पेंजिया दो टुकड़ों में टूट गया. इन टुकड़ों का नाम बना लॉरेशिया और गोंडवानालैंड. गोंडवानालैंड और टेथिस सागर की थ्योरी 1907-08 में ऑस्ट्रियाई भूवैज्ञानिक एड्वर्ड सुएज ने भी दी थी. उन्हें भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में एक जैसे जीवाश्म मिले थे. भारत में उन्होंने गोंडवाना से जीवाश्म इकट्ठे किए थे. इसलिए इस हिस्से का नाम गोंडवानालैंड रखा. गोंडवाना को ओडिशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हिस्सों तक माना जाता है.

ऐसा रहा था पेंजिया.

1937 में दक्षिण अफ्रीकी भूविज्ञानी एलेक्जेंडर डुटॉइट ने दो हिस्सों में टूटने वाली थ्योरी दी थी. वर्तमान थ्योरी के मुताबिक लॉरेशिया से टूटकर तीन महाद्वीप बने. उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के कुछ हिस्से. गोंडवानालैंड जब टूटा तो दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका और इंडियन टैक्टॉनिक प्लेट अलग-अलग हुईं. इंडियन प्लेट अलग हो कर यूरेशियन प्लेट की तरफ बढ़ी. यूरेशियन प्लेट मतलब जिस पर यूरोप और एशिया बसे थे.

पांच करोड़ साल पहले इंडियन प्लेट इस यूरेशियन प्लेट में घुस गई. इंडियन प्लेट के टकराने से पहले यूरेशियन प्लेट के नीचे समंदर था. इस समंदर का नाम टेथिस सागर था. जब इंडियन प्लेट यूरेशियन प्लेट में घुसी तो टकराने वाली जगह पर एक पहाड़ बनता चला गया. इस पर्वत को आज दुनिया की सबसे विशाल पर्वत श्रंखला हिमालय कहा जाता है. ये इंडियन प्लेट आज भी यूरेशियन प्लेट में घुसती जा रही है. यही वजह है कि हिमालय की ऊंचाई हर साल बढ़ती जा रही है.

पेंजिया के बाद इस नक्शे को देखकर सोचिए कौनसा हिस्सा कहां से अलग हुआ है.तस्वीर: AP

धरती की दूसरी प्लेटें भी अलग-अलग रफ्तार से बढ़ रही हैं. जैसे मध्य अटलांटिक में पड़ने वाली प्लेटें हर साल 10-40 मिलीमीटर की रफ्तार से बढ़ रही हैं. वहीं प्रशांत महासागर में पेरू के किनारे मौजूद दक्षिणी अमेरिकी प्लेट 160 मिलीमीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से बढ़ रही है. हिमालय की ऊंचाई 2.4 इंच प्रति वर्ष की रफ्तार से बढ़ रही है.

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