अमेरिका के नेतृत्व वाली नाटो सेनाओं ने साल 2001 में तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता से बेदखल कर दिया था. इसके बाद के सालों में वह फिर लगातार शक्तिशाली होता गया है और अब बहुत बड़े अफगान भू-भाग पर कब्जा कर चुका है.
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अफगानिस्तान में दशकों तक चले संघर्ष के बाद अब अमेरिकी सैनिक वापस लौट रहे हैं. इनकी वापसी के लिए अमेरिका ने 11 सितंबर तक की समयसीमा रखी है. विदेशी सेनाओं के अफगानिस्तान छोड़ने के साथ ही तालिबान ने नृशंस हिंसा के जरिए तेजी से नए इलाकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है.
अमेरिका और तालिबान के बीच 2018 से ही बातचीत हो रही थी. फरवरी, 2020 में इसके नतीजे के तौर पर दोनों पक्षों ने एक शांति समझौता किया. इसमें तय हुआ कि अमेरिका, अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं को वापस बुलाएगा और तालिबान अमेरिकी सेनाओं पर हमला रोक देगा. समझौते के अन्य वादों के मुताबिक तालिबान, अल-कायदा और अन्य आतंकी संगठनों को अपने नियंत्रण वाले इलाकों में पनपने नहीं देगा और अफगान सरकार से शांति स्थापित करने के लिए बातचीत करेगा.
अमेरिका ने समझौते के तहत सेनाओं की वापसी शुरू की लेकिन तालिबान ने शांति समझौते को ताक पर रखते हुए अफगानिस्तान के इलाकों पर कब्जा शुरू कर दिया.
कौन हैं तालिबानी?
पश्तो भाषा के शब्द 'तालिबान' का मतलब विद्यार्थी या छात्र होता है. उत्तरी पाकिस्तान में 1990 के दशक में इस संगठन का उभार हुआ. यह माना जाता है कि मुख्यत: पश्तून लोगों का यह आंदोलन सुन्नी इस्लामिक धर्म की शिक्षा देने वाले मदरसों से जुड़े लोगों ने खड़ा किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक उस समय पाकिस्तान स्थित इन मदरसों की फंडिंग सऊदी अरब करता था.
अपने शुरुआती दौर में तालिबान शांति और सुरक्षा स्थापित करने का दावा किया करता था. लेकिन इसके साथ ही वह सत्ता में आने पर इस्लामिक कानून शरिया के आधार पर शासन स्थापित करने की बात भी कहता था और इसके लिए हिंसक अभियान भी चलाता था.
तालिबान की करतूत
साल 1998 तक तालिबान ने 90 फीसदी अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. उस समय तालिबान के भ्रष्टाचार खत्म करने, कानून-व्यवस्था मजबूत करने, सड़कें बनाने और इलाके को व्यापार के लायक बनाने के वादों के चलते अफगानी स्थानीय भी उसका साथ देने लगे लेकिन जल्द ही तालिबान ने शरिया कानूनों के मुताबिक हत्यारों और नाजायज संबंध के दोषियों की चौराहों पर हत्या, चोरी जैसे आरोपों में लोगों के अंग काट देना जैसी सजाएं देनी भी शुरू कर दीं.
देखिए, आतंकी सूची में टॉप पर अफगानिस्तान
विश्व आतंकवाद सूचकांक में अफगानिस्तान शीर्ष पर
इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने अपने वार्षिक वर्ल्ड टेररिज्म इंडेक्स में अफगानिस्तान को धरती पर सबसे अधिक आतंक से प्रभावित देश बताया है. इस सूची में एशिया और अफ्रीका के भी कई देश शामिल हैं.
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अफगानिस्तान
ऑस्ट्रेलिया स्थित इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने अपने वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (2020) में अफगानिस्तान को पहले पायदान पर रखा है. धरती पर सबसे अधिक आतंक प्रभावित देश अफगानिस्तान को 9.59 अंक दिए गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/H. Sabawoon
इराक
इराक भी आतंक से प्रभावित देशों में दूसरे स्थान पर है. इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने इराक को 10 में से 8.68 अंक दिए हैं.
तस्वीर: Reuters/G. Tomasevic
नाइजीरिया
तीसरे स्थान पर पश्चिमी अफ्रीकी देश नाइजीरिया है. यहां पिछले कुछ महीनों में जिहादी गुटों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष तेज हुआ है. आतंक से प्रभावित नाइजीरिया को 10 में से 8.31 अंक मिले हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सीरिया
7.77 अंक के साथ सीरिया चौथे स्थान पर हैं. सीरिया में बशर अल असद के खिलाफ कई ऐसे गुटे भी लड़ रहे हैं जिनके रिश्ते इस्लामिक संगठनों से हैं या वे जिहादी संगठन हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Anha
सोमालिया
पांचवें स्थान पर पूर्वी अफ्रीकी देश सोमालिया है. विश्व आतंकवाद सूचकांक में इसे 7.64 अंक मिले हैं. यहां पर अल शबाब आतंकी संगठन के आतंकियों का सुरक्षा बलों के साथ लंबे समय से संघर्ष जारी है. सोमालिया में 700 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं और अमेरिका वहां से सैन्य कटौती की योजना बना रहा है.
मध्य-पूर्वी देश यमन में शांति दूर-दूर तक नजर नहीं आती है. हूथी विद्रोहियों के साथ ही देश अकाल से भी जूझ रहा है. सूचकांक में इसे 7.58 अंक मिले हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Arhab
पाकिस्तान
एशियाई देश पाकिस्तान आतंकवाद से प्रभावित देशों की सूची में सातवें स्थान पर है. पाकिस्तान को संस्था ने 10 में से 7.54 अंक दिए हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Raza
भारत
आतंकवाद से प्रभावित देश के रूप में भारत आठवें स्थान पर है. भारत को 10 में से 7.35 अंक दिए गए हैं. भारत का जम्मू-कश्मीर क्षेत्र आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो
नौवें स्थान पर डीआरसी कांगो है. संस्था ने इसे 7.17 अंक दिए हैं. डीआरसी कांगो की अस्थिरता का एक लंबा इतिहास है और यह भी आतंक से प्रभावित देशों में से एक है.
एशियाई देश फिलीपींस को इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने आतंक से प्रभावित देश की सूची में 10वें स्थान पर रखा है. फिलीपींस को 7 अंक मिले हैं. स्रोत:ऑस्ट्रेलिया स्थित इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Dejeto
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आदमियों के लिए दाढ़ी बढ़ाना और महिलाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया गया. टीवी, संगीत और सिनेमा बैन कर दिया गया और 10 साल से ज्यादा उम्र की लड़कियों को स्कूल भेजने से मना कर दिया गया. इस दौर में उन पर मानवाधिकार उल्लंघन और सांस्कृतिक शोषण के कई आरोप लगे लेकिन उसका घोर कट्टरपंथी चेहरा तब दुनिया के सामने आया जब साल 2001 में उन्होंने मध्य अफगानिस्तान में स्थित प्रसिद्ध बामियान की बुद्ध मूर्तियों को बम से उड़ा दिया. इस वाकये की पूरी दुनिया में निंदा हुई.
पाकिस्तान की अहम भूमिका
तालिबान के उभार के लिए पाकिस्तान को ही जिम्मेदार माना जाता है लेकिन वह इससे इंकार करता आया है. लेकिन यह भी एक तथ्य है कि जो अफगानी शुरुआती दौर में तालिबानी आंदोलन में शामिल हुए, उनमें से ज्यादातर ने पाकिस्तानी मदरसों में शिक्षा पाई थी.
पाकिस्तान उन तीन देशों में से भी एक है, जिन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को मान्यता दी थी. अन्य दो देश सऊदी अरब और यूएई थे. पाकिस्तान ही वह आखिरी देश भी था, जिसने तालिबान से अपने कूटनीतिक रिश्ते खत्म किए.
9/11 के हमलों से ऐसे बदली दुनिया
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हालांकि बाद में तालिबान ने पाकिस्तान में भी कई नृशंस आतंकी हमलों को अंजाम दिया है. उसकी सबसे कुख्यात घटनाएं साल 2012 से 2013 के बीच की हैं, जब मिंगोरा में स्कूल से घर जाती बच्ची मलाला यूसुफजई को तालिबानियों ने गोली मार दी थी. एक अन्य हमले में उन्होंने पेशावर के एक स्कूल में बच्चों का नरसंहार किया, जिसमें 148 लोग मारे गए. हालांकि इन घटनाओं के बाद पाकिस्तान में तालिबान का प्रभाव काफी कम हुआ. अमेरिका ने भी कई पाकिस्तानी तालिबानी नेताओं को ड्रोन हमलों में मार गिराया.
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9/11 और तालिबान के बुरे दिन
तालिबान के बुरे दिन तब शुरू हुए, जब अलकायदा ने 11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया और तालिबान पर हमले के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन और अलकायदा को शरण देने का आरोप लगा.
7 अक्टूबर 2001 से अमेरिकी सेना के नेतृत्व वाले मिलिट्री संगठन ने अफगानिस्तान पर हमले शुरू कर दिए. दिसंबर के पहले हफ्ते तक तालिबानी सत्ता उखड़ चुकी थी. जबरदस्त ऑपरेशन के बावजूद तालिबान के संस्थापक मुल्ला मुहम्मद उमर और बिन लादेन सहित कई प्रमुख तालिबानी नेता अफगानिस्तान से भागने में सफल रहे. रिपोर्ट में बताया गया कि ज्यादातर ने पाकिस्तान के क्वेटा शहर में शरण ली है लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने इन रिपोर्ट्स को झुठला दिया.
देखेंः फाटा, दुनिया की नाक में दम करने वाला इलाका
फाटा: दुनिया की नाक में दम करने वाला इलाका
पाकिस्तान के कबाइली इलाके लंबे समय तक आतंकवाद का गढ़ रहे हैं. 2018 में इस इलाके को पाकिस्तान के खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत में शामिल किया गया. जानिए क्यों खास है फाटा कहा जाने वाला यह इलाका.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Qureshi
सबसे खतरनाक जगह
पाकिस्तान के कबाइली इलाकों को कभी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दुनिया का सबसे खतरनाक इलाका बताया था. इस पहाड़ी इलाके को लंबे समय से तालिबान और अल कायदा लड़ाकों की सुरक्षित पनाहगाह माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
केपीके का हिस्सा
अब इस अर्धस्वायत्त इलाके को पाकिस्तान के खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत में शामिल किया जा रहा है. यानी अब तक कबाइली नियम कानूनों से चलने वाले इस इलाके पर भी अब पाकिस्तान का प्रशासन और न्याय व्यवस्था के नियम लागू होंगे.
तस्वीर: A Majeed/AFP/Getty Images
सात जिले
अफगानिस्तान की सीमा पर मौजूद पाकिस्तान के कबाइली इलाके में सात जिले हैं जिन्हें सात एजेंसियां कहा जाता है. संघीय प्रशासित इस कबाइली इलाके को अंग्रेजी में फेडरली एडमिनिटर्ड ट्राइबल एरिया (FATA) कहा जाता है.
गुलामी मंजूर नहीं
फाटा की आबादी लगभग पचास लाख है जिसमें से सबसे ज्यादा पख्तून लोग शामिल हैं. ब्रिटिश राज में इस इलाके को फाटा नाम दिया गया था. यहां रहने वाले पठान लड़ाकों ने खुद को गुलाम बनाने की कोशिशों का डटकर मुकाबला किया था.
तस्वीर: Reuters
सस्ती बंदूकें
अभी तक यह इलाका पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच एक बफर जोन की तरह रहा है. यह इलाका सस्ती बंदूकों की मंडी के तौर पर बदनाम रहा है. अफीम के साथ साथ यहां तस्करी का सामान खुले आम बिकता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Majeed
कबीलों का राज
ब्रिटिश अधिकारियों ने 1901 में इस इलाके के लिए फ्रंटियर क्राइम्स रेग्युलेशन बनाया था, जिसके तहत राजनीति तौर पर नियुक्त होने वाले लोगों को यहां शासन का अधिकार है. इन लोगों के पास एक व्यक्ति के जुर्म की सजा पूरे कबीले को देने तक का अधिकार है.
तस्वीर: Reuters
स्वायत्तता का लालच
1947 में पाकिस्तान बनने के बाद भी फाटा में वैसे ही शासन चलता रहा जैसे अंग्रेजी दौर में चलता था. पाकिस्तान की सरकार ने इलाके के लोगों को स्वायत्ता लालच दिया ताकि वे पाकिस्तान में शामिल हो जाएं.
तस्वीर: picture-alliance/AP
विकास नहीं हुआ
इलाके को स्वायत्ता की भारी कीमत चुकानी पड़ी. विकास के लिए मिलने वाली रकम दशकों तक यहां पहुंची ही नहीं. इसका नतीजा यह हुआ कि कबाइली इलाके और बाकी पाकिस्तान में जमीन आसमान का अंतर नजर आता है.
तस्वीर: A Majeed/AFP/Getty Images
उग्रवाद की उपजाऊ जमीन
वंचित लोगों में नाराजगी पैदा होना आम बात है. इसलिए यह इलाका चरमपंथ का गढ़ बन गया है जो न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि पड़ोसी अफगानिस्तान के लिए एक बड़ी सुरक्षा चुनौती बन कर उभरा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Khan
सोवियत संघ के खिलाफ
फाटा 1979 में अफगानिस्तान में रूसी हमले के दौरान सोवियत संघ के खिलाफ सीआईए समर्थित मुजाहिदीन के अभियान का अहम ठिकाना रहा है. दुनिया भर के इस्लामी लड़ाके यहां पहुंचे, जिनमें से कुछ ने बाद में अल कायदा खड़ा किया.
तस्वीर: AP
चरमपंथियों की पनाहगाह
11 सितंबर 2001 के हमले के बाद अमेरिका ने जब अफगानिस्तान पर हमला किया तो वहां से भाग कर तालिबान और अल कायदा के चरमपंथियों ने इसी इलाके में शरण ली. तहरीक ए तालिबान का यहीं जन्म हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Arbab
ड्रोन हमले
अमेरिका ने कई बरस तक इस इलाके में ड्रोन हमलों के जरिए चरमपंथियों को निशान बनाया. हालांकि पाकिस्तान हमेशा ऐसे हमलों को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन करार देता रहा.
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पाकिस्तान सरकार के दावे
पाकिस्तान सरकार दावा करती है कि इस इलाके में आतंकवादी ठिकाने खत्म कर दिए गए हैं. हालांकि अमेरिका कहता है कि अफगानिस्तान में नाटो और अफगान बलों पर हमले करने वाले चरमपंथी अब भी फाटा को इस्तेमाल कर रहे हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Qureshi
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तबसे तालिबान फिर अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी की कोशिशों में लगा है. साल 2013 में तालिबानी प्रमुख मुल्ला उमर की मौत हो गई लेकिन तालिबान ने इसे दो साल तक छिपाए रखा. फिर मुल्ला मंसूर को नया तालिबानी नेता माना जाने लगा लेकिन मई, 2016 में एक अमेरिकी ड्रोन हमले में उसे मार गिराया गया. उसके बाद मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा तालिबान का मुख्य नेता है.
अब आम लोगों को मार रहा तालिबान
साल 2001 की कार्रवाई के बाद अफगानिस्तान में अमेरिका ने भारी सेना की तैयारी कर वहां लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की लेकिन आने वाले सालों में धीरे-धीरे तालिबान फिर अपना प्रभाव बढ़ाने में सफल रहा. उसने अब फिर से अफगानिस्तान के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है.
साल 2001 के बाद अब अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा हिंसक घटनाएं हो रही हैं. तालिबान ने अपनी रणनीति भी बदल दी है और अब शहरों में बड़े हमले करने के बजाए वह सामान्य नागरिकों को निशाना बना रहा है. इसके तहत वह पत्रकारों, जजों, शांति कार्यकर्ताओं, शक्तिशाली पदों पर काम कर रही महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है. रॉयटर्स न्यूज एजेंसी के फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी और कॉमेडियन नजर मोहम्मद की हत्या की दुनियाभर में आलोचना हुई है.
तस्वीरों मेंः दानिश सिद्दीकी की मौत
पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में मौत हो गई है. अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच हिंसक भिड़ंत में उनकी जान चली गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
पुलित्जर से सम्मानित
हाल ही में अफगानिस्तान के बदलते हालातों और हिंसा के अलावा, उन्होंने इराक युद्ध और रोहिंग्या संकट की भी कई यादगार तस्वीरें ली थीं. सन 2010 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करने वाले दानिश सिद्दीकी को 2018 में रोहिंग्या की तस्वीरों के लिए ही पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
अफगान बल के साथ
विदेशी सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने और तालिबान के फिर से वहां कब्जा जमाने के इस दौर में हर दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं. ऐसे में अफगान सुरक्षा बलों के साथ मौजूद पत्रकारों के जत्थे में शामिल सिद्दिकी मरते दम तक अफगानिस्तान से तस्वीरें और खबरें भेजते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
कोरोना की नब्ज पर हाथ
हाल ही में भारत में कोरोना संकट की उनकी ली कई ऐसी तस्वीरें देश और दुनिया के मीडिया में छापी गईं. खुद संक्रमित होने का जोखिम उठाकर वह कोविड वॉर्डों से बीमार लोगों के हालात को कैमरे में कैद करते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
भगवान का रूप डॉक्टर
कोरोना काल में सिद्धीकी की ऐसी कई तस्वीरें आपने समाचारों में देखी होंगी जिसमें एक फोटो पूरी कहानी कहती है. महामारी के समय दानिश सिद्दीकी की ली ऐसी कई तस्वीरें इंसान की दुर्दशा और लाचारी को आंखों के सामने जीवंत करने वाली हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
लाशों के ऐसे कई अंबार
जहां एक लाश का सामना किसी आम इंसान को हिला देता है वहीं पत्रकारिता के अपने पेशे में सिद्धीकी ने ना केवल लाशों के अंबार के सामने भी हिम्मत बनाए रखी बल्कि पेशेवर प्रतिबद्धता के बेहद ऊंचे प्रतिमान बनाए. कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर दिल्ली के एक श्मशान की फोटो.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
कश्मीर पर राजनीति
भारत की केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष राज्य का दर्जा रद्द कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा, उस समय भी ड्यूटी कर रहे फोटोजर्नलिस्ट सिद्दीकी ने वहां की सच्चाई पूरे विश्व तक पहुंचाई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
सीएए विरोध के वो पल
केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों से उनकी खींची ऐसी कई तस्वीरें दर्शकों के मन मानस पर छा गईं थी. जैसे 30 जनवरी 2020 को पुलिस की मौजूदगी में जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन करने वालों पर बंदूक तानने वाले इस व्यक्ति की तस्वीर.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
समर्पण पर गर्वित परिवार
जामिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर उनके पिता अख्तर सिद्दीकी ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि दानिश सिद्दीकी "बहुत समर्पित इंसान थे और मानते थे कि जिस समाज ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, वह पूरी ईमानदारी से सच्चाई को उन तक पहुंचाए." घटना के समय दानिश सिद्दीकी की पत्नी और बच्चे जर्मनी में छुट्टियां मनाने आए हुए थे.
तस्वीर: Mumbairt/CC
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जानकार कहते हैं, "इन हमलों से साफ है कि तालिबान ने सिर्फ अपनी रणनीति बदली है, उसकी कट्टरपंथी विचारधारा में बिल्कुल भी बदलाव नहीं आया है."
कैसे काम करता है संगठन
अमीर अल-मुमिनीन, यह तालिबानी संगठन का सबसे बड़ा नेता है, जो राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों के लिए जिम्मेदार होता है. फिलहाल इस पद पर मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा है. यह पहले तालिबान का मुख्य न्यायाधीश रह चुका है. इसके तीन सहायक हैं.
राजनीतिक सहायक- मुल्ला अब्दुल गनी बरदार, अखुंदजादा का राजनीतिक सहायक है. वह तालिबान का उपसंस्थापक और दोहा के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख भी है.
सहायक- फिलहाल तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला मुहम्मद याकूब इस पद पर है. यही सैन्य कार्रवाइयों का प्रमुख भी है.
सहायक- एक अन्य सहायक सिराजुद्दीन हक्कानी है, जो हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख है.
मुख्य न्यायाधीश- यह नेता तालिबान के न्यायिक ढांचे की देखरेख के लिए जिम्मेदार होता है. फिलहाल इस पद पर मुल्ला अब्दुल हकीम है, जो दोहा में बातचीत का नेतृत्व कर रहा है.
रहबरी शूरा- यह तालिबानी नेताओं की सबसे बड़ी सलाहकार और निर्णय लेने वाली समिति होती है. इसमें 26 सदस्य होते हैं.
तालिबानी मंत्रियों की कैबिनेट में 17 मंत्रालय होते हैं. ये हैं, सैन्य, खुफिया, राजनीतिक, आर्थिक और 13 अन्य मंत्रालय. दोहा स्थित तालिबान का अंतरराष्ट्रीय कार्यालय ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान का पक्ष रखता है और शांति समझौतों पर बातचीत करता है.
आर्थिक तौर पर भी मजबूत है तालिबान
एक रिपोर्ट के मुताबिक अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए तालिबान के पास पैसों की कोई कमी नहीं है. तालिबान की कमाई का मुख्य जरिया, ड्रग्स, खनन, वसूली, टैक्स, धार्मिक दान, निर्यात और रियल स्टेट हैं. इसी रिपोर्ट के मुताबिक कुछ देशों से भी उसे फंडिंग मिलती है, जिसमें रूस, ईरान, पाकिस्तान और सऊदी अरब प्रमुख हैं.
तालिबान अब अफगानिस्तान सरकार को सत्ता से उखाड़ने का डर दिखा रहा है. नाटो के एक हालिया अध्ययन के मुताबिक तालिबान के पास 85 हजार से ज्यादा लड़ाके हैं. दुनियाभर को अब अफगानिस्तान में एक खतरनाक गृह युद्ध का डर सता रहा है. अमेरिकी खुफिया विभाग के एक आकलन की मानें तो तालिबान अगले छह महीने में अफगान सरकार को गिरा भी सकता है.