ई-ईंधन क्या है और भविष्य में यह कितना उपयोगी होगा?
२४ मार्च २०२३
जर्मनी ने अंतिम क्षण में यूरोपीय संघ के एक ऐतिहासिक कानून का विरोध किया है, जो 2035 के बाद कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करने वाले वाहनों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाएगा.
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यूरोपीय संघ के नए कानून ने 2035 के बाद इंटरनल कंबशन इंजन से चलने वाले सभी वाहनों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव दिया है. यूरोपीय संघ के नियमों के अनुसार 2035 से बेची जाने वाली सभी नई कारों में शून्य सीओ2 उत्सर्जन की आवश्यकता होगी, जिससे जीवाश्म ईंधन से चलने वाली नई कारों को बेचना प्रभावी रूप से असंभव हो जाएगा.
कानून में यह भी कहा गया है कि केवल उन नए वाहनों की बिक्री की जानी चाहिए जिन्हें एक निर्दिष्ट समय सीमा के बाद ई-ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता है.
यूरोपीय संघ के मुताबिक 2035 के बाद केवल कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन न करने वाले वाहनों की बिक्री की अनुमति दी जानी चाहिए, यानी ब्लॉक में पारंपरिक ईंधन वाहनों की बिक्री असंभव हो जाएगी.
जर्मनी ने अन्य यूरोपीय देशों के साथ इस रास्ते का समर्थन किया है, लेकिन जर्मनी का कहना है कि इंटरनल कंबशन इंजन वाले वाहनों की बिक्री पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए. हालांकि नया ईयू कानून प्रौद्योगिकी को मौत की सजा के रूप में दंडित कर रहा है, क्योंकि इंटरनल कंबशन इंजन वाले ऐसे किसी भी वाहन का इंजन कार्बन डाइऑक्साइड के छोड़े बिना नहीं चल सकता है.
ई-ईंधन क्या है?
सिंथेटिक ई-फ्यूल के उत्पादन में वर्षों लगे हैं, उन्हें अब तेल से चलने वाली कारों और ट्रकों के लिये ऐसे विकल्प के रूप में प्रोत्साहित किया जा रहा है जिनका जलवायु पर असर नहीं होता. ये ईंधन पानी और नवीनीकृत बिजली से पैदा ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल करते हैं. उसे सीओ2 के साथ मिलाकर डीजल, गैसोलीन या केरोसीन जैसा सिंथेटिक ईंधन बनाया जाता है.
जब एक सामान्य इंजन में ईंधन का इस्तेमाल होता है तो, तो कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होता है. हालांकि, अवधारणा यह है कि ये वाहन उतना ही कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करते हैं जितना ईंधन के उत्पादन के लिए हवा से लिया जाता है. इस तरह वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की कुल मात्रा न्यूट्रल रहेगी.
जर्मनी और इटली की राय है कि 2035 के बाद भी ऐसे वाहनों की बिक्री की अनुमति दी जानी चाहिए, जो सीओ2 न्यूट्रल ईंधन पर चलते हैं.
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ये वाहन कौन बनाता है?
यात्री वाहनों से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिए बैटरी से चलने वाली ई-कारों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. अब लगभग सभी वाहन निर्माताओं द्वारा उपयोग की जाने वाली तकनीक के साथ-साथ निर्माण और बिक्री का बचाव भी किया जा रहा है. ये वाहन निर्माता भारी बैटरी के पक्ष में नहीं हैं.
हालांकि अभी बड़े पैमाने पर ई-ईंधन का उत्पादन नहीं हो रहा है, लेकिन इस संबंध में पहला संयंत्र 2021 में चिली में शुरू हुआ था. जर्मनी के ही प्रौद्योगिकी सिरमौर सीमेंस एनर्जी के साथ मिलकर पोर्शे, कम कीमत वाली पवन ऊर्जा की मदद से कार्बन न्यूट्रल ई-ईंधन बनाना चाहती है.
पोर्शे के समर्थन से इस संयंत्र के माध्यम से साढ़े पांच लाख लीटर ई-ईंधन का उत्पादन का लक्ष्य है.
ई-ईंधन के समर्थक
ई-ईंधन के समर्थकों का कहना है कि जीवाश्म ईंधन मौजूदा वाहनों का उपयोग करना जारी रखेगा और इलेक्ट्रिक वाहनों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. हालांकि इस ईंधन के आलोचकों का कहना है कि ई-ईंधन का उत्पादन बहुत महंगा और इसमें भारी मात्रा में ऊर्जा की खपत होती है.
जर्मन ऊर्जा एजेंसी के कराए एक अध्ययन के मुताबिक, ई-ईंधन पर चलने वाले वाहनों की खपत बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहनों से पांच गुना ज्यादा होती है. भविष्य में उनसे प्रति किलोमीटर का सफर करीब आठ गुना ज्यादा महंगा होगा.
एए/सीके (रॉयटर्स)
सफेद सोने के ढेर पर बैठे हैं, मगर गरीबी ने पीछा नहीं छोड़ा
जीवाश्म ईंधन से छुटकारा पाने की कोशिशों से दुनियाभर में लिथियम का उत्पादन और कीमतें आसमान छू रही हैं. मगर इसका फायदा आसपास के स्थानीय निवासियों को शायद ही मिला है. वे अब भी गरीब हैं और जिंदगी संवरने का इंतजार कर रहे हैं.
तस्वीर: Martina Silva/AFP
लिथियम त्रिकोण
यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक अब तक धरती पर 8.9 करोड़ टन लिथियम भंडार का पता चला है. इसमें से 56 फीसदी दक्षिण अमेरिकी त्रिकोण में मौजूद है. इस त्रिकोण में चिली, अर्जेंटीना और बोलिविया का इलाका शामिल है. इलेक्ट्रिक कारों की बैटरी में इस्तेमाल होने की वजह से लिथियम की मांग काफी ज्यादा बढ़ गयी है. अब इसे व्हाइट गोल्ड कहा जा रहा है.
तस्वीर: Alzar Raldes/AFP
लिथियम उत्पादन का असर
लिथियम उत्पादन के साथ ही इलाके के भूजल पर इसके असर की चिंता बढ़ रही है, क्योंकि जल संसाधनों की स्थिति यहां पहले ही बहुत खराब है. बहुत सारे इलाके सूखे की तरफ बढ़ रहे हैं और इसका संकेत गिरते पेड़ों और फ्लेमिंगों की मौत के रूप में दिख रहा है.
तस्वीर: Martina Silva/AFP
स्थानीय लोगों को नहीं मिला फायदा
इलाके में लिथियम भंडारों का फायदा यहां रहने वाले लोगों तक अब तक पहुंचता नहीं दिखा है. अर्जेंटीना के सालिनास ग्रांदेस में रहने वाली वेरोनिका चावेज कहती हैं, "न तो हम लिथियम खाते हैं और न बैटरियां. हम पानी जरूर पीते हैं." इलाके में पोस्टर भी लगा है, "नो टू लिथियम, येस टू वाटर एंड लाइफ"
तस्वीर: Alzar Raldes/AFP
हर दिन लाखों लीटर पानी का इस्तेमाल
धरती से लिथियम निकालने वाले प्लांटों में प्रतिदिन लाखों लीटर पानी इस्तेमाल होता है. लिथियम का एक बड़ा निर्यातक है ऑस्ट्रेलिया. ऑस्ट्रेलिया में लिथियम चट्टान से निकाला जाता है और इसकी प्रक्रिया काफी अलग है.
तस्वीर: Martina Silva/AFP
नमक से निकलता है लिथियम
दक्षिण अमेरिका में लिथियम नमक से निकाला जाता है. इसके लिए धातु वाले नमक के पानी को जमीन के नीचे मौजूद खारे पानी की झीलों से निकाला जाता है. इसके बाद इसका पानी वाष्प बनाकर उड़ा दिया जाता है और नीचे धातु बच जाती है.
तस्वीर: Martina Silva/AFP
एक चौथाई लिथियम चिली से आया
नवंबर 2020 में लिथियम की औसत कीमत 5,700 डॉलर प्रति टन थी, जो सितंबर 2022 में 60,500 प्रति टन तक जा पहुंची. लिथियम त्रिकोण का पश्चिमी हिस्सा चिली के अटाकामा डेजर्ट में है. 2021 में दुनियाभर में लिथियम के कुल उत्पादन का 26 फीसदी यहीं से आया. (तस्वीर सालिनास ग्रेंडेस की है)
तस्वीर: Martina Silva/AFP
लिथियम उत्पादन के लिए आदर्श जगह
चिली में लिथियम निकालने का काम 1984 में शुरू हुआ. कम बारिश और तेज सौर विकिरण के कारण यह आदर्श जगह है, जो वाष्पीकरण की प्रक्रिया को तेज कर देती है. हालांकि, चिली के तानाशाह शासक आगुस्तो पिनोचेट ने इस धातु को परमाणु बमों में इस्तेमाल की क्षमता के चलते रणनीतिक संसाधन घोषित कर दिया है.
तस्वीर: Oliver Llaneza Hesse/Construction Photography/Photosh/picture alliance
खुदाई की अनुमति नहीं
लिथियम की खुदाई के लिए कंपनियों को सरकार से मंजूरी नहीं मिल रही है. चिली की एसक्यूएम और अमेरिका की अल्बमार्ले को ही इसकी इजाजत है और उन्हें अपनी बिक्री का 40 फीसदी बतौर टैक्स देना होता है.
तस्वीर: Alzar Raldes/AFP
अर्जेंटीना का लिथियम भंडार
अर्जेंटीना में जुजुय और पड़ोसी राज्य साल्टा और काटामार्का के साल्ट लेक इसे दुनिया में लिथियम का दूसरा सबसे बड़ा भंडार बनाते हैं. महज 3 प्रतिशत टैक्स की दर और खुदाई पर कम पाबंदियों के कारण अर्जेंटीना सिर्फ दो खदानों की बदौलत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा लिथियम उत्पादक बन गया है.
तस्वीर: Martina Silva/AFP
सबसे आगे जाने का सपना
अमेरिका, चीन, फ्रांस, दक्षिण कोरिया के साथ ही कई स्थानीय कंपनियां भी यहां दर्जनों नई परियोजनाओं में जुटी हुई हैं. इनके दम पर अर्जेंटीना का कहना है कि वह 2030 तक लिथियम के उत्पादन में चिली को पीछे छोड़ देगा.
तस्वीर: Martina Silva/AFP
"मुझे लिथियम नहीं चाहिए"
अर्जेंटीना के लिथियम वाले इलाके में स्ट्रीट फूड बेचने वाली 47 साल की बारबरा क्विपिलडोर नाराजगी के साथ कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि वे हमें अकेले शांति से रहने के लिए छोड़ दें. मुझे लिथियम नहीं चाहिए. मेरी चिंता मेरे बच्चों का भविष्य है."
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इतना लिथियम, फिर भी आधे से ज्यादा गरीब
जुजुय के उत्तर में करीब 300 किलोमीटर दूर है बोलिविया का उयुनी. यहां पर धरती की किसी भी जगह से ज्यादा यूरेनियम है. पूरी दुनिया का लगभग एक चौथाई. यह इलाका चांदी और टिन के लिहाज से भी काफी अमीर है, लेकिन यहां के आधे से ज्यादा लोग गरीबी में जी रहे हैं.
तस्वीर: Martina Silva/AFP
संसाधनों का राष्ट्रीयकरण
बोलिविया के वामपंथी पूर्व प्रधानमंत्री इवो मोरालेस ने हाइड्रोकार्बन और लिथियम जैसे दूसरे संसाधनों का राष्ट्रीयकरण करके शपथ ली कि धातुओं की वैश्विक कीमत वह तय करेगा. 2018 में इसे निजी क्षेत्रों के लिए खोला गया, लेकिन राष्ट्रीयकरण खत्म नहीं किया गया. इसीलिये निजी कंपनियां खुदाई शुरू नहीं कर सकीं.
तस्वीर: Pablo Cozzaglio/AFP/Getty Images
आम लोगों का फायदा?
बोलिविया इस धातु से फायदा उठाना चाहता तो है, लेकिन अब तक यह काम शुरू नहीं हुआ है. अब ये तीनों देश बैटरी और इलेक्ट्रिक कार बनाने के बारे में सोच रहे हैं, ताकि प्राकृतिक संसाधन से आधुनिक उद्योग खड़े किये जा सकें. बड़ा सवाल यह है कि जब धातु की खुदाई शुरू होगी, तब क्या उसका फायदा स्थानीय लोगों को मिलेगा.