भारत और अमेरिका समेत कई देशों ने मिल कर अपने अपने तेल के रणनीतिक भंडारों में से तेल निकालने का फैसला किया है. लेकिन क्या होता है ये रणनीतिक भंडार और क्यों इसमें से तेल निकाल रहे हैं ये सभी देश?
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भारत सरकार ने घोषणा की है कि वो अपने रणनीतिक भंडार में से 50 लाख बैरल या करीब 80 करोड़ लीटर तेल निकालेगी. भारत के ठीक पहले अमेरिका ने इसी तरह पांच करोड़ बैरल तेल अपने रणनीतिक भंडार में से निकालने की घोषणा की थी. चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और यूनाइटेड किंगडम भी इसी तरह का कदम उठाने वाले हैं.
क्या होते हैं रणनीतिक भंडार
पूरी दुनिया में सरकारें और निजी कंपनियां मिल कर कच्चे तेल का एक भंडार अपने पास रखती हैं. इस भंडार को ऊर्जा संकट या तेल की सप्लाई में अल्पकालिक गड़बड़ी से निपटने के लिए रखा जाता है.
अमेरिका, चीन, जापान, भारत, यूके समेत दुनिया भर के कई देश ऐसा भंडार रखते हैं. 1973 के तेल संकट के बाद भविष्य में इस तरह के संकटों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) नाम की एक संस्था की स्थापना की गई थी.
1973 के तेल संकट के बाद तेल के रणनीतिक भंडार बनाने की शुरुआत की गई थीतस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Haider
इसके 30 सदस्य हैं और आठ सहयोगी सदस्य. सभी सदस्य देशों के लिए कम से कम 90 दिनों का तेल का भंडार रखना अनिवार्य है. भारत आईईए का सहयोगी सदस्य है.
कितना भंडार है भारत के पास
तेल मंत्रालय के तहत आने वाली कंपनी आईएसपीआरएल भारत में तेल के रणनीतिक भंडार का प्रबंधन करती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक आईएसपीआरएल के पास आपात इस्तेमाल के लिए करीब 3.7 करोड़ बैरल कच्चे तेल का भंडार है.
इतना तेल कम से कम नौ दिनों तक भारत की खपत की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी है. ये भंडार आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम, कर्नाटक के मंगलौर और पदुर में जमीन के नीचे बने विशेष टैंकों में मौजूद है. ओडिशा के चंडीखोल में भी एक ऐसा ही टैंक बनाया जा रहा है.
ओपेक देश कच्चे तेल का उत्पादन नहीं बढ़ा रहे हैं, जिससे दाम कम नहीं हो रहे हैंतस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Gindl
राजस्थान के बीकानेर में भी एक और टैंक बनाने की घोषणा हो चुकी है. इस रणनीतिक भंडार के अलावा तेल कंपनियां कम से कम 64 दिनों का कच्चे तेल का भंडार अपने पास रखती हैं.
सबसे ज्यादा भंडार किस देश के पास है
वैसे तो अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार का संचालन करने वाले संगठन ओपेक के सदस्य देशों के पास सबसे ज्यादा कच्चा तेल है, लेकिन गैर ओपेक देशों में अमेरिका के पास तेल का सबसे बड़ा रणनीतिक भंडार है.
ताजा जानकारी के मुताबिक अमेरिका के पास करीब 60 करोड़ बैरल तेल का भंडार मौजूद है. 23 नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसमें से पांच करोड़ बैरल तेल निकालने का आदेश दे दिया. व्हाइट हाउस ने घोषणा की कि अमेरिका के साथ ही भारत, यूके, चीन इत्यादि जैसे देश भी ऐसा की कदम उठाएंगे.
ताजा कदम का अंतरराष्ट्रीय दामों पर असर नहीं पड़ा हैतस्वीर: Getty Images/P. Walter
क्यों निकाला जा रहा है भंडार से तेल
इस कदम का उद्देश्य है अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में तेल की कीमतों को कम करना. तेल के दाम पिछले कई दिनों से बढ़े हुए हैं. इन्हें नीचे लाने के लिए ओपेक देशों से अनुरोध किया जा रहा था कि वो तेल का उत्पादन बढ़ाएं. उत्पादन बढ़ने से सप्लाई बढ़ जाती और दाम नीचे आ जाते.
लेकिन ओपेक देशों ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया, जिसके बाद अमेरिका और अन्य देशों ने यह कदम उठाने का फैसला किया.
हालांकि इस कदम का तुरंत तो अंतरराष्ट्रीय दामों पर असर नहीं पड़ा है. फैसले की घोषणा के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम तीन प्रतिशत और ऊपर चले गए. अब देखना यह होगा कि यह उछाल जारी रहती है या आने वाले दिनों में दाम कुछ नीचे आते हैं.
संसाधनों की होड़ के बीच प्रकृति को बचाने का संघर्ष
अफ्रीका के युगांडा में उप-सहारा अफ्रीका के सबसे बड़े तेल के भंडार को हासिल करने के लिए दो बड़ी ऊर्जा कंपनियां तैयार हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को वहां की अद्भुत जैवविविधता पर इसके असर की चिंता सता रही है.
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जमीन के निगहबान
88 साल के अलोन कीजा यहां के बागुंगु स्थानीय समुदाय के एक बुजुर्ग हैं. वो ग्रामीण बुलीसा जिले में रहते हैं जो इस महाद्वीप के प्राकृतिक संसाधनों को हासिल करने की होड़ के ठीक मध्य में स्थित है. वो कहते हैं, "तेल के लिए ड्रिलिंग करने से इकोसिस्टम अस्त व्यस्त हो जाएगा. इस जगह की आत्मा इन मशीनों को स्वीकार नहीं करती है."
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वन्य जीवों पर खतरा
एक गंभीर समस्या है इस इलाके के वन्य जीवों पर होने वाला असर. ड्रिलिंग का कुछ हिस्सा मर्चिसन फॉल्स राष्ट्रीय उद्यान में भी होगा जहां कई हाथी, तेंदुए, शेर और जिराफ के अलावा 450 नस्लों के पक्षी रहते हैं. पर्यावरणविदों को इन वन्य जीवों पर ड्रिलिंग के संभावित असर की चिंता है.
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शुरुआत हो चुकी है
लेकिन ये विशाल परियोजना शुरू भी हो चुकी है. अप्रैल में युगांडा और तंजानिया ने फ्रांसीसी बहुराष्ट्रीय तेल कंपनी टोटलएनर्जीज और चीन की नेशनल ऑफशोर ऑयल कॉर्पोरेशन के साथ संधियों पर हस्ताक्षर किये. इनके तहत 425 वर्ग मील के ड्रिलिंग क्षेत्र से करीब 1.7 अरब बैरल तेल निकाला जाएगा. इलाका सुदूर है इसलिए एक चीनी निर्माण कंपनी को एक 70 मील लंबी सड़क बनाने का भी ठेका दिया गया है.
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एक अंतर्राष्ट्रीय कोशिश
2025 में जब निकाले हुए तेल की पहली खेप मिलेगी तो उसे पूर्व अफ्रीकी कच्चे तेल की पाइपलाइन के जरिए 900 मील दूर तंजानिया के बंदरगाह वाले शहर तांगा तक पंप किया जाएगा. यह शहर हिन्द महासागर में मैंग्रोव और मूंगे की चट्टानों से घिरा हुआ है. पाइपलाइन ना सिर्फ नाजुक वन्य जीव इलाकों से गुजरेगी बल्कि जानकारों का कहना है कि वो हजारों किसानों को भी विस्थापित करेगी.
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रोशनी की किरण
लेकिन युगांडा सरकार ने अल्बर्ट तालाब के किनारे इस तेल परियोजना को आगे ले जाने के साथ साथ एक अभूतपूर्व पर्यावरण कानून भी पास किया है. इस कानून के तहत मानवाधिकारों की तरह ही प्रकृति के अधिकारों को भी मान्यता दी जाती है. इकोसिस्टमों को जीव जंतुओं की तरह माना जाता है और उन्हें प्रतिनिधियों के जरिए अदालत के दरवाजे खटखटाने की भी इजाजत दी जाती है.
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पुरानी जड़ें
कीजा पर्यावरणविद डेनिस तबारो के बगल में बैठे हुए हैं जो उन स्थानीय पर्यावरण-संबंधी परम्पराओं को फिर से प्रचलित करने की कोशिश कर रहे हैं हो औपनिवेशिक युग में नष्ट हो गई थीं. देश का नया कानून बागुंगु जैसे स्थानीय समुदायों की प्राचीन सोच पर आधारित है. पूरी दुनिया में 37 करोड़ स्थानीय लोगों की आबादी है, लेकिन वो ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां धरती की 80 प्रतिशत जैवविविधता पाई जाती है.
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एक पुनर्जागरण
अपने पुनर्जागरण के क्रम में बागुंगु बुजुर्गों ने उनके प्राचीन इलाके के नक्शे बनाए हैं, जिनमें पूर्व-औपनिवेशिक काल के कैलेंडर हैं. इनमें बदलते मौसम, प्रजाजन के चक्र, फसलों की कटाई के समय और रिवाज दिखाए गए हैं. एक नक्शे पर पुराने रीति-रिवाज दिखाए गए हैं, दूसरे पर आज की अव्यवस्था और तीसरे पर भविष्य के लिए एक परिकल्पना. इससे उनकी धरोहर की यादें ताजा हुई हैं.
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काला सोना?
पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बावजूद सरकार तेल के इस भंडार को लोगों के जीवन के स्तर को बेहतर बनाने के एक तरीके के रूप में बढ़ावा दे रही है. युगांडा की आधे से ज्यादा आबादी गरीब है. यह बच्चा स्कूल नहीं जा सका क्योंकि इसे फसलों को इकठ्ठा करने में अपने परिवार की मदद करनी थी. टोटलएनर्जीज ने कहा है कि उसकी परियोजना से 6,000 नौकरियों का जन्म होगा, जिनमें से अधिकतर स्थानीय लोगों के लिए होंगी.
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आगे की ओर अग्रसर
इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि नया कानून तेल परियोजना को रोक देगा. इसमें एक प्रावधान है जिसके तहत सरकार यह तय कर सकती है कि इस कानून का संरक्षण किन प्राकृतिक स्थलों को मिलेगा और किन को नहीं. इसी तरह, प्रकृति के अधिकारों की भी गारंटी हमेशा के लिए नहीं होगी.
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अनिश्चित भविष्य
चीनी और युगांडन मजदूर निर्माण के एक गर्मी भरे दिन के बीच आराम कर रहे हैं. वकीलों का मानना है कि नए कानून से परियोजना के असर को सीमित करने का मौका तो मिल जाएगा लेकिन इससे परियोजना रुकेगी नहीं. फ्रैंक तुमुसीमे की संस्था ने इस कानून के लिए लॉबी किया था और अब उसे मजबूत करने वाले नियमों के बनाने में मदद कर रहे हैं. वो कहते हैं, "यह होना ही है. हमें असर को कम करने की योजना पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए."
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प्राकृतिक मंदिर
बागुंगु बुजुर्ग जूलियस बाएंक्या बुलीसा के बाहर सवाना के जंगलों में पवित्र माने जाने वाले पेड़ों के एक झुरमुट की तरफ बढ़ रहे हैं. ये उन कई पवित्र प्राकृतिक स्थलों में से है जिन्हें तालाबों, नदियों या जंगलों के रूप में पूजा जाता है. इनसे वन्य जीवों को शरण भी मिलती है. बाएंक्या कहते हैं, "यह हमारा आध्यात्मिक केंद्र है. हमारी प्रार्थना है कि यह जगह अछूती रहे." (जैक लॉश)