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पाकिस्तान और भारत के बीच सिंधु जल संधि का विवाद कौन सुलझाएगा

साहिबा खान
२३ जनवरी २०२५

पाकिस्तान और भारत के बीच 1960 की सिंधु जल संधि लंबे समय से विवाद का मुद्दा बनी हुई है. इस बार विवाद केवल नदियों के पानी के इस्तेमाल पर है, बल्कि इस पर भी है कि विवादों को सुलझाएगा कौन, और क्या संधि की शर्तें बदलेंगी.

 बाईं ओर से जांस्कर नदी और ऊपर दाईं ओर से सिंधु नदियों के संगम का दृश्य - लेह, लद्दाख
सिंधु जल संधि में लिंक नहरों, बैराजों और ट्यूबवेलों के लिए धन जुटाने और निर्माण के लिए भी प्रावधान शामिल किए थेतस्वीर: mitrarudra/agefotostock/IMAGO

भारत और पाकिस्तान लंबे समय से सिंधु जल संधि या इंडस वॉटर ट्रीटी पर झगड़ते आ रहे हैं. संधि के इर्द गिर्द कई ऐसे मसले हैं जो दोनों देशों को सुलझाने हैं. इन्हीं मसलों में से दो मुद्दे सुलझाने के लिए 2022 में वर्ल्ड बैंक ने एक निष्पक्ष विशेषज्ञ को चुना था. अब उनकी भी रिपोर्ट आ गई है जिसमें उन्होंने कहा है कि विशेषज्ञ संधि के तकनीकी मुद्दों को सुलझाने का हुनर रखते हैं. भारत के लिए यह खबर अच्छी है क्योंकि भारत चाहता था कि निष्पक्ष विशेषज्ञ ही योजनाओं के विवादों पर फैसला दें.

दरअसल सिंधु जल संधि के तहत कई छोटी नदियां और उन पर बने या बन रहे पनबिजली प्रोजेक्ट पर विवाद छिड़ा हुआ है. ये विवाद बहुत पुराना है. लेकिन अब मसला यह है कि इन विवादों को कौन सुलझाएगा.

भारत और पाकिस्तान लंबे समय से सिंधु जल संधि या इंडस वॉटर ट्रीटी पर झगड़ते आ रहे हैंतस्वीर: Beth Wald/Aurora Photos/iMAGO

दो बांधों के निर्माण से शुरू हुआ विवाद

संधि में सभी नदियों को दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया. सिंधु, झेलम और चेनाब जैसी पश्चिम की नदियां पाकिस्तान के और रावी, ब्यास और सतलुज जैसी पूर्वी नदियां भारत के हिस्से में आईं.

2007 में भारत ने झेलम नदी पर किशनगंगा बांध बनाने की शुरुआत की. इससे पाकिस्तान के लिए नदी में पानी की कमी हो सकती थी. इसलिए पाकिस्तान ने 2010 में वर्ल्ड बैंक से कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन बना कर इस मसले को सुलझाने की गुहार लगाई. पाकिस्तान के अनुसार झेलम पर बांध बना कर और नदी का रुख मोड़कर भारत संधि के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा था. जिसके कारण नदी में पाकिस्तान के लिए पानी कम पड़ सकता था.

पर्यावरण विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया कि किशनगंगा बांध का मुद्दा पहले ही आर्बिट्रेशन अदालत में जा चुका था. उन्होंने कहा, “उस वक्त अदालत ने फैसला दिया कि भारत बांध तो बना सकता है लेकिन उसमें भी कई शर्तें मौजूद थीं जिन्हें ध्यान में रखते हुए भारत को बांध बनाना था.”

2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर में किशनगंगा बांध का उद्घाटन किया. साथ ही भारत ने चेनाब नदी पर रातले पनबिजली बांध भी बनाना शुरू कर दिया.

यह देखते हुए पाकिस्तान ने फिर 2016 में वर्ल्ड बैंक से एक कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में जाने की बात कही. पाकिस्तान का कहना है कि इन दोनों परियोजनाओं में बांधों के डिजाइन संधि के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं. ठक्कर ने कहा, “अब सालों बाद मसला यह है कि पाकिस्तान को लग रहा है कि अदालत द्वारा बताई गई शर्तें सही से लागू नहीं हो रही हैं. तो पाकिस्तान के नजरिये से अगर यह मुद्दा पहले ही अदालत में जा चुका था तो उसे वहीं से दोबारा उठाना चाहिए”.

सिंधु नदी की ब्लाइंड डॉल्फिन

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विवाद सुलझाने के तरीकों पर हो रहा विवाद

पाकिस्तान मुद्दों को सुलझाने के लिए सबसे पहले कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन यानी कि मध्यस्थता अदालत जाना चाहता है. दूसरी तरफ भारत का कहना है कि पहले मसले को परमानेंट इंडस कमीशन यानी कि पीआईसी के पास सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए, जो संधि के तहत बनी है.अगर फिर भी मसला हल नहीं होता है तब वर्ल्ड बैंक एक न्यूट्रल एक्सपर्ट यानी कि एनई नियुक्त करेगा जो विवाद को सुनेगा और अगर मसला तब भी हल नहीं होता है तब कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन की मदद ली जाएगी.

हिमांशु ठक्कर बताते हैं कि पूरे समझौते में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि आप पहले न्यूट्रल एक्सपर्ट के पास जाएंगे और उसके बाद ही अदालत में. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान का मानना है कि न्यूट्रल एक्सपर्ट से कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि उनका फैसला बाध्यकारी नहीं होता. इस बात पर ठक्कर कहते  हैं, “ऐसा नहीं है. न्यूट्रल एक्सपर्ट और अदालत, दोनों का ही फैसला बाध्यकारी होता है.”

हिमांशु ने विश्व बैंक की नाकामी पर बात करते हुए बताया, “विश्व बैंक ने छह साल लगा दिए किशनगंगा बांध के मसले को सुलझाने में.” आज भी उन्ही मुद्दों पर दो देश फिर से भिड़ रहे हैं.

न्यूट्रल एक्सपर्ट माइकल लीनो ने कहा है कि वह सिंधु संधि और नदियों पर बनी पनबिजली परियोजनाओं के डिजाइन पर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों पर निर्णय लेने के लिए "सक्षम" हैं

2023 में आर्बिट्रेशन कोर्ट में पाकिस्तान को मिली जीत

2023 में नीदरलैंड्स के द हेग में स्थित पर्मानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (पीसीए) ने पाकिस्तान में सिंधु नदी के पानी के इस्तेमाल पर भारत की आपत्ति को खारिज कर दिया था.पाकिस्तान की शिकायत थी कि भारत सिंधु नदी पर जो बांध बनाता है उससे उसके यहां तक पहुंचने वाले पानी में कमी आएगी. उसकी 80 फीसदी खेती की सिंचाई इसी नदी पर निर्भर है.

उस समय भी भारत ने इस फैसले को खारिज किया था और उसकी योग्यता पर सवाल उठाए थे. शायद इसलिए भारत अब अदालत जाने की बजाये न्यूट्रल एक्सपर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा है. ठक्कर कहते हैं कि इसका हल ये नहीं कि फैसला खारिज कर दिया जाये. वो आगे कहते हैं, “बल्कि आप दोनों जगह अपने तर्क रखें, उन्हें जीतें और मामला खत्म करें. यह एक अदालत है और बाकी अदालतों की तरह ही अगर आप इसमें सुनवाई पर नहीं आते हैं तो उससे मामला खत्म नहीं हो जाता.”

क्या है सिंधु जल संधि

19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे. यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता  में हुई थी. संधि में रेखांकित किया गया था कि कैसे भारत और पाकिस्तान, दोनों सिंधु नदी के पानी का इस्तेमाल करेंगे.

संधि में लिंक नहरों, बैराजों और ट्यूबवेलों के लिए धन जुटाने और निर्माण के लिए भी प्रावधान शामिल किए थे. खास तौर से सिंधु नदी पर तारबेला बांध और झेलम नदी पर मंगला बांध पर. इनसे पाकिस्तान को उतनी ही मात्रा में पानी लेने में मदद मिली जो उसे पहले उन नदियों से मिलती थी जो संधि के बाद भारत के हिस्से में आ गई थीं.

2023 में नीदरलैंड्स के द हेग में स्थित पर्मानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (पीसीए) ने पाकिस्तान द्वारा सिंधु नदी के पानी के इस्तेमाल पर भारत की आपत्ति को खारिज कर दिया थातस्वीर: PPI/Zuma/picture alliance

ज्यादातर धन की व्यवस्था वर्ल्ड बैंक के सदस्य देशों के योगदान से संभव हो पाई. संधि को ठीक से लागू करने और दोनों देशों के बीच एक बातचीत का जरिया बनाए रखने लिए हर एक सदस्य देश से एक एक आयुक्त नियुक्त हुआ. फिर इनसे एक स्थायी सिंधु आयोग (परमानेंट इंडस कमीशन) बनाया गया. इसके अलावा, विवादों को सुलझाने के लिए भी एक तंत्र बनाया गया था.  

क्यों हुआ था सिंधु नदी समझौता

यह नौबत इसलिए आई क्योंकि 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन  के बाद दोनों देशों के बीच पानी पर विवाद हो गया था. 1 अप्रैल 1948 से भारत ने, अपने इलाके से होकर पाकिस्तान जाने वाली नदियों का पानी रोकना शुरू कर दिया.

तब 4 मई 1948 को विवाद निपटाने के लिए एक इंटर-डोमिनियन समझौता हुआ जिसके तहत भारत को सालाना भुगतान के बदले में बेसिन के पाकिस्तानी हिस्सों को पानी उपलब्ध कराना था. हालांकि यह रास्ता स्थाई नहीं था, बस एक ऐसा तरीका था जहां से विवाद निपटाने का काम शुरू होकर और आगे जाना था.

फिर आखिरकार 1951 में टेनेसी वैली अथॉरिटी और अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग दोनों के पूर्व प्रमुख डेविड लिलिएनथल ने अपने लेखन के लिए इस क्षेत्र का दौरा किया. तब उन्होंने सुझाव दिया कि भारत और पाकिस्तान को नदियों पर एक तंत्र का साथ में विकास और फिर उसका प्रबंधन देखना चाहिए. उन्होंने इसके लिए एक समझौते का सुझाव दिया. उन्होंने सुझाया कि इस समझौते पर सलाह और धन वर्ल्ड बैंक दे सकता है.

यूजीन ब्लैक उस समय वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष थे. उन्होंने इस बात पर सहमति जताई. 1954 में वर्ल्ड बैंक ने दोनों देशों को एक प्रस्तावित समझौता थमाया. इस पर छह साल तक कई दौर की बातचीत के बाद भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अय्यूब खान ने 1960 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसके साथ ही सिंधु नदी जल संधि प्रभाव में आई. 

2023 में भारत ने परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के फैसले को खारिज किया थातस्वीर: Nicolas Economou/NurPhoto/picture alliance

और भी हैं विवाद की वजहें

विवाद सिर्फ नदियों पर बांध बनाने के लिए नहीं है. विवाद की एक  वजह है भारत का संधि की शर्तों में बदलाव की इच्छा. सितंबर, 2024 में भारतीय अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने फैसला किया कि आईडब्ल्यूटी पर दोबारा बातचीत होने तक दोनों देशों के प्रतिनिधियों से बने पीआईसी की कोई और बैठक नहीं होगी. आखिरी बैठक मई 2022 में दिल्ली में हुई थी.

2022 में वर्ल्ड बैंक ने एक कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन और एक न्यूट्रल एक्सपर्ट, दोनों ही नियुक्त कर दिए थे, लेकिन आगे यह भी कहा था कि इन दोनों के फैसले एक दूसरे से उलट भी हो सकते हैं. हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि यह फैसला भी विश्व बैंक की नाकाम कोशिशों को दिखाता है. “जब आपने पहले ही बोल दिया है कि न्यूट्रल एक्सपर्ट और अदालत का फैसला एक दूसरे के उलट आ सकता है तो आप एक साथ सामान विवादों की चर्चा दोनों जगह क्यों कर रहे हैं?” 

भारत का कहना है कि वह अब भी न्यूट्रल एक्सपर्ट के फैसले को ही मानेगा, वहीं पाकिस्तान द हेग की कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन पर अड़ा है.

जनवरी 2023 से अब तक भारत ने संधि में संशोधन पर बातचीत शुरू करने के लिए पाकिस्तान को चार बार चिट्ठी लिखी है लेकिन अभी तक औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

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फिलहाल विवाद सुलझाने में यथास्थिति

7 जनवरी 2025, मंगलवार को वर्ल्ड बैंक के नियुक्त किए न्यूट्रल एक्सपर्ट का बयान और प्रेस रिलीज आई. सिंधु जल संधि 1960 की शर्तों के तहत नियुक्त न्यूट्रल एक्सपर्ट माइकल लीनो ने कहा है कि वह सिंधु संधि और नदियों पर बनी पनबिजली परियोजनाओं के डिजाइन को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों पर निर्णय लेने के लिए "सक्षम" हैं.

हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि संधि में बदलाव की भारत की चाह को न्यूट्रल एक्सपर्ट देखेंगे. माइकल केवल पनबिजली योजनाओं के डिजाइन पर मध्यस्थता करेंगे और यह मुद्दा फिलहाल नहीं उठाएंगे. इसलिए संधि में बदलाव के लिए भारत को फिलहाल इंतजार करना होगा.

 

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