क्या है ओसीसीआरपी, जिससे नाराज है बीजेपी
९ दिसम्बर २०२४बीजेपी ने फ्रांस की मीडिया में छपी एक रिपोर्ट के हवाले से आरोप लगाया है कि ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) को अमेरिका की 'एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट' और उद्योगपति जॉर्ज सोरोस जैसे कथित "अन्य डीप स्टेट किरदारों" से फंडिंग मिलती है.
पार्टी का दावा है कि इस साजिश का मकसद मोदी सरकार को कमजोर करना और भारत में अस्थिरता फैलाना है. बीजेपी ने यह भी आरोप लगाया है कि ओसीसीआरपी ने अदाणी समूह और मोदी सरकार के बीच करीबी रिश्तों को लेकर रिपोर्ट छापी, ताकि सरकार को बदनाम किया जा सके.
क्या है ओसीसीआरपी?
'ओसीसीआरपी' खोजी पत्रकारों का एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है. इसे तथ्यों और दस्तावेजों के आधार पर भ्रष्टाचार और संगठित अपराध के मामलों की जांच के लिए जाना जाता है. यह पनामा पेपर्स, पैंडोरा पेपर्स जैसी रिपोर्टें सामने लाने वाले मीडिया संगठनों में शामिल रहा है.
इसकी स्थापना 2007 में अमेरिका के ड्रू सलिवन और रोमानिया के पॉल राडु नाम के खोजी पत्रकारों ने पूर्वी यूरोप में की थी. कंपनी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, इसका मुख्यालय नीदरलैंड्स की राजधानी एम्स्टर्डम में है और इसके कर्मचारी छह महाद्वीपों में फैले हुए हैं.
यह अमेरिका में एक गैर-लाभकारी संस्थान के रूप में पंजीकृत है. इसे फंडिंग देने वाले संस्थानों की लंबी सूची है. इनमें यूरोपीय संघ (ईयू), ब्रिटिश सरकार का 'फॉरेन, कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस', फ्रेंच सरकार का 'यूरोप और विदेशी मामलों का मंत्रालय' और स्वीडिश सरकार की 'इंटरनेशनल डेवलपमेंट कोऑपरेशन एजेंसी' शामिल हैं.
इसके अलावा अमेरिकी विदेश मंत्रालय, अमेरिका की ही 'एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट', फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर ब्रदर्स फंड, अमेरिकी उद्योगपति जॉर्ज सोरोस की 'ओपन सोसाइटी फाउंडेशंस' आदि संस्थाएं भी शामिल हैं.
अदाणी समूह पर रिपोर्ट
अगस्त 2023 में ओसीसीआरपी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कई साल से अदाणी समूह के अरबों रुपयों के स्टॉक खरीदने और बेचने वाले दो व्यक्तियों के अदाणी परिवार के साथ करीबी रिश्ते हैं.
इतना ही नहीं, रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया कि अदाणी समूह के स्टॉक की खरीद-बिक्री के लिए इन्होंने जिन निवेश फंडों का इस्तेमाल किया, उसे समूह के मालिक गौतम अदाणी के बड़े भाई विनोद अदाणी द्वारा नियंत्रित एक कंपनी ही संचालित करती थी.
ये निवेश फंड मॉरिशस में पंजीकृत थे और इनके जरिये इन दोनों व्यक्तियों ने कथित तौर पर अपनी भागीदारी छुपाते हुए सालों तक अदाणी स्टॉक को खरीदा-बेचा और इस प्रक्रिया में काफी मुनाफा कमाया.
अदाणी पर इससे पहले एक रिपोर्ट जारी कर चुकी अमेरिकी शार्ट-सेलिंग कंपनी हिंडेनबर्ग ने इस रिपोर्ट का स्वागत किया था और कहा था कि इससे उसकी रिपोर्ट में जो बात बाकी रह गई थी, वो भी बाहर आ गई है.
भारत में विपक्षी पार्टियों ने इस रिपोर्ट के मद्देनजर सवाल उठाया कि सेबी और सुप्रीम कोर्ट की "विशेषज्ञ समिति" इन दावों का पता क्यों नहीं लगा सकी. अदाणी समूह ने इस रिपोर्ट को हिंडेनबर्ग रिपोर्ट में कही गई पुरानी बातों को ही नया रूप देने की कोशिश बताया और इन दावों व आरोपों को निराधार बताया.
पुलिस और स्पाईवेयर के निशाने पर
इसके बाद इस रिपोर्ट को लिखने वाले भारतीय पत्रकारों आनद मंगनाले और रवि नायर को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा. अहमदाबाद पुलिस ने दोनों पत्रकारों के खिलाफ जांच शुरू कर दी. दोनों ने पुलिस के नोटिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दी.
नवंबर 2023 में ही मंगनाले समेत कई भारतीय पत्रकारों और राजनेताओं ने मीडिया को जानकारी दी की एप्पल कंपनी ने उन्हें सूचना भेजी है कि कि उनके आईफोन पर सरकार समर्थित हैकरों द्वारा हमला करने की कोशिश हुई.
ओसीसीआरपी ने विस्तार से बताया कि मंगनाले के फोन की जांच से पता चला कि 23 अगस्त 2023 को उनके फोन में घुसपैठ की कोशिश की गई थी. समूह के सह संस्थापक ड्रू सलिवन ने अमेरिका में रॉयटर्स समाचार एजेंसी को बताया कि आंतरिक फॉरेंसिक जांच के मुताबिक, इस कोशिश का संबंध इस्राएली कंपनी एनएसओ के हैकिंग टूल पेगासस से पाया गया.
इस कंपनी का नाम 'आईवेरीफाई' है. कंपनी के संस्थापक रॉकी कोल ने बताया, "हमें काफी विश्वास के साथ यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि इस फोन पर पेगासस से हमला किया गया था."
एप्पल ने हमलावरों को बस सरकार समर्थित बताया था और उनके पीछे किस सरकार का हाथ है, यह नहीं बताया था. भारत सरकार ने इन हमलों में शामिल होने से इनकार करते हुए कहा था कि ऐसे अलर्ट दुनिया के कई देशों में लोगों को मिले हैं. सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने यह भी कहा था कि सरकार हैकिंग के इन आरोपों की जांच कर रही है.
ओसीसीआरपी पर एक नई मीडिया रिपोर्ट
2 दिसंबर को फ्रांस में खोजी पत्रकारिता की एक वेबसाइट 'मीडियापार्त' ने एक रिपोर्ट में दावा किया कि ओसीसीआरपी ने दुनिया से यह बात छुपाई है कि उसके बजट का करीब आधा पैसा अमेरिकी सरकार से आता है. रिपोर्ट के अनुसार, सरकार के पास संस्था के वरिष्ठ कर्मचारियों के फैसलों को भी नकारने का अधिकार है और संस्था ने कई देशों की जांच रिपोर्टें अमेरिकी सरकार के कहने पर बनाई हैं.
इसी रिपोर्ट का हवाला देकर बीजीपी ने ओसीसीआरपी और कांग्रेस के नेताओं पर अमेरिकी सरकार से संबंधित ताजा आरोप लगाए हैं. ओसीसीआरपी ने इन दावों का खंडन किया है और कहा है कि उसने खुद को मिलने वाली फंडिंग और फंड देने वालों के बारे में हमेशा ही पारदर्शिता बरती है.
संस्था ने यह भी कहा कि 'मीडियापार्त' की रिपोर्ट में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं दिया गया है, जो यह दिखा सके कि ओसीसीआरपी की किसी रिपोर्ट में कोई गलत दावा किया गया था या किसी के प्रभाव में रिपोर्ट लिखी गई थी.
भारतीय वेबसाइट 'द वायर' के मुताबिक मीडियापार्त की प्रकाशक और निदेशक कैरीन फोतो ने भी एक बयान में कहा है कि बीजेपी ने गलत तरीके से उसकी रिपोर्ट का इस्तेमाल किया है और ऐसी फर्जी खबर फैलाई है जो उन्होंने (मीडियापार्त) ने कभी छापी ही नहीं.
फोतो ने कहा कि "ऐसा कोई भी तथ्य उपलब्ध नहीं है, जो बीजेपी द्वारा पेश की गई कंस्पिरेसी थिअरी को समर्थन देता हो." फोतो ने यह भी कहा कि उनकी संस्था बीजेपी द्वारा "अपने राजनीतिक अजेंडा को आगे बढ़ाने और प्रेस की आजादी पर हमला करने के लिए" उसकी रिपोर्ट के गलत इस्तेमाल की "कड़ी निंदा" करती है.