वॉशिंगटन में जारी नाटो सदस्य देशों के नेताओं की बैठक में शामिल आईपी-4 कहे जाने वाले ये देश, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया, नाटो के लिए लगातार अहम होते जा रहे हैं.
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जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति युन सक-योल, न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन और ऑस्ट्रेलिया के उप प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्लेस नाटो की बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका में हैं.
यह इन देशों के लिए तीसरा लगातार नाटो शिखर सम्मेलन है, जिन्हें इंडो-पैसिफिक फोर (आईपी-4) कहा जाता है. ये सभी देश नाटो और ईयू नेताओं के साथ गुरुवार को एक सत्र में शामिल होंगे. चीन द्वारा ताइवान पर हमले की संभावना और रूस के साथ चीन के बढ़ते सुरक्षा संबंधों और परमाणु-शक्ति संपन्न उत्तर कोरिया की चिंताओं के कारण यह विशेष सत्र हो रहा है.
चीन का तीसरा विमानवाहक युद्धपोतः फुजियान
चीन ने अपना तीसरा विमानवाहक युद्धपोत परीक्षणों के लिए पानी में उतार दिया है. प्रशांत महासागर और उसके आगे के समुद्री इलाके में चीन अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. इस युद्धपोत से चीन की नौसेना की क्षमता काफी ज्यादा बढ़ जाएगी.
तस्वीर: Li Yun/AP Photo/picture alliance
विमानवाहक युद्धपोत फुजियान
बुधवार को चीन ने शंघाई के जियांगनान शिपयार्ड से विमानवाहक युद्धपोत फुजियान को परीक्षणों के लिए पानी में उतारा. शुरुआती परीक्षणों में इसके भरोसे, स्थिरता, प्रोपल्शन और इलेक्ट्रिकल सिस्टम को परखा जाएगा.
तस्वीर: Li Yun/AP Photo/picture alliance
टाइप 003 का विमानवाहक युद्धपोत
टाइप 003 क्लास का फुजियान चीन का तीसरा विमानवाहक युद्धपोत है. मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक इसकी लंबाई 316 मीटर है. इसकी तुलना अमेरिका के किटी हॉक क्लास के विमानवाहक युद्धपोतों से की जाती है.
तस्वीर: Pu Haiyang/Xinhua via AP/picture alliance
कितना ताकतवर है फुजियान
करीब 1 लाख टन के डिस्प्लेसमेंट की क्षमता वाले इस युद्धपोत में तीन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटपुल्ट हैं, जो विमानों के टेकऑफ में इस्तेमाल होते हैं. चीन ने पहली बार इस तकनीक से लैस युद्धपोत बनाया है. युद्धपोत को चलाने के लिए 8 बॉयलर और चार शाफ्ट करीब 2,20,000 हॉर्सपावर की क्षमता मुहैया कराएंगे.
तस्वीर: Li Yun/AP Photo/picture alliance
क्या कुछ होगा फुजियान पर
चीन की नौसेना इस युद्धपोत पर 50 से ज्यादा विमानों को तैनात करेगी जो अलग अलग तरह के होंगे. ये सभी विमान चीन ने ही बनाए हैं. युद्धपोत को एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम के अलावा कई और तरह के सुरक्षा उपकरणों से लैस करने की बात कही जा रही है. कुछ रक्षा विशेषज्ञों ने इसे अमेरिका के बाहर बना सबसे उन्नत विमानवाहक युद्धपोत बताया है.
तस्वीर: Pu Haiyang/Xinhua via AP/picture alliance
शानडोंग
शानडोंग चीन का दूसरा लेकिन खुद का बनाया पहला विमानवाहक युद्धपोत है. इसे दिसंबर 2019 में चीन की नौसेना में शामिल किया गया. इसका परीक्षण 2018 में शुरू हुआ था. पहले इसे 001 टाइप का बताया गया लेकिन बाद में पता चला कि यह 002 टाइप का है.
तस्वीर: Li Gang/Xinhua/picture alliance
कितना ताकतवर है शानडोंग
36 विमानों और हैलीकॉप्टरों से लैस यह युद्धपोत करीब 305 मीटर लंबा है और पूरी तरह से लोड होने पर 70,000 टन वजन लेकर चल सकता है. पारंपरिक स्टीम टरबाइन इंजन के सहारे यह 31 नॉटिकल मील की गति से चलता है. चीन ने इसे ताइवान के करीब तैनात कर रखा है. 2023 में इसने ताइवान के करीब एक सैन्य अभ्यास में भी हिस्सा लिया.
तस्वीर: An Ni/Xinhua/AP/picture alliance
लियाओनिंग
लियाओनिंग चीन का पहला विमानवाहक युद्धपोत है जो 001 टाइप का है. इसे पहले ट्रेनिंग शिप कहा गया था जिसके सहारे चीन की नौसेना विमानवाहक युद्धपोत को ऑपरेट करने के लिए तैयार हुई. 2018 में इसे अपग्रेड कर नए सिरे से अधिकारियों को ट्रेनिंग दी गई. इसके बाद 2019 में चीन ने इसे नौसेना के युद्धक अभियान का हिस्सा बना दिया.
तस्वीर: ANTHONY WALLACE/AFP
लियाओनिंग की क्षमता
करीब 60,000 टन की क्षमता वाले इस विमानवाहक युद्धपोत कुल मिला कर 40 विमान और हेलीकॉप्टर तैनात रहते हैं. 1960 क्रू सदस्यों के साथ यह अधिकतम 45 दिन तक बिना किनारों पर आए सफर कर सकता है. इसकी लंबाई 306 मीटर है.
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका अत्यधिक सक्रिय रहा है. इसे चीन को घेरने की रणनीति के तौर पर देखा जाता है, जिसमें एक तरफ तो अमेरिका ने भारत के साथ संबंध मजबूत किए हैं और दूसरी तरफ प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड को अपनी सामरिक रणनीति का अहम हिस्सा बनाया है. इसके अलावा जापान व दक्षिण कोरिया के साथ भी रक्षा व तकनीकी क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया गया है.
इंडो-पैसिफिक में नाटो की दिलचस्पी
नाटो सम्मेलन में अमेरिका के सहयोगी देश रूस के यूक्रेन में युद्ध और चीन के साथ रूस की "कोई सीमा नहीं" के नारे के साथ बढ़ रही साझेदारी का विरोध करने के लिए तेजी से एकजुट हो रहे हैं. इन देशों का मानना है कि चीन यूक्रेन के खिलाफ रूस की मदद कर रहा है.
2022 में नाटो सदस्यों ने पहली बार कहा था कि चीन एक संभावित खतरा है. 2023 के नाटो शिखर सम्मेलन में, उन्होंने चीन और रूस की "नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को कमजोर करने के उनके पारस्परिक प्रयासों" के लिए निंदा की और बीजिंग की "धमकाने वाली रणनीतियों" के बारे में चेतावनी दी.
2023 में बढ़ गए तैनात परमाणु हथियार
स्वीडन के थिंक टैंक सिप्री (SIPRI) के मुताबिक परमाणु शक्ति संपन्न देशों की नीतियों में परमाणु हथियारों की भूमिका शीत युद्ध के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है.
तस्वीर: Liu Kun/Xinhua/picture alliance
परमाणु हथियारों की भूमिका
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने कहा है कि परमाणु शक्ति संपन्न नौ देशों की कूटनीति में परमाणु हथियारों की भूमिका तेजी से बढ़ रही है.
तस्वीर: Getty Images
हर सेकंड 2,898 डॉलर का खर्च
इंटरनेशनल कैंपेन टु अबॉलिश न्यूक्लियर वेपंस (ICAN) के मुताबिक बीते साल इन नौ देशों ने परमाणु हथियारों पर कुल मिलाकर 91.4 अरब डॉलर खर्च किए. यानी प्रति सेकेंड 2,898 डॉलर खर्च किए गए.
तस्वीर: James Glossop/AFP/Getty Images
10.7 अरब डॉलर की वृद्धि
2022 के मुकाबले 2023 में परमाणु हथियारों पर 10.7 अरब डॉलर ज्यादा खर्च किए गए. इसका सबसे ज्यादा 80 फीसदी अमेरिका ने खर्च किया.
तस्वीर: abaca/picture alliance
अमेरिका सबसे ऊपर
अमेरिका ने एक साल में परमाणु हथियारों पर 51.5 अरब डॉलर खर्च किए जो बाकी आठ देशों के कुल खर्च से भी ज्यादा है.
तस्वीर: UIG/IMAGO
चीन दूसरे नंबर पर
परमाणु हथियारों पर खर्च के मामले में चीन दूसरे नंबर पर रहा. 2023 में उसने 11.8 अरब डॉलर खर्च किए. 8.3 अरब डॉलर खर्च के साथ रूस तीसरे नंबर पर रहा.
तस्वीर: Xu Yu/Xinhua/picture alliance
2,100 परमाणु हथियार हमले के लिए तैयार
सिप्री का अनुमान है कि इस वक्त 2,100 परमाणु हथियार हमले के लिए पूरी तरह तैयार स्थिति में रखे गए हैं. इनमें से अधिकतर अमेरिका और रूस के हैं. हालांकि चीन ने भी कुछ हथियार तैनात कर दिए हैं जो कि पहली बार है.
तस्वीर: ARTYOM KOROTAYEV/AP/picture alliance
12,121 परमाणु हथियार
सिप्री के मुताबिक दुनिया में कुल 12,121 न्यूक्लियर वॉरहेड हैं जिनमें से 9,585 सेनाओं के पास हैं और इस्तेमाल किए जा सकते हैं. 3,904 वॉरहेड मिसाइलों और विमानों के साथ तैनात किए गए हैं. यह संख्या जनवरी 2023 के मुकाबले 60 ज्यादा है.
तस्वीर: Anjum Naveed/AP/picture alliance
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वॉशिंगटन शिखर सम्मेलन के बयान के मसौदे में चीन को रूस के यूक्रेन युद्ध के प्रयासों का "निर्णायक समर्थक" कहा गया और इस बात पर जोर दिया गया कि यूरोप और बाकी पश्चिम की सुरक्षा के लिए चीन एक बड़ी चुनौती है.
इस रणनीतिक बदलाव ने नाटो के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की अहमियत को बढ़ाया. नाटो ने माना कि इस क्षेत्र में हो रहीं घटनाएं सीधे यूरो-अटलांटिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं. उसने यूक्रेन का समर्थन करने के लिए एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ बढ़े सहयोग का स्वागत किया.
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवन ने कहा कि नाटो सहयोगी और इंडो-पैसिफिक साझेदार यूक्रेन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, फेक न्यूज और साइबर सुरक्षा पर चार नई संयुक्त परियोजनाएं शुरू करेंगे.
इंडो-पैसिफिक में नाटो की सक्रियता
2021 में पद संभालने के बाद बाइडेन ने यूरोपीय सहयोगियों से इंडो-पैसिफिक पर अधिक ध्यान देने का आग्रह किया था. उन्होंने इंडो-पैसिफिक में भी नाटो जैसा संगठन बनाने की इच्छा भी जाहिर की थी. लेकिन इस बार इंडो-पैसिफिक देशों के साथ बातचीत में ज्यादा जोर इस बात पर रह सकता है कि वे युद्ध में यूक्रेन की कैसे मदद कर सकते हैं.
हाल के वर्षों में इंडो-पैसिफिक में यूरोप ने भी अपनी सक्रियता और संवाद बढ़ाया है. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर ब्रिटेन ने आकुस (AUKUS) गठबंधन बनाया जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बी देने का समझौता हुआ.
नाटो के 75 साल: कोल्ड वॉर से यूक्रेन वॉर तक
नाटो 75 साल का हुआ. तनाव और असुरक्षा से भरे शीत युद्ध के लंबे दशकों से लेकर यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप में सुरक्षा की बदलती तस्वीर तक, देखिए नाटो का सफर.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
12 संस्थापक देश
4 अप्रैल 1949 को 12 देशों ने मिलकर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) का गठन किया. ये संस्थापक देश थे: अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल.
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वॉशिंगटन में दस्तखत हुए
इन 12 देशों के विदेश मंत्रियों ने वॉशिंगटन के डिपार्टमेंटल ऑडिटोरियम में समझौते पर दस्तखत किए. इसे वॉशिंगटन ट्रीटी के नाम से भी जाना जाता है. हस्ताक्षर समारोह के पांच महीनों के भीतर सदस्य देशों की संसद ने समझौते पर कानूनी मुहर लगा दी. इस तरह ये देश संधि में कानूनी और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ दाखिल हुए.
तस्वीर: epa/AFP/dpa/picture alliance
आर्टिकल पांच और साझा सुरक्षा
समवेत सुरक्षा और एक-दूसरे के लिए खड़ा होना, नाटो के मूलभूत सिद्दांतों में है. ट्रीटी का आर्टिकल पांच साझा सुरक्षा की गारंटी देता है. इसके मुताबिक, सदस्य देश सहमति देते हैं कि यूरोप या उत्तरी अमेरिका में एक या एक से ज्यादा सदस्य देशों पर हथियारबंद हमले की स्थिति में इसे पूरे ब्लॉक पर हमला माना जाएगा.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
एक पर हमला, सब पर हमला
हमले की स्थिति में हर सदस्य संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 51 में दर्ज निजी या सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उस सदस्य देश की मदद करेगा, जिसपर हमला हुआ है. सभी सदस्य नॉर्थ अटलांटिक इलाके की सुरक्षा बरकरार रखने और हनन की स्थिति में इसे वापस कायम करने के लिए जरूरत पड़ने पर सशस्त्र सेना और हथियारों का भी इस्तेमाल करेंगे.
तस्वीर: MDR/BR/DW
9/11 के बाद आर्टिकल पांच का इस्तेमाल
आर्टिकल पांच यह भी कहता है कि जो जवाबी कदम उठाए जाएंगे, उनकी सूचना तुरंत सुरक्षा परिषद को दी जाएगी. जब परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा वापस कायम करने की दिशा में जरूरी कदम उठा लेगा, उसके बाद नाटो की ओर से की जा रही कार्रवाई रोक दी जाएगी. अब तक नाटो ने आर्टिकल पांच का इस्तेमाल केवल 9/11 के आतंकी हमले के बाद किया है.
तस्वीर: Spencer Platt/Getty Images via AFP
नाटो में विस्तार
नाटो में समय-समय पर विस्तार होता रहा है. अब तक विस्तार के 10 चरण रहे हैं. पहली बार 1952 में समूह का विस्तार हुआ, जब ग्रीस और तुर्की ब्लॉक में शामिल हुए. फिर 6 मई 1955 को जर्मनी (तत्कालीन फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी, या वेस्ट जर्मनी) नाटो का 15वां सदस्य बना. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप के कई देश नाटो में आए. ये दो चरणों में हुआ.
तस्वीर: Mike Nelson/dpa/picture alliance
शीतयुद्ध के बाद का विस्तार
साल 1999 में हुए पोस्ट-कोल्ड वॉर के पहले विस्तार में चेकिया, हंगरी और पोलैंड सदस्य बने. फिर मार्च 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया को नाटो की सदस्यता मिली. नाटो के सबसे नए सदस्य हैं फिनलैंड (अप्रैल 2023) और स्वीडन (मार्च 2024). इस तरह नाटो में अब 32 सदस्य हैं.
तस्वीर: Tom Samuelsson/Regeringskansliet/TT/IMAGO
बालकन्स पर रूस के साथ तनाव
2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया, 2017 में मॉन्टेनीग्रो और 2020 में नॉर्थ मैसिडोनिया नाटो के सदस्य बने. ये बालकन देश हैं. बाल्कन्स का इलाका लंबे समय से रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव की वजह रहा है. पश्चिम की ओर से यूरोपीय संघ और नाटो यहां विस्तार करना चाहते हैं, वहीं रूस भी अपने इस पूर्व प्रभावक्षेत्र में सहयोगी तलाश रहा है.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
रूस का नाटो पर विस्तारवाद का आरोप
ऐसे में रूस लंबे समय से बालकन्स में नाटो के विस्तार का विरोध करता रहा है. वह इसे नाटो की विस्तारवादी नीति बताता है और अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है. 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद मॉस्को का नाटो से विरोध और गहराता गया. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद तनाव अपने चरम पर पहुंच गया.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
यूक्रेन में जारी युद्ध का गहरा असर
यूक्रेन युद्ध ने यूरोप में सुरक्षा की भावना को गहराई तक हिला दिया है. यूक्रेन को मदद चाहिए, ना केवल फंड बल्कि सैन्य साजो-सामान भी. ऐसे में अभी नाटो के आगे सबसे बड़ी चुनौती यह है कि युद्ध के बीच कीव को किस तरह मदद मुहैया कराई जाए.
नाटो सीधे तौर पर युद्ध का हिस्सा नहीं बन सकता, लेकिन यूक्रेन में रूस को बढ़त पूरी क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अकल्पनीय चुनौती होगी. ऐसे में नाटो देशों के बीच यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता के प्रारूप, स्वभाव और आकार पर बातचीत जारी है. रूस के साथ समीकरण नाटो की सबसे बड़ी चुनौतियों में है.
तस्वीर: Christopher Ruano/picture alliance/Planetpi/Planet Pix/ZUMA Press Wire
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यूरोप और एशिया के बीच रक्षा संबंधों का यह नया दौर है क्योंकि इस क्षेत्र के साथ अब तक यूरोपीय रक्षा संबंध अस्थायी और मामूली रहे हैं, जिनमें छोटे दौरे, और सेनाओं द्वारा कभी-कभी गश्त या अभ्यास शामिल हैं. दरअसल, कई नाटो सहयोगी और इंडो-पैसिफिक देश गठबंधन को उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र के बाहर अपना दायरा बढ़ाते हुए नहीं देखना चाहते. हाल ही में जब नाटो ने जापान में अपना दफ्तर खोलने का प्रस्ताव रखा तो फ्रांस ने उसे रोक दिया था. चीन इस प्रस्ताव से काफी नाराज हुआ था.
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क्या कर सकता है यूरोप
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यूरोप के नाटो सदस्यों को अपनी यूरोपीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की क्षमता बढ़ानी चाहिए ताकि अमेरिका का बोझ कुछ कम हो और वह चीन की ओर से संभावित खतरों पर ज्यादा ध्यान दे सके.
बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में पूर्व वरिष्ठ अधिकारी क्रिस्टोफर जॉनस्टोन कहते हैं कि यूरोप का सबसे बड़ा योगदान "यह सुनिश्चित करना होगा कि अगर ताइवान या इंडो-पैसिफिक में कोई खतरा खड़ा होता है तो वह रूस के खतरे के खिलाफ निरोधक के बोझ को उठाने लिए तैयार हो."
नए नाटो प्रमुख की सबसे बड़ी चुनौतियां
02:38
नाटो ने सदस्यों द्वारा जीडीपी के दो फीसदी के रक्षा खर्च लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयासों को सराहा है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि ये देश कई दशकों से रक्षा पर बहुत कम खर्च कर रहे हैं, इसलिएअधिकतर देश इंडो-पैसिफिक में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम नहीं हैं.
पूर्व पेंटागन अधिकारी एल्ब्रिज कोल्बी कहते हैं, "असल में (नाटो देश) ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते जो इंडो-पैसिफिक में (संभावित) संघर्ष में कोई बड़ा असर डाल सके. ज्यादातर यूरोपीय सेनाएं बुनियादी रसद के लिए अमेरिका पर निर्भर होंगी. यह पूरी तरह से संभव है कि उनका योगदान नकारात्मक होगा."