पहली बारः 50 हजार भारतीय महिलाओं को मिला तापमान-बीमा
१२ जून २०२४
भारत की 50 हजार महिलाओं को पहली बार बीमा भुगतान हुआ है, जो अत्यधिक तापमान पर दिया जाता है.
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खुद का रोजगार करने वालीं 50 हजार भारतीय महिलाओं को तापमान-बीमा का भुगतान किया गया है. पहली बार ऐसा भुगतान हुआ है. तापमान बीमा एक ऐसी योजना है जिसके तहत अत्यधिक गर्मी होने पर उन महिलाओं को भुगतान किया जाएगा जिनका कामकाज गर्मी के कारण प्रभावित हुआ हो.
18 मई से 25 के बीच भारत के कई शहरों में तापमान 40 डिग्री को पार कर गया था. इसी की एवज में राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र की इन महिलाओं को 400 रुपये का भुगतान किया गया है.
तीन करोड़ रुपये का भुगतान
यह योजना अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी संस्था ‘क्लाइमेट रेजिलिएंस फॉर ऑल' (CRA) ने भारत में महिलाओं के लिए काम करने वाली संस्था ‘सेल्फ-इंप्लॉयड विमिंज एसोसिएशन' (SEWA) के साथ मिलकर शुरू की है.
सीआरए की सीईओ कैथी बॉगमन मैक्लॉयड ने कहा, "यह पहली बार है जब सीधे नगद भुगतान को बीमा योजना के साथ जोड़ा गया है ताकि उन महिलाओं की आर्थिक मदद की जा सके, जिनकी आय अत्यधिक गर्मी के कारण प्रभावित हो रही है.”
दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जकों में है भारत सरकार की एक कंपनी
एक नई रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 2016 के बाद से अभी तक हुए कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में अधिकांश के लिए सिर्फ 57 उत्पादक जिम्मेदार हैं. इस सूची में भारत सरकार की एक जानी मानी कंपनी का नाम भी शामिल है.
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सिर्फ 57 उत्पादक
गैर-लाभकारी संगठन "इन्फ्लुएंसमैप" की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 2016 के बाद से अभी तक हुए कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में अधिकांश के लिए सिर्फ 57 जीवाश्म ईंधन और सीमेंट के उत्पादक जिम्मेदार हैं. रिपोर्ट का नाम "कार्बन मेजर्स" है.
तस्वीर: blickwinkel/IMAGO
80 प्रतिशत योगदान
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस सूची में कुछ देश, सरकारी कंपनियों और निवेशकों के स्वामित्व वाली कंपनियों समेत 57 उत्पादक शामिल हैं. 2016 से 2022 के बीच दुनिया के कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 80 प्रतिशत योगदान इन सबका ही रहा.
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अरामको
अरामको सऊदी अरब की राष्ट्रीय तेल कंपनी है. इसे राजस्व के लिहाज से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी माना जाता है. "कार्बन मेजर्स" रिपोर्ट के मुताबिक यह दुनिया की सबसे बड़ी उत्सर्जक कंपनी है.
रिपोर्ट में रूसी बहुराष्ट्रीय कंपनी गैजप्रॉम दूसरे नंबर पर है. रूस की सरकार के पास इस कंपनी की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है. इसे शेयर बाजार में लिस्टेड दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक गैस कंपनी के रूप में जाना जाता है.
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कोल इंडिया
रिपोर्ट में गैजप्रॉम के बाद स्थान है भारत की कोयला कंपनी "कोल इंडिया" का. इस पर पूरी तरह से भारत सरकार का स्वामित्व है. इसे दुनिया के सबसे बड़े सरकारी कोयला उत्पादक के रूप में जाना जाता है.
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ताक पर पेरिस समझौता
रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में संयुक्त राष्ट्र के पेरिस समझौते पर दुनिया भर के देशों के हस्ताक्षर करने के बाद अधिकांश कंपनियों ने अपने जीवाश्म ईंधन उत्पादन को घटाने की जगह बढ़ा दिया है. तब से कई सरकारों और कंपनियों ने उत्सर्जन के कड़े लक्ष्य तय किए हैं, लेकिन उन्होंने पहले से ज्यादा जीवाश्म ईंधन बनाए और जलाए हैं. इससे उत्सर्जन बढ़ा है.
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400 रुपये के इस भुगतान के अलावा लगभग 92 फीसदी महिलाओं को करीब 1,600 रुपये तक का अतिरिक्त भुगतान भी मिला जो स्थानीय परिस्थितियों और गर्मी की अवधि के आधार पर तय होता है. इस योजना के तहत कुल तीन करोड़ रुपये का भुगतान किया गया.
यह बीमा योजना स्विट्जरलैंड की कंपनी स्विस री और भारत के आईसीआईसीआई लोंबार्ड के सहयोग से चलाई गई है.
जलवायु परिवर्तन और बीमा योजनाएं
बहुत से नीति विशेषज्ञ बीमा योजनाओं को मौसमी आपदाओं से प्रभावित होने वाले कमजोर तबकों की आर्थिक मदद का एक जरूरी जरिया मानने लगे हैं. ऐसी योजनाएं कई देशों में शुरू हो गई हैं. संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनाइटेड नेशंस डेवलेपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) ने इंश्योरेंस एंड रिस्क फाइनेंस फैसिलिटी के नाम से एक संगठन स्थापित किया है.
यह संगठन दुनियाभर में इश्योरेंस क्षेत्र की बड़ी कंपनियों और सरकारों के साथ मिलकर काम करता है. 33 देशों में काम कर रहे इस संगठन का मकसद जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं के वक्त एक मजबूत वित्तीय आधार उपलब्ध कराना है, जो कमजोर तबकों की मदद कर सके.
यूएनडीपी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं के लिए सबसे कम तैयारी विकासशील देशों में ही है. इनमें भी सबसे ज्यादा खतरा महिलाओं को है क्योंकि दुनियाभर की गरीब आबादी में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है.
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जलवायु परिवर्तन और गरीब
यूएनडीपी में इंश्योरेंस एंड रिस्क फाइनेंस फैसिलिटी के टीम लीडर यान केलेट लिखते हैं कि बीमा योजनाएं और आपदाओं के खिलाफ वित्तीय मदद ना सिर्फ जिंदगियां बचा सकती है बल्कि संयुक्त राष्ट्र के विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भी अहम भूमिका निभा सकती है.
कल तक जहां बारिश को तरस रहे थे, अब वहां पानी से मर रहे लोग
दक्षिणी केन्या में एक बांध टूटने के कारण कम-से-कम 45 लोगों की मौत हो गई है और कई दर्जन लोग लापता हैं. यह घटना 29 अप्रैल की सुबह रिफ्ट घाटी के पास हुई.
तस्वीर: LUIS TATO/AFP
"ऐसा लगा मानो भूकंप आया हो"
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, स्थानीय लोगों ने बताया कि हादसा नाकुरू काउंटी के माय माहियू शहर के पास पुराने किजाबे बांध में हुआ. भारी बारिश के कारण इस बांध का किनारा टूटा और पानी पहाड़ की ढलान से होता हुआ नीचे की ओर बहा. लोगों ने बताया कि ऐसा लगा मानो भूकंप आया हो.
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कीचड़ की मोटी परत, नीचे दबे लोग
पानी का तेज बहाव बड़ी संख्या में घरों और गाड़ियों को बहा ले गया. कई लोग कीचड़, गाद और मलबे में दबे बताए जा रहे हैं. बचावकर्मी कहीं फावड़ा-कुदाल से, तो कहीं हाथ से ही गाद हटाकर लोगों को बचाने की कोशिश करते दिखे.
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बारिश से तबाही
आपातकालीन बचाव में शामिल एक स्थानीय निवासी ने एएफपी को बताया, "हमने पेड़ों में फंसी कुछ लाशें भी बरामद की हैं. हमें नहीं पता कीचड़ के नीचे कितने लोग दबे हैं." बीते महीनों में करीब चार दशक के सबसे गंभीर सूखे का सामना कर रहा केन्या अभी मूसलाधार बारिश और भीषण औचक बाढ़ से जूझ रहा है.
तस्वीर: Luis Tato/AFP/Getty Images
कई देशों में हालत खराब
चरम बारिश से जुड़ी घटनाओं से अब तक 120 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं. पड़ोसी तंजानिया में भी बारिश से आफत मची है. वहां बाढ़ और भूस्खलन के कारण कम से कम 155 लोगों के मारे जाने की खबर है. इथियोपिया, बुरुंडी, रवांडा और युगांडा में भी भारी बारिश के कारण जानमाल को नुकसान पहुंच रहा है.
तस्वीर: Edwin Waita/REUTERS
अल-नीनो का कहर
जानकारों के मुताबिक, औसत से कहीं ज्यादा हो रही बारिश का संबंध अल-नीनो से भी है. इसके कारण दुनियाभर में गर्मी अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है. कई इलाके भीषण सूखे की चपेट में हैं, तो कई जगहों पर भीषण बरसात से बुरा हाल है.
तस्वीर: Thomas Mukoya/REUTERS
आपदाओं की झड़ी
2020 से 2023 के बीच पूर्वी अफ्रीका में सूखे की स्थिति बेहद विकराल थी. लगातार तीन साल तक औसत से कम बारिश के कारण खेती और मवेशीपालन को बहुत नुकसान पहुंचा. भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई. ऐसे में अब बारिश का प्रकोप लोगों पर दोहरी मार है. जलवायु परिवर्तन आपदाओं की शृंखला ला रहा है. कभी लोग बारिश के लिए तरसते हैं, तो कभी उसी बारिश की अधिकता से तड़पते और मरते हैं.
तस्वीर: Gerald Anderson/AA/picture alliance
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केलेट कहते हैं, "बीमा ना होने से मौसमी आपदाओं के कारण लाखों-करोड़ों लोग गरीबी की गर्त में गिर सकते हैं क्योंकि विकासशील देशों में ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है जिनके पास आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान से उबरने के लिए संसाधन ना के बराबर हैं. ”
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम (यूएनईपी) का अनुमान है कि इस सदी के आखिर तक जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र जल स्तर बढ़ने से दुनियाभर में लगभग डेढ़ करोड़ लोग प्रभावित होंगे. इनमें से बहुत से लोगों के गरीबी के मुंह में चले जाने की आशंका है.
सिर्फ 2030 तक 13 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी की रेखा से नीचे जा सकते हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि ये लोग जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े पीड़ित होंगे जबकि ग्लोबल वॉर्मिंग में इनका योगदान सबसे कम है. दुनिया के सबसे गरीब साढ़े तीन अबर लोग कुल कार्बन उत्सर्जन के सिर्फ 10 फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं.