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अगले 28 सालों में ही डरावने स्तर पर पहुंच जाएगी जंगल की आग

२३ फ़रवरी २०२२

जो इलाके जंगलों की आग से पूरी तरह सुरक्षित समझे जाते थे, वे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं. भारत, ऑस्ट्रेलिया और साइबेरिया जैसे इलाकों में वाइल्डफायर की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं. आगे ऐसी घटनाएं बेतहाशा बढ़ने की आशंका है.

Argentinien Zerstörung nach Lauffeuer auf verkohlter Erde in der Nähe von Santo Tome
इस सदी के आखिर तक वाइल्डफायर की घटनाओं में 50 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हो सकता है. तस्वीर: Matias Baglietto/REUTERS

इंडोनेशिया के पीटलैंड, कैलिफॉर्निया के जंगल और अब अर्जेंटीना के वेटलैंड का बड़ा इलाका, ये सभी बड़े स्तर पर लगी जंगल की आग का शिकार हुए. ऐसी घटनाएं रुकती नहीं दिख रही हैं. ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते आने वाले दशकों में वाइल्डफायर या दावानल की घटनाओं में और वृद्धि होगी.

पश्चिमी अमेरिका, उत्तरी साइबेरिया, मध्य भारत और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के इलाकों में पहले ही वाइल्डफायर की घटनाएं बढ़ गई हैं. वाइल्डफायर आर्कटिक के टुंड्रा और अमेजन वर्षा वन जैसे उन इलाकों को भी चपेट में ले रहा है, जो इससे सुरक्षित समझे जाते थे. अगले 28 सालों के भीतर एक्सट्रीम वाइल्डफायर की घटनाओं में 30 प्रतिशत तक वृद्धि का अनुमान है. यह चेतावनी संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक रिपोर्ट में दी गई है.

भविष्य को लेकर क्या है अनुमान?

यूनाइटेड नेशन्स एनवॉयरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) ने 23 फरवरी को जारी अपनी एक रिपोर्ट में चेताया, "2019-2020 में ऑस्ट्रेलिया में लगी भीषण जंगल की आग हो या 2020 का आर्कटिक वाइल्डफायर, इस सदी के आखिर तक ऐसी घटनाओं की आशंका 31 से 57 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी." ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने की सबसे महत्वाकांक्षी कोशिशें भी आने वाले समय में वाइल्डफायर के व्यापक स्तर और नियमितता में आने वाली नाटकीय वृद्धि को नहीं रोक सकेंगी.

तेजी से गरम हो रही धरती के चलते जंगलों में आग लगने की आशंका बढ़ गई है. मौसम की अतिरेकता का मतलब है ज्यादा तेज, गर्म और शुष्क हवा, जो आग की तीव्रता और विस्तार को बढ़ा देती है. ऐसे इलाके जहां दावानल पहले भी होता आया था, वे तो सुलग ही रहे हैं. साथ ही, कई अप्रत्याशित इलाकों में भी आग लग रही है.

यूएन शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कई देश वाइल्डफायर बुझाने में काफी समय और पैसा खर्च कर रहे हैं. लेकिन वाइल्डफायर रोकने के लिए उनकी कोशिशें पर्याप्त नहीं हैं. तस्वीर: Matias Baglietto/REUTERS

यूएन रिपोर्ट को तैयार करने वालों में शामिल पीटर बताते हैं, "आग लगने की घटनाएं अच्छी बात नहीं हैं. इसका लोगों पर पड़ने वाला असर, फिर चाहे वह सेहत पर हो या सामाजिक और मनोवैज्ञानिक, यह बहुत गंभीर है. इसके नतीजे दूरगामी हैं." जंगलों में बड़े स्तर पर लगी आग पर काबू पाने में कई दिन और यहां तक कि हफ्ते भी लग सकते हैं. इतने लंबे समय तक आग दहकते रहने के चलते लोगों को सांस और दिल की परेशानियां हो सकती हैं. खासतौर पर छोटे बच्चों और बुजुर्गों पर इसका ज्यादा असर दिखेगा.

कितना और कैसा नुकसान?

साइंस जर्नल 'लैंसेट' में छपे एक हालिया शोध में पाया गया कि वाइल्डफायर से निकले धुएं के संपर्क में आने से सालाना औसतन 30 हजार मौतें होती हैं. यह अनुमान उन 43 देशों के संदर्भ में है, जिनका डाटा मौजूद है. अमेरिका में उन चुनिंदा देशों में है, जहां वाइल्डफायर से हुए नुकसान की गणना की जाती है. हालिया सालों में वहां वाइल्डफायर के चलते हुआ नुकसान 71 से 348 अरब डॉलर तक आंका गया है.

वाइल्डफायर की बड़ी घटनाएं वन्यजीवन के लिए विनाशक हो सकती हैं. इसके चलते कुछ संरक्षित प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच सकती हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, 2019-20 के ऑस्ट्रेलियाई वाइल्डफायर जैसी घटनाओं में लगभग तीन अरब जीवों के मारे जाने या उन्हें नुकसान पहुंचने का अनुमान है. इनमें स्तनधारी जीव, रेंगने वाले जीव, पक्षी और मेढ़क शामिल हैं.

रातें भी हो रही हैं गरम

जलवायु परिवर्तन के चलते वाइल्डफायर और भीषण हो गया है. ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण गरम हवा, सूखा और मिट्टी में नमी की कमी बढ़ गई है. पिछले हफ्ते 'नेचर' जर्नल में प्रकाशित एक शोध में पाया गया कि पहले रातें ठंडी और नम होती थीं. ये आग को बुझाने में मदद करती थीं. रात के तापमान में तेजी से हो रही वृद्धि भी वाइल्डफायर के ज्यादा व्यापक और तीव्र होने का एक कारण है.

यूएन शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कई देश वाइल्डफायर बुझाने में काफी समय और पैसा खर्च कर रहे हैं. लेकिन वाइल्डफायर रोकने के लिए उनकी कोशिशें पर्याप्त नहीं हैं. रिपोर्ट में सरकारों से वाइल्डफायर पर किए जा रहे खर्च में बदलाव लाने की भी अपील की गई. कहा गया कि वे इस बजट का लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा ऐसी घटनाओं को रोकने और तैयारी मजबूत करने पर लगाएं.


एसएम/आरपी (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)

 

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