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जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं से सांस लेना हो रहा मुश्किल

ब्राउन श्टुअर्ट
९ सितम्बर २०२२

सूखे और गर्म हवाओं की वजह से पूरी दुनिया के जंगलों में लगने वाली आग की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. हवा काफी ज्यादा प्रदूषित हो रही है और लोगों को सांस लेना मुश्किल हो रहा है.

जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं की वजह से सांस लेना हो रहा मुश्किल
जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं की वजह से सांस लेना हो रहा मुश्किलतस्वीर: Javier Valdelvira/REUTERS

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की नई रिपोर्ट के मुताबिक, लंबे समय तक सूखा पड़ने और धरती के तेजी से गर्म होने की वजह से जंगलों में लगने वाली आग की घटनाएं बढ़ रही हैं. इससे हवा की गुणवत्ता काफी ज्यादा खराब हो रही है. इसका असर इंसानों के स्वास्थ्य के साथ-साथ पारिस्थितिक तंत्र, दोनों पर व्यापक रूप से पड़ रहा है. इस असर को ‘जलवायु दंड' के तौर पर चिह्नित किया गया है.

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डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटेरी टलास ने कहा, "जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है वैसे-वैसे जंगलों में आग लगने की आशंकाएं बढ़ती जा रही है. इसकी वजह से वायु प्रदूषण भी बढ़ता है. इन घटनाओं से कम उत्सर्जन वाले क्षेत्र भी अछूते नहीं रहते. यह इंसानों के स्वास्थ्य के साथ ही पारिस्थितिक तंत्र को भी प्रभावित करेगा, क्योंकि वायु को प्रदूषित करने वाले तत्व पृथ्वी की सतह पर बैठ जाते हैं."

उन्होंने कहा, "यह भविष्य को लेकर पूर्वाभास है, क्योंकि हमें लगता है कि आने वाले समय में गर्म हवाएं बहने की समयावधि में वृद्धि होगी और पहले के मुकाबले यह ज्यादा क्षेत्रों को प्रभावित करेगी. इससे हवा की गुणवत्ता और भी खराब हो सकती है. इस घटना को ‘जलवायु दंड' के रूप में जाना जाता है."

यह दंड इस बात को दिखाता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से किस तरह ग्राउंड-लेवल ओजोन यानी क्षोभमंडल में ओजोन बढ़ता है. क्षोभमंडल, वायुमंडल की एक परत है, जो पृथ्वी के सतह से लगभग 20 किलोमीटर ऊंचाई तक फैली हुई है. यह परत ही मौसम की सभी घटनाओं का केंद्र होती है.

ग्राउंड-लेवल ओजोन, वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में मौजूद उस ओजोन से अलग होता है जो पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाता है. ग्राउंड-लेवल ओजोन हानिकारक प्रदूषक है जो सांस लेने वाली हवा को दूषित करता है.

डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट, 2021 में जंगलों में लगने वाली आग से निकलने वाले धुएं पर केंद्रित है. इस साल उत्तरी अमेरिका और साइबेरिया के जंगलों में लगी आग ने हवा में पार्टिकुलेट मैटर या पीएम2.5 (2.5 माइक्रोमीटर या उससे छोटे व्यास वाले पार्टिकुलेट मैटर) के स्तर को काफी ज्यादा बढ़ा दिया है जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है.

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एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक, हवा की गुणवत्ता और जलवायु आपस में जुड़े हुए हैं, क्योंकि हवा की गुणवत्ता को खराब करने वाले रसायन सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों के साथ उत्सर्जित होते हैं. जब जंगलों या जीवाश्म ईंधन को जलाया जाता है, तो कार्बन डाइऑक्साइड के साथ-साथ नाइट्रोजन ऑक्साइड भी उत्सर्जित होता है. यह गैस सूर्य के प्रकाश के साथ प्रतिक्रिया करके, हानिकारक ओजोन और नाइट्रेट एरोसोल बना सकती है.

ये प्रदूषक हवा के साथ-साथ प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र, स्वच्छ जल, जैव विविधता, कार्बन भंडार और फसल की पैदावार को भी बुरी तरह से प्रभावित करते हैं. जलवायु दंड वाला सबसे बड़ा अनुमानित क्षेत्र मुख्य रूप से एशिया में है, जहां दुनिया की कुल आबादी के लगभग 25 फीसदी लोग रहते हैं.

अगर सदी के अंत तक धरती का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो सबसे ज्यादा प्रदूषण वाले इलाकों में ग्राउंड-लेवल ओजोन के स्तर में वृद्धि हो सकती है. अनुमान के मुताबिक, पाकिस्तान, उत्तरी भारत और बांग्लादेश में ओजोन के स्तर में 20 फीसदी और पूर्वी चीन में 10 फीसदी की वृद्धि हो सकती है. ऐसा मुख्य तौर पर जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से होने वाले उत्सर्जन की वजह से होगा. हालांकि, इसमें 20 फीसदी हिस्सेदारी गर्म लहरों और जलवायु परिवर्तन की भी होगी.

वैश्विक संकट

डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट इस साल 7 सितंबर को आयोजित ‘इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई' से पहले प्रकाशित की गई थी. इस साल की थीम है ‘द एयर वी शेयर', जो वायु प्रदूषण की वैश्विक प्रकृति पर केंद्रित है.

इसका आयोजन करने वाले संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में 10 में से 9 लोग ऐसी हवा में सांस लेते हैं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों के मुताबिक नहीं है. सामूहिक जवाबदेही और कार्रवाई की जरूरत पर जोर देते हुए यूएनईपी ने वायु प्रदूषण से निपटने वाली नीतियों को लागू करने के लिए अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय सहयोग की जरूरतों पर प्रकाश डाला.

वहीं, डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्म लहरों और जंगल में लगने वाली आग की घटनाओं को कम करने के लिए, दुनिया भर में कार्बन तटस्थता के माध्यम से जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को कम करना होगा.

हालांकि, पिछले 20 वर्षों में पूरी दुनिया में आग लगने वाले कुल क्षेत्रों में कमी आई है, लेकिन उत्तरी अमेरिका, अमेजन के जंगलों और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में यह घटना तेजी से बढ़ी है. इसकी वजह है पृथ्वी का गर्म होना.

सरकारी सहायता की कमी

दुनिया भर की सरकारों ने 2015 से 2021 के बीच अपने बजट का एक फीसदी से भी कम हिस्सा वायु प्रदूषण से निपटने वाली वैश्विक परियोजनाओं के लिए आवंटित किया. लंदन स्थित संस्था ‘क्लिन एयर फंड' वायु प्रदूषण को कम करने के लिए काम कर रही है. संस्था के मुताबिक, वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पैसे देने की जगह जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को लंबा खींचने वाली परियोजनाओं में चार गुना अधिक पैसा खर्च किया गया.

संस्था ने हाल में नई रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट के मुताबिक, अफ्रीकी देशों को 2015 से 2021 के बीच वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए सिर्फ 0.3 फीसदी आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) मिली है. जबकि, एचआईवी/एड्स के बाद यहां वायु प्रदूषण की वजह से ही सबसे ज्यादा लोगों की मौत होती है.

मिस्र में होने वाली COP27 की बैठक को देखते हुए, अभियान चलाने वाली संस्था और लोग ज्यादा से ज्यादा धन आवंटित करने और नीति लागू करने का आह्वान कर रहे हैं, ताकि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैकल्पिक और कार्बन का कम उत्सर्जन करने वाले समाधानों को लागू किया जा सके.

क्लीन एयर फंड के कार्यकारी निदेशक जेन बर्स्टन ने कहा, "हमें जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं के लिए धन में कटौती करनी होगी. वायु प्रदूषण में कमी के लिए धन खर्च करना काफी ज्यादा मायने रखता है. इससे मानव के स्वास्थ्य में सुधार के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मदद मिलेगी.”

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