सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक अब अपने ग्राहकों को ‘अतिवादी सामग्री’ के प्रति सचेत करेगी. इसके लिए यूजर्स को नोटिफिकेशन भेजे जाएंगे.
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गुरुवार को फेसबुक ने कहा कि ग्राहकों को बताया जाएगा कि उनकी फेसबुक वॉल पर ऐसी सामग्री हो सकती है, जो उग्रवाद से संबंधित हो. ट्विटर पर फेसबुक के कुछ नोटिफिकेशन की तस्वीरें पोस्ट की गई हैं, जिनमें फेसबुक यूजर्स से ऐसे सवाल पूछे गए हैं – क्या आप इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आपका कोई जानकार उग्रवादी हो रहा है?
एक नोटिफिकेशन में यूजर्स को बताया गया है कि संभवतया उन्होंने अतिवादी सामग्री देखी है. दोनों ही जगहों पर यूजर्स को मदद लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया है.
देखिए, नेताओं के साथ कैसे पेश आती हैं सोशल मीडिया कंपनियां
सोशल मीडिया कंपनियां नेताओं के साथ कैसे पेश आती हैं
फेसबुक और ट्विट्टर द्वारा डॉनल्ड ट्रंप के खातों को बंद कर देने के बाद सोशल मीडिया कंपनियों के व्यवहार को लेकर काफी चर्चा हुई थी. कैसे तय करती हैं कंपनियां कि उनके मंचों पर किस नेता को क्या-क्या बोलने दिया जाए.
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किसके साथ होता है विशेष व्यवहार?
फेसबुक और ट्विटर दोनों के ही मौजूदा नियम आम यूजर के मुकाबले चुने हुए नुमाइंदों और राजनीतिक प्रत्याशियों को ज्यादा अभिव्यक्ति की आजादी देते हैं. ट्विटर के जनहित नियमों के तहत तो सत्यापित सरकारी अधिकारी भी आते हैं.
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तो क्या हैं मौजूदा नियम?
ट्विटर कहती है कि सामग्री अगर जनहित में हो तो वो उसे हटाती नहीं है, क्योंकि ऐसी सामग्री का रिकॉर्ड रहेगा तभी नेताओं को जवाबदेह बनाया जा सकेगा. फेसबुक राजनेताओं की पोस्ट और भुगतान किए हुए विज्ञापनों को अपने बाहरी फैक्ट-चेक कार्यक्रम से छूट देती है. फेसबुक राजनेताओं द्वारा किए गए कंपनी के नियम तोड़ने वाले पोस्ट को भी नहीं हटाती है अगर उनका जनहित उनके नुकसान से ज्यादा बड़ा है.
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आतंकवाद गंभीर मामला
ट्विटर का कहना है कि दुनिया में कहीं भी अगर कोई नेता आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला ट्वीट करता है तो उसे कंपनी हटा देती है. किसी दूसरे की निजी जानकारी जाहिर करने वाले ट्वीटों को भी हटा दिया जाता है. फेसबुक के तो कर्मचारियों ने ही भड़काऊ पोस्ट ना हटाने पर कंपनी की आलोचना की है. यूट्यूब कहता है कि उसने नेताओं के लिए कोई अलग नियम नहीं बनाए हैं.
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ट्रंप के साथ क्या हुआ?
छह जनवरी 2021 को वॉशिंगटन में हुए कैपिटल दंगों के बाद ट्विट्टर, फेसबुक, स्नैपचैट और ट्विच ने ट्रंप पर हिंसा को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. यूट्यूब ने भी ट्रंप के चैनल पर रोक लगा दी थी.
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दूसरे नेताओं का क्या?
मानवाधिकार समूहों ने मांग की है कि इन कंपनियों को दूसरे नेताओं के खिलाफ भी इसी तरह के कदम उठाने चाहिए. कई नेता हैं जिनकी सार्वजनिक रूप से काफी आलोचना होती है लेकिन वो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. इनमें ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई, ब्राजील के राष्ट्रपति जाएर बोल्सोनारो और वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो शामिल हैं. म्यांमार में तख्तापलट के बाद फेसबुक ने सेना पर प्रतिबंध लगा दिया था.
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अब क्या हो रहा है?
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों और कैपिटल दंगों के दौरान फेसबुक और ट्विटर की भूमिका को लेकर सवाल उठने के बाद दोनों कंपनियों ने अपनी नियमों पर राय मांगी है. फेसबुक ने अपने ओवरसाइट बोर्ड से सुझाव मांगे हैं और ट्विट्टर ने जनता से. (रॉयटर्स)
तस्वीर: Leah Millis/REUTERS
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दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट पर लगातार इस बात का दबाव रहा है कि उसका इस्तेमाल अतिवादी सामग्री के प्रसार के लिए ना हो. सरकारें और सामाजिक कार्यकर्ता दोनों ही फेसबुक को ऐसे कदम उठाने के लिए कहते रहे हैं कि उसके प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल आतंकवादी या उग्रवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए नहीं होना चाहिए.
अमेरिका में शुरुआत
अमेरिका में 6 जनवरी को कैपिटल हिल पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के समर्थकों की चढ़ाई के बाद अमेरिका में फेसबुक पर अतिवादियों को मंच देने के खिलाफ आवाजें तेज हुई थीं.
फेसबुक का कहना है कि अभी वह परीक्षण कर रही है, जिसके तहत चेतावनियों को सिर्फ अमेरिका में उतारा गया है. बाद में इसे दुनियाभर के यूजर्स के लिए शुरू किया जा सकता है.
फेसबुक ने एक बयान में कहा, "यह परीक्षण हमारे उन वृहद प्रयासों का हिस्सा है, जिनके तहत हम फेसबुक इस्तेमाल करने वाले लोगों को उग्रवादी सामग्री का सामना होने पर मदद करने के तरीके खोज रहे हैं. हम स्वयंसेवी संस्थाओं और विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम कर रहे है और उम्मीद करते हैं कि भविष्य में हमारे पास बताने के लिए और बहुत कुछ होगा.”
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क्राइस्टचर्च हमले का असर
फेसबुक ने कहा कि उसकी ये कोशिशें ‘क्राइस्टचर्च कॉल टु एक्शन' मुहिम का हिस्सा हैं. न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में 2019 में एक बंदूकधारी ने स्थानीय मस्जिद पर हमला किया और गोलियां दाग कर दर्जनों जानें ले ली थीं. उस हमले का फेसबुक पर सीधा प्रसारण हुआ था. जिसके बाद तकनीकी कंपनियों पर अपने मंच का इस्तेमाल अतिवादियों को न करने देने के कदम उठाने का दबाव बढ़ा था. तभी ‘क्राइस्टचर्च कॉल टु एक्शन' मुहिम शुरू हुई थी, जिसमें कई तकनीकी कंपनियां शामिल हैं.
जानिए, भारत में क्या हैं डिजिटल मीडिया के नए नियम
भारत: क्या हैं डिजिटल मीडिया के नए नियम
सरकार ने समाचार वेबसाइटों, सोशल मीडिया और ओटीटी सेवाओं के लिए नए दिशा निर्देश बनाए हैं. इनसे इन तीनों क्षेत्रों में बड़े बदलाव होने की संभावना है, लेकिन जानकार सवाल उठा रहे हैं कि नए नियमों के दुरूपयोग को कैसे रोका जाएगा.
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बड़े बदलाव
यह पहली बार है जब भारत में समाचार वेबसाइटों, सोशल मीडिया और ओटीटी सेवाओं के लिए दिशा-निर्देश बनाए गए हैं. सरकार का कहना है कि इन नियमों के पीछे मंशा इंटरनेट पर आम लोगों को और सशक्त बनाने की है.
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सोशल मीडिया पर जो चीजें नहीं जानी चाहिए
10 तरह के कॉन्टेंट को सोशल मीडिया के लिए वर्जित बना दिया गया है. इसमें शामिल है वो सामग्री जिस से भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता को खतरा होता हो, जिससे मित्र देशों से भारत के संबंधों पर खतरा होता हो, जिस से पब्लिक ऑर्डर को खतरा होता हो, जो किसी जुर्म को करने के लिए भड़काती हो या जो किसी अपराध की जांच में बाधा डालती हो.
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मानहानि, अश्लीलता पर प्रतिबंध
इस तरह की सामग्री को भी वर्जित कर दिया गया है जिससे किसी की मानहानि होती हो, जिसमें अश्लीलता हो, जिससे दूसरों की निजता का हनन होता हो, लिंग के आधार पर अपमान होता हो, जो नस्ल के आधार पर आपत्तिजनक हो और जिससे हवाला या जुए को प्रोत्साहन मिलता हो.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup
शिकायत पर कार्रवाई
सोशल मीडिया कंपनियों को आम लोगों से शिकायत मिलने पर 24 घंटों में उसे दर्ज करना होगा और 15 दिनों के अंदर उस पर कार्रवाई करनी होगी. इसके लिए सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत निवारण अधिकारी और एक अनुपालन अधिकारी भारत में ही नियुक्त करना होगा.
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वर्जित सामग्री को हटाना होगा
किसी अदालत या किसी सरकारी संस्था से वर्जित सामग्री को हटाने का आदेश जारी होने के 36 घंटों के अंदर सोशल मीडिया कंपनी को उस सामग्री को हटाना होगा.
तस्वीर: Twitter
मासिक रिपोर्ट
सोशल मीडिया कंपनियों को हर महीने एक रिपोर्ट भी छापनी होगी जिसमें उन्हें बताना होगा कि उन्हें कितनी और कौन सी शिकायतें मिलीं, उन पर क्या कार्रवाई की गई और कंपनी ने खुद भी किसी वर्जित सामग्री को हटाया या नहीं.
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संदेश भेजने वाले की पहचान
सोशल मीडिया पर फैले रहे उपद्रवी संदेश या पोस्ट को सबसे पहले किसने भेजा या डाला इसकी पहचान सोशल मीडिया कंपनी को करनी होगी और उसके बारे में जांच एजेंसियों को बताना होगा.
तस्वीर: Santarpan Roy/ZUMA/picture alliance
जुर्माना और जेल
सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा नियमों का पालन ना करने पर तीन साल से सात साल तक की जेल और दो लाख से 10 लाख रुपयों तक के जुर्माने का प्रावधान है.
तस्वीर: ROBERTO SCHMIDT/AFP/GettyImages
ओटीटी सेवाओं के लिए नियम
नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम जैसे ओटीटी सेवाओं को अपने कार्यक्रमों को उम्र के आधार पर पांच श्रेणियों में डालने के लिए, अपने यूजरों की उम्र मालूम करने के लिए और एडल्ट कार्यक्रमों को बच्चों की पहुंच से परे कर देने के लिए कहा गया है.
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समाचार वेबसाइटों के लिए नियम
समाचार वेबसाइटों को प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए पहले से बने हुए नियमों का पालन करना होगा. इसे सुनिश्चित करने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय एक समिति भी बनाएगा.
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फेसबुक ने कहा कि अपने शुरुआती परीक्षण में दोनों तरह के यूजर्स की पहचान की जा रही है, वे भी जिनके सामने से अतिवादी सामग्री गुजरी हो, और वे भी जिनकी सामग्रियों को फेसबुक ने कभी अतिवादी मानते हुए हटाया हो.
कंपनी ने हाल के सालों में हिंसक गतिविधियों और नफरत फैलाने वाले समूहों के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए हैं. उसका कहना है कि नियम सख्त किए गए हैं और इन नियमों का उल्लंघन करने वाली सामग्रियों और लोगों को हटाया जा रहा है. तब भी संभव है कि ऐसी सामग्री हटाए जाने से पहले कुछ लोगों तक पहुंच जाए.