सोशल मीडिया पर किसी कॉन्सपिरेसी थ्योरी के एक बार वायरल हो जाने के बाद उसे रोकना और लोगों को सच्चाई का यकीन दिलाना नामुमकिन सा काम है. ऐसे में फेसबुक ने यहूदी नरसंहार से जुड़े झूठ को फैलने से रोकने के लिए कदम उठाया है.
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कोरोना महामारी की शुरुआत में इस वायरस को ले कर झूठी बातें फैलाने वाली एक फिल्म "प्लैन्डेमिक" सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई. जब तक फेसबुक और यूट्यूब का इस पर ध्यान गया, यह काफी नुकसान कर चुकी थी. वीडियो के वायरल होने से दुनिया भर में लाखों लोगों ने इसे देखा और इस पर भरोसा भी किया.
इसी तरह जर्मनी में 1940 के दशक में यहूदियों का जो नरसंहार हुआ, उसे ले कर भी इंटरनेट में कई तरह की झूठी बातें मौजूद हैं.
अमेरिका में तो ऐसे कई लोग हैं जो इन फेक पोस्ट और पेजों के कारण यह मानने लगे हैं कि होलोकॉस्ट कभी हुआ ही नहीं और यह केवल लोगों को भ्रमित करने के लिए फैलाया गया झूठ है. अमेरिकी चुनाव से महज तीन सप्ताह पहले फेसबुक ने इस तरह के पोस्ट डिलीट करने का फैसला लिया है. हालांकि इसकी मांग लंबे समय से उठती आ रही थी. इस साल की शुरुआत से ही होलोकॉस्ट का सामना कर चुके लोग फेसबुक का ध्यान इस ओर खींच रहे थे. इसके लिए सोशल मीडिया पर #NoDenyingIt के तहत एक कैम्पेन भी चलाया गया. इस हैशटैग के साथ पिछले 75 दिनों से हर रोज होलोकॉस्ट के तजुर्बे सुनाते हुए एक वीडियो पोस्ट किया जा रहा था.
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यहूदी विरोधी भावनाएं
फेसबुक ने कहा है कि यह फैसला लेते हुए उसने इस बात को ध्यान में रखा कि "दुनिया भर में यहूदी विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं और लोगों में होलोकॉस्ट को ले कर कई अवधारणाएं भी हैं - खास कर युवा लोगों में." मार्क जकरबर्ग ने अपने ब्लॉग पोस्ट में लिखा है कि वे उम्मीद करते हैं कि उनकी कंपनी की नई नीति लोगों को समझने में मदद करेगी कि बोलने की आजादी के अंतर्गत क्या सही है और क्या नहीं. उन्होंने लिखा, "मैंने जब डाटा देखा कि किस तरह से यहूदी विरोधी भावनाओं का विस्तार हो रहा है, तो मेरी अपनी सोच का आयाम भी बढ़ा." मार्क जकरबर्ग खुद भी यहूदी हैं.
फेसबुक के अलावा इंस्टाग्राम से भी ऐसी पोस्ट हटाई जाएंगी. दोनों कंपनियां मार्क जकरबर्ग की ही हैं. लेकिन उन्होंने माना कि तकनीकी सिस्टम को ट्रेन करने में अभी कुछ वक्त लग सकता है और कई मामलों में फैसले मशीन पर नहीं छोड़े जा सकते, बल्कि इंसानी हस्तक्षेप की जरूरत पड़ेगी.
1941 से 1945 के बीच हुए यहूदी नरसंहार में करीब 60 लाख यहूदियों की जान ली गई. यहूदियों को ट्रेनों में भर कर यातना शिविरों में भेजा जाता था, जहां उन्हें प्रताड़ित किया जाता था और गैस चैंबर में डाल कर उनकी जान ली जाती थी.
मुस्लिम देश इस्राएल को मध्यपूर्व में विवादों का केंद्र कहते हैं. एक तरफ उसके आलोचक हैं तो दूसरी तरफ उसके मित्र. लेकिन इस रस्साकसी से इतर बहुत कम लोग जानते हैं कि इस्राएल आखिर कैसा है.
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राष्ट्र भाषा
आधुनिक हिब्रू के अलावा अरबी इस्राएल की मुख्य भाषा है. ये दोनों 1948 में बने इस्राएल की आधिकारिक भाषाएं हैं. आधुनिक हिब्रू 19वीं सदी के अंत में बनी. पुरातन हिब्रू से निकली आधुनिक हिब्रू भाषा अंग्रेजी, स्लाविक, अरबी और जर्मन से भी प्रभावित है.
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छोटा सा देश
1949 के आर्मिस्टिक समझौते के मुताबिक संप्रभु इस्राएल का क्षेत्रफल सिर्फ 20,770 वर्ग किलोमीटर है. इस समझौते पर मिस्र, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया ने दस्तखत किए थे. लेकिन फिलहाल पूर्वी येरुशलम से लेकर पश्चिमी तट तक इस्राएल के नियंत्रण में 27,799 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है. इस्राएल के उत्तर से दक्षिण की दूरी 470 किमी है. देश का सबसे चौड़ा भूभाग 135 किलोमीटर का है.
अनिवार्य सैन्य सेवा
इस्राएल दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां नागरिकों और स्थायी रूप से रहने वाली महिला व पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है. 18 साल की उम्र के हर इस्राएली को योग्य होने पर तीन साल सैन्य सेवा करनी पड़ती है. महिलाओं को दो साल सेना में रहना पड़ता है.
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फलीस्तीन के समर्थक
नेतुरेई कार्टा का मतलब है कि "सिटी गार्ड्स." यह 1939 में बना एक यहूदी संगठन है. यह इस्राएल की स्थापना का विरोध करता है. इस संगठन का कहना है कि एक "यहूदी मसीहा" के धरती पर आने तक यहूदियों को अपना देश नहीं बनाना चाहिए. इस संगठन को फलीस्तीनियों का समर्थक माना जाता है.
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राष्ट्रपति पद ठुकराया
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनस्टाइन भले ही पूजा नहीं करते थे, लेकिन जर्मनी में यहूदियों के जनसंहार के दौरान उनका यहूदी धर्म की तरफ झुकाव हो गया. उन्होंने यहूदी आंदोलन के लिए धन जुटाने के लिए ही अमेरिका की पहली यात्रा की. बुढ़ापे में उन्हें इस्राएल का राष्ट्रपति बनने का न्योता दिया गया, आइनस्टाइन ने इसे ठुकरा दिया.
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ईश्वर को चिट्ठियां
हर साल येरुशलम के डाक घर को 1,000 से ज्यादा ऐसे खत मिलते हैं, जो भगवान को लिखे जाते हैं. ये चिट्ठियां कई भाषाओं में लिखी होती हैं और विदेशों से भी आती हैं. ज्यादातर खत रूसी और जर्मन में होते हैं.
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येरुशलम की पीड़ा
इतिहास के मुताबिक येरुशलम शहर दो बार पूरी तरह खाक हुआ, 23 बार उस पर कब्जा हुआ, 52 बार हमले हुए और 44 बार शहर पर किसी और का शासन हुआ. गिहोन झरने के पास शहर का सबसे पुराना इलाका है, कहा जाता है कि इसे 4500-3500 ईसा पूर्व बनाया गया. इसे मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों का पवित्र शहर कहा जाता है.
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पैसेंजर फ्लाइट का रिकॉर्ड
24 मई 1991 को इस्राएली एयरलाइन कंपनी एल अल का बोइंग 747 विमान 1,088 यात्रियों को लेकर इस्राएल पहुंचा. किसी जहाज में यह यात्रियों की रिकॉर्ड संख्या है. इथियोपिया के ऑपरेशन सोलोमन के तहत यहूदियों को अदिस अबाबा से सुरक्षित निकालकर इस्राएल लाया गया.
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खास है मुद्रा
इस्राएली मुद्रा शेकेल दुनिया की उन चुनिंदा मुद्राओं में से है जिनमें दृष्टिहीनों के लिए खास अक्षर हैं. दृष्टिहीनों की मदद करने वाली मुद्राएं कनाडा, मेक्सिको, भारत और रूस में भी हैं.