फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में सभी समाचार वेबसाइटों पर खबरें पोस्ट करने पर बैन कर दिया है. ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने खबरों के सोशल मीडिया मंच पर दिखाने के बदले भुगतान को लेकर मसौदा तैयार किया है.
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बुधवार को फेसबुक ने अपने प्लेटफार्म पर न्यूज साझा करने पर बैन लगा दिया. इसकी चपेट में मौसम विभाग, आपातकालीन विभाग, विपक्षी नेता और स्वास्थ्य विभाग के पेज भी आ गए. गुरुवार की सुबह से ही ऑस्ट्रेलियाई समाचार लेखों की लिंक पोस्ट करने या दुनिया में कहीं से भी समाचार कंपनियों के फेसबुक खातों को लोग देख नहीं पाए. दरअसल फेसबुक ने यह कदम सरकार के उस मसौदे के बदले उठाया है जिसमें समाचारों के प्रकाशन के बदले में गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों को मीडिया कंपनियों को पैसे देने होंगे. आस्ट्रेलिया में ऑनलाइन विज्ञापन में 81 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले गूगल और फेसबुक ने इस प्रस्तावित कानून की निंदा की है.
देश भर में दमकल, स्वास्थ्य और मौसम संबंधी सेवाओं को कई गंभीर सार्वजनिक आपात स्थितियों के दौरान अपने फेसबुक पेजों के साथ समस्याओं का सामना करना पड़ा. लोगों ने कंपनी से इस मुद्दे को जल्द सुलझा लेने का आग्रह किया है. फेसबुक के एक प्रवक्ता ने कहा कि सरकारी पेज "आज की घोषणा से प्रभावित नहीं होने चाहिए" और कंपनी "अनजाने में प्रभावित होने वाले किसी भी पेज को बहाल कर देगी." ऑस्ट्रेलियाई पर्यावरण मंत्री सुसैन ले ने फेसबुक पर समाचार सामग्री के अचानक बंद होने की पुष्टि की है. उन्होंने लोगों से सरकारी विभाग की वेबसाइट पर जाने का आग्रह किया है. कम से कम तीन ऑस्ट्रेलियाई राज्य फेसबुक के माध्यम से कोरोना वायरस पर अपडेट पोस्ट कर रहे थे, जो प्रतिबंध से प्रभावित हुए हैं. राजधानी कैनबरा में कई सरकारी पेज भी प्रभावित हुए हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच ऑस्ट्रेलिया के निदेशक एलेन पियर्सन ने बैन को "चिंताजनक और खतरनाक" कदम बताया है. फेसबुक के कदम के तहत चैरिटी, जातीय समुदाय से जुड़े पेज और यहां तक कि फेसबुक ने अपने भी पेज को भी ब्लॉक कर दिया. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लिए फेसबुक के मैनेजर विलियम इस्टन ने ब्लॉग पोस्ट में लिखा कंपनी "ऑस्ट्रेलियाई और अंतरराष्ट्रीय समाचार सामग्री को साझा करने या देखने पर ऑस्ट्रेलिया में प्रकाशकों और लोगों को प्रतिबंधित कर देगी. क्योंकि प्रस्तावित कानून मौलिक रूप से हमारे मंच और इसका इस्तेमाल करने वाले प्रकाशकों के बीच संबंधों को गलत समझता है."
विवाद का कारण
ऑस्ट्रेलिया के न्यूज मीडिया बारगेनिंग कोड के तहत फेसबुक और गूगल को समाचार सामग्री के लिए मीडिया आउटलेट्स को भुगतान के लिए सौदा तय करना होगा नहीं तो कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा. यह नियम पिछले साल दिसंबर में ऑस्ट्रेलिया की संसद में पेश हुआ था. सरकार संसद का मौजूदा सत्र 25 फरवरी को समाप्त होने से पहले न्यूज मीडिया बारगेनिंग कोड को लागू करने की उम्मीद कर रही है. दूसरी ओर गूगल ने हाल के दिनों में कई मीडिया कंपनियों के साथ पहले ही करार कर लिया. हालांकि गूगल और फेसबुक एक साल से इस मसौदे के खिलाफ अभियान चला रहे थे और दोनों ने ही अपनी सेवा ऑस्ट्रेलिया में बंद करने की धमकी दी थी. मीडिया मुगल रुपर्ट मर्डोक की न्यूज कॉर्प ने सबसे पहले गूगल के साथ एक समझौता किया जिसके तहत न्यूज कॉर्प को सर्च इंजन पर सामग्री देने के बदले "महत्वपूर्ण भुगतान" मिलेगा. गूगल ने फेसबुक के गुरुवार को उठाए कदम पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है.
कुछ रिपोर्टों के मुताबिक फेसबुक और गूगल ने 2018-19 में भारत से ऑनलाइन विज्ञापन रेवन्यू के जरिए 11,500 करोड़ रुपये कमाए थे. अनुमान है कि आने वाले साल में यह बाजार और बढ़ेगा.
अपने ऑनलाइन एकाउंट की सुरक्षा के लिए यूजर पासवर्ड के अलावा टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं. इसमें सिक्युरिटी कोड फोन पर आ जाता है. लेकिन क्या फेसबुक जैसी कंपनी पर भरोसा किया जा सकता है.
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क्या है फीचर
फेसबुक का एक सिक्युरिटी फीचर है "टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन". फीचर का मकसद है यूजर के एकाउंट को हैकर्स से बचाना. इस सिस्टम में यूजर सबसे पहले अपने एकाउंट में लॉग-इन करता है और फिर अपना पासवर्ड डालता है. लेकिन इसके बाद यूजर की पहचान को पुख्ता करने के लिए दूसरे चरण में एक कोड यूजर के स्मार्टफोन पर भेजा जाता है. इसके बाद ही यूजर अपना फेसबुक एकाउंट एक्सेस करता है.
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ये हैं खामियां
फेसबुक के इस सिक्युरिटी फीचर में ढेर सारी खामियां हैं, जिसमें सबसे अहम है कि यह सब एक बाहर की कंपनी के प्लेटफॉर्म पर होता है. एक अमेरिकी स्टडी के मुताबिक जब यूजर अपने मोबाइल नंबर को फेसबुक पर रजिस्टर करता है तो वह अपने नंबर को मार्केटिंग से जुड़ी चीजों के लिए भी इस्तेमाल करने की इजाजत दे देता है.
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मार्केटिंग और बहुत कुछ
मार्केटिंग के अलावा, कंपनियां यूजर्स को फोन नंबर की मदद से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तलाश भी कर सकती हैं. इसका मतलब है कि अगर आपके पास किसी का मोबाइल नंबर है तो आप उसका प्रोफाइल आसानी से खोज सकते हैं. हैरानी की बात है कि इस फीचर को बंद नहीं किया जा सकता, लेकिन अपने फेसबुक फ्रेंड्स और उनकी फ्रैंड्स लिस्ट के लिए इसे सीमित किया जा सकता है.
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क्या है डर
जर्मनी के हैम्बर्ग में डाटा प्रोटेक्शन कमिश्नर योहानस कास्पर कहते हैं कि फेसबुक लोगों की सिक्योरिटी से जुड़ी चिंता को भुना रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "फेसबुक यूजर्स से बिना पूछे डाटा इस्तेमाल कर रहा है जो यूरोपीय कानूनों का उल्लघंन हैं." वहीं फेसबुक इस पर कुछ और ही तर्क देता है.
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फेसबुक का तर्क
अमेरिकी मीडिया में फेसबुक के हवाले से कहा गया है कि फेसबुक का यह फीचर यूजर को मोबाइल नंबर के जरिए अपने ऐसे दोस्तों को ढूंढने का मौका देता है जो उनके परिचित तो हैं लेकिन फेसबुक पर जुड़े नहीं हैं. फेसबुक का कहना है जो भी इस प्रक्रिया को गलत समझता है वह अपना मोबाइल नंबर नेटवर्क से डिलीट कर दे.
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नया फीचर
इस बहस के बीच एक नया टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन फीचर लॉन्च किया गया है, जिसमें मोबाइल नंबर के बजाय किसी बाहर की कंपनी द्वारा तैयार की गई ऑथेन्टिकेशन ऐप इस्तेमाल की जाती है. ऐप इस्तेमाल को विशेषज्ञ ज्यादा सुरक्षित तरीका मान रहे हैं. वहीं फेसबुक अब भी अपने यूजर्स से टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के इस्तेमाल के लिए कह रहा है.
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बैंकिंग में इस्तेमाल
कुछ मामलों में विशेषज्ञ टू-फैक्टर प्रक्रिया के इस्तेमाल पर जोर देते रहे हैं. ऐसे फीचर आमतौर पर बैंकिंग में इस्तेमाल किए जाते हैं. लेकिन मोबाइल फोन के जरिए यूजर ऑथेन्टिकेशन को अब सुरक्षित नहीं माना जा रहा है क्योंकि यह फीचर काफी कुछ उस कंपनी पर निर्भर करता है जो इसे ऑपरेट करती है.
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हैकर्स का खतरा
एक खामी और भी है. स्मार्टफोन पर टेकस्ट मैसेज तब भी दिखाई देते हैं जब फोन स्टैंडबाय पर हो, साथ ही फोन पर आया सिक्योरिटी कोड से जुड़ा मैसेज इन्क्रिप्टेड मतलब किसी कोड में नहीं होता. ऐसे में हैकर्स के लिए ऐसे संदेशों को मॉनिटर करना बेहद आसान हो जाता है. ऐसी सब कमियों के चलते अब विशेषज्ञ टू-फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के बजाय, ऑथेन्टिकेशन ऐप्स के इस्तेमाल की वकालत कर रहे हैं.
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मोबाइल नंबर से पहचान
विशेषज्ञ अब कहने लगे हैं कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोबाइल नंबर देना जोखिम भरा हो सकता है. अब कई कंपनियां यूजर से ईमेल एकाउंट सेट करने के लिए भी फोन नंबर मांगती हैं. जानकार कहते हैं कि मोबाइल नंबर किसी को पहचानने का सबसे बड़ा तरीका है. मोबाइल नंबर के जरिए कंपनियां यूजर की गतिविधियों पर नजर रख सकती हैं इसलिए डाटा पर निर्भर रहने वाली फेसबुक जैसी कंपनियां फोन नंबर पर जोर देती हैं.
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फीचर का विरोध
टेक उद्यमी जेरेमी बर्ज ट्विटर पर फेसबुक के इस फीचर का लंबे समय से विरोध कर रहे हैं. फेसबुक के पूर्व चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर एलेक्स स्टामोस भी इस फीचर की आलोचना करते हैं. एलेक्स कहते हैं, "फेसबुक का टू फैक्टर फीचर इसकी विश्वसनीयता को खतरे में डाल रहा है." कुछ विशेषज्ञ तो ये भी मानते हैं कि ये फीचर राजनीतिक ताकतों का विरोध करने वाले ऐसे लोगों के लिए खतरा साबित हो सकते हैं जो गुमनाम रहना चाहते हैं.
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असंवेदनशील होते यूजर
फेसबुक के इस मॉडल के चलते जानकारों को एक और डाटा स्कैंडल का डर सताने लगा है. कास्पर को डर है कि फेसबुक से जुड़े ऐसे खुलासे यूजर्स को असंवेदनशील बना सकते हैं, और इस वजह से हो सकता है फेसबुक डाटा सिक्योरिटी जैसी बातों पर ध्यान न दे और अपने मौजूदा बिजनेस मॉडल पर कायम रहे.
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फेसबुक नहीं सुधरा
पिछले सालों में एलेक्स स्टामोस की तरह फेसबुक के कई बड़े अधिकारियों ने कंपनी को अलविदा कह दिया है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक फेसबुक छोड़ कर गए अधिकारी डाटा सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दों पर कंपनी के साथ सहमत नहीं थे. यहां तक कि फेसबुक में चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर का पद अब तक खाली पड़ा हुआ है. इससे कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि डाटा सिक्योरिटी जैसे मुद्दों पर फेसबुक जैसी कंपनी गंभीर नहीं है.