फेसबुक ने कहा है कि वो चेहरा पहचानने वाली प्रणाली को बंद कर देगी और एक अरब लोगों के फेसप्रिंट को मिटा देगी. कंपनी ने यह घोषणा ऐसे समय पर की है जब इस तकनीक और सरकारों द्वारा इसके दुरूपयोग को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं.
तस्वीर: Dado Ruvic/Illustration/REUTERS
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फेसबुक की नई मालिकाना कंपनी मेटा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के वाइस प्रेसिडेंट जेरोम पेसेंती ने एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा है, "यह बदलाव फेशियल रिकग्निशन तकनीक के इतिहास में उसके इस्तेमाल में आ रहे सबसे बड़े बदलाव का प्रतिनिधित्व करेगा."
उन्होंने यह भी बताया कि कंपनी इस तकनीक के सकारात्मक उपयोग को "समाज में बढ़ती चिंताओं" से तुलना कर रही है. उन्होंने विशेष रूप से नियामकों के अभी तक स्पष्ट नियम दे पाने में असमर्थता का भी जिक्र किया. फेसबुक को रोजाना सक्रिय रूप से इस्तेमाल करने वालों में से एक तिहाई से भी ज्यादा, यानी 64 करोड़, लोगों ने कंपनी के सिस्टम को उनका चेहरा पहचानने की अनुमति दी हुई है.
एक अच्छा उदाहरण
कंपनी ने फेशियल रेकग्निशन को एक दशक से भी ज्यादा पहले लागू किया था लेकिन जैसे जैसे अदालतों और नियामकों की छानबीन बढ़ती गई कंपनी ने धीरे धीरे लोगों के लिए इससे बाहर निकल जाना आसान बना दिया. 2019 में फेसबुक ने तस्वीरों में अपने आप लोगों को पहचानना और उन्हें "टैग" करने का सुझाव देना बंद कर दिया.
हैदराबाद हवाई अड्डे का एक फेशियल रेकग्निशन काउंटरतस्वीर: AFP/Getty Images/N. Seelam
इस सेवा को डिफॉल्ट बनाने की जगह उसने इस्तेमाल करने वालों से इसमें शामिल होने या ना होने का फैसला खुद लेने के लिए कहा. नोट्रेडैम विश्वविद्यालय में टेक्नोलॉजी एथिक्स की प्रोफेसर क्रिस्टन मार्टिन कहती हैं कि फेसबुक का यह फैसला "कंपनी और यूजर दोनों के लिए अच्छे फैसले लेने" की कोशिशों का एक अच्छा उदाहरण है.
मार्टिन ने यह भी कहा कि यह कदम जनता और नियामक संस्थाओं के दबाव की शक्ति को भी दिखता है. कंपनी अब लोगों को पहचानने के नए तरीके खोजने की कोशिश कर रही है. पेसेंती ने ब्लॉग में आगे लिखा, "फेशियल रेकग्निशन विशेष रूप से तब मूल्यवान हो सकता है जब यह तकनीक सिर्फ व्यक्ति के निजी उपकरण पर काम करे."
खतरनाक टेक्नोलॉजी
उन्होंने लिखा, "इस तरीके में चेहरा के डाटा का किसी बाहरी सर्वर से कोई संबंध नहीं होता है और आजकल स्मार्टफोन को अनलॉक करने के लिए इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है." एप्पल इसी तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अपने फेस आईडी सिस्टम के लिए करती है.
चीन में एक सुपरमार्केट में फेशियल रेकग्निशन का इस्तेमालतस्वीर: Nicolas Asfouri/AFP/Getty Images
शोधकर्ता और निजता एक्टिविस्ट कई सालों से चेहरे को स्कैन करने वाले सॉफ्टवेयर का टेक उद्योग द्वारा इस्तेमाल को लेकर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना रहा है कि कई अध्ययनों में यह सामने आया है कि यह टेक्नोलॉजी नस्ल, लिंग या उम्र को लेकर ठीक से काम नहीं करती है.
एक चिंता यह रही है कि यह गहरे रंग वाले लोगों की पहचानने में गलती करती है.अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के नेथन वेस्लर कहते हैं कि एक और समस्या यह है कि इसका इस्तेमाल करने के लिए कंपनियों ने बहुत सारे लोगों के अलग अलग फेसप्रिंट बनाए हैं और ऐसा अक्सर बिना उनकी इजाजत के और कुछ इस तरह से किया है कि उनका इस्तेमाल करने लोगों पर नजर रखी जा सकती है.
नेथन की संस्था फेसबुक और दूसरी कंपनियों से इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को लेकर लड़ चुकी है. कंपनी के नए कदम को लेकर वो कहते हैं, "यह इस बात का बहुत बड़ा स्वीकरण है कि यह टेक्नोलॉजी अन्तर्निहित रूप से खतरनाक है."
सीके/एए (एपी)
क्या क्या कह देता है आपका चेहरा
आंखें अगर आत्मा का झरोखा हैं, तो चेहरा उस झरोखे का फ्रेम है. हमें अक्सर एहसास नहीं होता कि हमारे चेहरे के भाव हमारे बारे में बहुत कुछ बता देते हैं. यहां तक कि तटस्थ भाव भी बहुत कुछ बता देते हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Sezer
इतनी सी खुशी!
एक समय था जब कहा जाता था कि चेहरे के भावों की भाषा पूरी दुनिया में समझी जाती है. शोधकर्ताओं का मानना है कि चेहरे के भावों से हम जिन भावनाओं को दिखाते हैं वो सार्वभौमिक होती हैं. कुछ का तो मानना है कि मूल रूप से सात भावनाएं होती हैं - खुशी, आश्चर्य, उदासी, उपेक्षा, घृणा, डर और गुस्सा.
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मुस्कुराइए, कि आप संसार में हैं!
चेहरे की 43 मांसपेशियां होती हैं, जिन्हें दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है - एक वो जिनका इस्तेमाल हम खाने को चबाने के लिए करते हैं और दूसरे वो जिनका इस्तेमाल हम अपने भावों को व्यक्त करने के लिए करते हैं. कुछ अध्ययनों में भी यह भी दावा किया गया है कि मुस्कुराने और त्योरि चढ़ाने में बराबर संख्या में मांसपेशियों का इस्तेमाल होता है.
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छिपे हुए भावों से सावधान
मनोवैज्ञानिक चेहरे के भावों में छिपे मतलब को पढ़ते हैं. हमें कभी कभी अहसास नहीं होता कि हम अपने चेहरे के भावों से अपनी भावनाओं का संचार कर रहे हैं. जैसे मान लीजिए आपके चेहरे के कोने झुक गए तो कुछ लोग सोचेंगे कि आप नकारात्मक हैं, विश्वास के लायक नहीं हैं या नाराज हैं. अमूमन ऊपर की तरफ उठे हुए मुंह वाले चेहरों को ज्यादा सकारात्मक माना जाता है.
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आंखों की गुस्ताखियां!
आप पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को पसंद करते हों या नहीं, वो चेहरे पर भाव लाने की कला के महारथी हैं. हालांकि यह जरूरी नहीं कि उनका चेहरा हमेशा असलियत बयां कर रहा हो. आंखों में भी असली बात बता देने वाले लघु हाव भाव होते हैं और कभी कभी लोग उन्हें छुपाने के लिए मुंह पर तरह तरह के भाव ले आते हैं.
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छी!
क्या इस तस्वीर में ब्रिटेन की पूर्व मुख्यमंत्री थेरेसा मे रानी एलिजाबेथ द्वितीय की तरफ से आ रही किसी बदबू की वजह से नाक सिकोड़ रही थीं? ऐसा नहीं है. डार्विन ने कहा था कि मुमकिन है नाक को सिकोड़ने की आदत का विकास अप्रिय गैसों से खुद को बचाने की कोशिशों का नतीजा रहा होगा. लेकिन जैसा की हमने देखा, हम चेहरे के हाव भावों को अक्सर गलत पढ़ लेते हैं, खास कर जब वो कैमरे में कैद हो गए हों.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Dunham
खुशी के आंसू या दुख के?
दुख और सुख दोनों ही के आंसू सार्वभौमिक हैं लेकिन क्या आप हमेशा दोनों में फर्क कर सकते हैं? इसके लिए पूरी तस्वीर देखनी पड़ती है. क्या उस हाथ के नीचे एक मुस्कराहट छिपी हुई है? इस तस्वीर में तो नहीं. ऐसे में भंवों को देखें. अगर वो ऊपर की तरफ हैं तो इसका मतलब आश्चर्य हो सकता है. जब वो नीचे हों या एक दूसरे के पास हों तो वो दुख, गुस्सा और डर दिखाती हैं.
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एक पेचीदा भाव जिसे पढ़ना आसान नहीं
ये पुर्तगाल के फुटबॉल खिलाड़ी क्रिस्टियानो रोनाल्डो हैं. यहां पर वो गुस्सा कर रहे हैं या किसी चीज पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं? उनकी आंखों से कोई भी मतलब निकाला जा सकता है. लेकिन एक दूसरे के आस पास आ चुकी उनकी भवों और उनके खुले हुए मुंह को देखिए. क्या बेहतर नहीं होता कि आप रोनाल्डो को सुन और देख पाते?