फेसबुक पर बीमारी ठीक करने वालों का फेसबुक ने किया 'इलाज'
ऋषभ कुमार शर्मा
४ जुलाई २०१९
फेसबुक पर वजन कम करने से लेकर कैंसर तक के इलाज के दावे करने वाली पोस्ट आपने देखी ही होंगी. कई सारी पोस्ट भ्रामक और सनसनीखेज होती हैं. लेकिन अब फेसबुक इनका इलाज कर रहा है.
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फेसबुक पर आपने अकसर स्वास्थ्य, पोषण, उपचार, मोटापा घटाने और वजन कम करने जैसी पोस्ट देखी होंगी. कई पोस्ट तो ऐसी होती हैं जो पांच दिन में 20 किलो वजन कम करने जैसे दावे करती हैं. साथ ही ''पांच चीजें जिन्हें करने से कैंसर ठीक हो जाएगा'' जैसी स्वास्थ्य से जुड़ी भ्रामक पोस्ट अब फेसबुक पर देखने को कम मिलेंगी. फेसबुक न्यूजरूम पर फेसबुक के प्रॉडक्ट मैनेजर ट्रैविस येह ने इसकी जानकारी दी है.
येह ने लिखा कि लोग फेसबुक पर पोषण, फिटनेस और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की बात करते हैं लेकिन लोगों को उनके स्वास्थ्य के बारे में सही जानकारी देने के लिए फेसबुक ने फैसला किया है कि स्वास्थ्य से जुड़ी हुई सनसनीखेज और गलत जानकारी वाली सामग्री को फेसबुक से हटाया जाएगा. फेसबुक के न्यूज फीड में आने वाली सामग्री की गुणवत्ता में सुधार के लिए किए जा रहे प्रयासों में यह एक और कदम है. उन्होंने आगे लिखा कि इस तरह की सनसनीखेज और गलत जानकारी पूरे समुदाय के लिए सही नहीं है और लोग भी इसे पसंद नहीं करते हैं. इसके लिए फेसबुक ने जून में ऐसी पोस्ट्स को दो हिस्सों में बांटा है. पहला, ऐसी पोस्ट जो बढ़ा-चढ़ाकर लिखी गई हों और इनमें भ्रामक दावे किए गए हों. पांच दिन में 20 किलो वजन कम कर लेने वाली पोस्ट इसका उदाहरण है. दूसरा, ऐसी पोस्ट जो स्वास्थ्य के बारे में अलग-अलग दावे कर अपने उत्पादों को बेचने की कोशिश करते हैं.
येह के मुताबिक पहली अपडेट के लिए ऐसी पोस्ट को हटाया जाएगा जो किसी चमत्कारी इलाज का सनसनीखेज दावा करती हैं. और दूसरी अपडेट में ऐसे पोस्ट को हटाया जाएगा जो अपने उत्पाद के बारे में भ्रामक दावे कर रहे हों. उदाहरण के लिए एक गोली लेने से किसी का वजन कम हो जाएगा. इस तरह के भ्रामक दावा करने वाले उत्पादों की पोस्ट को भी फेसबुक से हटाया जाएगा.
इसी जानकारी में येह ने आगे लिखा कि फेसबुक पहले भी ऐसी कार्रवाई करता रहा है. पहले फेसबुक ने क्लिकबेट हैडिंग वाले सनसनीखेज सामग्रियों को हटाया था. क्लिकहेट हैडिंग मतलब ऐसी हैडिंग जो अपने आप में सनसनीखेज हो लेकिन उस लिंक में दी गई सूचना तथ्यात्मक रूप से हैडिंग से नहीं मिलती हो. साथ ही किसी भी उत्पाद के लिए किए जा रहे प्रचार में अगर भ्रामक दावे किए गए तो इसको न्यूज फीड से हटा दिया जाएगा या इसकी पहुंच बेहद कम कर दी जाएगी. येह ने कहा कि फेसबुक कम गुणवत्ता वाली सामग्री को हटाता रहेगा.
फेसबुक पेजों पर इसका क्या असर होगा
फेसबुक के एल्गॉरिदम में छोटा सा भी बदलाव होने पर फेसबुक पेजों की पहुंच पर गंभीर असर होता है. डिजिटल माध्यमों पर काम कर रही न्यूज वेबसाइटों सहित सभी फेसबुक पेज कई बार फेसबुक एल्गॉरिदम में होने वाले नुकसान का सामना करते हैं. हालांकि फेसबुक का इस मामले में कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि अधिकतर पेजों के सामान्य न्यूज फीड के वितरण में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. सिर्फ स्वास्थ्य को लेकर भ्रामक और सनसनीखेज दावे कर रही पोस्ट का वितरण कम हो जाएगा यानी ऐसी पोस्ट कम लोगों को दिखाई देगी. अगर कोई पेज जो पहले ऐसी पोस्ट करता रहा है लेकिन वो अब अपनी सामग्री में सुधार कर सनसनीखेज और भ्रामक दावों को हटा देता है तो उसकी पहुंच में कोई असर नहीं पड़ेगा.
फेसबुक का दावा है कि सामान्य पेजों पर इसका असर नहीं होगा. हालांकि फेसबुक की इस बात के लिए अकसर आलोचना होती रही है कि वो अपने यूजर्स को बिना जानकारी दिए एल्गॉरिदम में परिवर्तन कर देता है जिसका नुकसान यूजर्स को उठाना पड़ता है. कई सारी वेबसाइटों के लिए अपने यूजर्स तक पहुंचने का एक बड़ा जरिया फेसबुक है. ऐसे में फेसबुक और यूजर्स को अपने हितों को देखते हुए अपना काम करना होगा.
अपने ऑनलाइन एकाउंट की सुरक्षा के लिए यूजर पासवर्ड के अलावा टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं. इसमें सिक्युरिटी कोड फोन पर आ जाता है. लेकिन क्या फेसबुक जैसी कंपनी पर भरोसा किया जा सकता है.
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क्या है फीचर
फेसबुक का एक सिक्युरिटी फीचर है "टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन". फीचर का मकसद है यूजर के एकाउंट को हैकर्स से बचाना. इस सिस्टम में यूजर सबसे पहले अपने एकाउंट में लॉग-इन करता है और फिर अपना पासवर्ड डालता है. लेकिन इसके बाद यूजर की पहचान को पुख्ता करने के लिए दूसरे चरण में एक कोड यूजर के स्मार्टफोन पर भेजा जाता है. इसके बाद ही यूजर अपना फेसबुक एकाउंट एक्सेस करता है.
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ये हैं खामियां
फेसबुक के इस सिक्युरिटी फीचर में ढेर सारी खामियां हैं, जिसमें सबसे अहम है कि यह सब एक बाहर की कंपनी के प्लेटफॉर्म पर होता है. एक अमेरिकी स्टडी के मुताबिक जब यूजर अपने मोबाइल नंबर को फेसबुक पर रजिस्टर करता है तो वह अपने नंबर को मार्केटिंग से जुड़ी चीजों के लिए भी इस्तेमाल करने की इजाजत दे देता है.
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मार्केटिंग और बहुत कुछ
मार्केटिंग के अलावा, कंपनियां यूजर्स को फोन नंबर की मदद से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तलाश भी कर सकती हैं. इसका मतलब है कि अगर आपके पास किसी का मोबाइल नंबर है तो आप उसका प्रोफाइल आसानी से खोज सकते हैं. हैरानी की बात है कि इस फीचर को बंद नहीं किया जा सकता, लेकिन अपने फेसबुक फ्रेंड्स और उनकी फ्रैंड्स लिस्ट के लिए इसे सीमित किया जा सकता है.
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क्या है डर
जर्मनी के हैम्बर्ग में डाटा प्रोटेक्शन कमिश्नर योहानस कास्पर कहते हैं कि फेसबुक लोगों की सिक्योरिटी से जुड़ी चिंता को भुना रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "फेसबुक यूजर्स से बिना पूछे डाटा इस्तेमाल कर रहा है जो यूरोपीय कानूनों का उल्लघंन हैं." वहीं फेसबुक इस पर कुछ और ही तर्क देता है.
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फेसबुक का तर्क
अमेरिकी मीडिया में फेसबुक के हवाले से कहा गया है कि फेसबुक का यह फीचर यूजर को मोबाइल नंबर के जरिए अपने ऐसे दोस्तों को ढूंढने का मौका देता है जो उनके परिचित तो हैं लेकिन फेसबुक पर जुड़े नहीं हैं. फेसबुक का कहना है जो भी इस प्रक्रिया को गलत समझता है वह अपना मोबाइल नंबर नेटवर्क से डिलीट कर दे.
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नया फीचर
इस बहस के बीच एक नया टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन फीचर लॉन्च किया गया है, जिसमें मोबाइल नंबर के बजाय किसी बाहर की कंपनी द्वारा तैयार की गई ऑथेन्टिकेशन ऐप इस्तेमाल की जाती है. ऐप इस्तेमाल को विशेषज्ञ ज्यादा सुरक्षित तरीका मान रहे हैं. वहीं फेसबुक अब भी अपने यूजर्स से टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के इस्तेमाल के लिए कह रहा है.
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बैंकिंग में इस्तेमाल
कुछ मामलों में विशेषज्ञ टू-फैक्टर प्रक्रिया के इस्तेमाल पर जोर देते रहे हैं. ऐसे फीचर आमतौर पर बैंकिंग में इस्तेमाल किए जाते हैं. लेकिन मोबाइल फोन के जरिए यूजर ऑथेन्टिकेशन को अब सुरक्षित नहीं माना जा रहा है क्योंकि यह फीचर काफी कुछ उस कंपनी पर निर्भर करता है जो इसे ऑपरेट करती है.
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हैकर्स का खतरा
एक खामी और भी है. स्मार्टफोन पर टेकस्ट मैसेज तब भी दिखाई देते हैं जब फोन स्टैंडबाय पर हो, साथ ही फोन पर आया सिक्योरिटी कोड से जुड़ा मैसेज इन्क्रिप्टेड मतलब किसी कोड में नहीं होता. ऐसे में हैकर्स के लिए ऐसे संदेशों को मॉनिटर करना बेहद आसान हो जाता है. ऐसी सब कमियों के चलते अब विशेषज्ञ टू-फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के बजाय, ऑथेन्टिकेशन ऐप्स के इस्तेमाल की वकालत कर रहे हैं.
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मोबाइल नंबर से पहचान
विशेषज्ञ अब कहने लगे हैं कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोबाइल नंबर देना जोखिम भरा हो सकता है. अब कई कंपनियां यूजर से ईमेल एकाउंट सेट करने के लिए भी फोन नंबर मांगती हैं. जानकार कहते हैं कि मोबाइल नंबर किसी को पहचानने का सबसे बड़ा तरीका है. मोबाइल नंबर के जरिए कंपनियां यूजर की गतिविधियों पर नजर रख सकती हैं इसलिए डाटा पर निर्भर रहने वाली फेसबुक जैसी कंपनियां फोन नंबर पर जोर देती हैं.
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फीचर का विरोध
टेक उद्यमी जेरेमी बर्ज ट्विटर पर फेसबुक के इस फीचर का लंबे समय से विरोध कर रहे हैं. फेसबुक के पूर्व चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर एलेक्स स्टामोस भी इस फीचर की आलोचना करते हैं. एलेक्स कहते हैं, "फेसबुक का टू फैक्टर फीचर इसकी विश्वसनीयता को खतरे में डाल रहा है." कुछ विशेषज्ञ तो ये भी मानते हैं कि ये फीचर राजनीतिक ताकतों का विरोध करने वाले ऐसे लोगों के लिए खतरा साबित हो सकते हैं जो गुमनाम रहना चाहते हैं.
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असंवेदनशील होते यूजर
फेसबुक के इस मॉडल के चलते जानकारों को एक और डाटा स्कैंडल का डर सताने लगा है. कास्पर को डर है कि फेसबुक से जुड़े ऐसे खुलासे यूजर्स को असंवेदनशील बना सकते हैं, और इस वजह से हो सकता है फेसबुक डाटा सिक्योरिटी जैसी बातों पर ध्यान न दे और अपने मौजूदा बिजनेस मॉडल पर कायम रहे.
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फेसबुक नहीं सुधरा
पिछले सालों में एलेक्स स्टामोस की तरह फेसबुक के कई बड़े अधिकारियों ने कंपनी को अलविदा कह दिया है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक फेसबुक छोड़ कर गए अधिकारी डाटा सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दों पर कंपनी के साथ सहमत नहीं थे. यहां तक कि फेसबुक में चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर का पद अब तक खाली पड़ा हुआ है. इससे कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि डाटा सिक्योरिटी जैसे मुद्दों पर फेसबुक जैसी कंपनी गंभीर नहीं है.