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फिर से शुरू हो सकता है परमाणु परीक्षणों का दौर?

६ अक्टूबर २०२३

तीन दशक से थमा परमाणु परीक्षणों का दौर एक बार फिर शुरू हो सकता है. लेकिन ऐसा कोई क्यों करेगा?

रूस
रूस मिसाइल परीक्षण करता रहा हैतस्वीर: Russian Defense Ministry Press Service/AP/picture alliance

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि तीन दशक में पहली बार रूस परमाणु परीक्षण कर सकता है. इसका अर्थ होगा कि रूस परीक्षण प्रतिबंध संधि को तोड़ देगा. यह परमाणु हथियारों के दौरको एक बार फिर से शुरू करने की ओर अहम कदम हो सकता है, जो कई दशकों पहले खत्म हो गया था.

अमेरिका ने जुलाई 1945 में पहली बार परमाणु परीक्षण किया था. उसने न्यू मेक्सिको के एल्मोगोर्डो में 20 किलोटन परमाणु बम का परीक्षण किया था. ऐसे दो बम उसी साल अगस्त में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में गिराये गये थे.

चार साल बाद अगस्त 1949 में सोवियत संघ ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया. तब एक होड़ शुरू हुई जो कई दशकों तक जारी रही. 1945 से 1996 के बीच के पांच दशकों में 2,000 से ज्यादा परमाणु परीक्षण किये गये. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इनमें से 1,032 अकेले अमेरिका ने किये और 715 सोवियत संघ ने किये. ब्रिटेन ने 45, फ्रांस ने 210 और चीन ने 45 परीक्षण किये.

1996 में पूर्ण परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर के बाद अमेरिका और रूस ने परीक्षण करने बंद किये. तब से दुनिया में दस परमाणु परीक्षण हुए हैं. इनमें से दो भारत ने किये, जब 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय भारत ने पोखरण में परमाणु बम टेस्ट किया था. उसी साल पाकिस्तान ने भी दो परीक्षण किये. इसके अलावा उत्तर कोरिया ने 2006, 2009, 2013, 2016 और 2017 में परमाणु परीक्षण किये थे.

अमेरिका ने अपना आखिरी परमाणु परीक्षण 1992 में किया था. जबकि चीन और फ्रांस ने 1996 में. रूस ने 1990 के बाद से कोई परमाणु परीक्षण अब तक नहीं किया है.

परमाणु परीक्षणों पर पाबंदी

परमाणु परीक्षणों के नुकसान के कारण दुनियाभर के विशेषज्ञ लगातार चिंताएं जताते रहे हैं. उन्होंने इंसान और पर्यावरण की सेहत पर इनके नुकसानों को लेकर लगातार आगाह किया है.

परमाणु परीक्षणों के विरोध में काम करने वाले कार्यकर्ताओं की यह भी दलील है कि परीक्षणों को रोकने से दुनिया में तनाव कम किया जा सकता है.

रूस ने 1996 में सीटीबीटी पर हस्ताक्षर किये थे और साल 2000 में इसे रेटीफाई कर दिया था. अमेरिका ने 1996 में संधि पर हस्ताक्षर तो किये लेकिन इसे रेटीफाई नहीं किया.

फिर से परीक्षणों का दौर?

सवाल यह है कि कोई फिर से उस दौर को शुरू क्यों करना चाहेगा. कोविड महामारी और यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया कहीं ज्यादा विभाजित नजर आती है. ऐसे में परमाणु परीक्षण करने का मकसद सूचनाएं जुटाना भी हो सकता है और संकेत भेजना भी.

परीक्षणों के जरिये यह पता लगाया जा सकता है कि पुराने परमाणु हथियारों में कितना दम बचा है या नये हथियार कितने ताकतवर होंगे. 2020 में अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने खबर छापी थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने परमाणु परीक्षण करने पर चर्चा की थी.

अमेरिका तकनीकी डेटा जुटाने के अलावा इसलिए भी परीक्षण कर सकता है ताकि चीन और रूस को अपने प्रभुत्व का संकेत भेजा जा सके. ऐसा होता है तो जवाब में रूस भी परीक्षण करने से नहीं हिचकेगा. इसी साल फरवरी में जब यूक्रेन युद्ध को एक साल पूरा हुआ तो व्लादिमीर पुतिन ने कहा थाकि अगर अमेरिका ने परीक्षण शुरू किये तो रूस भी ऐसा ही करेगा.

गुरुवार को पुतिन ने एक बार यही बात कही और साथ में जोड़ा कि रूस ने सीटीबीटी को रेटीफाई किया है लेकिन अमेरिका ने ऐसा नहीं किया है. उन्होंने कहा कि रूसी संसद भी अपनी रेटीफिकेशन को वापस ले सकती है.

पुतिन ने कहा, "मैं ऐसा कहने को तैयार नहीं हूं कि हमें टेस्ट करने हैं या नहीं लेकिन सैद्धांतिक तौर पर हम वैसा ही व्यवहार करेंगे, जैसा अमेरिका करेगा.”

वीके/एए (रॉयटर्स)

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