तीन दशक से थमा परमाणु परीक्षणों का दौर एक बार फिर शुरू हो सकता है. लेकिन ऐसा कोई क्यों करेगा?
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि तीन दशक में पहली बार रूस परमाणु परीक्षण कर सकता है. इसका अर्थ होगा कि रूस परीक्षण प्रतिबंध संधि को तोड़ देगा. यह परमाणु हथियारों के दौरको एक बार फिर से शुरू करने की ओर अहम कदम हो सकता है, जो कई दशकों पहले खत्म हो गया था.
अमेरिका ने जुलाई 1945 में पहली बार परमाणु परीक्षण किया था. उसने न्यू मेक्सिको के एल्मोगोर्डो में 20 किलोटन परमाणु बम का परीक्षण किया था. ऐसे दो बम उसी साल अगस्त में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में गिराये गये थे.
कितना बड़ा है रूस का परमाणु जखीरा
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि रूस फिर से परमाणु परीक्षण कर सकता है. उन्होंने नए रणनीतिक हथियारों को मोर्चे पर तैनात करने की भी बात कही. देखिए, कितना बड़ा है रूस के परमाणु हथियारों का जखीरा.
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न्यूक्लियर सुपरपावर
रूस परमाणु महाशक्ति है. 2022 के आंकड़ों के मुताबिक उसके पास 5,977 परमाणु हथियार थे. फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स के मुताबिक अमेरिका के पास 5,428 परमाणु हथियार हैं, यानी रूस से कम.
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रिजर्व में
रूस ने 1,500 हथियार सेवानिवृत्त कर दिए हैं लेकिन उन्हें नष्ट शायद नहीं किया गया है. 2,889 रिजर्व में रखे गए हैं जबकि 1,588 मोर्चे पर तैनात हैं.
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मिसाइलों पर तैनाती
रूस ने लगभग 800 परमाणु बम तो जमीन से मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों पर तैनात कर रखे हैं जबकि करीब 576 पनडुब्बियों पर तैनात हैं. 200 बम विमानों पर तैनात हैं.
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तैयार मिसाइल
बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स कहता है कि रूस के पास परमाणु बमों से लैस 400 अंतरमहाद्वीपीय मिसाइलें हैं जो 1,185 बम ले जाने की क्षमता रखती हैं.
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पनडुब्बियां
रूस के पास 10 परमाणु शक्तिसंपन्न पनडुब्बियां भी हैं जो 800 बम बरसाने की क्षमता से लैस हैं. इसके अलावा 60-70 विमान भी हैं जिनमें परमाणु हमले करने की ताकत है.
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बाकी देशों के पास
अमेरिका ने 1,644 बम तैनात किए हुए हैं, यानी रूस से कुछ ज्यादा. चीन के पास कुल 350 परमाणु बम हैं जबकि फ्रांस के पास 290 और ब्रिटेन के पास 225 बम तैयार हैं.
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शीत युद्ध से तुलना
शीत युद्ध के दौरान यानी जब अमेरिका और रूस के बीच तनाव चरम पर था, तब एक वक्त में सोवियत संघ के पास 40 हजार परमाणु हथियार थे जबकि अमेरिका के पास 30 हजार.
चार साल बाद अगस्त 1949 में सोवियत संघ ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया. तब एक होड़ शुरू हुई जो कई दशकों तक जारी रही. 1945 से 1996 के बीच के पांच दशकों में 2,000 से ज्यादा परमाणु परीक्षण किये गये. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इनमें से 1,032 अकेले अमेरिका ने किये और 715 सोवियत संघ ने किये. ब्रिटेन ने 45, फ्रांस ने 210 और चीन ने 45 परीक्षण किये.
1996 में पूर्ण परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर के बाद अमेरिका और रूस ने परीक्षण करने बंद किये. तब से दुनिया में दस परमाणु परीक्षण हुए हैं. इनमें से दो भारत ने किये, जब 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय भारत ने पोखरण में परमाणु बम टेस्ट किया था. उसी साल पाकिस्तान ने भी दो परीक्षण किये. इसके अलावा उत्तर कोरिया ने 2006, 2009, 2013, 2016 और 2017 में परमाणु परीक्षण किये थे.
अमेरिका ने अपना आखिरी परमाणु परीक्षण 1992 में किया था. जबकि चीन और फ्रांस ने 1996 में. रूस ने 1990 के बाद से कोई परमाणु परीक्षण अब तक नहीं किया है.
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परमाणु परीक्षणों पर पाबंदी
परमाणु परीक्षणों के नुकसान के कारण दुनियाभर के विशेषज्ञ लगातार चिंताएं जताते रहे हैं. उन्होंने इंसान और पर्यावरण की सेहत पर इनके नुकसानों को लेकर लगातार आगाह किया है.
परमाणु परीक्षणों के विरोध में काम करने वाले कार्यकर्ताओं की यह भी दलील है कि परीक्षणों को रोकने से दुनिया में तनाव कम किया जा सकता है.
रूस ने 1996 में सीटीबीटी पर हस्ताक्षर किये थे और साल 2000 में इसे रेटीफाई कर दिया था. अमेरिका ने 1996 में संधि पर हस्ताक्षर तो किये लेकिन इसे रेटीफाई नहीं किया.
फिर से परीक्षणों का दौर?
सवाल यह है कि कोई फिर से उस दौर को शुरू क्यों करना चाहेगा. कोविड महामारी और यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया कहीं ज्यादा विभाजित नजर आती है. ऐसे में परमाणु परीक्षण करने का मकसद सूचनाएं जुटाना भी हो सकता है और संकेत भेजना भी.
परीक्षणों के जरिये यह पता लगाया जा सकता है कि पुराने परमाणु हथियारों में कितना दम बचा है या नये हथियार कितने ताकतवर होंगे. 2020 में अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने खबर छापी थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने परमाणु परीक्षण करने पर चर्चा की थी.
किम जोंग उन के पांच साल, कितना बदला उत्तर कोरिया
पांच साल हो गए हैं जब उत्तर कोरिया में किम जोंग उन ने अपने पिता की मौत के बाद सत्ता संभाली थी. इन पांच सालों में क्या क्या बदला, आइए डालते हैं एक नज़र
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किम परिवार की सत्ता
उत्तर कोरिया पर पिछले सात दशकों से किम परिवार का ही शासन है. 1948 से लेकर 1994 तक देश की सत्ता किम जोंग उन के दादा किम इल सुंग के हाथ में रही जबकि उनके पिता ने किम जोंग इल 1997 से 2011 तक उत्तर कोरिया के नेता रहे.
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शख्सियत
किम जोंग उन कई मायनों अपने पिता से ज्यादा अपने दादा की तरह दिखते हैं. बालों का अंदाज भी उन्होंने अपने दादा के जैसा ही अपनाया है. किम जोंग इल शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से बोले हों, लेकिन किम जोंग उन कई बार सार्वजनिक तौर पर अपनी बात रख चुके हैं. मई में पार्टी कांग्रेस में वह लगातार चार घंटे बोले.
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बर्बर और क्रूर
किम जोंग उन ने अपने फूफा को मौत की सजा देकर साबित करने की कोशिश की कि वह स्वतंत्र हैं और उन्हीं तरीकों का इस्तेमाल करने में उन्हें कोई समस्या नहीं है जो उनके पिता और दादा करते रहे हैं.
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नहीं गए विदेश
अमेरिकी बॉलीवॉल एसोशिएशन एनबीए के स्टार खिलाड़ी डेनिस रोडमैन से कुछ समय के लिए उनकी दोस्ती हुई. लेकिन अभी तक उन्होंने कोई विदेश दौरा नहीं किया है.
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परमाणु हथियार
किम जोंग उन के पांच साल के दौरान उत्तर कोरिया ने पांच परमाणु परीक्षण किए. उत्तर कोरिया ने अपने पास हाइड्रोजन बम होने का दावा भी किया. किम जोन उन का उत्तर कोरिया आधुनिक परमाणु हथियार और मिसाइल टेक्नोलजी की दिशा में आगे तेजी से बढ़ रहा है ताकि वह दक्षिण कोरिया, जापान और वहां तैनात 50 हजार सैनिकों को निशाना बना सके.
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अंतरिक्ष में छलांग
उत्तर कोरिया अंतरिक्ष शोध की रेस में भी शामिल हो गया है. वह अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेज रहा है और अगले दशक में उसका इरादा चांद तक पहुंच जाने का है.
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बदलती प्राथमिकता
किम जोंग इल के शासन में उत्तर कोरिया की प्राथमिकता थी “सेना सबसे पहले”. लेकिन किम जोंग उन के दौर में प्राथमिकता बेहतर परमाणु हथियार बनाने और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर है. वे साइंस और टेक्नोलजी पार्क विकसित कर रहे हैं.
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“वफादारी अभियान”
यह बात पहले से मानी जाती है कि उत्तर कोरिया के पास परमाणु हथियार हैं. उसकी अर्थव्यवस्था की हालत जाहिर तौर पर खराब है लेकिन उनमें बेहतरी के कुछ संकेत दिख रहे है. किम जोंग उन ने “वफादारी अभियानों” के जरिए लोगों से पार्टटाइम करने को कहा है ताकि देश को बेहतर बनाया जा सके.
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आमदनी के नए स्रोत
किम जोंग उन ने वक्त की जरूरत को देखते हुए पूंजीवादी शैली के बाजारों और उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया है और घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा रहा है. देश को राजस्व दिलाने के नए स्रोत तैयार किए जा रहे हैं.
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सपन्नता के ‘साइड इफेक्ट’
इसका असर देश की राजधानी प्योंगयांग पर दिखता है जहां टैक्सी से लेकर कॉफी शॉप और स्ट्रीट स्टॉल बढ़े हैं. लेकिन इसके कारण पैदा हो रहा मध्य वर्ग किम के लिए समस्या भी बन सकता है क्योंकि यह वर्ग पूंजीवादी विचारों के लिए ज्यादा खुला है या कहें कि उसमें धन हासिल करने की लालसा है.
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मनोरंजन का ख्याल
किम जोंग उन ने कई बार उत्तर कोरिया को “अधिक सभ्य” राष्ट्र बनाने की बात कही है. उन्होंने राजधानी प्योंगयांग में घुड़सवारी सेंटर और एक शानदार वॉटर पार्क तैयार कराया है. यही नहीं, पूर्वी तट पर वोनसान शहर में एक लग्जरी स्की रिसॉर्ट भी बनवाया गया है.
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“बॉय जनरल”
किम ने डिज्नी की क्वॉलिटी की एक एनिमेशन सिरीज “बॉय जनरल” भी तैयार कराई है, जो उत्तर कोरिया में बहुत हिट रही है. हालांकि इसका आदेश उनके पिता ने दिया था.
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खेलों में दम
किम जोंग उन उत्तर कोरिया को खेलों की दुनिया की एक ताकत बनाना चाहते हैं. यह देश के स्वास्थ्य और राष्ट्रीय गर्व से भी जुड़ा है. बड़े आयोजनों में उत्तर कोरिया ने कई पदक भी जीते हैं. (रिपोर्ट: एपी/एके)
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अमेरिका तकनीकी डेटा जुटाने के अलावा इसलिए भी परीक्षण कर सकता है ताकि चीन और रूस को अपने प्रभुत्व का संकेत भेजा जा सके. ऐसा होता है तो जवाब में रूस भी परीक्षण करने से नहीं हिचकेगा. इसी साल फरवरी में जब यूक्रेन युद्ध को एक साल पूरा हुआ तो व्लादिमीर पुतिन ने कहा थाकि अगर अमेरिका ने परीक्षण शुरू किये तो रूस भी ऐसा ही करेगा.
गुरुवार को पुतिन ने एक बार यही बात कही और साथ में जोड़ा कि रूस ने सीटीबीटी को रेटीफाई किया है लेकिन अमेरिका ने ऐसा नहीं किया है. उन्होंने कहा कि रूसी संसद भी अपनी रेटीफिकेशन को वापस ले सकती है.
पुतिन ने कहा, "मैं ऐसा कहने को तैयार नहीं हूं कि हमें टेस्ट करने हैं या नहीं लेकिन सैद्धांतिक तौर पर हम वैसा ही व्यवहार करेंगे, जैसा अमेरिका करेगा.”