नई रिसर्च से पता चला है कि डायनासोर के मल, उल्टी और पेट में बचे जीवाश्मों ने बताया कि डायनासोर कैसे धरती पर राज करने लगे.
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डायनासोर के बारे में अब तक हुए अध्ययनों ने विज्ञान को बहुत कुछ बताया है, खासकर उनके 6.6 करोड़ साल पहले गायब होने के बारे में. लेकिन उनके उभार के बारे में अभी भी बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है. स्वीडन की उप्साला यूनिवर्सिटी के रिसर्चर मार्टिन क्वार्नस्ट्रॉम इस बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं.
वह कहते हैं, "हम उनके उभरने के बारे में बहुत कम जानते हैं."
डायनासोर कम से कम 23 करोड़ साल पहले धरती पर आए. लेकिन वे 3 करोड़ मिलियन साल बाद जुरासिक युग की शुरुआत में दुनिया पर राज करने लगे. उनके इस उत्थान की वजह और इसमें लगे समय को लेकर वैज्ञानिकों में काफी बहस रही है.
क्वार्नस्ट्रॉम और उनकी टीम ने डायनासोर के मल, उलटी और उनके पेट में बचे जीवाश्मों का अध्ययन किया है. इस यूरोपीय टीम ने पोलैंड की कई जगहों से मिले 500 से ज्यादा "ब्रोमालाइट्स" का गहराई से अध्ययन किया.
ब्रोमालाइट्स मल, उल्टी और पेट में बचे अधपचे खाने के जीवाश्म होते हैं. क्वार्नस्ट्रॉम समझाते हैं, "इन ब्रोमालाइट्स को देखकर पता लगाया जा सकता है कि किसने क्या खाया."
क्या पता चला?
वैज्ञानिकों ने सिंक्रोट्रॉन माइक्रोटोमोग्राफी जैसी तकनीक से सैंपल की थ्रीडी तस्वीरें बनाईं. इनमें कीड़े, पौधे, मछलियों और बड़े जानवरों के अवशेष मिले. इन जानकारियों को जलवायु और अन्य जीवाश्मों के डेटा से जोड़कर डायनासोर के धीरे-धीरे उभरने का मॉडल बनाया गया.
डायनासोरों के वो वंशज, जो आपके छत की मुंडेर पर बैठते हैं
करीब 6.6 करोड़ साल पहले आसमानी कहर बनकर आए ऐस्टेरॉइड ने डायनासोरों को मिटा तो दिया, लेकिन उनकी समूची हस्ती खत्म नहीं हुई. उनके वंशज आज भी हमारे बीच रहते हैं.
तस्वीर: Sadak Souici/ZUMA/picture alliance
बचे रहे गए डायनासोर!
रिसर्चर मानते हैं कि 6.6 करोड़ साल पहले एक रोज सुदूर अंतरिक्ष से आया एक ऐस्टेरॉइड पृथ्वी पर गिरा. उसकी धमक से पैदा हुए असर ने पृथ्वी से सबसे विशालकाय जीव डायनासोरों का खात्मा कर दिया. मगर उस हादसे के बाद भी डायनासोरों का एक नामलेवा बचा रह गया. उनके वंशज आज भी हमारी इसी दुनिया में रहते हैं. कुछ चटक रंग वाले, बहुत सुंदर, बला के मेहनती, कई मंजे हुए कारीगर, तो कई बेहतरीन गायक-संगीतकार हैं.
तस्वीर: Peter Schneider/KEYSTONE/picture alliance
गौरैया, कबूतर... सारे पक्षियों का पूर्वज
डायनासोर के खानदान का एक सदस्य था, ट्रायनोसॉरस रेक्स. अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के मुताबिक, यह लंबाई में करीब 40 फीट और ऊंचाई में 12 फीट था. वजन, पांच से सात हजार किलो तक. यह पृथ्वी पर अब तक के सबसे खूंखार शिकारियों में एक माना जाता है. अब सोचिए, यह ट्रायनोसॉरस रेक्स उन डायनासोरों में हैं, जो नन्ही सी गौरैया के पूर्वज हैं. पेलियनटॉलजिस्ट की मानें, तो पक्षी अपने आप में एक डायनासोर हैं.
तस्वीर: R. Sturm/blickwinkel/picture alliance
थेरोपॉड डायनासोर
अधिकतर मांसभक्षी डायनासोर, थेरोपॉड समूह के थे. पक्षी भी इसी समूह से ताल्लुक रखते हैं. दिलचस्प यह है कि उड़ने वाले पक्षी, जिन थेरोपॉड्स के वंशज हैं वो उड़ते नहीं थे. मतलब, आप कह सकते हैं कि पक्षी दरअसल उड़ने वाले डायनासोर हैं. इस निष्कर्ष पर पहुंचने में दक्षिणी जर्मनी में हुई एक खोज बड़ी अहम साबित हुई.
तस्वीर: R. Sturm/p blickwinkel/icture alliance
अब तक ज्ञात सबसे प्राचीन पक्षी
जर्मनी के बवेरिया प्रांत में एक लाइमस्टोन संरचना है. जॉलेनहोफेन नाम के एक गांव के नजदीक होने के कारण इसे 'जॉलेनहोफेन लाइमस्टोन' कहते हैं. 1861 में यहां एक अनूठा जीवाश्म मिला, जिसे नाम दिया गया: ऑर्कियॉप्टरिक्स लीथोग्रैफिका. इसकी संरचना दो समूहों का मिश्रण थी: छिपकली और पक्षी. यह खोज प्राचीन डायनासोरों और आधुनिक पक्षियों के रिश्ते को समझने में एक बड़ा मोड़ मानी जाती है.
मुमकिन है, पक्षियों का इससे भी प्राचीन कोई स्वरूप हो. कुछ ऐसा, जिससे विकसित होते हुए ऑर्कियॉप्टरिक्स लीथोग्रैफिका बना हो. हालांकि, इसका जीवाश्म के रूप में अब तक कोई सबूत नहीं मिला. बहरहाल, जिस लाइमस्टोन में ऑर्कियॉप्टरिक्स का जीवाश्म मिला, उसमें उसके पंखों की आकृति भी दर्ज रह गई थी. ये पंख वैसे ही हैं, जैसे आज के पक्षियों में होते हैं.
तस्वीर: TONY KARUMBA/AFP
कैसे विकसित हुए आधुनिक पक्षी
डायनासोरों ने पृथ्वी पर बहुत ही लंबे समय तक राज किया. 14 करोड़ साल से ज्यादा वक्त तक उनकी बाहशाहत कायम रही. फिर सुदूर अंतरिक्ष के ऐस्टेरॉइड बेल्ट से आए एक विशालकाय ऐस्टेरॉइड का पृथ्वी से टकराना उनके अंत की वजह बना. डायनासोर विलुप्त हो गए, लेकिन पूरी तरह नहीं. थेरोपॉड परिवार के उनके पक्षीनुमा सदस्य बचे रहे. आप आज के पक्षियों को देखें, तो वो बाकी जीवों से कई बातों में अलग हैं.
तस्वीर: Wissen Media Verlag/dpa/picture alliance
करोड़ों सालों तक विकसित होते रहे
इनके प्राचीन पूर्वज तो और भी अलग दिखते थे. उनकी रूपरेखा डायनासोर से ज्यादा मेल खाती थी. पक्षियों के उस प्राचीन स्वरूप और आधुनिक पक्षियों में जो बदलाव दिखता है, वो करोड़ों साल तक हुए विकासक्रम का हासिल है. नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के मुताबिक, ऐस्टेरॉइड के टकराने के बाद अगले 6.6 करोड़ सालों में प्राचीन पक्षियों का वो स्वरूप कई तरीकों से विकसित होता रहा.
तस्वीर: Andrey Atuchin and the Denver Museum of Nature and Science/REUTERS
विकास के लंबे सालों में कई खासियतें हासिल कीं
इन्होंने कई खासियतें विकसित कीं, जो उन्होंने बाकी जीवों से अलग बनाती हैं. मसलन, उनके शरीर पर उगे पर. शरीर के दोनों ओर उगे डैनों का जोड़ा, जो उन्हें उड़ने की ताकत देता है. चमगादड़ को छोड़ दें, तो रीढ़ वाले जीवों में एकमात्र पक्षी ही हैं जो रफ्तार के साथ हुए उड़ान भर सकते हैं. कुछ और खासियतें हैं, जो हमें नंगी आंखों से नहीं दिखती. कुछ और खासियतें हैं, जो हमें नंगी आंखों से नहीं दिखती.
तस्वीर: Mary Altaffer/AP Photo/picture alliance
कमाल के कामयाब जीव
खासियत जैसे कि सिर के अनुपात में बड़ा मस्तिष्क. खोखली हड्डियों वाला हल्का कंकाल, जो उड़ने में उनकी मदद करता है. जीव इतिहास में देखिए, तो पक्षी सबसे सफल जीवों में हैं. उन्होंने क्रैटेशियस पीरियड के अंत में हुए मास एक्सटिंशन को भी चकमा दे दिया. आज पक्षियों की 11,000 से ज्यादा प्रजातियां हैं. अलग-अलग रंग, आकार, आदतों वाले ये पक्षी आर्कटिक से लेकर अंटार्कटिक तक, दुनिया के हर महादेश में पाए जाते हैं.
तस्वीर: Helge Schulz/Zoonar/picture alliance
प्रवासी पक्षी: मुश्किलों से पार पाकर बने रहने की एक प्रेरणा
ये रेगिस्तान से लेकर वर्षावन, कई कुदरती परिवेशों में जीते हैं. कितनी अद्भुत बात है कि प्रवासी पक्षियों ने मौसम के हिसाब से अलग-अलग घर बनाए. गर्मियों के लिए एक जगह को चुना और सर्दियों के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी सैकड़ों किलोमीटर दूर कहीं कतार बांधकर पहुंचते रहे. यह क्या है? मुश्किलों से पार पाकर जीना, बदलते हालात के मुताबिक ढलना, अपनी प्रजाति को बचाए रखने की अकूत इच्छाशक्ति, यानी इवॉल्यूशन का सार!
तस्वीर: Menahem Kahana/AFP
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ब्रोमालाइट्स की लंबाई और चौड़ाई 3 करोड़ साल में तीन गुना हो गई थी. इससे निष्कर्ष निकाला गया कि इन्हें पचाने वाले जानवर भी तीन गुना बड़े हो गए. कुछ अवशेष डायनासोर के शुरुआती पूर्वज साइलोसॉरस के थे. साइलोसॉरस केवल 15 किलो का छोटा जानवर था, जो टी-रेक्स से बहुत अलग था.
उस समय मुख्य जीव बड़े शाकाहारी डायनासोर, डाइसिनोडोंट्स थे, जिनका वजन कई टन था. साइलोसॉरस को उनका सर्वाहारी (हर चीज खाने वाला) होना फायदा पहुंचाता था. क्वार्नस्ट्रॉम कहते हैं, "उसके मल से पता चला कि वह कीड़े, मछलियां और पौधे खा रहा था."
यह गुण उसे पर्यावरण के बदलावों के साथ जल्दी ढलने में मदद करता था. उदाहरण के लिए, एक भारी बारिश वाले दौर, कार्नियन प्लुवियल में नई पौधों की प्रजातियां विकसित हुईं. डाइसिनोडोंट्स इस बदलाव में पीछे रह गए.
लेकिन साइलोसॉरस और उसके बाद के लंबे गले वाले डायनासोर, जैसे डिप्लोडोकस के पूर्वज, इन नए पौधों को आसानी से खाने लगे. छोटे डायनासोर नए खाने से बड़े हुए और उन पर निर्भर मांसाहारी भी बढ़ने लगे. जुरासिक युग में बड़े शाकाहारी और खतरनाक मांसाहारी डायनासोर हावी हो गए.
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आगे का रास्ता
यह अध्ययन भी डायनासोर के धरती पर राज का कारण पूरी तरह साफ नहीं कर पाया है. विज्ञान जगत में इस बारे में दो सिद्धांत हैं. पहला यह कि डायनासोर ने अपने शारीरिक फायदे, जैसे सीधे खड़े होकर चलने की वजह से अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराया.
दूसरा सिद्धांत कहता है कि पर्यावरणीय बदलाव, जैसे ज्वालामुखी विस्फोट या जलवायु में बदलाव, से पुराने जानवर खत्म हुए और डायनासोर को जगह मिली. नई रिसर्च में कहा गया कि ये दोनों कारणों का मेल हो सकता है. यानी, डायनासोर ने अपने गुणों से पर्यावरणीय बदलावों का फायदा उठाया.
वो कंकाल जिसने खोला डायनासोरों का राज
04:27
न्यूयॉर्क के ले मॉयन कॉलेज के रिसर्चर लॉरेंस टैनर ने कहा कि यह स्टडी "आगे की रिसर्च के लिए शुरुआत" हो सकती है. उन्होंने इसे "क्रिएटिव" तो बताया, लेकिन कहा कि यह सीमित क्षेत्र, पोलिश बेसिन, पर आधारित है. क्वार्नस्ट्रॉम ने भी माना कि इस मॉडल को अन्य क्षेत्रों, जैसे पैंजिया के दक्षिणी भाग, में इस्तेमाल करना "मजेदार" होगा.