28 मार्च को इंडोनेशिया के सुलावेसी प्रांत की राजधानी मकासर में सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल चर्च के पास आत्मघाती हमला हुआ था. इस हमले को अंजाम ऐसे पति और पत्नी ने दिया था जिनकी हाल में शादी हुई थी.
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पाम संडे के मौके पर इंडोनेशियाई कैथेड्रल के बाहर नई शादी के बंधन में बंधी जोड़ी ने एक आत्मघाती हमले को अंजाम दिया था. वे इस्लामिक स्टेट आतंकी समूह से प्रभावित थे. इस हमले में 20 लोग घायल हुए थे और पति और पत्नी की मौत हो गई थी. पिछले साल अगस्त में मोहम्मद लुकमान की शादी हुई थी. शादी लुकमान के इस्लामी प्रार्थना समूह के प्रमुख रिजाल्दी के घर पर हुई थी. रिजाल्दी का घर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर स्थित है. शादी को कुछ महीने ही बीते होंगे और दोनों शौहर और बीवी ने प्रेशर कुकर बम छाती पर बांधकर मकासर में सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल के बाहर खुद को उड़ा लिया. जनवरी महीने में रिजाल्दी की आतंक रोधी बल के साथ मुठभेड़ में मौत हुई थी. दोनों की शादी रिजाल्दी के घर पर ही हुई थी.
नई-नई शादी वाले आत्मघाती हमलावर ही इस हमले में मारे गए. लेकिन यह वारदात दक्षिण पूर्व एशिया में एक ऐसी तस्वीर पेश करती है जिससे पता चलता है कि इस्लामिक स्टेट की खतरनाक विरासत है और क्षेत्र में व्यक्तिगत और पारिवारिक संबंध धार्मिक चरमपंथियों को साथ बांधे हुए हैं. सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में आईएसआईएस के समर्थक दो साल बाद भी खतरा बने हुए, जबकि सीरिया और इराक में इस समूह की हार हुई है. हाल के साल में इंडोनेशिया में इस तरह से पति और पत्नी आत्मघाती हमलावरों द्वारा यह तीसरी घटना है.
साल 2018 में छह सदस्यीय परिवार ने सुराबाया के जावानीस शहर के अलग-अलग चर्चों में बम बांधकर खुद को उड़ा लिया था. इन हमलों में 28 लोगों की मौत हुई थी. सीरियल ब्लास्ट को पति, पत्नी और उनके चार बच्चों ने अंजाम दिया था.
इसके एक साल के भीतर ही उल्फा हंदनयानी सलेह और उसके पति रूली रियान जेके ने फिलीपींस में कैथेड्रल में खुद को उड़ा लिया, जिसमें 23 लोगों की मौत हुई और 100 से अधिक लोग घायल हुए. उल्फा, रिजाल्दी की बहन थी जिसके घर पर मकासर के हमलावरों का निकाह हुआ था.
एस राजरत्नम स्कूल ऑफ इंटरनैशल स्टडीज में फेलो नूर-उल हुदा कहते हैं, "यह आईएसआईएस की अनूठी विरासत है, जिसके उदय को बढ़ावा पारिवारिक आतंकवाद से मिलता है." वे कहते हैं, "कई इंडोनेशियाई आईएसआईएस में बतौर परिवार के सदस्यों के रूप में शामिल हुए."
जकार्ता स्थित इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी एनालिसिस ऑफ कॉन्फ्लिक्ट की निदेशक सिडनी जोंस के मुताबिक आईएसआईएस में शामिल होने के लिए 1,100 से अधिक इंडोनेशियाई देश छोड़कर चले गए जिनमें कई परिवार भी है. वे कहती हैं कि आईएसआईएस की हार के बाद सैकड़ों लोगों को साल 2019 में निर्वासित या वापस देश भेज दिया गया.
एए/सीके (रॉयटर्स)
बामियान बुद्ध के तोड़े जाने के 20 साल
गौतम बुद्ध को खड़ी मुद्रा में दिखाती हुई दुनिया की सबसे बड़ी मूर्तियां अफगानिस्तान में डेढ़ सहस्त्राब्दी तक वक्त के थपेड़े सह गईं. लेकिन फिर तालिबान का शासन आया और उन्होंने उन मूर्तियों को तोड़ दिया.
तस्वीर: Xinhua/imago images
बामियान घाटी में एक बौद्ध केंद्र
ये मूर्तियां चीन और दक्षिण एशिया के बीच एक प्राचीन व्यापार मार्ग पर स्थित थीं. काबुल से करीब 200 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में बामियान घाटी एक बौद्ध केंद्र थी. छठी शताब्दी में कई बौद्ध संयासी इस घाटी में रहते थे.
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बौद्ध साधुओं ने ही सब कुछ बनाया
बौद्ध संयासियों के साथ ही केंद्रीय अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाकों में बौद्ध कला और संस्कृति आई. लाल रेतीले पत्थर की बड़ी बड़ी चट्टानों में रहने लायक गुफाएं बनाई गईं. बुद्ध की वो मूर्तियां भी इसी पत्थर से बनाई गई थीं.
सातवीं शताब्दी में चीनी बौद्ध साधू और यात्री ह्यून सांग अपनी भारत यात्रा के बाद चीन वापस लौटे. लौटते समय वो बामियान घाटी से गुजरे और उसके बारे में लिखा, "यहां दर्जनों मठ हैं जिनमें एक हजार से भी ज्यादा संयासी हैं. बुद्ध की खड़ी हुई प्रतिमा करीब 50 मीटर ऊंची है और ऐसी चमकती है जैसे सोने की हो."
तस्वीर: ZUMA Wire/imago images
कई पद्धतियों का मिश्रण
सबसे बड़ी मूर्ती 53 मीटर ऊंची थी और उसमें बुद्ध के 'दीपांकर' रूप को दिखाया गया था, जिसे "रौशनी जलाने वाला" कहा जाता है. कला इतिहासकारों के मुताबिक, इसमें बौद्ध कला के साथ साथ यूनानी परंपरा की विशेषताओं का भी मिश्रण था.
तस्वीर: MAXPPP/Kyodo/picture alliance
पर्यटन के केंद्र से जंग के मैदान तक
सन 1000 ईस्वी में बामियान घाटी के इस्लामीकरण के बाद भी ये मूर्तियां खड़ी रहीं. बीसवीं सदी में ये पर्यटन का एक केंद्र बन गईं. लेकिन 1979 में सोवियत कब्जे के बाद इस जगह की तस्वीर बदल गई. इसके बाद एक दशक तक वहां चले युद्ध में इन गुफाओं का गोलाबारूद के गोदामों की तरह इस्तेमाल किया जाता था. इसी घाटी में अमेरिका के समर्थन से मुजाहिदीन ने सोवियत सैनिकों से जम कर लड़ाई की.
मार्च 2001 में अफगानिस्तान में अपना शासन कायम कर चुके तालिबान ने मूर्तियों को बम से उड़ा दिया. उन मूर्तियों का धार्मिक महत्व बहुत पहले ही खत्म हो चुका था, लेकिन तालिबान के कट्टरपंथी शासन में बुतों की कोई जगह नहीं थी. तालिबान ने राजधानी काबुल में राष्ट्रीय संग्रहालय को भी तोड़ फोड़ दिया.
तस्वीर: Saeed Khan/dpa/picture alliance
क्या हमेशा के लिए खो गईं?
उन मूर्तियों के तोड़े जाने के बाद उन्हें यूनेस्को की अंतरराष्ट्र्रीय धरोहर सूची में शामिल किया गया. उन मूर्तियों को फिर से बनाने के कई प्रस्ताव सामने आए हैं पर अभी तक किसी पर भी अमल नहीं हुआ है. प्रतिमाओं के विध्वंस के 20 साल पूरे होने पर एक संस्था ने उनमें से एक की थ्रीडी छवि के जरिए उसे दोबारा जिंदा करने की कोशिश की.