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भारत-पाक तनाव के कारण मां से जुदा हुए बच्चे

२६ अप्रैल २०२५

भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के नागरिकों को मिले वीजा रद्द कर दिए हैं. इस कारण बहुत से परिवार बिछड़ गए हैं.

अमृतसर में पाकिस्तान भारत सीमा
दोनों देशों ने एक दूसरे के सारे वीजा रद्द कर दिए हैंतस्वीर: Pawan Kumar/REUTERS

भारत और पाकिस्तान के बीच चरम पर पहुंचे तनाव ने अटारी-वाघा बॉर्डर को दर्द और जुदाई का मैदान बना दिया है. सरकारी फैसलों ने सीमाएं तो बंद कीं, लेकिन दिलों की दरारें कहीं गहरी कर दी हैं. जैसे-जैसे वीजा रद्द होने और नागरिकों के लिए देश छोड़ने के फरमान लागू हो रहे हैं, परिवार बिछड़ते जा रहे हैं, रिश्ते बिखरते जा रहे हैं और उम्मीदें दम तोड़ती दिख रही हैं.

बीते दो दिनों से 39 वर्षीय भारतीय व्यापारी ऋषि कुमार जसरानी बॉर्डर पर आंखें बिछाए इंतजार कर रहे हैं. सूटकेस घसीटते और आंसुओं में भीगे लोगों के बीच उनका दिल हर पल एक ही सवाल से जूझ रहा है, क्या उनकी पत्नी और बच्चे सुरक्षित लौट पाएंगे?

जसरानी ने बताया, "उन्होंने कहा है कि मेरे बच्चों को वापस आने दिया जाएगा क्योंकि उनके पास भारतीय पासपोर्ट हैं, लेकिन मेरी पत्नी को नहीं." यह कहते हुए जसरानी का गला भर्रा जाता है. वह कहते हैं, "कोई कैसे एक मां को उसके बच्चों से अलग कर सकता है?"

सीमा पार कर लोग अपने अपने मुल्कों को जा रहे हैंतस्वीर: Pawan Kumar/REUTERS

जसरानी की पत्नी सविता कुमारी पाकिस्तानी हिंदू हैं. उनके पास भारत का दीर्घकालिक वीजा है, लेकिन पासपोर्ट पाकिस्तान का है. वह अपने परिवार से मिलने पाकिस्तान गई थीं. ऋषि कहते हैं कि भारतीय अधिकारियों ने उन्हें साफ तौर पर नहीं बताया है कि उनकी पत्नी का क्या होगा. जसरानी पूछते हैं, "इंसानियत का कोई मतलब नहीं रह गया क्या?"

पहलगाम हमले का नतीजा

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर आरोप लगाए थे, जिसे इस्लामाबाद ने सिरे से नकार दिया. तब से दोनों देशों के बीच गोलियां चली हैं, राजनयिक जंग छिड़ी है और अब सीमा पर बिछड़ते परिवार इस तनाव का सबसे बड़ा शिकार बन गए हैं.

शनिवार को, अटारी बॉर्डर पर कारों, ऑटो-रिक्शों और पैदल चलते लोगों की एक लंबी कतार दिखाई दी. हर तरफ गले लगते रिश्तेदार, फूट-फूट कर रोती मांएं और दुआओं के बीच विदाई के दृश्य थे. लेकिन सबसे ज्यादा दर्द उन चेहरों पर था, जिन्हें यह भी नहीं पता कि अगली मुलाकात कभी होगी या नहीं. भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने निर्देश जारी किया है कि सभी पाकिस्तानी नागरिकों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर किया जाए.

भारत में पिछले कई वर्षों का सबसे बड़ा आतंकी हमला

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41 वर्षीय अनीस मोहम्मद, मध्य प्रदेश के इंदौर से अपनी बीमार 76 वर्षीय चाची, शहर बानो को लेकर बॉर्डर आए थे. उन्होंने बताया, "वह बूढ़ी हैं, बीमार हैं, बस अपने बच्चों से मिलने आई थीं." बैरिकेड के उस पार हाथ हिलाते हुए, मोहम्मद का गला भर आया, "ना जाने अब कब मिलेंगे, या मिल भी पाएंगे या नहीं."

हरे हुए बंटवारे के जख्म

1947 के विभाजन का जख्म, जो कभी पूरी तरह नहीं भरा, आज फिर से हरा हो गया है. आज भी, जब सीमा बंद हो रही है, इंसानी रिश्ते उसी तरह लहूलुहान हो रहे हैं जैसे तब हुए थे. डॉक्टर विक्रम उदासी का दर्द भी अलग नहीं है. 37 वर्षीय उदासी की पाकिस्तानी पत्नी और चार साल का बेटा, आहान, बॉर्डर के दूसरी ओर फंसे हैं. उन्होंने बताया, "जैसे ही खबर मिली कि सीमा बंद होने वाली है, हम भागे."

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उनकी पत्नी और बेटा बॉर्डर के उस पार रह गए, और खुद विक्रम यहां इंतजार में बैठे हैं, सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर. उदासी बताते हैं, "अधिकारियों ने मेरी पत्नी से कहा है कि वह बच्चे को भेज दें, खुद वहीं रहें. क्या वे समझते नहीं कि एक चार साल का बच्चा अपनी मां से अलग कैसे रहेगा? कैसे जिएगा?"

विक्रम सरकारों से अपील करते हैं, "आप टूरिस्ट वीजा रद्द करिए, जो करना है करिए, पर जिनके परिवार हैं, जिन्हें लंबी अवधि के वीजा मिले हैं, उन्हें तो वापस आने दीजिए. हमने भी कश्मीर में हुए हमले की निंदा की है, लेकिन क्या आम आदमी की भावनाएं कुछ नहीं?"

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