जर्मनी के पूर्वी शहर ड्रेसडेन में सैकड़ों दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों ने 26वें जर्मन एकीकरण दिवस के अवसर पर चर्च सर्विस में हिस्सा लेने पहुंची चांसलर अंगेला मैर्केल के खिलाफ नारेबाजी की.
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कोई चिल्लाया "लोगों से गद्दारी करने वाली!" तो किसी ने कहा "चली जाओ!" - ऐसे नाराजगी भरे नारों से जर्मन चांसलर मैर्केल का स्वागत होना कोई आम बात नहीं है. 26वें जर्मन एकीकरण दिवस के अवसर पर ड्रेसडेन के प्रसिद्ध चर्च फ्राउएनकिर्षे की सर्विस में हिस्सा लेने पहुंची चांसलर के खिलाफ बाहर इकट्ठे अति दक्षिणपंथी प्रदर्शकारियों ने सीटियां बजाईं और नारे लगाए. मैर्केल के अलावा इस आयोजन में राष्ट्रपति योआखिम गाउक और गृह मंत्री थोमास दे मेजियेर भी मौजूद थे.
अति दक्षिणपंथी दल चांसलर मैर्केल की शरणार्थियों के लिए देश के द्वार खोल देने की नीति से खासे नाखुश हैं और इसे जताने के लिए ड्रेसडेन एक प्रमुख केंद्र रहा है. इतने तनावपूर्ण माहौल के बावजूद मैर्केल ने देशवासियों को एकीकरण दिवस मनाने और बीते 26 सालों की उपलब्धियों पर संतुष्ट होने का संदेश दिया.
कम्युनिस्ट पूर्वी जर्मनी में पैदा हुई मैर्केल ने इस अवसर पर कहा, "मेरे लिए निजी तौर पर, और जर्मनी के ज्यादातर लोगों के लिए यह एक खुशी और आभार का दिन है." हालांकि उन्होंने माना कि अब देश में "नई चुनौतियां और नई समस्याएं" हैं और इसके लिए जर्मन लोगों को "आपसी सम्मान और दूसरे राजनीतिक नजरियों के प्रति स्वीकार्यता दिखानी होगी, जिससे हम सही समाधान तलाश सकेंगे."
पिछले केवल एक साल में ही जर्मनी पहुंचे दस लाख शरणार्थियों के मुद्दे पर जर्मन समाज बंटा हुआ दिख रहा है. हालांकि 2016 में अब तक उससे काफी कम, लगभग दो लाख लोग ही पहुंचे हैं. फिर भी अति दक्षिणपंथी पार्टियां इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना कर आप्रवासन की अधिकतम सीमा तय करने की मांग करती रही हैं. चांसलर मैर्केल ऐसी सभी मांगों को मना करती आई हैं लेकिन उन्होंने ऐसे लोगों को वापस उनके देश भेजे जाने की प्रक्रिया को तेज किया है जिनका शरण का आवेदन जर्मनी में रद्द हो जाता है.
ड्रेसडेन में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती के बावजूद पिछले हफ्ते दो जगहों पर घर में बने दो छोटे बम धमाके हुए. एक धमाका मस्जिद के बाहर और दूसरा शहर के एक कॉन्फ्रेंस सेंटर के बाहर किया गया. इसमें पुलिस की तीन कारें बर्बाद हुईं. सैक्सनी राज्य की राजधानी ड्रेसडेन में ही इस्लामविरोधी गुट पेगीडा का भी गढ़ है. शरणार्थी संकट की छाया में यह गुट अतिदक्षिणपंथी और प्रवासी विरोधी विचार रखने वालों के लिए चुंबक बन गया है.
दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद से जर्मनी कम्युनिस्ट पूर्वी और पूंजीवादी पश्चिमी जर्मनी में बंट गया था. 3 अक्टूबर 1990 को दोनों हिस्से मिल गए और एकीकृत जर्मनी बना.
आरपी/एमजे (डीपीए,एपी,रॉयटर्स)
हेल्मुट कोल का जीवन
जर्मनी के पूर्व चांसलर हेल्मुट कोल नहीं रहे. किसी चांसलर का कार्यकाल इतना लंबा नहीं था जितना हेल्मुट कोल का. वे 16 साल तक अपने पद पर रहे. उन्हीं के कार्यकाल के दौरान बर्लिन की दीवार गिरी और जर्मनी का एकीकरण संभव हुआ.
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एकीकरण के पिता का निधन
पूर्व चांसलर हेल्मुट कोल का 87 साल की आयु में उनके गृहनगर लुडविषहाफेन में अपने घर पर 16 जून 2016 को निधन हो गया. उन्हें शांति में जर्मनी के एकीकरण और यूरोपीय एकता की मजबूती के लिए याद किया जायेगा.
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सबसे लंबा कार्यकाल
1 अक्टूबर 1982 को हेल्मुट कोल जर्मनी के चांसलर बने. 16 साल तक देश के चांसलर रहने के बाद 1998 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने सीडीयू के पार्टी प्रमुख के पद से भी इस्तीफा दे दिया. वे 25 साल तक सीडीयू के अध्यक्ष रहे.
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आडेनावर के काल में
1947 में ही कोल सीडीयू के सदस्य बन गए थे. अपने शहर लुडविषहाफेन में उन्होंने स्टूडेंट यूनियन बनाई. फिर 1950 में उन्होंने पहले लॉ की पढ़ाई शुरू लेकिन बाद में इतिहास और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की. इसके बाद राजनीति में कोल का करियर तेजी से आगे बढ़ा. 1966 में वे सीडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए थे.
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मुख्यमंत्री का पद
1966 में ही कोल राइनलैंड पैलैटिनेट राज्य में सीडीयू के अध्यक्ष भी बने. तीन साल बाद 1969 में उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाला. और दो साल बाद हुए प्रांतीय चुनावों में उन्होंने पूर्ण बहुमत से जीत दर्ज की.
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25 साल तक अध्यक्षता
अपने प्रांत में बहुमत पाने के बाद हेल्मुट कोल राष्ट्रीय राजनीति के सपने देख रहे थे. जून 1973 में कोल को सीडीयू का अध्यक्ष चुना गया. 25 साल तक उन्होंने यह पद संभाला. पूर्व राजधानी बॉन में सीडीयू की एक बैठक के बाद की तस्वीर.
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बने चांसलर
1982 तक देश में एसपीडी और एफडीपी की गठबंधन सरकार थी और हेल्मुट श्मिट चांसलर थे. लेकिन एफडीपी ने समर्थन वापस ले लिया और संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया, जिसके तहत श्मिट को चांसलर का पद छोड़ना पड़ा और कोल चांसलर बने.
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हाथ में हाथ
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ मितरां के साथ हेल्मुट कोल की यह तस्वीर दुनिया भर की सुर्खियों में रही. 1984 में दोनों सरकार प्रमुख फ्रांस के शहर वैरदां में मिले जहां 1916 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस और जर्मनी की सेनाएं एक दूसरे से भिड़ीं थीं.
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दीवार का गिरना
1989 में बर्लिन दीवार गिरने के बाद से कोल ने मौके को पहचाना और पूर्व और पश्चिम जर्मनी को एक करने की कोशिश में जुट गए. 3 अक्टूबर 1990 को जीडीआर भी पश्चिम जर्मनी में शामिल हो गया. देश का एकीकरण कोल की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है.
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लोकप्रियता
90 के दशक में हेल्मुट कोल जर्मनी के हर राज्य में बेहद लोकप्रिय थे. एकीकरण के दौरान उन्होंने वायदा किया था कि जर्मनी का पूर्वी हिस्सा फलेगा फूलेगा. वक्त के साथ वायदा पूरा ना कर पाने के कारण उनकी आलोचना होने लगी और उनकी लोकप्रियता घटने लगी.
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मैर्केल के गुरु
हेल्मुट कोल के बिना जर्मनी की मौजूदा चांसलर अंगेला मैर्केल कामयाबी और शिखर की इन ऊंचाइयों को नहीं छू पातीं. मैर्केल जर्मनी की पहली महिला चांसलर हैं और पिछले ग्यारह साल से इस पद पर बनी हुई हैं. कोल के शासन में ही मैर्केल पहले परिवार कल्याण मंत्री और फिर पर्यावरण मंत्री बनीं.
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16 साल बाद हार
सितंबर 1998 हुए संसदीय चुनावों में कोल के नेतृत्व में सीडीयू चुनाव हार गयी. पहली बार देश में एसपीडी और ग्रीन पार्टी के गठबंधन वाली सरकार बनी और गेरहार्ड श्रोएडर चांसलर बने. कोल को सैन्य सम्मान के साथ विदा किया गया.
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मुश्किल दौर
साल 2000 में सीडीयू पार्टी में घोटाले की खबरें आने लगीं और पार्टी की नेतृत्व में दरार पड़ने लगी. कोल ने इस दौरान पार्टी से दूर रहने का फैसला लिया.
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पत्नी का देहांत
जुलाई 2001 में हेल्मुट कोल की पत्नी हनेलोरे कोल ने अपनी जान ले ली. वे लंबे समय से बीमार थीं और रोशनी से एलर्जी की शिकार थीं. हेलमुट और हनेलोरे कोल का साथ 41 साल का था.
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नया प्यार
2008 में कोल एक बीमारी के कारण रेहैबिलिटेशन सेंटर में वक्त गुजार रहे थे. इसी दौरान उन्होंने खुद से 34 साल छोटी माइके रिष्टर से शादी की. रिष्टर पेशे से अर्थशास्त्री हैं.
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पोप के साथ
सितंबर 2012 में जब पोप बेनेडिक्ट 16वें जर्मनी आए तो हेल्मुट कोल उनसे मिलने पहुंचे. पत्नी माइके रिष्टर के साथ वे 25 मिनट तक पोप के साथ बातचीत करते रहे.
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स्टैंप में कोल
साल 2012 में हेल्मुट कोल वाली स्टैंप निकाली गयी. जर्मनी और यूरोप के एकीकरण में योगदान देने वाले कोल के लिए यह एक बड़े सम्मान का अवसर था. ऐसी बहुत काम ही शख्सियतें हैं जिनके जीते जी स्टैंप निकली हो.