दिल्ली तक की हवा को प्रदूषण से बचाने में लगे पंजाब के किसान
२० नवम्बर २०२५
हर साल सर्दियों में पराली जलाने से उठने वाला धुआं दिल्ली की हवा को दुनिया की सबसे प्रदूषित हवा में बदलने वाले कारकों में से एक माना जाता है. वाहन प्रदूषण और धूल के साथ मिलकर यह धुआं कम तापमान और धीमी हवा की वजह से वातावरण में फंस जाता है.
संगरूर जिले के बलवार कलां गांव के 25 वर्षीय किसान दलबीर सिंह कहते हैं, "पराली जलाने से हमें खुद धुएं का सामना करना पड़ता है. यह कोई रोमांचक काम नहीं है, इसलिए हम इसे इकट्ठा कर बॉयलरों को भेज देते हैं जहां इसे बेचा जाता है."
क्या है पंजाब के किसानों की कोशिश
पंजाब के किसान अब अपनी फसल के अवशेष को जला नहीं रहे बल्कि उसे रीसाइक्लिंग के लिए भेज रहे हैं. इससे सिर्फ पंजाब ही नहीं बल्कि दिल्ली एनसीआर में भी हर साल परेशानी का सबब बनने वाले स्मॉग की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकेगा.
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अब पंजाब के 800 से ज्यादा गांवों में किसान बॉयलर मशीनों और बेलर तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. वे खेतों से पराली को इकट्ठा कर इसे फैक्ट्रियों को भेज रहे हैं जहां इसे बायोगैस, बायो-फर्टिलाइजर, कार्डबोर्ड और कई दूसरे उत्पादों में बदला जाता है. यह जानकारी उद्योग संगठन सीआईआई (कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) की ओर से दी गई है. सीआईआई का कहना है कि वह इस पहल के लिए उपकरण और संसाधन उपलब्ध करा रहा है.
संगरूर जिले के ही फगुवाला गांव के 53 वर्षीय किसान गुरनैब सिंह बताते हैं कि उन्होंने पराली से कार्डबोर्ड बनाने की फैक्ट्री शुरू की है. उनके अनुसार, यह न सिर्फ हवा को साफ रखने में मदद कर रहा है बल्कि उनके संयंत्र में दर्जनों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.
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कई उत्तर भारतीय राज्यों में है पराली जलाने का चलन
पंजाब में करीब 12,000 गांव हैं, और पराली जलाने की प्रथा केवल इसी राज्य तक सीमित नहीं है बल्कि उत्तर भारत के कई और राज्यों में भी आम है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे प्रयासों का और व्यापक प्रभाव डालने के लिए और ज्यादा प्रोत्साहन और जागरूकता की जरूरत है.
नई दिल्ली स्थित थिंक-टैंक एन्वायरोकैटलिस्ट के संस्थापक और विश्लेषक सुनील दहिया कहते हैं, "हालांकि इससे पराली जलाने में कुछ कमी जरूर आई है, लेकिन इस तरह की पहलों के लिए प्रोत्साहन और जागरूकता अभी भी उस स्तर पर नहीं है जिसकी जरूरत इस समस्या को समग्र रूप से हल करने के लिए है."
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नवंबर के महीने में होती है खासी परेशानी
परंपरागत रूप से किसान धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच के छोटे से अंतराल में खेत खाली करने के लिए पराली को आग लगा देते थे. यह समय आमतौर पर नवंबर की शुरुआत से मध्य तक होता है. एक हफ्ते पहले ही दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 के आसपास था, जो "गंभीर" श्रेणी में आता है. इसके कारण अधिकारियों ने निर्माण और औद्योगिक गतिविधियों पर अतिरिक्त पाबंदियां लगा दी थीं.
करीब तीन करोड़ की आबादी वाला यह महानगर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता है, और हर साल की तरह इस बार भी हवा बहुत प्रदूषित है. हाल ही में 9 नवंबर को वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुचंने से परेशान आम लोग और सामाजिक कार्यकर्ता दिल्ली के इंडिया गेट पर प्रदर्शन करने उतरे थे, जिनमें से कई लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनिया की लगभग 99 फीसदी आबादी कभी ना कभी ऐसी हवा में सांस लेने के लिए मजबूर होती है, जो डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप नहीं होती. डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि हर साल प्रदूषित हवा में सांस लेने के चलते 70 लाख लोगों की असमय मौत हो जाती है. भारत समेत कई एशियाई देशों में वायु प्रदूषण एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है. दिल्ली, इस्लामाबाद, ढाका, बैंकॉक और जकार्ता जैसे शहरों में लोग प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं.