किसान संगठनों ने एक बार फिर दिल्ली कूच का ऐलान किया है. बुधवार को किसान दिल्ली पहुंचकर विरोध प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं.
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किसानों का "दिल्ली चलो" मार्च एक बार फिर शुरू हो रहा है. किसान संगठनों का कहना है कि बुधवार को बड़ी संख्या में किसान इकट्ठा होंगे और दिल्ली की ओर बढ़ेंगे. किसानों के आंदोलन को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने बॉर्डर पर निगरानी बढ़ा दी है.
मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि किसान बुधावर को ट्रेन, बस और मेट्रो से दिल्ली आने की तैयारी कर रहे हैं और जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन करना चाहते हैं. किसान नेता सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह डल्लेवाल ने 3 मार्च को पंजाब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसानों से दिल्ली पहुंचने की अपील की थी. उन्होंने 10 मार्च को "रेल रोको" आंदोलन की अपील की है. उन्होंने कहा था कि पहले से चल रहे विरोध स्थल पर भी किसानों की संख्या बढ़ाई जाएगी.
पंढेर ने कहा था कि दूर-दराज के किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली से दिल्ली नहीं पहुंच सकते हैं. ऐसे में उन्हें ट्रेन से पहुंचना चाहिए और एमएसपी के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए.
दिल्ली पुलिस अलर्ट
दिल्ली पुलिस का कहना है कि किसानों के विरोध-प्रदर्शन के कारण बुधवार को गाड़ी चालकों को जाम का सामना करना पड़ सकता है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर किसानों के इकट्ठा होने से सुबह से ही भारी जाम लगने लगा है. दिल्ली पुलिस के मुताबिक, पुलिस बल टिकरी, सिंघु और गाजीपुर सीमाओं के साथ-साथ रेलवे, मेट्रो स्टेशनों और बस अड्डों पर कड़ी निगरानी रखेगा.
दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने मीडिया से कहा, "हमने तीनों सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ा दी है. हालांकि हमने किसी सीमा या मार्ग को बंद नहीं किया है लेकिन गाड़ियों की जांच की जाएगी." हालांकि दिल्ली पुलिस ने नई दिल्ली इलाके में किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन की इजाजत नहीं दी है.
जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन के सभी निर्धारित कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं. आदेशों के मुताबिक किसी भी प्रदर्शनकारी को जंतर-मंतर विरोध स्थल के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. यह आदेश 26 फरवरी को लागू किया गया था और अभी भी प्रभावी है.
किसानों की क्या है मांग
18 फरवरी को किसानों के साथ पिछली बैठक में सरकार ने दलहन, मक्का और कपास के लिए एमएसपी की गारंटी का प्रस्ताव रखा था. वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पत्रकारों को बताया कि सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक जो किसान फसलों में विविधता लाएंगे और अरहर, उड़द, मसूर दाल और मक्का उगाएंगे, उन्हें पांच सालों के लिए एमएसपी का अनुबंध दिया जाएगा. हालांकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने मांग ठुकरा दी और अपने विरोध स्थलों पर लौट गए.
23 दिनों से पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर जमा किसानों की मांग है कि उन्हें एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए.
किसान आंदोलन: ट्रैक्टरों ने जाम कर दी जर्मनी की राजधानी
15 जनवरी को जर्मनी में हफ्ते भर से चल रहे किसान प्रदर्शन का आखिरी अंक था. इस मौके पर हजारों किसान ट्रैक्टर लेकर राजधानी बर्लिन में जमा हुए. हॉर्न बजाते ट्रैक्टरों ने सुबह से ही सड़कें जाम रखीं.
तस्वीर: Florian Gaertner/photothek/IMAGO
बर्लिन में जमा हुए 5,000 से ज्यादा ट्रैक्टर
जर्मनी में 8 जनवरी से शुरू हुआ सप्ताह भर लंबा किसान प्रदर्शन 15 जनवरी को अपने क्लाइमैक्स पर पहुंचा. राजधानी बर्लिन में प्रदर्शनकारी किसानों का बड़ा जमावड़ा लगा. 5,000 से ज्यादा ट्रैक्टरों के कारण बर्लिन में सड़कें जाम रहीं. अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए किसान सुबह से ही ट्रैक्टरों के हॉर्न बजाए जा रहे थे.
तस्वीर: Jochen Eckel/picture alliance
प्रदर्शनकारियों ने वित्त मंत्री को कहा "झूठा"
वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर भी सरकार का पक्ष रखने प्रदर्शन में पहुंचे. उन्होंने जोर दिया कि सब्सिडी में प्रस्तावित कटौती की योजना साथ मिलकर मुश्किल वक्त से बाहर निकलने की कोशिश है. लेकिन लिंडनर जैसे ही मंच पर पहुंचे, प्रदर्शनकारियों ने "झूठा" कहकर उनका विरोध किया और सीटियां बजाई. तस्वीर: किसान प्रदर्शन के दौरान रैली में मंच पर खड़े क्रिस्टियान लिंडनर.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
सरकार से इस्तीफे की मांग
प्रदर्शनकारी सरकार बदले जाने की मांग कर रहे हैं. कई किसान कह रहे हैं कि सरकार को इस्तीफा देना चाहिए, क्योंकि वह नेतृत्व देने में सक्षम नहीं है. हालांकि, किसानों के विरोध को देखते हुए सरकार को कटौती आंशिक तौर पर वापस लेनी पड़ी.
तस्वीर: Manngold/IMAGO
क्यों नाराज हैं किसान?
किसानों की नाराजगी का ताल्लुक सरकार की बचत योजना से है. सरकार खेती से जुड़े कामों में इस्तेमाल होने वाले डीजल पर सब्सिडी खत्म करना चाहती है. शुरुआत में इसे एक झटके में खत्म करने की योजना थी, लेकिन अब सरकार का कहना है कि ये सब्सिडी धीरे-धीरे खत्म की जाएंगी.
तस्वीर: Rainer Keuenhof/IMAGO
आंशिक रियायत से संतुष्ट नहीं किसान
पहले किसानों द्वारा खरीदे जाने वाले कृषि वाहनों पर मिलने वाली टैक्स छूट भी खत्म करने का प्रस्ताव था. लेकिन अब इस रियायत को जारी रखने का फैसला किया गया है. किसान इससे संतुष्ट नहीं हैं. वह सरकार से योजना पूरी तरह वापस लेने की मांग कर रहे हैं. तस्वीर: बर्लिन के केंद्र में किसानों द्वारा ब्लॉक की गई सड़क
तस्वीर: Florian Gaertner/photothek/IMAGO
किसानों को भविष्य का डर
प्रदर्शन में शामिल किसान हेंड्रिक फेर्डमेंगेस ने एएफपी से कहा, "हालिया सालों में हमारी कई सब्सिडी खत्म हुईं. इतने ज्यादा नियम-कायदे और प्रशासकीय काम हैं कि एक वक्त आएगा, जब हम इसे और नहीं संभाल सकेंगे." लोअर सेक्सनी की एक अन्य किसान ने प्रदर्शन में शामिल होने का कारण कुछ यूं बताया, "अगर सिर्फ एक शब्द में बताना हो कि मैं यहां क्यों हूं, तो मेरा जवाब होगा: भविष्य."
तस्वीर: Nadja Wohlleben/REUTERS
सरकार से असंतोष
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे चाहते हैं, कल को उनके बच्चे भी किसान बनें. लेकिन मौजूदा स्थितियों में इसकी संभावना कमजोर दिखती है. किसानों के पास नए तौर-तरीकों और तकनीकों में निवेश के लिए पैसा नहीं है. इस वक्त ओलाफ शॉल्त्स की गठबंधन सरकार की अप्रूवल रेटिंग सबसे कम है. जर्मन अखबार "बिल्ड डेली" के एक हालिया सर्वेक्षण में 64 फीसदी जर्मनों ने कहा कि वे सरकार में बदलाव देखना चाहेंगे.
तस्वीर: Leo Simon/REUTERS
दक्षिणपंथी तत्वों का अंदेशा
बीते दिनों आशंका जताई गई कि किसान प्रदर्शनों की आड़ में दक्षिणपंथी तत्व अपने हित साधने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि, किसान इन आशंकाओं को खारिज करते हैं. हेंड्रिक फेर्डमेंगेस कहते हैं, "हम किसी भी सूरत में दक्षिणपंथी चरमपंथी नहीं हैं. ये बस नेताओं द्वारा डर फैलाने का तरीका है." फेर्डमेंगेस कहते हैं कि किसान प्रदर्शनों में मौजूद दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों की संख्या "बेहद कम" है.
तस्वीर: Annette Riedl/dpa/picture alliance
अन्य क्षेत्रों में भी नाराजगी
जर्मनी में सिर्फ किसानों में ही नहीं, कई अन्य क्षेत्रों के कामगारों में भी नाराजगी है. पिछले हफ्ते रेलवे कर्मचारियों ने तीन दिन की हड़ताल की. इससे पहले दिसंबर में मेटल वर्करों और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया था.