किसान आंदोलन का आज 26वां दिन है. सरकार और किसान संगठन अभी तक किसी समझौते तक नहीं पहुंच पाए हैं. सरकार ने बातचीत का न्योता दिया है लेकिन किसान संगठनो का कहना है कि वे इस पर दो-तीन दिनों में फैसला करेंगे.
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दिल्ली की सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और कई अन्य राज्यों के किसान 26 नवंबर से आंदोलन कर रहे हैं. उनकी सरकार से कई बार बातचीत भी हो चुकी है लेकिन अब तक कोई रास्ता निकलता नहीं दिख रहा है. किसानों ने तीन नए कृषि कानून वापस लिए जाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना और तेज कर दिया है. सोमवार से किसान भूख हड़ताल करेंगे और हरियाणा में 25 से 27 दिसंबर तक टोल नाके फ्री कर दिए जाएंगे. रविवार को केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को बातचीत का न्योता भेजा और तारीख तय करने को कहा, जिसपर संगठन दो से तीन दिन में फैसला करेंगे.
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने 40 किसान संगठनों को पत्र लिखा है जिसमें उन्हें एक बार फिर बातचीत का न्योता दिया है. 5 पन्नों के पत्र में किसान नेताओं से बातचीत की तारीख सुझाने का भी आग्रह किया गया है. पत्र में ये बात दोहराई गई है कि सरकार खुले दिल से किसानों से बात करना चाहती है.
संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से योगेंद्र यादव ने कहा है कि किसान पीछे हटने वाले नहीं हैं. जहां भी धरना चल रहा है वहां सोमवार से 24-24 घंटे की पारी में किसान भूख हड़ताल करेंगे. दिल्ली के धरनास्थलों पर 11-11 लोग शामिल होंगे. किसान संगठनों ने 23 दिसंबर को किसान दिवस के मौके पर देशवासियों से एक समय का भोजन अन्नदाताओं के सम्मान में त्याग करने की अपील की है.
कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एक संगठन पर विदेशी फंडिंग लेने का आरोप लगा है. इस संगठन का नाम भारतीय किसान यूनियन (उग्रहन) है. संगठन पर कानूनी प्रक्रिया पूरी किए बिना विदेश से फंड लेने का आरोप है. बैंक ने संगठन से जल्द से जल्द जरूरी रजिस्ट्रेशन पूरा करने को कहा है. संगठन का कहना है कि जो भी प्रवासी उन्हें फंड भेज रहे हैं वे पंजाब के हैं और विदेशों में रह रहे हैं.
'मन की बात' के दौरान थाली बजाएंगे किसान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात जो कि आगामी 27 दिसंबर को होनी है उस दौरान किसान थाली पीटेंगे. मोदी हर महीने के आखिरी रविवार को रेडियो पर मन की बात करते हैं. किसानों का कहना है कि वे उनकी मन की बात सुन-सुनकर थक गए हैं और वो हमारी मन की बात कब सुनेंगे. जितनी देर मोदी रेडियो पर मन की बात करेंगे उतनी देर आंदोलन कर रहे किसान थाली पीटते रहेंगे.
दूसरी ओर रविवार को मोदी ने दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब में मत्था टेका और गुरु तेग बहादुर साहिब को श्रद्धांजलि अर्पित की. गौरतलब है कि बड़ी संख्या में पंजाब से आए सिख किसान तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं और मोदी का गुरुद्वारा जाना उन्हें एक संदेश देने के तौर पर देखा जा रहा है.
सबसे पहले अध्यादेश के रूप में जून में लाए गए कानूनों का किसान अपने प्रांतों में विरोध कर रहे थे. लेकिन जब दिल्ली ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वो अपनी मांगों को लेकर दिल्ली ही आ गए. देखिए किसान आंदोलन को कैमरे की नजर से.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
आतंकवादी नहीं किसान
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से हजारों किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए निकले लेकिन पुलिस ने उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर ही रोक दिया. राशन-पानी ले कर आए किसानों ने वही डेरा जमाया और आंदोलन छेड़ दिया. पुलिस के डंडे, ठंडे पानी की बौछार और आंसू गैस के गोलों के अलावा किसान प्रदर्शनकारियों ने जाहिल, आढ़तियों के एजेंट और आतंकवादी होने तक के आरोपों का सामना किया.
तस्वीर: Mohsin Javed
बात चंद किसानों की नहीं
हजारों की संख्या में किसान जीन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वो हैं आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून. इनका उद्देश्य ठेके पर खेती को बढ़ाना, भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना और अनाज, दालों, सब्जियों के दामों को तय करने को बाजार के हवाले करना है.
तस्वीर: Mohsin Javed
आर-पार की लड़ाई
किसान सिर्फ भारी संख्या में ही नहीं आए, बल्कि महीनों का राशन साथ लेकर आए हैं. सरकार ने नए कानूनों को किसानों के लिए कल्याणकारी बताया है, लेकिन किसानों का मानना है कि इनसे सिर्फ बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे. उनका कहना है कि इन कानूनों की वजह से कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था में छोटे और मझौले किसानों का शोषण बढ़ेगा.
तस्वीर: Mohsin Javed
पुलिस की बर्बरता का सामना
जय जवान और जय किसान का नारा लगाने वाले देश में किसान और जवान आमने सामने हैं. आंदोलन के दौरान किसानों को पुलिस की लाठियों का भी सामना करना पड़ा. कई बुजुर्ग किसान घायल हो गए और हालात कठिन होने की वजह से कुछ किसानों की मौत भी हो गई.
तस्वीर: Mohsin Javed
सर्दी में संघर्ष
सभी स्थानों पर किसान या तो खुले में या पतले शामियानों के नीचे दिन और रात बिता रहे हैं. सड़क-मार्ग से ही राजधानी आए किसान अपने ट्रैक्टरों को भी साथ लाए हैं, जो अब यहां पर उनका वाहन भी बना हुआ है, बेंच भी, बिस्तर भी और छत भी.
तस्वीर: Mohsin Javed
लंबी जद्दोजहद की तैयारी
किसान मान कर आए हैं कि केंद्र सरकार आसानी से उनकी मांगें नहीं मानेगी. इसलिए वो लंबे समय तक डेरा डालने की तैयारी करके आए हैं. धरना स्थलों पर खुद ही रोज अपना खाना पकाते हैं और खा-पी कर फिर धरने पर बैठ जाते हैं. सरकार के साथ बातचीत में भी वे अपना ही खाना लेकर जाते हैं और सरकारी खाना ठुकरा देते हैं.
तस्वीर: Seerat Chabba/DW
महिला शक्ति भी मौजूद
आंदोलन सिर्फ पुरुषों के कंधों पर ही नहीं चल रहा है. कुछ महिलाएं गांवों में खेती संभाल रही हैं तो कुछ मोर्चे पर डटी हुई हैं और पुरुषों का कंधे से कंधा मिला कर साथ दे रही हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
किताबों का साथ भी
धरना स्थलों पर प्रदर्शनकारियों का साथ देने, उनका हौसला बढ़ाने और उनकी सेवा करने कई लोग पहुंचे हुए हैं. कोई खाना खिला रहा है, कोई पानी पिला रहा है, कोई डॉक्टरी मदद दे रहा है तो कोई किताबें भी बांट रहा है.
तस्वीर: Mohsin Javed
मीडिया से नाराजगी
प्रदर्शनकारियों में मीडिया के एक धड़े के खिलाफ भी सख्त नाराजगी है. उनका आरोप है कि कुछ बड़े मीडिया संस्थान सिर्फ सरकार का पक्ष जनता के सामने परोस रहे हैं और सिर्फ किसानों की आलोचना कर रहे हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
हुक्के के बिना कैसे हो किसान आंदोलन
विशेष रूप से दिल्ली और नॉएडा की सीमा पर धरने पर बैठे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए किसान जरूरत जी दूसरी चीजों के साथ हुक्का भी साथ लाए हैं. सरकार के सामने पहले पलक किसानों की ना झपक जाए, इसीलिए इस लंबी लड़ाई में धैर्य और हुक्के का सहारा भी लिया जा रहा है.