भारत की हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन का निधन हो गया है. आजादी के बाद अनाज की भारी कमी से जूझ रहे भारत में 1960 के दशक में स्वामीनाथन के नेतृत्व में ही हरित क्रांति लाई गई.
विज्ञापन
स्वामीनाथन का गुरुवार 28 सितंबर को चेन्नई स्थित उनके निवास पर निधन हो गया. वो 98 बरस के थे. स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है, जिसके तहत अपनाई गई नीतियों की बदौलत भारत अनाज की भारी कमी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा.
उन्होंने ज्यादा पैदावार देने वाली धान और गेहूं की किस्मों के आविष्कार में अग्रणी भूमिका अदा की जिसकी वजह से भारत के किसान 1960 के दशक के बाद से अपनी पैदावार बढ़ाने में सफल हो पाए.
हरित क्रांति के जनक
1950 के दशक में भारतीय कृषि शोध संस्थान (आईएआरआई) में काम करते समय वो ज्यादा पैदावार देने वाली गेहूं की फसलों पर शोध कर रहे थे. उस दौरान उन्हें अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलॉग के बारे में पता चला, जो उस समय अमेरिका के रॉकफेलर संस्थान के मेक्सिको कृषि कार्यक्रम के लिए काम कर रहे थे.
सूखे में भी अच्छी पैदावार देगी गेहूं की ये किस्म
05:59
मेक्सिको में वो ज्यादा पैदावार देने वाली गेहूं की किस्में विकसित कर रहे थे. स्वामीनाथन के कहने पर भारत सरकार ने बोरलॉग को भारत आने का निमंत्रण दिया. गेहूं उगाने वाले कुछ राज्यों का मुआयना करने के बाद उन्होंने मेक्सिकन किस्मों के 100 किलो बीज भारत को दिए.
कुछ समय के ट्रायल के बाद इन बीजों को सबसे पहले दिल्ली में बोया गया और पाया गया कि पैदावार काफी बढ़ गई थी. पौधे पहले एक से डेढ़ टन प्रति हेक्टेयर की जगह अब चार से साढ़े चार टन प्रति हेक्टेयर गेहूं देने लगे.
1965-66 और 1966-67 में भारत में दो साल लगातार सूखा पड़ा. अनाज का उत्पादन गिर गया और भारत को अमेरिका से आयात पर निर्भर होना पड़ा. स्वामीनाथन के प्रयास इसी समय में भारत के काम आये और उनकी देखरेख में ज्यादा पैदावार वाली नस्लें उगाई गईं.
इनसे भारत में अनाज का उत्पादन बढ़ गया और भारत अनाज के संकट से बाहर निकल गया. भारत की हरित क्रांति के पीछे और भी लोगों का हाथ था, लेकिन जानकारों का मानना है कि स्वामीनाथन की भूमिका केंद्रीय थी. हरित क्रांति के कई तरह के बुरे असर भी चर्चा में रहते हैं लेकिन अनाज संकट से देश को उबारने की उपलब्धि को किसी ने नकारा नहीं है.
विज्ञापन
किसानों के हितैषी
स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि देश के इतिहास के संकट के एक काल में कृषि क्षेत्र में स्वामीनाथन के काम ने करोड़ों लोगों की जिंदगी को बदल दिया और देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की.
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी भारत को अनाज में आत्मनिर्भर बनाने की उनकी उपलब्धि के लिए उन्हें नमन किया. हरित क्रांति के अलावा स्वामीनाथन को और भी उपलब्धियों के लिए जाना जाता है.
2004 में भारत में किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बीच कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया था, जिसका अध्यक्ष स्वामीनाथन को ही बनाया गया था. आयोग ने लंबे शोध के बाद सुधार के कई कदम सुझाए जिन्हें ऐतिहासिक माना जाता है.
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए इस आयोग ने जो फार्मूला दिया वो स्वामीनाथन फार्मूला नाम से मशहूर है. इसके तहत आयोग ने सुझाया था कि किसी फसल पर एमएसपी, उसकी लागत के औसत खर्च से कम से कम 50 प्रतिशत ज्यादा होनी चाहिए.
किसान कल्याण की राह में इसे मील का पत्थर माना जाता है, लेकिन सरकारें आज तक इस फॉर्मूले को लागू नहीं कर पाईं. स्वामीनाथन को पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. वो राज्य सभा के सदस्य भी रहे.
उन्हें 1987 में कृषि क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाला पहला वर्ल्ड फूड प्राइज भी दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च संस्थान की स्थापना की.
संस्थान तब से कृषि क्षेत्र में शोध के कार्यों में लगा हुआ है. स्वामीनाथन की बेटी और विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन संस्थान की मौजूदा अध्यक्ष हैं.
खेतों में सौर ऊर्जा से हो रहा दोगुना मुनाफा
पूरी दुनिया में सौर ऊर्जा की मदद से किसान दोगुना कमा रहे हैं. खेतों के ऊपर सौर ऊर्जा के पैनल लगा देने से नीचे फसलें उगती हैं और ऊपर बिजली पैदा होती है. पैनलों की छांव से पानी बचाने में मदद मिलती है और पैदावार भी बढ़ती है.
तस्वीर: picture alliance/blickwinkel/R. Linke
फल भी उगाइए, बिजली भी बनाइए
फाबियान कार्टहाउस जर्मनी में फोटोवोल्टिक पैनलों के नीचे रसबेरी और ब्लूबेरी उगाने वाले पहले किसानों में से हैं. उत्तर-पश्चिमी जर्मनी के शहर पैडरबॉर्न में स्थित उनका सौर खेत करीब एक एकड़ में फैला है, लेकिन वो उसे 10 एकड़ का बनाना चाहते हैं. ऐसे करने से वो इतनी बिजली बना पाएंगे जो करीब 4,000 घरों के काम आएगी. इसके अलावा उन्हें बाजार में बेचने के लिए बेरियां भी मिल जाएंगी.
तस्वीर: Gero Rueter/DW
प्लास्टिक की छत की जगह शीशे का पैनल
अभी तक कई किसान नाजुक फलों और सब्जियों को प्लास्टिक के पर्दों के नीचे उगाते थे. लेकिन प्लास्टिक के ये पर्दे सिर्फ कुछ ही साल चलते हैं, महंगे होते हैं और इनसे काफी प्लास्टिक कचरा भी उत्पन्न होता है. निदरलैंड में कई किसान फलों, सब्जियों को शीशे के पैनलों के नीचे उगा रहे हैं. ग्रोनलेवेन में ये पैनल फसल को तो बचाते हैं ही, ये 30 सालों तक चलते हैं. बिजली बेचने से अतिरिक्त कमाई होती है.
तस्वीर: BayWa r.e.
चीन बढ़ावा दे रहा है एग्रीवोल्टिक को
चीन बड़े पैमाने पर फोटोवोल्टिक का विस्तार कर रहा है और पिछले कुछ सालों से कृषि संबंधित फोटोवोल्टिक या एग्रीवोल्टिक पर भी निर्भर कर रहा है. उत्तरी चीन के हेबेई में स्थित यह प्लांट 24 एकड़ से भी ज्यादा इलाके में फैला है. नीचे अनाज उगाया जाता है. सौर मॉड्यूल पास ही में बनाए जाते हैं. इससे रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं और गरीबी कम करने में भी मदद मिलती है.
दुनिया के सबसे बड़े सौर पार्कों में से कुछ चीन के गोबी रेगिस्तान में हैं, जहां जगह की कोई कमी नहीं है. कुछ स्थानों पर मॉड्यूलों की छांव में फसलें उगाई जाती हैं. इससे मरुस्थलीकरण रुकता है और मिट्टी को फिर से खेती के योग्य बनने में मदद मिलती है.
तस्वीर: TPG/ZUMA/picture alliance
सूखे से मुकाबला
चिली के सैंतिआगो में स्थित यह छोटी से सौर छत दक्षिणी अमेरिका के सबसे पहले एग्रीवोल्टिक प्रणालियों में से है. शोधकर्ता यहां ब्रोकोली और गोभी का इस्तेमाल कर यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रणाली को चलाने का सबसे अच्छा तरीका क्या होगा. इस इलाके में कड़ी धूप होती है और यह कम होती बारिश और बढ़ते सूखे से भी जूझ रहा है. सौर छांव के साथ शुरुआती तजुर्बा सकारात्मक रहा है.
तस्वीर: Fraunhofer Chile
सौर ऊर्जा से पानी
रवांडा की ये किसान सौर ऊर्जा से चलने वाले एक चलते फिरते जल पंप से अपनी जीविका चलाती हैं. एक छोटे से शुल्क के बदले वो अपने पंप को दूसरे किसानों के खेतों तक ले जाती हैं और आस पास के पानी के स्रोतों से उनकी सिंचाई करती हैं. पूरे अफ्रीका में कृषि में सौर ऊर्जा के उपयोग की संभावनाएं हैं.
तस्वीर: Ennos
सौर ऊर्जा के साथ मछली पालन
यह अनोखा इंतजाम पूर्वी चीन में शंघाई से 150 किलोमीटर दक्षिण की तरफ स्थित है. इस तालाब में पीपे के पुलों पर सौर पैनल तैरते हैं और उनके नीचे मछली पालन होता है. पैनलों को इस तरह सजाया गया है कि मछलियों को भी पर्याप्त रोशनी मिले. लगभग 740 एकड़ में फैले ये पैनल 1,00,000 परिवारों के लिए बिजली बनाते हैं.
एक वैकल्पिक दृष्टिकोण
सौर पैनलों को खेतों में लंबवत रखने से उन्हें दोनों तरफ से रोशनी मिलती है. जर्मनी में इस तरह के ढांचे छतों पर लगे पैनलों के जितनी ही बिजली बना सकते हैं. साथ ही साथ ये एक तरह से बाड़ का भी काम करते हैं और हवा से बचाते हैं. खेती के दूसरे उपकरणों को रखने के लिए काफी जगह भी बच जाती है.
तस्वीर: Next2Sun GmbH
जमीन को खाली रखना
बायोगैस और बायो ईंधन के लिए मक्का, गेहूं और गन्ने उगाने में पूरी दुनिया की कृषि योग्य भूमि का चार प्रतिशत इस्तेमाल में लग जाता है. इस ऊर्जा को सौर स्रोतों से बनाना कहीं ज्यादा सस्ता होगा और इसके लिए अभी जितनी जमीन की जरूरत है उसके सिर्फ दसवें भाग की जरूरत होगी. (गेरो रूटर)