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विज्ञानविश्व

सौरमंडल के बाहर अभी तक का सबसे छोटा ग्रह

३ दिसम्बर २०२१

वैज्ञानिकों ने एक ऐसे नए ग्रह की खोज की है जो अभी तक पृथ्वी के सौरमंडल के बाहर देखे गए ग्रहों में से सबसे छोटा है. इसका घन धरती के घन के आधे के बराबर है लेकिन क्या यहां जीवन का पनपना संभव है? 

फाइल तस्वीरतस्वीर: M. Kornmesser/ESO

यह कम घन वाला एक पथरीला ग्रह है और इसका नाम जी7 367बी रखा गया है. इसका रेडियस धरती के रेडियस के 72 प्रतिशत के बराबर है और घन धरती के 55 प्रतिशत के बराबर. यह धरती से 31 प्रकाश वर्ष से भी कम दूरी पर स्थित है और एक लाल बौने सितारे जीजे 367 की परिक्रमा करता है. यह सितारा पृथ्वी के सूर्य के आधे आकार का है.

इस सितारे की परिक्रमा ग्रह आठ ही घंटों में पूरी कर लेता है, यानी उस ग्रह पर एक दिन सिर्फ आठ घंटे लंबा होता है. शोधकर्ताओं ने बताया कि यह "आज लगभग जिन 5000 एक्सोप्लैनेटों के बारे में हम जानते हैं उनमें से सबसे हलके ग्रहों में से है."

क्या यह दूसरी पृथ्वी हो सकता है?

यह खोज जर्मन ऐरोस्पेस सेंटर (डीएलआर) इंस्टीट्यूट ऑफ प्लैनेटरी रिसर्च के वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने की. शोधकर्ता जिलार्ड सिज्माडिया ने कहा, "इसकी सघनता ज्यादा है जिससे यह संकेत मिलता है कि इस ग्रह का कोर लोहे का है."

आकाशगंगा के बाहर ग्रह के जैसे दिखने वाले पिंड का एक चित्रतस्वीर: NASA/CXC/M.Weiss

सिज्माडिया के साथ इस टीम का नेतृत्व करने वालीं डीएलआर की क्रिस्टीन लैम ने कहा, "ऐसा लगता है कि इसकी विशेषताएं बुध ग्रह के जैसी हैं. इस वजह से इसे पृथ्वी से कम आकार के टेरेस्ट्रियल ग्रहों में रखा जा सकता है." उन्होंने यह भी कहा, "इससे 'दूसरी पृथ्वी' की तलाश में शोध एक कदम और आगे बढ़ा है."

हालांकि सिज्माडिया ने कहा कि इस ग्रह को "दूसरी पृथ्वी" नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इसे काफी ज्यादा रेडिएशन का सामना करना पड़ता है जो "उस रेडिएशन से 500 गुना ज्यादा है जिसका सामना पृथ्वी करती है."

जीवन के लिए बहुत गर्म

उन्होंने बताया कि इसकी सतह का तापमान 1500 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है और इस तापमान पर सभी पत्थर और धातु पिघल जाते हैं. इस खोज के बारे में जानकारी विज्ञान की पत्रिका 'साइंस' में छपी है. इस तरह के ग्रहों को एक्सोप्लैनेट कहा जाता है और वैज्ञानिक इन्हें खोजने के लिए उत्सुक रहते हैं क्योंकि संभावना रहती है कि इन पर शायद जीवन मिले.

एक्सोप्लैनेट डब्ल्यूएएसपी-76बी का एक चित्रतस्वीर: ESO/M. Kornmesser

इस नए ग्रह में तो ये संभावनाएं नहीं दिख रही हैं लेकिन दूसरे एक्सोप्लैनेटों में ये संभावनाएं हो सकती हैं. क्रिस्टीन लैम ने बताया, "बृहस्पति के जैसे गैस के बड़े गोले रहने लायक नहीं हैं क्योंकि उन पर ज्यादा कठिन तापमान, मौसम और दबाव होता है और जीवन के लिए जरूरी तत्वों की कमी होती है."

उन्होंने यह भी कहा, "उनके विपरीत पृथ्वी जैसे छोटे ग्रह ज्यादा नरम होते हैं और उन पर तरल पानी और ऑक्सीजन जैसे जीवन के लिए जरूरी तत्त्व होते हैं." शोधकर्ता सोच रहे हैं कि क्या जीजे 367बी के पास कभी एक बाहरी सतह भी थी जो अपने सितारे के इतने पास होने की वजह से धीरे धीरे पिघल गई या फट गई.

सीके/एए (डीपीए/रॉयटर्स)

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