नगर निगम के कर्मचारी की क्षमता और उनपर नजर रखने के लिए जीपीएस घड़ी का इस्तेमाल हो रहा है. कर्मचारी इसे अपमानित करने वाला बता रहे हैं.
विज्ञापन
अनिल शर्मा हर शाम काम खत्म होने के बाद चंडीगढ़ में रैली मैदान में अन्य कर्मचारियों के साथ इकट्ठा होते हैं. यह लोग स्थानीय प्रशासन द्वारा जीपीएस घड़ी के इस्तेमाल का विरोध कर रहे हैं. जीपीएस घड़ी कर्मचारियों के ड्यूटी का डाटा जमा करती है.
अनिल शर्मा नगरपालिका में बतौर माली का काम करते हैं. स्थानीय प्रशासन ने शर्मा जैसे कर्मचारियों को जीपीएस वाली घड़ी पहनने को कहा है जिससे उनकी दक्षता को ट्रैक करने में सहायता मिलेगी. शर्मा इसे "अपमानजनक" और "अनैतिक" बताते हैं. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से शर्मा कहते हैं, "मैंने इस शहर को सुंदर बनाने के लिए 25 साल काम किया. अब वह मुझे एक बंधुआ मजदूर बनाना चाहते हैं और मुझे अपमानित करना चाहते हैं." फोन पर दिए गए इंटरव्यू में शर्मा कहते हैं, "इसके अलावा, हमारे पास सुपरवाइजर हैं जो हमारे काम पर निगरानी रखते हैं. हमें इस तरह की निगरानी के लिए हमें मजबूर नहीं किया जा सकता है. यह अनैतिक है.”
भारत में 100 बड़े शहरों को स्मार्ट सिटी में तब्दील करने की योजना चल रही है. राज्य सरकारें जीपीएस घड़ी जैसी तकनीकों का इस्तेमाल डाटा इकट्ठा करने के लिए कर रही हैं जिसकी मदद से कार्यक्षमता और बजट को बेहतर बनाया जा सके. लेकिन नगरपालिका कर्मचारी, नागरिकों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता और तकनीक विशेषज्ञ निजता और डाटा के दुरुपयोग पर चिंता जता रहे हैं.
साथ ही जीपीएस घड़ी के बंद होने या फिर घड़ी का जीपीएस से संपर्क टूट जाने को लेकर भी आशंकित हैं. पिछले तीन महीने से शर्मा और उनके साथी अन्य विभाग के कई कर्मचारियों के साथ मिलकर जीपीएस घड़ी के इस्तेमाल को बंद करने की मांग कर रहे हैं. चंडीगढ़ में माली, सफाई कर्मचारी और स्वास्थ्यकर्मी प्रशासन से जीपीएस घड़ी के इस्तेमाल को बंद करने की मांग कर रहे हैं.
देश के दर्जनों शहरों में नगरपालिका कर्मचारी सर्विलांस डाटा को कार्यक्षमता और वेतन से जोड़ने का विरोध कर रहे हैं. चंडीगढ़ में लॉन्च हुई प्रोजेक्ट के तहत कर्मचारी के लिए ड्यूटी के समय में जीपीएस घड़ी पहनना अनिवार्य है. कर्मचारी जो घड़ी पहनते हैं वह सेंट्रल रूम में डाटा भेजती है, सेंट्रल रूम में बैठा अफसर हर एक कर्मचारी की हलचल पर नजर रखता है. अगर कर्मचारी अपने हाथ से घड़ी उतार देता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाता है, हालांकि यह आंकड़े मौजूद नहीं है कि कितने कर्मचारियों को अब तक जुर्माना देना पड़ा या फिर कितना जुर्माना लगा. बेंगलुरू स्थित गैर लाभकारी संगठन आईटी फॉर चेंज की डिप्टी डायरेक्टर नंदन चामी कहती हैं, "कर्मचारी और नियोक्ता के जैसे रिश्ते होते हैं उसमें हमें यह जानना जरूरी है कि इस तरह की निगरानी की सीमाएं क्या हैं और कर्मचारियों के क्या-क्या अधिकार हैं."
चंडीगढ़ के नगर निगम कमिश्नर के के यादव कहते हैं, "हमारे कर्मचारी ड्यूटी पर काम कर रहे हैं या नहीं यह जानने का यह एक कारगर जरिया है." उनका कहना है कि वह भी ऐसी ही एक घड़ी पहनते हैं. यादव कहते हैं, "इस ट्रैकर से उनकी सैलरी जुड़ जाएगी और पूरा डाटा पब्लिक डोमेन में डाला जाएगा ताकि उनकी जवाबदेही बढ़ाई जा सके."
फेशियल रिकग्निशन तकनीक पर पूरी दुनिया में बहस छिड़ी हुई है. 2019 में भारत से लेकर अमेरिका तक इस तकनीक पर सवाल उठते रहे हैं. एक नजर डालिए कि कहां इसे बैन किया गया और कहां इस तकनीक की वजह से महिलाएं नहीं दे सकीं वोट.
तस्वीर: Imago/J. Tack
1. क्या है फेशियल रिकग्निशन तकनीक
यह बायोमेट्रिक सॉफ्टवेयर की एक श्रेणी है जो किसी व्यक्ति के चेहरे की विशेषताओं को गणितीय रूप से मैप करती है. डाटा को फेसप्रिंट के रूप में संग्रहीत करती है. यह सॉफ्टवेयर किसी व्यक्ति की पहचान के लिए डीप लर्निंग एल्गोरिदम का प्रयोग करता है. चेहरे की विशेषताओं के आधार पर लोगों की पहचान करने का यह कम्प्यूटरीकृत तरीका है. यह तकनीक कैमरे से चलती है.
तस्वीर: Imago/J. Tack
2. भारत: चायोस की चाय पर बहस
भारत की लोकप्रिय चाय परोसने वाली चेन चायोस को अपने ग्राहकों के गुस्से का तब सामना करना पड़ा जब उसके कुछ आउटलेट में सर्विस को बेहतर करने के नाम पर ग्राहकों पर इस फीचर का इस्तेमाल किया गया. सोशल मीडिया पर लोगों की शिकायत के बाद इस फीचर को वापस तो ले लिया गया, लेकिन भारत में मानवाधिकार संस्थाएं सरकार से लोगों की गोपनीयता की रक्षा के लिए कानून बनाए जाने की अपील कर रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/picturedesk/H. Ringhofer
3. ब्रिटेन: जब मॉल और म्यूजियम में होने लगा तकनीक का इस्तेमाल
अगस्त में एक खुलासे में पता चला कि लंदन के किंग्स क्रॉस क्षेत्र में प्रॉपर्टी डेवलपर ने फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल किया. ब्रिटेन में इस तकनीक को विरोध सहना पड़ा. बाद में यह सामने आया कि शेफील्ड मॉल और लिवरपूल म्यूजियम भी पुलिस के साथ मिलकर फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल कर रहे थे. नागरिक स्वतंत्रता समूह ने इस प्रवृत्ति को राष्ट्रव्यापी "महामारी" करार दिया.
तस्वीर: DW/Lisa Louis
4. अफगानिस्तान: जब वोटरों पर इस्तेमाल हुई यह तकनीक
अफगानिस्तान के अधिकारियों ने फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल वोटरों पर किया. तकनीक को इस्तेमाल करने का प्रमुख कारण था वोटरों की धोखाधड़ी को रोकना. इस तकनीक का नुकसान यह हुआ कि कई महिलाएं वोट नहीं दे पाई. 30 हजार पोलिंग बूथ में करीब 1400 बूथ में महिला स्टाफ नहीं होने के कारण बुर्का नशीं महिलाओं को इस तकनीक से नहीं जोड़ा जा सका.
तस्वीर: Fotolia/Franck Boston
5. अमेरिका: सैन फ्रांसिस्को ने इस तकनीक पर लगाया बैन
2019, मई में सैन फ्रांसिस्को अमेरिका का पहला शहर बना जिसने इस तकनीक के बेचने और इस्तेमाल दोनों पर बैन लगा दिया. अमेरिका में इस तकनीक पर बढ़ते असंतोष के बाद यह फैसला लिया गया. सरकार फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल कई सालों से कर रही है, लेकिन क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक के बाद यह कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो गई है. ऑकलैंड, बर्कले, और समरविले में भी ऐसे नियम लागू कर दिये गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance /dpa/B. Thissen
6. चीन: जब वन्यजीव पार्क को कोर्ट घसीटा गया
इस साल अक्टूबर में कानून के प्रोफेसर ने चीन के वन्यजीव पार्क के खिलाफ कोर्ट में शिकायत तब की जब पार्क ने सभी ग्राहको की पहचान के लिए फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल किया. चीन में इस तरीके का यह पहला मामला था. प्रोफेसर ने इस तकनीक के जरिए इकठ्ठा हुए डाटा को गैरजरूरी और उपभोक्ता के अधिकारों का उल्लंघन बताया.
तस्वीर: picture-alliance/Yonhap
7. कजाकिस्तान: बस में सैर के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल
कजाकिस्तान की राजधानी नूर-सुल्तान में मीडिया के मुताबिक यहां की बस में यात्रा करने वालों पर फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल किया गया. सामाजिक कार्यकर्ताओं और कुछ उपयोगकर्ताओं ने इस तकनीक की शिकायत की है. इस तकनीक को लोगों की निजी जिंदगी में घुसपैठ और अतिरिक्त निगरानी करने वाला बताया गया है.
तस्वीर: DW/Lisa Louis
8. दुनियाभर के यात्रियों पर नजर
पहली बार इस तकनीक पर सवाल तब उठे जब अमेरिका में यात्री ने ट्वीट कर अमेरिकी सरकार के उस अभ्यास पर सवाल उठाए जिसमें उसने देखा कि अमेरिका में आने और जाने वाले हर यात्री पर इस तकनीक का इस्तेमाल होता है. मानवाधिकार संस्थाएं इस तकनीक का विरोध करती आई हैं. एयरपोर्ट पर सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए भारत, सिंगापुर, ब्रिटेन और नीदरलैंड्स फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. एसबी/आरपी (रॉयटर्स)